जन-गण-मन / विजयानंद सिंह

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विजयानंद विजय »

मैदान के चारों ओर भीड़ लगी हुई थी।स्कूली बच्चे, राज्य पुलिस व एनसीसी के जवान मुस्तैद थे।झंडोत्तोलन होने वाला था....आज स्वतंत्रता दिवस पर।

नियत समय पर ज्योंहि मुख्यमंत्री ने झंडा फहराया, बच्चे,पुलिस व एनसीसी के जवानों के साथ जनता ने भी जोरदार सलामी दी और " जन गण मन...." फ़िजां में गूँजने लगा।

मेरी निगाह ध्वज-मंच से होकर अफसरों, मैदान में खड़े बच्चों, सिपाहियों, जवानों से होती हुई भीड़ के उस हिस्से पर गयी, जहाँ खादी वस्त्रों में, गाँधी टोपी पहने एक कृशकाय वृद्ध राष्ट्रीय ध्वज की ओर एकटक देख, सलामी देते हुए पूरे जोश से राष्ट्रगान गा रहे थे।

उनके हावभाव, उनका स्वर, उनकी मुद्रा सभी से अलग थी। जब राष्ट्रगान खत्म हुआ, तो मैं उनके पास गया....। उनकी आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे। हाथ जोड़कर मैंने उनसे उनका परिचय पूछा। " मैं एक स्वतंत्रता सेनानी हूँ...।" - उन्होंने डबडबाई आँखों से, कांपती आवाज में कहा.....।

अब मेरा रोम-रोम कांप रहा था !