जमा-हासिल / कामतानाथ

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एक : पूर्वार्द्ध

यूनियन के सर्कुलर देख रहा था तभी उसे ध्यान आया कि छोटे भाई का पत्र अभी तक उसकी जेब में पड़ा है, जिसे उसने अभी पढ़ा नहीं है। सुबह जब वह ऑफिस आने के लिए साइकिल निकाल रहा था, तभी पोस्ट-मैन उसे दरवाजे पर मिला था। उसने पत्र जेब में डाल लिया था और रोज की तरह ऑफिस चला आया था।

ऑफिस पहुंचने में उसे देर हो गई थी। आज उसका तीसरा क्रास लगने वाला था, जिसके मायने होते हैं एक दिन की छुट्टी की कटौती। उसने साइकिल बाहर गेट पर ही खड़ी कर दी और कैरियर से बैग निकाल कर जल्दी से सेक्शन की ओर भागा। मस्टर रोल सब-एकाउंटेंट की मेज पर पड़ा था। सौभाग्य से क्रास अभी तक नहीं लगा था। हस्ताक्षर करके उसने बैग सीट पर पटका और बाहर निकल आया। साइकिल उठा कर स्टैंड पर रखी और सड़क पर सिगरेट लेने चला आया। पान की दुकान से सिगरेट सुलगा कर वह वापस जा रहा था, तभी दरबान ने उसे एक तार तथा एक एक्सप्रेस डिलिवरी पत्र दिया। तार खोलकर उसने पढ़ा। आल इंडिया एसोसिएशन ने हड़ताल का नोटिस दे दिया था। जल्दी ही सी. ई. सी (सेन्ट्रल एक्जिक्युटिव कमेटी) की मीटिंग होने वाली थी। उसी की सूचना थी। एक्सप्रेस डिलिवरी पत्र भी उसने खोल लिया, परंतु पढ़ा नहीं। सोचा सीट पर आकर पढ़ेगा। केंद्रीय श्रम मंत्री से अखिल भारतीय नेताओं की बातचीत का विवरण था।

सीट पर आकर उसने पत्र पढ़ा। श्रम-मंत्री ने तीन सप्ताह का समय मांगा था, वित्त मंत्रालय से बात करने के लिए। उनका कहना था कि वित्त मंत्रालय की सहमति के बिना कुछ भी संभव नहीं है। केन्द्रीय नेताओं का विचार था कि यह टालने वाली बात है। इससे पहले भी केंद्रीय सरकार के रवैये का कटु अनुभव उन्हें था।

पत्र और टेलीग्राम लेकर वह दास के पास गया। दास यूनियन के प्रेसीडेंट हैं। उनकी राय से उसने शाम को कार्यकारिणी की बैठक का नोटिस निकाल दिया। हड़ताल के मायने उसे काफी परिश्रम करना पड़ेगा। पिछले बारह वर्षों से वह यूनियन में कार्य कर रहा है। परंतु आज तक उसने यह नहीं देखा कि यूनियन के किसी आवाहन को सदस्यों ने सहजता से स्वीकार लिया हो। और फिर इधर, पिछले तीन-चार वर्षों में तो दो एक प्रतिद्वंद्वी यूनियनें और बन गई हैं। उनकी सदस्यता अधिक नहीं है। परंतु विघटन कार्य के लिए सदस्यता की आवश्यकता तो होती नहीं।

कोई ग्यारह बजे वह सीट पर लौट कर आया, तो लाल साहब ने उसे याद दिलाया कि आज उसे तमाम सेक्शनों की स्टेशनरी इशू करनी है, मेसर्स पी. एन. भाटिया के दो बिल भी पास करवाने हैं। स्टेशनरी वाल्ट की कुंजी लेकर वह उठने वाला ही था कि डाक सेक्शन का चपरासी आज की डाक उसे दे गया। यूनियन की सारी डाक पहले उसी के पास आती है। चार-पांच लिफाफे थे। उन्हें खोल रहा था, तभी उसे छोटे भाई के पत्र का ध्यान आया।

यूनियन के पत्रों में कोई खास बात नहीं थी। अधिकतर दूसरे केन्द्रों पर चल रहे प्रोग्रामों की रिपोर्टें थीं। एक पत्र रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन के यहां का था, जिसमें यूनियन के सालाना रिटर्न्स मांगे गए थे। उसे खीज हुई। आज से दस दिन पहले उसने रिटर्न्स तैयार कर दिए थे। सबके हस्ताक्षर भी हो गए थे। परंतु किसी को इतनी फुर्सत नहीं मिली कि उन्हें डिस्पैच कर देता। कार्यकारिणी के एक-दो सदस्यों को छोड़ कर कोई जरा-सा भी काम नहीं करता। सर्कुलर निकालने से लेकर डिस्पैच और फाइल करने तक का सारा काम उसे स्वयं निबटाना पड़ता है। उसे ध्यान आया, उसने स्वयं मेहता को कहा था कि ट्रेजरार से एडवांस लेकर डाक टिकट मंगवा ले और रिटर्न्स भिजवा दे, नहीं तो रजिस्ट्रार के यहां से नोटिस आ जाएगा। वहीं हुआ।

पत्र पढ़ कर उसने क्लिप करके ड्रार में रख दिया और वाल्ट की कुंजी लेकर चपरासी को आने को कह कर नीचे चल दिया। छोटे भाई का पत्र अब भी उसकी जेब में था। उसने सोचा अब वाल्ट में ही जाकर उसे पढ़ेगा। वाल्ट खोलकर वह अंदर गया तो देखा मेज-कुर्सी पर खासी गर्द जमा थी। तीन आदमियों की ड्यूटी बारी-बारी से वहां झाड़ू लगवाने की है, परंतु उसके अतिरिक्त और कोई कभी इस ओर ध्यान नहीं देता। सभी सामान निकाल कर, ताला लगा कर चल देते हैं। बैठना सिर्फ उसी को पड़ता है। उसने इधर-उधर देखा। शायद कोई कपड़ा पड़ा हो। आखिर रूमाल निकाल कर उसी से मेज-कुर्सी झाड़नी पड़ी। चपरासी अभी तक नहीं आया था। वह छोटे भाई का पत्र खोल कर पढ़ने लगा।

उसने लिखा था कि पत्नी को भेज पाना उसके लिए संभव नहीं है। उसका स्वास्थ्य आजकल ठीक नहीं चल रहा है। और फिर पिंकी के दांत निकल रहे हैं। उसे दिन-भर दस्त आते रहते हैं। डॉक्टर बनर्जी का इलाज हो रहा है। अभी कोई खास फायदा नहीं है। वह स्वयं कोशिश करेगा अगले इतवार को आने की। मां को, उसने राय दी थी, अस्पताल में भरती करा दो तो अच्छा रहेगा। किरायेदार मकान छोड़ गए हैं। घर में ताला पड़ा है। हाउस और वाटर टैक्स के नोटिस आए हैं। पिछले दिनों वह उधर गया था, तो नोटिस दरवाजे पर चिपके थे। छप्पन रुपये अस्सी पैसे देने हैं। भेज दे तो वह जमा करा देगा। अन्यथा वह सीधे कारपोरेशन को मनीआर्डर कर दे। नोटिस का नंबर और तारीख उसने पत्र में लिख दी थी। घर की कुंजी वह इतवार को आएगा, तो लेता आएगा। अन्यथा किसी और के हाथ भिजवा देगा।

पत्र पढ़कर उसने जेब में रख लिया। पत्र उसके पत्र के उत्तर में था, जिसमें उसने लिखा था कि वह पत्नी को भेज दे, क्योंकि मां की तबीयत बहुत खराब चल रही है। वह बहुत कमजोर हो गई हैं। पेट में कुछ वर्म आ गया है। उठने-बैठने में तकलीफ होती है। दिन भर कराहती रहती हैं। उसकी पत्नी के प्रसव में कुछ ही दिन रह गए हैं। किसी भी दिन उसे अस्पताल जाना पड़ सकता है।

वह सोचने लगा कि अब क्या प्रबंध हो सकता है। मां अस्पताल जाने के लिए तैयार नहीं हैं। अस्पताल से उन्हें जाने क्यों डर लगता है। वह कहती हैं, वहां डॉक्टर उनका पेट चीर डालेगा। और फिर वह अस्पताल जाने के लिए राजी भी हो गई, तो वहां उनका अकेले रहना संभव नहीं है। किसी न किसी को उनके साथ रहना होगा। वह स्वयं रह सकता है, परंतु जनाने वार्ड में पुरुषों के रहने की आज्ञा नहीं है। इस सबके बावजूद सबसे बड़ी बात यह है कि अस्पताल में भरती कराना भी अपने आप में एक बड़ी समस्या है। बिना किसी सोर्स के यह संभव नहीं है और सोर्स उसके पास है नहीं।

तभी उसे ध्यान आया कि डॉक्टर ने मां का पेशाब टेस्ट कराने के लिए कहा था। पेशाब की शीशी वह सुबह जल्दी में घर पर ही भूल आया है। उसने सोचा स्टेशनरी निकलवा चुकने के बाद वह थोड़ी देर की छुट्टी लेकर घर से शीशी ले आएगा।

आज ही उसे रुपयों का प्रबंध भी करना होगा। उसके पास मुश्किल से दस-पंद्रह रुपये रह गए हैं। यदि आज फिर डॉक्टर ने मां को ग्लूकोज का इंजेक्शन दिया, तो आठ रुपये उसी में निकल जाएंगे। पांच रुपये पेशाब टेस्ट कराने में लगेंगे। एक-दो रुपये के फल आदि लेने होंगे।

छोटे भाई ने किरायेदारों के मकान छोड़ने की बात लिखी थी, परंतु किराए के बारे में कुछ भी नहीं लिखा था कि वह उसे दे गए हैं, या नहीं। मकान का टैक्स भी जमा करना होगा। अन्यथा पाइप कट गया, तो उसे दोबारा ठीक कराने में और ज्यादा खर्च होगा।

उसने छोटे भाई को बहुत समझाया था कि पिता तो अब रहे नहीं, वह उसी मकान में वापस आ जाए, परंतु वह राजी नहीं हुआ। परिणामस्वरूप जबसे उसका ट्रांसफर हुआ, मकान खाली पड़ा है। एक वर्ष तक खाली पड़ा रहा तो उसने छोटे भाई से कहा कि उसमें कोई किरायेदार ही रख दे। परंतु छोटे भाई ने इंकार कर दिया। उसने कहा, मकान से मेरा कोई भी मतलब नहीं है, जैसा तुम चाहो करो। पिता जीवित थे, तभी वह मकान छोड़कर चला गया था-विवाह के कुछ दिनों पश्चात् ही घर के खर्च को लेकर कुछ बातचीत हुई थी। छोटा भाई कुल सौ रुपये देता था। विवाह से पहले भी इतना ही देता था। विवाह हो जाने के कुछ दिनों बाद पिता ने कहा कि अब वह कुछ अधिक दिया करे। पिता ने ऐसा अपने वायदे के खिलाफ किया था। छोटा भाई विवाह करने को तैयार नहीं था। उसका कहना था कि जितना उसे मिलता है, उसमें उसका ही खर्च नहीं चल पाता। विवाह के बाद खर्च और बढ़ जाएगा। पिता जाने क्यों उसके विवाह के लिए जल्दी मचा रहे थे। उन्होंने कहा-वह अभी जितना दे रहा है, विवाह के बाद भी उतना ही देता रहे। घर में एक प्राणी के बढ़ने से खर्च में कोई खास फर्क नहीं पड़ जाएगा। वैसे ही एक आदमी का खाना रोज बच जाता है।

पिता का सोचना गलत था। उनका एस्टीमेट शुरू से ही गड़बड़ा गया था। वह समझते थे, दहेज में जो कैश मिलेगा, उसी में विवाह का खर्च निबट जाएगा। परंतु ऐसा हुआ नहीं। कोई सात-आठ सौ कर्ज हो गया। उसका सूद भी माहवार जाने लगा था। शुरू में चार-छह महीने पिता खामोश रहे। तब उन्होंने छोटे भाई को वार्षिक इंक्रीमेंट मिलने पर उससे कहा कि वह कुछ और दिया करे। छोटे भाई ने उत्तर दिया कि उसने पहले ही कह दिया था कि वह और नहीं दे पाएगा। इसी को लेकर बात बढ़ी और उसने मकान छोड़ दिया। उसे लेबर कॉलोनी में दो कमरों का फ्लैट मिल गया। शायद वह पहले ही मकान छोड़ने का इरादा बना रहा था। तकलीफ भी थी उसे। नीचे के हिस्से में रहना पड़ता था। वहां सीलन थी। धूप बिल्कुल नहीं पहुंचती थी। पंखे के बावजूद गर्मियों में रात में परेशानी होती थी।

उसने छोटे भाई को समझाया था। पिता की मृत्यु के बाद मां ने भी उससे बहुत कहा, परंतु वह वापस नहीं आया। तभी उसका ट्रांसफर हो गया और मकान खाली हो गया। उस समय भी उसने छोटे भाई को कहा था कि अब वह आ जाए, उसे तकलीफ भी नहीं होगी। परंतु वह आने को तैयार नहीं हुआ। आखिर तब काफी दिनों मकान खाली पड़ा रहा, फिजूल में बिजली बम्बे का टैक्स भरना पड़ा, तो उसने उसे किराये पर उठा दिया।

श्यामलाल रजिस्टर लेकर आ गया था। वह स्टेशनरी निकलवाने लगा। पहले उसने सोचा, आज सभी सेक्शनों की स्टेशनरी निकलवा देगा। परंतु फिर उसने इरादा बदल दिया। उसे एक बार घर भी जाना था। अतः उसने कुल पांच सेक्शनों के इंडेंट निकाल लिए। बाकी रख दिए। वहीं कुर्सी पर बैठे-बैठे वह आवाज देता जाता-चौबीस ब्लाटिंग, आठ पेंसिल, चार रबड़, छह निब, बारह कार्बन, एक पैकेट सीलिंग वैक्स, एक वेस्ट पेपर बास्केट, तीन कलम, दो पैकेट पिन, दो पैकेट जेम क्लिप आदि और श्यामलाल सामान निकालता जाता। उसे एक महीने से ऊपर स्टेशनरी सेक्शन में आए हो चुका है, परंतु उसने आज तक एक बार भी स्टॉफ पोजीशन नहीं मिलाई। जो इशू करता है, स्टॉक रजिस्टर में पोस्ट कर देता है। एक बार कोशिश की भी तो देखा, पांच हजार लिफाफों की जगह साढ़े आठ हजार और तेरह बड़े ब्लाटिंग पैड की जगह सत्रह थे। पास बुकें दस कम थीं। इसी तरह और सामान भी बेहिसाब था। उसने सब-एकाउंटेंट को बताया, तो उन्होंने कहा, ‘‘सब ऐसे ही चलता है।’’ चलने दो, उसको क्या करना, उसने सोचा। स्टेशनरी निकाल कर वह ऊपर आया तो देखा, एक्सचेंज हाल में लोग पार्टी खा रहे थे। बतरा ने उसे एक समोसा ऑफर किया, तो उसने ले लिया।

किस बात की पार्टी है, उसने पूछा, तो पता चला, हुसैन साहब ने नई शादी की है। उसने देखा, हुसैन साहब ने दाढ़ी मुड़वा दी थी। बालों में खिजाब लगाए थे और टेरिलिन की बुशर्ट पहने थे। लोग पार्टी खा रहे थे और हुसैन साहब पर जुमले भी कस रहे थे। अभी दो महीने नहीं हुए होंगे उनकी पत्नी को मरे और पचास बरस की उमर में उन्होंने नया विवाह रचा लिया था।

उसने श्यामलाल से कहा कि स्टेशनरी उसकी सीट पर ले जाकर रख दे, वह थोड़ी देर में आता है। श्यामलाल चला गया। वह वहीं बतरा की बगल में बैठ गया। लोग उससे सरकार से केन्द्रीय नेताओं की बातचीत के परिणाम के बारे में पूछने लगे। सुबह आई सूचना के आधार पर उसने बताया कि वार्ता असफल हो गई है। आल इंडिया ने हड़ताल का नोटिस दे दिया है। जल्दी ही सी. ई. सी. की मीटिंग होगी। लोगों ने सरकार को कोसा, परंतु साथ-ही-साथ हड़ताल के सफल होने में संदेह भी प्रकट किया।

तभी श्यामलाल उसे बुलाने आ गया-‘‘भाटिया का आदमी आया है। लाल साहब ने आपको सलाम दिया है।’’

वह उठकर चला गया।

श्यामलाल को उसने जिन सेक्शनों की स्टेशनरी वह निकाल लाया था, उन लोगों की स्टेशनरी लेने के लिए बुलाने भेज दिया और भाटिया के बिलों का पेमेंट आर्डर बनाने लगा। तब तक वह आदमी बैठा लाल साहब से बातें करता रहा।

पेमेंट आर्डर बनाकर उसने एकाउंटेंट के पासे हस्ताक्षर के लिए भेज दिया और लाल साहब से घर जाने के लिए छुट्टी मांगने लगा-‘‘आर्डर थोड़ी देर में आ जाएगा, तो आप इन्हें दे दीजिएगा, मुझे जरा घर तक जाना है। कोई एक घंटा लग जाएगा।’’ उसने कहा।

‘‘क्या बात है?’’ लाल साहब ने पूछा।

‘‘मां की तबियत खराब है। यूरीन टेस्ट कराना था। मैं सुबह जल्दी में घर पर ही भूल आया।’’

‘‘जाइए। स्टेशनरी तो सब निकाल दी न?’’

‘‘कुछ सेक्शन रह गए हैं। कल पूरा हो जाएगा।’’

‘‘हां, निबटा दो भाई! लोग नाक में दम किए हैं। हालांकि आफिस में कितनी इस्तेमाल होती है और कितनी घर जाती हैं, सभी जानते हैं।’’

उसने घड़ी देखी। एक बजने वाला था। बाहर आकर उसने स्टैंड से साइकिल उठाई और घर के लिए चल दिया। घर पहुंचा, तो पत्नी बाहर कमरे में लेटी थी। उसने कितनी बार उसे समझाया है कि दिन में थोड़ी देर मां के पास बैठा करे। कुछ बात किया करे। परंतु उसकी आदत है कि मां से खाने आदि के लिए पूछने से अधिक बात नहीं करती। मां को इसका दुख रहता है। परंतु वह जानता है, पत्नी स्वभाव वश ही ऐसा करती हैं। अन्यथा उसे मां से चिढ़ हो, ऐसी बात नहीं।

‘‘जल्दी कैसे आ गए?’’ पत्नी ने पूछा।

‘‘पेशाब टेस्ट कराना था, सुबह जल्दी-जल्दी में भूल ही गया। बंटी अभी नहीं आया स्कूल से?’’

‘‘क्यों? कितना बजा है?’’

‘‘सवा एक।’’

‘‘अभी कैसे आ जाएगा? साढ़े तीन पर आता है, तुमको यह भी नहीं पता। कैसे बाप हो!’’

वह हंसने लगा। बंटी है किस क्लास में, यह भी उसे मालूम नहीं है। सोचा पत्नी से पूछे। परंतु फिर टाल गया। शाम को बंटी से ही पूछेगा।

तभी अंदर कमरे में मां के कराहने की आवाज आने लगी। उसे लगा कि उसकी आवाज सुन कर ही मां कराहने लगी हैं।

‘‘कैसी तबीयत है?’’ उसने अंदर आकर मां से पूछा।

‘‘कौन है?’’ मां ने आदतन कराहते हुए पूछा। उनकी आंखों की रोशनी पहले ही से बहुत कम है।

‘‘मैं हूं।’’ उसने कहा।

‘‘पेट में दर्द हो रहा है।’’

‘‘कम नहीं हुआ कुछ?’’

‘‘कहां कम हुआ। देखो, कितना फूला है। सांस तक लेने में दर्द होता है।’’

‘‘दवा दी थी दोपहर वाली?’’ उसने पत्नी से पूछा।

‘‘हां।’’

‘‘खाना क्या खाया?’’

‘‘कुछ खाया ही नहीं।’’ उत्तर पत्नी ने दिया।

‘‘क्यों? खाया क्यों नहीं?’’ उसने मां से पूछा।

‘‘अच्छा ही नहीं लगता है, जैसे हर चीज में नीम की पत्ती मिली हो।’’

‘‘संतरा भी नहीं खाया?’’

‘‘न।’’ पत्नी ने कहा।

‘‘क्यों? संतरा क्यों नहीं खातीं?’’

‘‘हम कुछ नहीं खाएंगे।’’ मां का कराहना बंद नहीं हुआ।

‘‘नहीं खाओगी, तो खाली पेट दवा नुकसान करेगी।’’

‘‘नुकसान करे, चाहे फायदा। जब अच्छा ही नहीं लगता तो कैसे खा लूं!’’

‘‘दवा की तरह खा लो।’’

‘‘पेट जो फूल आता है।’’

‘‘खाली रहने से और गैस बनेगी।’’

मां चुप रहीं।

‘‘संतरे का रस निकाल कर दो तुम।’’ उसने पत्नी को आदेश दिया। फिर मां से बोला, ‘‘थोड़ा सा पी लो।’’

मां कराहती रहीं।

‘‘शाम हो गई क्या?’’ थोड़ी देर बाद उन्होंने पूछा।

‘‘क्यों? अभी तो डेढ़ बजे हैं।’’

‘‘हम समझे शाम हो गई। तुम जल्दी आ गए क्या?’’

‘‘हां, अभी लौटर फिर जाना है।’’

उसने देखा, कमरे की खिड़कियां सब बंद थीं। उसने खिड़कियां खोल दीं। पंखा भी बंद था।

‘‘पंखा क्यों बंद है?’’ उसने पूछा।

‘‘अम्मा को सर्दी लगती है।’’ पत्नी ने उत्तर दिया।

वह चुप हो गया।

पेशाब लेकर वह पहले पैथालोजी गया। डाक्टर ने रसीद बनाकर दी। कहा, सात बजे तक रिपोर्ट मिल जाएगी।

ऑफिस लौटकर आया, तो लाल साहब सीट पर नहीं थे। उसकी मेज पर एक पर्चा रखा था। लाल साहब ने रखा था। लिखा था कि मैनेजर के रेजिडेंस के टेलीफोन का बिल अभी तक नहीं आया है। एक सप्ताह के अंदर जमा होना है, अन्यथा फोन कट जाएगा। वह एक्सचेंज को पत्र लिखकर बिल भेजने को कहे।

टेलीफोन और बिजली आदि का काम उसकी सीट से संबद्ध नहीं है, परंतु पिछले एक वर्ष से यह काम इसी सीट वाला व्यक्ति करता आ रहा है। शुरू में उसने सोचा था, वह इसका विरोध करेगा, परंतु लाल साहब सदा काम-से-काम रखते हैं। कौन कितनी देर सीट पर बैठता है, कितनी देर के लिए लंच पर जाता है, इस ओर कभी ध्यान नहीं देते। जिसे जब भी आवश्यकता होती है उन से छुट्टी लेकर जल्दी चला जाता है। वह भी घंटों सीट से गायब रहता है, परंतु लाल साहब ने आज तक कोई एतराज नहीं किया।

पहले वह उसके क्रास भी माफ कर दिया करते थे, परंतु इधर कुछ दिनों से मैनेजर ने सख्ती कर दी है। उसने आर्डर निकाल दिया है कि बिना उसकी अनुमति के किसी का भी क्रास माफ न किया जाए।

‘‘लाल साहब कहां गए?’’ उसने पकड़ासी से पूछा।

‘‘उनका बच्चा सीढ़ी से गिर पड़ा है। फोन आया था। जल्दी छुट्टी लेकर चले गए हैं।’’ पकड़ासी ने पेरी मेसन की किताब का पन्ना उल्टते हुए उत्तर दिया।

‘‘कैसे क्या हुआ?’’

‘‘कुछ पता नहीं। फोन पर इतनी ही सूचना थी। पड़ोस के किसी आदमी ने किया था। मित्तल गया है स्कूटर लेकर। लौटकर आए तो पता चले।’’ पकड़ासी ने किताब से दृष्टि हटाए बिना उत्तर दिया।

वह चुप हो गया।

तभी पकड़ासी ने कहा, ‘‘एक पर्चा रख गए हैं लाल साहब तुम्हारी सीट पर। मैनेजर के पी. ए. का फोन आया था। टेलीफोन बिल का कुछ लफड़ा है। देख देना।’’

‘‘वही कर रहा हूं।’’ वह एक्सचेंज को पत्र लिखने लगा।

उसके सिर में काफी देर से दर्द हो रहा था। अचानक उसे लगा, दर्द बढ़ जाएगा। उसने श्यामलाल को आवाज देकर बुलाया और उससे डिस्पेंसरी से एक नोवलजीन लाने को कहा।

‘‘परची लिख दीजिए, नहीं तो कम्पाउंडर ऐसे नहीं देगा।’’ श्यामलाल ने कहा।

‘‘देगा क्यों नहीं। तुम जाओ तो।’’ उसने कहा।

‘‘नहीं देगा। मानिए तो, फिर जाना पड़ेगा।’’

उसने पर्चा लिख दिया। एक्सचेंज को पत्र लिख रहा था, तभी दास उसके पास आ गए। उन्होंने जेब से कोई कागज निकाल कर उसे दिया और चुपचाप खड़े हो गए।

‘‘बैठिए?’’ उसने मित्तल की खाली कुर्सी खिसकाते हुए कहा।

कुर्सी मित्तल ने सुतली से मेज के पाए से बांध रखी थी। उसे खीज हुई। वह उठकर गया और लाल साहब की कुर्सी उठा लाया।

दास बैठ गए। उसने कागज खोल कर देखा। आल इंडिया से सी. ई. सी. की मीटिंग का नोटिस था। कलकत्ता में सत्रह-अठारह, दो दिन मीटिंग निश्चत की गई थी। काफी बड़ा एजेंडा था। वैसे विशेषकर स्ट्राइक की तारीख निश्चित करना था।

आज बारह तारीख थी। देर-से-देर सोलह की दोपहर चल देना होगा। पत्र में लिखा था, डेलीगेट अपने आने की तारीख और ट्रेन के बारे में तार दे दें, ताकि उन्हें स्टेशन पर रिसीव किया जा सके जिससे उन्हें निश्चित स्थान पर पहुंचने में कठिनाई न हो। मीटिंग का स्थान तय नहीं किया गया था। यह होस्ट यूनिट के ऊपर छोड़ दिया गया था। वही उसकी सूचना देंगे। वैसे पत्र में सलाह दी गई थी कि सदस्य होस्ट यूनिट के पत्र की प्रतीक्षा न करें। हो सकता है, उसमें देर लग जाए। सभी काम जल्दी-जल्दी में हो रहा है।

‘‘तुम जाने की तैयारी करो।’’ दास ने कहा।

‘‘मैं चला जाता, दादा, लेकिन इधर मां की तबियत बहुत खराब है। मेरे लिए जाना संभव नहीं हो पाएगा।’’ सभी लोग दास को ‘‘दादा’’ कहते हैं। पिछले पंद्रह वर्षो से वह एसोसिएशन के प्रेसीडेंट हैं। उन्हें सब-एकाउंटेंट का चांस मिला था, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया था।

‘‘क्यों, क्या बात है?’’

‘‘बात तो कोई नहीं, क्रानिक गैस्ट्रिक ट्रबल है। वही इधर बहुत बढ़ गई है। कमजोर भी बहुत हो गई हैं और इधर कुछ दिनों से पेशाब होता है थोड़ी-थोड़ी देर में।’’

‘‘कोई बात नहीं, हम लोग सब देख लेंगे।’’

‘‘नहीं, दादा, उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब है।’’

‘‘तुम फिकर न करो, आज ही मैं डॉक्टर गुप्ता को ले आता हूं। तीन दिन में ठीक हो जाएंगी।’’

‘‘मेरा जाना नहीं हो पाएगा...मिसेज की डिलिवरी भी होनी है।’’

‘‘उसमें तुम क्या करोगे? फर्स्ट डिलिवरी तो है नहीं, जो कोई परेशानी वाली बात हो।’’

‘‘फिर भी घर में रहना पड़ेगा। बच्चों का इम्तिहान हो रहा है।’’

‘‘मैं अपनी लड़की को भेज दूंगा। तुम्हारे यहां रह जाएगी।’’

‘‘उससे नहीं चलेगा, दादा। आप तो जानते हैं, मेरे अलावा घर में और कोई है नहीं।’’

‘‘तुम नहीं जाओगे, तो स्ट्राइक भी नहीं हो सकती। मैं आज ही तार दिए देता हूं कि यहां कोई भी प्रोग्राम नहीं हो सकता।’’ दास गंभीर हो गए।

वह चुप हो गया।

श्यामलाल नोवलजीन ले आया था। साथ में एक गिलास पानी भी लेता आया था। वह नोवलजीन लेने लगा। दास ने सिगरेट सुलगा ली।

‘‘शाम की मीटिंग में देखा जाएगा।’’ उसने कहा।

‘‘नोटिस घुमा दिया?’’ दास ने पूछा।

‘‘मैंने खान को दे दिया था घुमाने के लिए।’’

‘‘हो चुका फिर।’’ दास उठकर खड़े हो गए, ‘‘यूनियन में ताला डाल दो।’’ उन्होंने कहा और सिगरेट पीते हुए चले गए। आल इंडिया का पत्र उसकी मेज पर पड़ा था। वह जानता था, दास का एसोसिएशन से बेहद लगाव है। इसी कारण वह अकसर इस तरह की बातें करते हैं। परंतु उनमें एक बहुत बड़ी खामी है। वह चाहते हैं, जैसा वह कहें, वैसा ही हो। उसने जल्दी-जल्दी एक्सचेंज वाला पत्र पूरा करके, उसे अर्जेण्ट मार्क करके चपरासी के हाथ टाइप के लिए भिजवा दिया। तभी उसे ध्यान आया, लाल साहब तो है नहीं।

‘‘इस पर हस्ताक्षर कौन करेगा?’’ उसने पकड़ासी से पूछा।

‘‘रायजादा से करवा लो...लाल साहब कह गए हैं।’’ पकड़ासी ने उत्तर दिया।

वह उठ कर खान को फोन करने लगा। खान ने बताया, अभी कुल सात आदमियों के हस्ताक्षर हो पाए हैं। सोलह में सात! उसने घड़ी देखी। साढ़े तीन बजे थे। उसे खीज हुई। उसने खान से कहा, ‘‘नोटिस मेरे पास भिजवा दो। मैं करवा लूंगा।’’

चपरासी नोटिस लाकर उसे दे गया। वह उठकर खड़ा हो गया।

‘‘लेटर टाइप होकर आ जाए’’, उसने पकड़ासी से कहा, ‘‘तो जरा कम्पेयर करके रायजादा से दस्तखत करवा लेना। मैं काम से जा रहा हूं।’’

‘‘डिस्पैच कौन करेगा?’’ पकड़ासी ने पूछा।

‘‘वह भी तुम्हीं कर देना, भाई। मुझे जरा जरूरी काम है।’’

‘‘ठीक है, जाओ।’’ पकड़ासी ने बुझी हुई बीड़ी को दोबारा सुलगाते हुए सिर से इशारा किया।

वह नोटिस लेकर और सदस्यों के हस्ताक्षर लेने चला गया। लौटकर आया, तो पौने पांच बजे थे। पकड़ासी घर जाने की तैयारी में अपना चश्मा आदि थैले में रख रहा था। टेलीफोन एक्सचेंज वाला पत्र उसकी मेज पर रखा था। हस्ताक्षर भी नहीं हुए थे उस पर।

‘‘अरे। यह चिट्ठी तुमने भेजी नहीं?’’ उसने पकड़ासी से कहा।

‘‘भेजता क्या, अभी थोड़ी देर हुए तो आई है टाइप से।’’

‘‘दस्तखत भी नहीं कराए?’’

‘‘डिस्पैच नहीं हो सकती तो दस्तखत करा कर क्या करता।’’ पकड़ासी ने अपनी ड्रार में ताला लगाते हुए कहा।

‘‘तुम्हें पेरी मेसन पढ़ने से फुरसत मिले तब तो। जानते हो, कितना अर्जेण्ट लेटर था।’’

‘‘मारो गोली अर्जेण्ट को। कल हो जाएगा।’’

‘‘तुमको नहीं करना था, तो बता देते।’’

‘‘तुम तो खामखाह की झक लड़ा रहे हो। मैंने बताया न, टाइप से ही देर में आया है।’’

वह चुप हो गया। ‘‘मित्तल आया?’’ उसने पूछा।

‘‘आया था, चला गया।’’

‘‘क्या बात बता रहा था?’’

‘‘कुछ नहीं, पतंग-वतंग के चक्कर में छत पर चढ़ रहा था। वही सीढ़ी से गिर पड़ा।’’

‘‘ज्यादा चोट लगी?’’

‘‘पता नहीं। टांके-वांके लगे हैं शायद।’’

‘‘कितना बड़ा है?’’

‘‘होगा यही दस-बारह साल का।’’

चपरासी सामान बांधने लगा। ‘‘यह टाइप्ड लेटर फाइल में लगाकर सबसे ऊपर रख देना।’’ उसने कहा और अपना बैग आदि संभालने लगा। सिगरेट के लिए उसने जेब में हाथ डाला, तो देखा, सिगरेट समाप्त हो चुकी थी। उसने सोचा, एसोसिएशन के कमरे में जाने के पहले वह सिगरेट ले ले। परंतु उसे भय था कि दास वहां जाएंगे और कमरा खुला ना पाकर उस पर बिगड़ेंगे, अतः वह सीधे एसोसिएशन ऑफिस की ओर आ गया। बत्ती जलाकर पंखा खोल दिया। मेज पर तमाम कागज इधर-उधर बिखरे पड़े थे। उसने उन्हें कायदे से लगाकर पेपरवेट के नीचे दबा दिया। टाइपराइटर का कवर अलग पड़ा था। उसे लेकर उसने टाइपराइटर को ढक दिया। कमरे से इधर-उधर जो कूड़ा था, उसे पैर से ही किनारे किया। झाड़न लेकर मेज-कुर्सी आदि झाड़ी और बैठकर किसी के आने की प्रतीक्षा करने लगा, ताकि जाकर सिगरेट ला सके।

कोई-पच्चीस मिनट तक वह अकेला बैठा रहा। तब दो-एक सदस्य आए। संभवतः वे लोग चाय की दुकान से चाय आदि पीकर आ रहे थे। उन्हें बैठने को कहकर वह सिगरेट लेने चला आया। सिगरेट के पैसे निकालने के लिए उसने जेब से कागज आदि निकाले, तो उसमें मां के पेशाब टेस्ट कराने का पर्चा भी था। पर्चा देखकर उसे ध्यान आया कि उसे डॉक्टर के यहां जाना है। उसने कहा था, सात बजे तक दुकान खुली रहती है। उसने घड़ी देखी। साढ़े पांच बजे थे। जल्दी-जल्दी उसने सिगरेट ली। सिर का दर्द अभी गया नहीं था। उसने पान वाले से एक सेरिडान भी ले ली। उसकी इच्छा हुई कि एक कप चाय भी पी ले, परंतु फिर उसे लगा कि देर न हो जाए कहीं, अतः वह टाल गया और जल्दी-जल्दी एसोसियेशन-रूम लौट आया। दस-पंद्रह मिनट फिर भी उसे लगे होंगे। केवल सात सदस्य वहां थे। दास भी बैठे थे।

‘‘मीटिंग शुरू करें?’’ उसने पूछा।

‘‘शुरू करो।’’ दास ने कहा।

उसने मिनिट्स बुक निकाली और सबके हस्ताक्षर कराने लगा। आल इंडिया से आए तार और पत्र आदि के बारे में उसने सबको सूचित किया तथा सी. इ. सी. की मीटिंग की नोटिस पढ़कर सुनाया। सी. ई. सी. के लिए डेलीगेट चुनने तथा वहां इस यूनिट का क्या मत होगा, इस बारे में उसने सदस्यों को राय देने के लिए कहा।

दास ने उसे बीच में ही टोक दिया, ‘‘डेलीगेट चुनने का प्रश्न ही नहीं उठता। सी. ई. सी. की मीटिंग में सदा ही सेक्रेटरी जाता है। उसे ही इस बार भी जाना होगा।’’ उन्होंगे कहा, ‘‘हां, इस यूनिट के स्टैंड के बारे में आप लोग चर्चा कर लीजिए।’’

‘‘बात यह है कि मैं कुछ घरेलू कठिनाईयों तथा मां की बीमारी आदि के कारण जा नहीं पाऊंगा।’’ उसने कहा।

‘‘तो आज की मीटिंग कैंसिल कीजिए। आप लोग जाइए।’’ दास अपना बैग लेकर उठने लगे।

सभी ने उन्हें रोका। दास दोबारा बैठ गए। इस बार उन्होंने कुछ सहूलियत से वही सारी बातें कहीं, जो उससे सीट पर कहीं थीं, अर्थात् दो-तीन दिन की बात है, वह उसके घर की देख-भाल कर लेंगे। सदस्यों की ड्यूटी लगा देंगे। वे घंटे-घंटे भर में जाकर हाल-चाल लेते रहेंगे, आदि। जो भी हो उसका जाना बहुत जरूरी है।

अन्य सदस्यों ने भी इसी प्रकार की बातें कहीं।

उसे लगा, जैसे इस सबसे उसका कोई संबंध ही नहीं है। उसका घर, घर न होकर कोई सार्वजनिक संस्था है। वह चुप बैठा रहा। उसके जाने की बात तय हो गई। मीटिंग जल्दी ही समाप्त हो गई। दास ने एक सदस्य को रुपये दे दिए और कहा कि संभव हो, तो उसके नाम से सोलह तारीख को तूफान से रिजर्वेशन करा दे।

दास का गुस्सा अब बिल्कुल ठंडा हो गया था। वह उसे समझाने लगे कि वह चिंता न करे, वह सब देख लेंगे। वह पहले ही जानता था कि जाना उसे ही पड़ेगा। वह हंसने लगा। बाहर निकल कर आया, तो पौने सात बजे थे। वह साइकिल लेकर सीधे डॉक्टर के यहां भागा। रिपोर्ट तैयार हो गई थी और लिफाफे में बंद रखी थी। डॉक्टर था नहीं। चपरासी ने रसीद लेकर नंबर मिलाया और लिफाफा उसे दे दिया।

उसने लिफाफा वहीं खोल डाला। उसे डर था, शायद मां को डायबिटीज होगी। परंतु पेशाब में शुगर नहीं थी। तभी उसने देखा, ‘‘पस’’ के आगे लिखा था-‘‘काफी मात्रा में उपस्थिति है।’’ पस...पेशाब में। इसके मायने किडनी में जख्म होगा, उसने अपनी अक्ल लगाई।

रिपोर्ट लेकर वह सीधे उस डॉक्टर के पास आ गया, जिसका इलाज चल रहा था। वहां खासी भीड़ थी। उसे देर तक बैठना पड़ा। कोई साढ़े नौ बजे उसका नंबर आया। डॉक्टर ने रिपोर्ट देखकर उसे वापस कर दी।

‘‘पेशाब में पस है, डॉक्टर साहब’’ उसने कहा।

‘‘हां।’’ डॉक्टर ने सिर हिलाया।

‘‘किडनी डैमेज्ड है क्या?’’

‘‘कहा नहीं जा सकता। यूरीन कल्चर कराना होगा।’’ डॉक्टर ने कहा।

‘‘कल्चर क्या?’’

‘‘ट्यूब से पेशाब निकालना पड़ेगा, तब पता चलेगा। हो सकता है, यूरीनरी पैसेज में कोई खराबी हो।’’ डॉक्टर थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला ‘‘सेंस्टिविटी टेस्ट भी कराना चाहिए। उससे पता चलेगा, कौन दवा असर करेगी।’’

वह चुप रहा।

डॉक्टर पर्चे में कुछ लिखने लगा था। ‘‘अभी फिलहाल यह कैप्सूल दीजिए। परसों शाम को हाल बताइएगा।’’ उसने कहा।

उसने पर्चा ले लिया। ‘‘ग्लूकोज लगेगा आज?’’ उसने पूछा।

‘‘आज कौन-सा दिन है?’’

‘‘तीन लग चुके हैं?’’

‘‘हां, कम-से-कम सात लगवाइए।’’

‘‘कल सुबह अगर लगवा दें, तो ठीक नहीं रहेगा?’’ उसने पूछा।

‘‘सुबह ही लगवा दीजिए।’’

दूसरा मरीज डॉक्टर के बगल वाले स्टूल पर बैठ चुका था। डॉक्टर ने उसका हाथ पकड़ा और कुर्सी उसकी ओर घुमा ली।

वह बाहर निकल आया।

बाजार से उसने कैप्सूल, ग्लूकोज के इंजेक्शन और संतरे लिए और साइकिल घर की ओर मोड़ दी। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। बंटी छज्जे पर ही खड़ा था। उसे आता देख वह वहीं से चिल्ला कर जीने की ओर भागा। वह डरा कि कहीं वह गिर न पड़े।

‘‘वहीं रहो।’’ उसने उसे डांटा और साइकिल दहलीज में रखकर ऊपर चढ़ आया।

‘‘इसे नींद नहीं आती इतनी देर तक।’’ उसने पत्नी से कहा।

‘‘सब तुम्हारे लक्षण सीख रहा है।’’

‘‘मना नहीं करती इसे? इतने जोरों से भागता है जीने पर। कहीं गिर पड़े तो?’’

‘‘मना तो करती हूं। माने सूअर तब तो।’’

वह कपड़े उतारने लगा।

‘‘पापा, दादी आज गिर पड़ी थीं। उनके सिर से खून निकला था।’’ बंटी ने कहा।

‘‘क्या हुआ?’’ उसने पत्नी से पूछा।

‘‘पेशाब करने गई थीं, वहीं पानी में फिसल गईं।’’ पत्नी ने बताया।

‘‘ज्यादा चोट लगी?’’

‘‘सिर में कुछ चोट लगी थी।’’

‘‘खून निकला था?’’

‘‘हां।’’

‘‘ज्यादा?’’

‘‘नहीं।’’

जूते उताकर वह मां के कमरे में आ गया। मां चुपचाप बिस्तर पर पड़ी थीं। सिर में जहां चोट लगी थी, वहां गंदी-सी रुई रखी थी। उसने रुई हटाकर देखा, ज्यादा चोट नहीं थी, परंतु वहां पर काफी सूज आया था।

‘‘क्या लगाया इसमें?’’ उसने पत्नी से पूछा।

‘‘तेल पानी का फाहा लगा दिया था।’’

‘‘बरनॉल नहीं है?’’

‘‘है।’’

‘‘तो बरनॉल क्यों नहीं लगाया?’’

‘‘बरनॉल तो जले में लगाया जाता है।’’

‘‘चोट में भी लगाते हैं। लाओ, मैं लगा दूं।’’

पत्नी बरनॉल का ट्यूब ले आई। उसने उंगली में थोड़ा-सा बरनॉल लेकर चोट पर लगा दिया।

‘‘कैसे गिर पड़ीं?’’ उसने मां से पूछा।

‘‘मैं अब बचूंगी नहीं।’’ मां ने कहा, ‘‘मेरे शरीर में अब बिल्कुल ताकत नहीं रह गई हैं।’’

‘‘तुम अकेले उठती क्यों हो? इनको बुला लिया करो।’’

‘‘इनको क्या बुला लिया करें! इनकी हालत भी तो देख रहे हो। इसी वक्त मुझे बीमार पड़ना था।’’

उसने देखा, पत्नी को खड़े होने में कष्ट हो रहा था। उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें झलक रही थीं।

‘‘मेरा इम्तिहान हो जाए, फिर मैं तुमको पकड़ा लिया करूंगा।’’ बंटी ने कहा।

‘‘यह सोया नहीं अभी?’’ मां ने पूछा।

‘‘जाओ, तुम लेटो जाकर।’’ उसने बंटी से कहा। परंतु वह वहीं खड़ा रहा।

उसने मां को दवा खिलाई और मौसमी छीलकर उसका रस निकालने लगा।

‘‘संतरा छील रहे हो क्या?’’ मां ने पूछा।

‘‘नहीं, मौसमी है। संतरा भी है। संतरा छील दूं?’’

‘‘बंटी को दे दो।’’

‘‘दे दूंगा।’’ उसने कहा, ‘‘तुम अपनी चिंता किया करो। अंटी-बंटी को छोड़ो।’’

बंटी झेंप गया। वह दूसरे कमरे में जाने लगा।

‘‘कहां जा रहा है?’’ उसने उसे टोका, ‘‘संतरा खाएगा?’’

बंटी चुप रहा।

उसने कागज के लिफाफे से एक संतरा निकालकर उसे दे दिया। उसने संतरा खा लिया।

मौसमी का रस मां को देकर वह अपने कमरे में आ गया।

‘‘खान ले आऊं?’’ पत्नी ने पूछा।

‘‘ले आओ। सिर में बहुत दर्द हो रहा है।’’ उसने कहा और हाथ-मुंह धोने बाथरूम चला गया।

लौटकर आया, तो बंटी उसका बैग खोल रहा था। हमेशा वह उसके बैग की तलाशी लेता है। अक्सर ही वह उसके लिए टाफी आदि ले आता है।

बंटी को उसमें कुछ मिला नहीं। तभी उसने उसके टिफिन का डिब्बा निकाल लिया।

‘‘मम्मी, मम्मी।’’ वह चिल्लाया-‘‘पापा ने आज फिर खाना नहीं खाया।’’

पत्नी खाने की थाली लेकर कमरे में आ गई थी। ‘‘खाना खाते नहीं, तो ले क्यों जाते हो?’’ उसने थाली मेज पर रखते हुए कहा।

अब उसकी समझ में आया कि उसके सिर में दर्द क्यों हो रहा था। वह टिफिन खाना भूल गया था। अक्सर ही भूल जाता है और भूख से उसके सिर में दर्द होने लगता है। ‘‘भूल ही गया बिल्कुल।’’ उसने कहा।

‘‘किस काम में खोए रहते हो?’’ पत्नी ने पूछा।

‘‘क्या बताएं!’’ उसने थाली अपनी ओर खिसका ली।


दो : उत्तार्द्ध

सड़क के मोड़ से ही उसने देखा उसके फ्लैट में रोशनी नहीं थी। हो सकता है लोग पीछे वाले कमरे में हों। लेकिन अभी तो...क्या बजा होगा? उसने घड़ी देखी। कुल नौ चालीस ही तो हुए हैं। अभी तो टी. वी. आ रहा होगा। और टी. वी. तो बाहर कमरे में ही है। तब तक रिक्शा उसके मकान तक पहुंच गया। मेन गेट में ताला पड़ा था। यह भी असाधारण ही था। उसने घंटी बजाई। साधारणतया घंटी बजते ही उसके फ्लैट की बाल्कनी का दरवाजा खुलता था और कोई न कोई ऊपर से झांकने लगता था। उसने दोबारा घंटी बजाई। दरवाजा फिर भी नहीं खुला। तभी नीचे वाले फ्लैट से मकान मालिक के छोटे लड़के विजय ने आकर गेट का ताला खोल दिया। रिक्शे वाले को पैसे देकर वह अटैची और होल्डाल लेकर अंदर आ गया। सीढ़ियां चढ़ रहा था तभी उसे विजय की आवाज सुनाई दी, ‘‘अंकलजी, एक मिनट।’’

वह सीढ़ियों पर ही रुक गया। विजय ने उसके फ्लैट की चाभी लाकर उसे दी तो उसने पूछा, ‘‘कोई है नहीं क्या?’’

‘‘आंटी नागपुर गई हैं।’’ उसने कहा।

‘‘कब?’’

‘‘आप गए हैं उसी के दूसरे दिन। तार आया था। आंटी के पापा की डेथ हो गई है।’’

तो उसकी शंका निराधार नहीं थी। ऊपर आकर उसने अपने फ्लैट का दरवाजा खोला और अंदर आ गया। कमरे की बत्ती जलाई तो उसने देखा तार मेज पर ही रखा था। उसने उसे उठाकर पढ़ा। बहुत संक्षिप्त सा मजमून था-‘‘फादर एक्स्पायर्ड दिस मार्निंग, मुकेश।’’ मुकेश उसके बड़े साले का नाम था। उसने तार दिए जाने की तारीख देखी। तेईस तारीख थी। बाइस को वह यहां से गया था।

उसके बंबई जाने से दो दिन पहले मुकेश का पत्र भी आया था। अपनी बहन, यानी उसकी पत्नी के नाम। लिखा था, बाबू जी बहुत बीमार हैं। उनका ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ गया है। अस्पताल में भर्ती करा दिया है। बहुत कमजोर हो गए हैं। तुमको बराबर पूछते रहते हैं। एक दिन के लिए आकर देख जाओ।

पत्र पढ़कर उसकी पत्नी व्याकुल हो उठी थी। वह तुरंत जाने को तैयार थी। लेकिन उसे यूनियन की मीटिंग में बंबई जाना था। नया चार्टर तैयार होना था। कुछ और मसले भी थे। सांगठनिक समस्याएं भी थीं। वह आल इंडिया का सहायक सचिव था। उसका जाना जरूरी था। अतः उसने पत्नी को समझा दिया था। हाई ब्लड प्रेशर ऐसा कोई मर्ज नहीं होता। दवाओं से कंट्रोल हो जाएगा। चार-पांच दिन की बात है। मैं बंबई से लौट आऊं तब चलेंगे। वैसे अकेले जाना चाहो तो मैं इंतजाम कर दूं। बंटी को साथ ले लो। मगर पत्नी राजी नहीं हुई। उसने आज तक अकेले सफर नहीं किया था। बंटी अट्ठारह का हो रहा था। मगर उसने भी आज तक अकेले सफर कहां किया था और फिर उसके जो लक्षण थे उससे पत्नी को क्या उसे स्वयं उस पर भरोसा नहीं था। गीता अभी तेरह-चौदह की ही थी। और फिर साथ में दो छोटे बच्चे और थे। ‘‘ठीक है, तुम बंबई से लौट आओ तभी चलेंगे।’’ पत्नी ने कहा था।

किसी ने फ्लैट की घंटी बजाई। उसने बाल्कनी का दरवाजा खोलकर देखा। बाहर कोई नहीं था। तभी घंटी दोबारा बजी। उसने अंदर जीने वाला दरवाजा खोला तो विजय चाय का प्याला हाथ में लिए खड़ा था। चाय लाकर उसने कमरे में मेज पर रख दी।

‘‘मम्मी पूछ रही हैं आप पूड़ी खा लेंगे या रोटी बना दें।’’ विजय ने पूछा।

‘‘मैं कुछ नहीं खाऊंगा। मम्मी से कह दो परेशान होने की जरूरत नहीं है।’’ उसने कहा।

‘‘बन जाएगा अंकल!’’ विजय ने कहा, ‘‘परेशानी की कोई बात नहीं है। आप बस बता दीजिए क्या खाएंगे।’’


(यह कहानी पूरी नहीं है, आपके पास हो तो कृपया इसे पूरा कर दें। )