जन्मपत्री / सुधा भार्गव

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‘मुझे डाक्टरी पढ़ने दो वरना घर से भाग जाऊँगी। ‘ इस वाक्य की गूंज से दीवारें तड़क गईं,आवाजें खामोश हो गईं, रुकावटें अपना साया मिटा अदृश्य होने लगीं। रास्ता उसका साफ हो गया।

आज वही टूटी –घुटी, बेदम बैठी है। उसके ही बेटी –दामाद ने उसकी बात अनसुनी कर दी और वह चुप रही। अपनी खामोशी से उसे खुद घृणा हो गई। काश वह तूफानी दरिया बन जाती और अपनी प्यारी पोती को डूबने से बचा लेती।

तीन माह पहले पोती सोनाली की शादी एक रहीस खानदान के शहजादे से हुई थी। सोनाली के पिता भी उनसे किसी बात में कम न थे। बेटी ने बी.कॉम. करके सी .ए.कर लिया था। बेटा एम .बी.ए. की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया। लड़का सुंदर व कमाऊ मिल गया बस बंसल साहब ने आनन –फानन में शादी रचा डाली। उनकी सास डॉ रूपाली ने दबी जबान में कहा भी –बेटी, अच्छी तरह जांच –पड़ताल करवा लो, जल्दी न करो।

-ओह माँ, तुम्हारा नजरिया हर समय डॉक्टर जैसा होता है। घर में भी और बाहर भी। दामाद जैसे नाजुक रिश्ते में ज्यादा डॉक्टरीपना किया तो रिश्ता हाथ से निकाल जाएगा। जन्मपत्री तो मिलवा ही ली है।

-सुनते हैं जन्मपत्री बनवाते समय जन्म का समय एक दम ठीक होना चाहिए। तुम्हारे तो चार घड़ियों में चार समय होते हैं। हाँ मोबाइल जरूर एक समय देते हैं पर सोनाली के जन्म के समय तो तुम्हारे पास यह सुविधा नहीं थी। इसलिए जन्मपत्री के भरोसे रहना ठीक नहीं।

-माँ आप तो सदियों से चली परम्पराओं को तोड़ने में लगी हैं ।

-प्राचीन समय में तो शादी के समय कुंडली मिलवाते ही नहीं थे। शिवजी ने जब पार्वती का, विष्णु ने लक्ष्मी का और ब्रह्मा ने सरस्वती का वरण किया तो कोई जन्मपत्री नहीं मिलवाई थी। हमारे देश में तो लोगों ने कमाने का इसे धंधा बना लिया है जहां से पैसा आता दिखाई दिया उसी के पक्ष में मिलन की गंगा बहा दी। बाहर के देशों में तो ऐसी कोई मान्यता नहीं है। लव मेरिज में तो जन्मपत्री खूंटी पर उपेक्षित ही टंगी रहती है पर शादी पहले ही लड़के लड़की एक दूसरे से भली भांति जान जाते हैं और यही होना चाहिए। मैंने भी तो लव मैरिज की थी, प्यार के आगे कौन कुंडली मिलाने की सोचता है। बेटी, आज के सभ्य समाज के मुखौटे पारदर्शी नहीं रहे। वे दीखते कुछ है और होते कुछ और हैं।

-मम्मी जी, हमें भी ज़िंदगी का कुछ अनुभव है। बेटी का क्या हम बुरा चाहेंगे? चिंता न कीजिये, सोनाली जहां जा रही है खुश रहेगी।

डॉ नानी ने अपने मुंह पर ताला जड़ लिया। अब ज्यादा वह अपनी और अपने पेशे की तौहीन नहीं चाहती थी।

धूमधाम से शादी हुई और अश्रुपूरित नेत्रों से सोनाली को विदा किया गया।

सुहागरात के समय सोलह श्रंगार किए अपने जीवन साथी की पदचाप सुनने को सोनाली आतुर थी। वह तो नहीं आया पर सास दौड़ती आई –बहू मेरे कमरे में चलो, काम है।

सोनाली आज्ञाकारी बच्चे की तरह सासु माँ के पीछे चल दी। सुसज्जित कमरे को देखकर उसने अंदाज लगाया शायद यही पर प्रीतम से भेंट होगी। नजरें घुमाते हुए कुछ ढूँढने लगी। तभी कानों में आवाज पड़ी-

बहू,अपनी सिंगार पट्टी और गहने उतार कर नहा धो ले और थोड़ा आराम कर ले। सारे दिन की थकी तो थी ही। नहाकर जैसे ही पलंग पर वह बैठी कमर सीधी करने की उसकी इच्छा बलवती हो उठी और उसी पलंग पर वह लुढ़क गई। सुबह सास को बगल में सोया देख अचकचा गई।

घर मेहमानों से खचाखच भरा हुआ था पर उस भीड़ में अपने पति का चेहरा देखने को उसकी आँखें तरस गईं।

वैसे सास ने उसे मिलने का मौका भी नहीं दिया और न पतिदेव ने उससे मिलने की कोशिश की। चौथे दिन सोनाली को पति के कमरे में जाने का अवसर मिल ही गया। धड़कते दिल से उसके कमरे में प्रवेश किया। लैम्प की रोशनी में उसका पति श्री शायद कुछ पढ़ रहा था। बड़ा बुझा –बुझा, उदास सा लग रहा था।

-आओ सोनाली –मेरे दो –तीन दिन से तबीयत ठीक नहीं। तुमसे मिल नहीं पाया। आज भी शरीर में बड़ा दर्द है।

-लाइए मैं दबा दूँ। किसी डाक्टर को बुला लेते हैं।

-नहीं नहीं –सारे फोन खराब हैं।

-ओह तभी ---। मैंने भैया को फोन मिलाया था पर क्नेकशन ही नहीं मिला।

असल में श्री ने माँ –बाप की जिद के कारण शादी तो कर ली थी पर वह सोनाली का सामना नहीं कर पा रहा था। वह जानता था कि पत्नी को वैवाहिक सुख नहीं दे पाएगा। माँ ने जब आत्महत्या की धमकी दी तो उसे घुटने टेकने पड़े । अपराध बोध से वह भी तड़प रहा था पर हीन भावना के कारण उचित निर्णय लेने में असमर्थ रहा। बाप ने अपने बेड रूम के अलावा सब जगह के टेलीफोन क्नेकशन कटवा दिये थे ताकि सोनाली अपने पीहर कोई फोन न कर सके।

अगले दिन उसकी नींद देर से टूटी। वह हड्बड़ा कर उठी। रसोई में बर्तनों की खड़खड़ाहट शुरू हो गई थी। रसोई में पहुंची तो देखा -सासु जी पहले से ही वहाँ विराजमान हैं ।

-बहू यह उठने का समय है क्या। नहा धोकर आओ और मेरा काम हल्का करो। कब से इंतजार में थी –कब बहू आए और घर सम्हाले। सास ने अपनी जबान को चाशनी में इस कदर लपेटा कि सोनाली काम की चपेट में आती चली गई। उसकी नौकरी का तो सवाल ही नहीं उठता था। सास ससुर को हमेशा डर रहता कि कहीं वह किसी के सामने अपना दर्द न उड़ेल दे और उंनकी इज्जत की किरकिरी हो।

सोनाली बड़े आश्चर्य में थी कि माँ –बाप ने उसकी एक बार भी सुध न ली। ससुराल तो शहर की शहर में है एक बार तो आ जाते। उसी शाम फोन की घंटी घर्घरा उठी। सोनाली भागी भागी फोन के पास गई मानो प्यासा कुएँ के पास गया हो।

सास कड़ककर बोली –खबरदार जो फोन उठाया। इस अपरिचित रौद्र रूप देख सोनाली सहम गई।

फोन उसके पिता जी का था।

-बेटी कैसी है जी, बहुत दिनों से बातें ही नहीं हुईं। उसे जरा बुला दीजिये।

-अजी वह यहाँ कहाँ है! बेटा –बहू तो कुल्लू –मनाली हनीमून को गए हैं।

एक हफ्ते बाद लौटेंगे।

-ठीक है जी, नमस्कार।

इस झूठ ने सास की कुटिल मनोवृति से पर्दा हटा दिया। पर सोनाली समझ न पाई कि आखिर उसका कसूर क्या है। पति का रूखा व्यवहार--- सास का छल –कपट और ढेर सारे कड़े पहरे –क्यों परछाईं की तरह उसके साथ चल रहे हैं। उसकी उमंगें उसके अरमान भी उसे दगा दे गए थे।

उधर सोनाली की माँ का बुरा हाल था। सोते –सोते चौंक जाती और उसका नाम लेकर पुकारती और कहती --मेरी बेटी को बुलाओ –वह मुझे बुला रही है –मुझे उसके पास ले चलो। मुश्किल यह थी कि नए –नए समधाने बिन बुलाए जाया कैसे जाए?

सोनाली की हालत देख रूपाली ने बिना सूचना दिए पोती की ससुराल जाने का निर्णय कर लिया । कीर्तिनगर से फरीदाबाद पहुँचने में मुश्किल से डेढ़ घंटा लगा होगा। सुबह –सुबह ही दोनों को अपनी देहली पर देख सोनाली की सास मुश्किल में पड़ गई और पैरों से उसे जमीन खिसकती नजर आई।

सास उस समय सोफे पर बैठी टी .वी. देख रही थी और सोनाली फर्श का पोंछा लगा रही थी। उसकी पीठ दरवाजे की ओर थी इसलिए न तो वह अपनी नानी और माँ को देख पाई और न वे सोनाली को पहचान पाई। समधिन ने जरूर बनावटी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए कहा –आइए समधन जी, सुबह –सुबह इधर कैसे?

-यही से गुजर रहे थे कि सोचा –आप लोगों से मिल लें। किधर है हमारी पोती? रूपाली ने कहा।

-अरे सोनाली, देख तो कौन आया है? यह तो ससुराल में इतना रम गई है कि आप लोगों को याद ही नहीं करती।

सोनाली ने मुड़कर देखा। भूल गई अपनी दुर्दशा, पर छिपा पाई क्या अपने दिल के घाव! नानी के गले लगकर फफक पड़ी। बिना कहे ही बहुत कुछ कह गई।

शहद सी मीठी आवाज में बोल फिर बजने शुरू हो गए -

-सोनाली, मेहमानों को आदर सहित जलपान तो कराओ। आपकी बेटी तो बहुत लायक है। नौकर की गैरहाजिरी में इसने अकेले सारा काम सँभाल लिया है। मुझे तो फली भी नहीं फोड़ने देती।

रूपाली अब सास की चिकनी –चुपड़ी बातों में आने वाली नहीं थी।

उसने दो टूक बात करते हुए स्पष्ट कह दिया –समधन जी, हम सोनाली को अपने साथ ले जा रहे हैं। वह बड़ी उदास और कमजोर सी लग रही हैं।

-जल्दी किस बात की है! दो –तीन दिन बाद भेज देंगे।

इतने में सोनाली का पति ऑफिस जाने के लिए कमरे से बाहर आया। अपनी सास को देखकर उसे साँप सूंघ गया। समय की नजाकत को देखकर बोला –माँ, सोनाली को जाने दो। शादी के बाद तो वह सबसे मिली ही नहीं है। दो दिनों बाद मैं उसे ले आऊँगा।

-हाँ बेटा, मिलते भी कैसे! दो माह तो तुम हनीमून के चक्कर में बाहर ही रहे।

-हनीमून ---हनीमून तो हम जा ही नहीं पाए।

-क्यों? रूपाली चौंक पड़ी।

-मेरे तबीयत ठीक नहीं रहती।

-ऐसी तुम्हें क्या बीमारी है? जवान हो, स्वस्थ हो! आओगे तो तुम्हें अपने डॉक्टर मित्र से मिला देंगे। रोग निदान करने में कुशल हैं।

श्री इन दो महिलाओं के बीच बुरी तरह फंसा। हर बात में रजामंदी देने में ही अपनी भलाई समझी।

एकांत मिलते ही नानी ने अपनी पोती से कहा-अपना सामान बांधकर जल्दी यहाँ से निकल चलो। कोई केंकड़ा आकर बाधा न पैदा कर दे।

सोनाली जैसे ही नहा –धोकर तैयार हुई वे झटपट चल दिए। सोनाली की सास कहती रह गई –पानी तो पी लीजिए ---चाय भी आ गई। उसके सारे शब्द हवा में ही तिरकर रह गए।

ससुराल की देहली पार करते ही सोनाली सिसक पड़ी। हर बात का जबाब उसकी खामोशी थी। घर में अकेलेपन से उसे दहशत होती। कभी–कभी वह बड़ी बहकी–बहकी बातें करती और उसे भय बना रहता कि कहीं उसके माँ–बाप उसे दुबारा ससुराल न भेज दें। जब भी उसके पति के बारे में कोई बात पूछता तो बस कहती –पता नहीं।

-जाने क्या कहती रहती है –पता नहीं –पता नहीं। जब नवविवाहिता एक हो जाते हैं तो हर सांस एक दूसरे के नाम हो जाती है। सोनाली की माँ अपनी बेटी के जबाव से खीझ पड़ी।

-पर ये तो एक हुए ही नहीं। डाक्टर नानी की आँखों ने घूरते हुए कहा।

किसी में अब इतना साहस न बचा था कि उसका विरोध कर सके। सोनाली के पापा तो अपनी सास के सामने भीगी बिल्ली बन गए थे।

श्री के आने का इंतजार था। उसके आते ही रूपाली, सोनाली और श्री को शारीरिक परीक्षण कराने के लिए डॉ बैनर्जी के क्लीनिक में ले गई तो डॉ बैनर्जी के माथे पर पसीने की बूंदे झिलमिला उठीं। रूपाली समझ गई कि दाल में जरूर कुछ काला है। उसने ज्यादा पूछाताछी न की क्योंकि रिपोर्ट के आधार पर ही उचित रूप से किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता था और रिपोर्ट शाम को मिलनी थी।

शाम होते ही डॉ बैनर्जी का फोन खड़खड़ा उठा –डॉ रूपाली आपका दामाद तो नामर्द है। ऐसे लोग अब्बल दर्जे के कायर होते हैं। वह अपने माता पिता की अनुचित बात का कभी विरोध न कर पाएगा और ऐसी दशा में ताज्जुब नहीं कि वे सोनाली बेटी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करके शारीरिक यातनाएँ दी जाएँ। सभ्य समाज में सताने के तरीके भी बड़े सभ्य होते जा रहे हैं। मार –पीट करने से तो रंगे हाथों पकड़े जाने का डर रहता है पर दिल को ऐसी –ऐसी चोटें पहुँचते हैं कि अकेली औरत खड़ी ही न रह सके। मेरे बात मानो तो उसे ससुराल भेजने की जरूरत ही नहीं। न वह वहाँ वैवाहिक सुख पा सकेगी और न संतान सुख। उसकी शादी –शादी है ही नहीं सिवाय धोखाधड़ी के।

रिसीवर रूपाली के हाथ से छिटककर दूर जा पड़ा और वह सिर थाम कर सोफे पर बैठ गई। भारी मन से उसने यह सत्य उजागर किया। माँ –बाप के पैरों तले से जमीन धसक गई। सोनाली को देखकर तो ऐसा लगा मानो रक्त की एक –एक बूंद निचोड़ ली गई हो।

दूसरे दिन श्री अपने घर जाने को तैयार था पर सोनाली का कुछ अता –पता ही न था। नाश्ता करने के बाद उसने प्रश्न सूचक दृष्टि से ससुर की ओर देखा।

-सोनाली तुम्हारे साथ नहीं जा सकेगी। उसकी तबीयत ठीक नहीं। उन्होंने कहा।

-तो फिर कब मिलना होगा।

-अब तो दामाद जी, कोर्ट में ही मिलना होगा। रूपाली बिफर पड़ी ।

कोर्ट का नाम सुनते ही श्री शीघ्र ही उनकी आँखों से ओझल हो गया।

अब तो घायल शेरनी की तरह सोनाली की नानी अपनी बेटी –दामाद पर टूट पड़ी –काश तुमने मेरी सुनी होती! जन्मपत्री के बदले मेडिकल जांच करवाकर वैवाहिक योग्यता की पत्री ली होती तो मेरी पोती का जीवन बरबाद न होता। उसको सँभलने में न जाने कितना समय लगेगा।

सोनाली के माता - पिता भी पश्चाताप की आग में झुलस रहे थे पर बहुत देर हो चुकी थी।