जमीन और दिल की धड़कन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 जुलाई 2014
व्यवहारिक जीवन के कामकाज के लिए समय की निरंतरता को हमने क्षणों, घंटों, दिनों, महीनों और सदियों में बांट दिया है। बीसवीं सदी में विज्ञान और टेक्नोलॉजी ने सदियों के जमा जोड़ से अधिक प्रगति करके उसे 21 वीं सदी में निर्णायक भूमिका के लिए तैयार कर दिया परंतु दो महायुद्धों में हानि से अधिक हानि छोटे महायुद्धों से हुई जो वियतनाम, कोरिया, अफगानिस्तान इत्यादि देशों में लड़े गए, अत: बीसवीं सदी की चिंताएं विगत सदियों से अलग थीं और 21वीं सदी की चिंताएं भी अलग ही रहेंगी। जोहरा सहगल की 102 वर्ष की आयु में मृत्यु कुछ इस तरह ली जा सकती है कि विगत सदी की चिंताएं और व्यग्रता की वे प्रतीक रहीं हैं। उम्र के आखिरी वर्षों में वे सरकार से गुहार करती रहीं कि उन्हें तल मंजिल पर रहने की जगह दें, ऊपरी मंजिलों से दुनिया छोटी दिखती है और तल मंजिल पर निवास के उनके आग्रह को उनके उम्रदराज होने से नहीं देखा जाए कि उन्हें सीढ़ियां चढ़ने में कष्ट था, वरन उसे जमीन के लिए उनकी तड़प की तरह देखा जाना चाहिए जिसे मनुष्य के लाभ लोभ ने बीसवीं सदी में बहुत लूटा -खसोटा है। और आज वह धरती मां कराह रही है कि उसके स्तनों से दूध खींचने से जिन बच्चों की भूख नहीं मिटी वे उसकी हड्डियों से मज्जा (बोन मैरो) भी पी जाना चाहते हैं। नई सदी की चिंता है कि क्या धरती अगली सदी तक जीवित रहेगी या उसमें से जीवन ऊर्जा के बदले केवल उसके क्रोध का लावा फूटेगा, नदियां सूख जाएंगी और भीतर खोंपे बोरिंग पंप नुमा खंजरों के कारण उनसे जल नहीं जहर ही बाहर आएगा, ऊंचे बांधों को क्षेत्रीयता के लोभ के लिए और अधिक ऊंचा करने से एक और द्वारका की भूमिका लिखी जा चुकी है।
बहरहाल, जोहरा का जन्म भारतीय िसनेमा के जन्म होने के एक साल और पहले विश्वयुद्ध शुरू होने के दो साल पहले 1912 में हुआ। पारम्परिक मुस्लिम परिवार में जन्मी जोहरा नमाज अदा करते-करते धरती की धड़कनों को साफ सुन अपने दिल की आवाज भी सुनने लगी और दिल ने कहा कि जोहरा तुम्हारे पैरों को नृत्य करते महसूस करना चाहती है धरती। उसने उदयशंकर की नृत्य पाठशाला में दाखिला लिया, अल्मोड़ा की खूबसूरत पहाडिय़ों में 'कल्पना' नामक इस महान नृत्य पाठशाला में गुरुदत्त भी छात्र थे।
जोहरा एक उन्मुक्त व्यक्तित्व थी, उसने बुरका उतार फेंका, क्योंकि उसका हिजाब तो बादल थे, वह तो मौसम पहनने वाली प्रकृति पुत्री थी। उस जमाने में यह दंडनीय अपराध था। परिवर्तन की हल्की-सी मुस्कराहट से भी अंधी पारम्पारिकता दहल जाती है। क्या आज की मोबाइल धारिणी आधुनिकाएं समझ सकती हैं कि बीसवीं सदी के तीसरे दशक में बुरका पहनने का क्या अर्थ था या वह क्या साहस था। इन आधुनिकाओं को क्या मालूम कि असल आधुनिकता की नींव किसने रखी है। उदयशंकर से नृत्य की शिक्षा का ही अगला कदम था पृथ्वी थियेटर में अभिनय करना और पृथ्वीराज कपूर उनके गुरु थे जिनकी जन्म शताब्दी पर जोहरा और उनकी बहन अज़रा ने पृथ्वीराज के 'किसान' के दृश्य अभिनीत करके दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उस समय जोहरा की उम्र थी 94 वर्ष और दो घंटे के नाटक के बाद किसी दिल जले दर्शक की फरमाइश पर जोहरा ने 'अभी तो मैं जवान हूं' जैसी नज़्म को अभिनय सहित ऐसे अदा किया कि साहित्य रंगमंच एक दूसरे के पूरक नजर आए और नृत्य तथा नज़्म का गहरा रिश्ता भी समझ में गया। उस दिन दर्शकों ने इतनी तालियां बजाईं कि जोहरा को उनसे रुकने लिए प्रार्थना करनी पड़ी, क्योंकि रंगमंच की परम्परा है कि तालियों के समय कलाकार को विनम्रतावश झुके रहना पड़ता है। जोहरा को उम्र के 94 वर्षों ने नहीं झुकाया कभी, जमाने के किसी तेवर ने नहीं झुकाया, वह जब भी झुकी तब अपने विनम्रता के संस्कार के कारण झुकी। दो सदियों का भार भी उसे झुका नहीं पाया, वह सजदे में बिछ सकती थी परंतु डर से वह मुक्त थी। धरती और दिल की आवाज पर जीने वाली ऐसी महिला को 21 वीं सदी जन्म दे, यह मुमकिन नहीं।