जनसेवक जी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु'

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जनसेवक ऐसा जंतु है, जो प्रत्येक प्रकार की जलवायु में पाया जाता है। चाहे अफ्रीका के जंगल हों, चाहे थार या सहारा के मरुस्थल, चाहे पठारी क्षेत्र हों, चाहे मैदानी या पहाड़ी। इस जंतु को जन-सेवा करने का चस्का वैसे ही लग जाता है, जैसे कुत्ते को हड्डी चबाने का। हड्डी चबाने से कुत्ते के मुँह से जो ख़ून निकलता है, वह उसे हड्डी से निकला खून समझकर चटखारे लेता रहता है, ठीक यही स्थिति जन-सेवक जी की होती है। जन-सेवक अवसर की प्रतीक्षा नहीं करता, वरन अवसर उसे खुद ढूँढ़ लेता है। चाहे वह किसी गुफा में छुपा हो, चाहे किसी नाग के बिल में घुसा हो। सच्चा जन-सेवक भेड़ नहीं, बल्कि भेड़िया होता है। भेड़िया आदमी से जिस प्रकार स्नेह करता है, ठीक उसी प्रकार जन-सेवक भी करता है।

जन-सेवक जी को दूर से पहचाना जा सकता है। दो-चार मूर्ख सदैव इनके आसपास बने रहते हैं, जो इनकी हर कारस्तानी पर दाद देते रहते हैं। यदि जन-सेवक जी चलते-चलते फिसलकर गिर जाएँ, तो 'वाह! कितने सलीके से आप जमीन को छू रहे थे' कहकर आर्त्तनाद से इनकी प्रशंसा करते रहते हैं। तब जन-सेवक जी अपने पतन की शैली पर धूर्त्ततापूर्ण मुसकान बिखेरकर सबको कृतकृत्य करते रहते हैं। यह दृश्य कैमरे में कैद करने लायक होता है, क्योंकि जन-सेवक के पिछलग्गू हाथ बाँधे, सिर झुकाए, जबड़े भींचे अपने कुक्कुरमय जीवन को सराहते रहते हैं।

मुंशी तोताराम हमारी गली के जन-सेवक हैं। इसको इसी क्षेत्र के सभी मानव तथा मानवेतर प्राणी जानते हैं। ये कब, किसको देखकर आँखें फेर लेंगे या तोते की तरह आँखें नचाएँगे, कहा नहीं जा सकता। चाहे ये पीपल के नीचे खड़े हों, चाहे बबूल पर चढ़े हों, हर जगह आपको अपनी उपस्थिति का आभास करा देंगे, क्योंकि इन्हें जीवन की हर सीधी डाल पर उल्टा लटकने की आदत है, बेताल की तरह। ये सुबह ही सुबह नाश्ते के साथ एक गिलास निंदारस पीकर घर से निकल पड़ते हैं। प्रातःकाल क्योंकि परलोक सुधारने और इहलोक बिगाड़ने का सबसे अच्छा समय है, अतः ये घर-घर घूमकर निंदा का प्रसाद बाँटने में लग जाते हैं। ये जब जनता को सही परामर्श देने पर कमर कस लेते हैं, उस समय इनकी छवि दर्शनीय होती है। होठ सूअर की थूथन की तरह सिकु़ड़ जाते हैं। माथे पर जली हुई रस्सी जैसे बल पड़ जाते हैं। जब ये परम जड़ मंडली के बीच में बैठकर व्याख्यान देने लगते हैं, तब लगता है जैसे ये फूँक मारकर पूरे ब्रह्यांड को भस्म कर देंगे।

सच्चा सेवक ख़ुद यातना झेलकर दूसरों को यातना में ठेलकर जनसेवक का पद प्राप्त करता है। दोपहर का भोजन हजम करने के लिए ये अपने विरोधियों की सातों पीढ़ियों का श्रमपूर्वक चयन की गई गालियों से मन ही मन अभिषेक करते हुए चारपाई पर करवटें बदलते रहते हैं। इस समय इनकी जीवन-संगिनी श्रीमती धमाका देवी इन्हें हसरत भरी दृष्टि से देखती रहती हैं और अपने परम सौभाग्य को सराहती रहती हैं। चार सौ बीस जन्मों तक पूजा-पाठ करने के बाद उनको ऐसा सुयोग्य परम तपस्वी पति मिला है, जो खुद भी तपता है तथा औरों को भी तपाता रहता हैं।

मुंशी तोताराम को जनता कि बहुत चिंता है। उसी चिंता में ये रात-दिन दुबले होते रहते हैं। ये अपनी खिड़की में अपना गधे जैसा सिर घुसाए पूरी गली का अवलोकन करते रहते हैं। किसकी लड़की किसके घर जा रही है, किसी पत्नी सब्जी खरीदने गई है, थोड़े ही दिनों में किसका भंडाफोड़ होने वाला है, किसके लिए कितने प्रतिशत झूठ का प्रचार करना है आदि विषयों पर इनका महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक चिंतन चलता रहता है और इनकी गर्दन खिड़की में घुसी रहती हैं। चिंतन करने से ही व्यक्ति चिता पर लेटता है।

निठल्ला रहना पाप है। अतः ये पाप से बचने के लिए सदैव सक्रिय रहते हैं। अपना कूड़ा किसके आँगन में फेंका जाए कि बमचख मचे, कौन-से झूठ की तेल मालिश की जाए कि वह सच जैसा लगने लगे, कौन-से सच पर धूल डाली जाए आदि विषयों पर अपने जन्मजात एवं अर्जित संस्कारों से प्रेरित होकर चिन्तनरत रहते हैं। इनके ऐसे सात्त्विक कार्यों से हमारी गली के लोगों का मुफ्त में मनोरंजन होता रहता है। ये चरित्र के बहुत पक्के हैं। इन्हें अपने चरित्र के अतिरिक्त सबके चरित्र की चिंता रहती है। अपने परिवार के सिवा सबके परिवार की चिंता का धुन इन्हें काटता रहता है। इनका हृदय इतना विशाल है कि इन्हें अपनी कटी नाक की चिन्ता तनिक भी विचलित नहीं करती। ये दूसरों की लंबी नाक के लिए अपनी रातों की नींद और दिन का चैन खोने पर तुले रहते हैं।

विद्यार्थी जीवन में इन्होंने विद्या अर्जित करने के साथ-साथ सिरफिरे मथकटे शिक्षकों की लातें भी झेली थीं। अतः प्रत्येक चलते आदमी की टाँग खींचकर ये अपने छात्र-जीवन के गुरु-ऋण से मुक्त होने का सदा प्रयास करते रहते हैं। ये किसी के भी गिरने का उत्सव मनोयोग से मनाते हैं।

इनका सोचना है कि इस पुण्य कार्य में लिप्त रहने के कारण परम दयालु ईश्वर इनको भी किसी दिन गहरे कुएँ या गड्ढे में गिरने का अवसर प्रदान करेगा। उस पुण्य क्षण की प्राप्ति के लिए ये एक सच्चे साधक की भाँति जुटे हुए हैं। जब कभी तोताराम जी बाज़ार दर्शन के लिए निकलते हैं, उस समय इनके कंठ पर सरस्वती आकर विराजमान हो जाती है। ये अपनी 'पैतृक भाषा' का प्रयोग करके सबको भावमुग्ध कर लेते हैं। ये जब हाथ भाँजकर, गला फाड़कर अपनी गली के गिरते हुए 'चरित्र' पर दुख प्रकट करते हैं, उस समय 'खोपड़ी विहीन' श्रोता गद्गद हुए बिना नहीं रहते। गली वालों ने जब से इनको जन-सेवक का खिताब दिया, तब से ये अपनी हैसियत ठीक से समझने लगे हैं। प्रांतीय स्तर पर व्यक्तित्व भी इन्हें अपने सामने बहुत छोटा नजर आता है। कड़े परिश्रम, तिकड़म भरी लगन, कबाड़ फेंकू वक्तव्यों से ये अपनी गली की सफाई में जुट गए हैं। इन्होंने कुएँ में समंदर बंद कर लिया है। इनको ऐसा लगता है कि देश का पूरा कद इनकी ओछी मुट्ठी में सिमट गया है। हमारे लिए ऐसी विभूति का सान्निध्य पाना सचमुच पूर्वजन्म के संचित कुकर्मों का फल है। यदि हम लोग पूर्व जन्मों में भले आदमी रहे होते तो इनकी संगति से आज वंचित रह जाते। कहा भी है-'जनम जनम मुनि जतन कराहीं। तोताराम बन पावत नाहीं।' ये सिक्का उछालना और किसी की इज़्ज़त उछालना दोनों को अपना शगल समझते हैं।

ये बहुत दिनों से गले की बीमारी से ग्रस्त थे। नीम हकीम से लेकर कई डॉक्टरों और कविराजों की शरण ली, परंतु इनका कंठ रोग बढ़ता ही गया। किसी झाड़-फूँक करने वाले ओझा ने इनको बताया कि जहाँ भी तुम्हें 'माइक' दिखे, तुम उसकी निगाली मुँह से सटाकर बोलना शुरू कर दिया करो। बोलते समय बीच-बीच में मुस्कान भी बिखेर दिया करो। ऐसा करने से कंठरोग का शर्तिया इलाज हो जाता है। इन्हें ये बात जँच गई। अब ये चाहे-अनचाहे, बुलाए-बिन बुलाए माइक की तरफ उसी तरह खिंचे चले जाते हैं, जैसे गंदगी के ढेर पर मक्खियाँ खिंची चली जाती हैं। जन-सेवक जी ओझा के बताए 'गूढ़मंत्र' का आज भी पालन कर रहे हैं।

गली का अभिनंदन ज़्यादा टिकाऊ होता है, क्योंकि गली के जन-सेवक की हरेक के किचन से लेकर बाथरूम तक पहुँच होती है। जीवन में कई अवसर आए जब गली के लोग इनका अभिनंदन करने पर उतारू हो गए, परंतु हर बार किस्मत ने धोखा दिया। किए-धरे पर पानी फिर गया। ये गली के अभिनंदन से वंचित रह गए। मालाएँ ज्यों-की-त्यों धरी रह गईं तथा सूखकर छीतरे बन गईं। ऊपर कुछ भले लोगों के पाँच जोड़ी जूते बेकार चले गए।

अब तोताराम जी उदास हो गए हैं। गली की जनता ने उनका सही मूल्न्यांकन नहीं किया। उनकी स्थिति जनसेवक पद प्राप्त करने पर वैसी ही हो गई जैसे तेज धारवाला उस्तरा मिल जाने पर बंदर की हो जाती है।

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