जमीन कैसे बनी / नेहरू / प्रेमचंद

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तुम जानती हो कि जमीन सूरज के चारों तरफ घूमती है और चाँद जमीन के चारों तरफ घूमता है। शायद तुम्हें यह भी याद है कि ऐसे और भी कई गोले हैं, जो जमीन की तरह सूरज का चक्कर लगाते हैं। ये सब, हमारी जमीन को मिला कर, सूरज के ग्रह कहलाते हैं। चाँद जमीन का उपग्रह कहलाता है; इसलिए कि वह जमीन के ही आसपास रहता है। दूसरे ग्रहों के भी अपने-अपने उपग्रह हैं। सूरज, उसके ग्रह और ग्रहों के उपग्रह मिल कर मानो एक सुखी परिवार बन जाता है। इस परिवार को सौर जगत कहते हैं। सौर का अर्थ है सूरज का। सूरज ही सब ग्रहों और उपग्रहों का बाबा है। इसीलिए इस परिवार को सौर-जगत कहते हैं।

रात को तुम आसमान में हजारों सितारे देखती हो। इनमें से थोड़े-से ही ग्रह हैं और बाकी सितारे हैं। क्या तुम बता सकती हो कि ग्रह और तारे में क्या फर्क है? ग्रह हमारी जमीन की तरह सितारों से बहुत छोटे होते हैं लेकिन आसमान में वे बड़े नजर आते हैं, क्योंकि जमीन से उनका फासला कम है। ठीक ऐसा ही समझो जैसे चाँद, जो बिल्कुल बच्चे की तरह है, हमारे नजदीक होने की वजह से इतना बड़ा मालूम होता है। लेकिन सितारों और ग्रहों के पहचानने का असली तरीका यह है कि वे जगमगाते हैं या नहीं। सितारे जगमगाते हैं, ग्रह नहीं जगमगाते। इसका सबब यह है कि ग्रह सूर्य की रोशनी से चमकते हैं। चाँद और ग्रहों में जो चमक हम देखते हैं वह धूप की है। असली सितारे बिल्कुल सूरज की तरह हैं, वे बहुत गर्म जलते हुए गोले हैं जो आप ही आप चमकते हैं। दरअसल, सूरज खुद एक सितारा है। हमें यह बड़ा आग का गोला-सा मालूम होता है, इसलिए कि जमीन से उसकी दूरी और सितारों से कम है।

इससे अब तुम्हें मालूम हो गया कि हमारी जमीन भी सूरज के परिवार में सौर जगत में है। हम समझते हैं कि जमीन बहुत बड़ी है और हमारे जैसी छोटी-सी चीज को देखते हुए वह है भी बहुत बड़ी। अगर किसी तेज गाड़ी या जहाज पर बैठो तो इसके एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक जाने में हफ्तों और महीनों लग जाते हैं। लेकिन हमें चाहे यह कितनी ही बड़ी दिखाई दे, असल में यह धूल के एक कण की तरह हवा में लटकी हुई है। सूरज जमीन से करोड़ों मील दूर है और दूसरे सितारे इससे भी ज्यादा दूर हैं।

ज्योतिषी या वे लोग जो सितारों के बारे में बहुत-सी बातें जानते हैं हमें बतलाते हैं कि बहुत दिन पहले हमारी जमीन और सारे ग्रह सूर्य ही में मिले हुए थे। आजकल की तरह उस समय भी सूरज जलती हुई धातु का निहायत गर्म गोला था। किसी वजह से सूरज के छोटे-छोटे टुकड़े उससे टूट कर हवा में निकल पड़े। लेकिन वे अपने पिता सूर्य से बिल्कुल अलग न हो सके। वे इस तरह सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगे, जैसे उनको किसी ने रस्सी से बाँध कर रखा हो। यह विचित्र शक्ति जिसकी मैंने रस्सी से मिसाल दी है, एक ऐसी ताकत है जो छोटी चीजों को बड़ी चीजों की तरफ खींचती है। यह वही ताकत है, जो वजनदार चीजों को जमीन पर गिरा देती है। हमारे पास जमीन ही सबसे भारी चीज है, इसी से वह हर एक चीज को अपनी तरफ खींच लेती है।

इस तरह हमारी जमीन भी सूरज से निकल भागी थी। उस जमाने में यह बहुत गर्म रही होगी; इसके चारों तरफ की हवा भी बहुत गर्म रही होगी लेकिन सूरज से बहुत ही छोटी होने के कारण वह जल्द ठंडी होने लगी। सूरज की गर्मी भी दिन-दिन कम होती जा रही है लेकिन उसे बिल्कुल ठंडे हो जाने में लाखों बरस लगेंगे। जमीन के ठंडे होने में बहुत थोड़े दिन लगे। जब यह गर्म थी तब इस पर कोई जानदार चीज जैसे आदमी, जानवर, पौधा या पेड़ न रह सकते थे। सब चीजें जल जातीं।

जैसे सूरज का एक टुकड़ा टूट कर जमीन हो गया इसी तरह जमीन का एक टुकड़ा टूट कर निकल भागा और चाँद हो गया। बहुत-से लोगों का खयाल है कि चाँद के निकलने से जो गड्ढा हो गया वह अमरीका और जापान के बीच का प्रशांत सागर है। मगर जमीन को ठंडे होने में भी बहुत दिन लग गए। धीरे-धीरे जमीन की ऊपरी तह तो ज्यादा ठंडी हो गई लेकिन उसका भीतरी हिस्सा गर्म बना रहा। अब भी अगर तुम किसी कोयले की खान में घुसो, तो ज्यों-ज्यों तुम नीचे उतरोगी गर्मी बढ़ती जायगी। शायद अगर तुम बहुत दूर नीचे चली जाओ तो तुम्हें जमीन अंगारे की तरह मिलेगी। चाँद भी ठंडा होने लगा। वह जमीन से भी ज्यादा छोटा था इसलिए उसके ठंडे होने में जमीन से भी कम दिन लगे! तुम्हें उसकी ठंडक कितनी प्यारी मालूम होती है। उसे ठंडा चाँद ही कहते हैं। शायद वह बर्फ क़े पहाड़ों और बर्फ से ढके हुए मैदानों से भरा हुआ है।

जब जमीन ठंडी हो गई तो हवा में जितनी भाप थी वह जम कर पानी बन गई और शायद मेंघ बन कर बरस पड़ी। उस जमाने में बहुत ही ज्यादा पानी बरसा होगा। यह सब पानी जमीन के बड़े-बड़े गङ्ढों में भर गया और इस तरह बड़े-बड़े समुद्र और सागर बन गए।

ज्यों-ज्यों जमीन ठंडी होती गई और समुद्र भी ठंडे होते गए त्यों-त्यों दोनों जानदार चीजों के रहने लायक होते गए।

दूसरे खत में मैं तुम्हें जानदार चीजों के पैदा होने का हाल लिखूँगा।

जानदार चीजें कैसे पैदा हुईं

पिछले खत में मैं तुम्हें बतला चुका हूँ कि बहुत दिनों तक जमीन इतनी गर्म थी कि कोई जानदार चीज उस पर रह ही न सकती थी। तुम पूछोगी कि जमीन पर जानदार चीजों का आना कब शुरू हुआ और पहले कौन-कौन सी चीजें आईं। यह बड़े मजे का सवाल है, पर इसका जवाब देना आसान नहीं है। पहले यह देखो कि जान है क्या चीज। शायद तुम कहोगी कि आदमी और जानवर जानदार हैं। लेकिन दरख्तों और झाड़ियों, फूलों और तरकारियों को क्या कहोगी? यह मानना पड़ेगा कि वे सब भी जानदार हैं। वे पैदा होते हैं, पानी पीते हैं, हवा में साँस लेते हैं और मर जाते हैं। दरख्त और जानवर में खास फर्क यह है कि जानवर चलता-फिरता है, और दरख्त हिल नहीं सकते। तुमको याद होगा कि मैंने लंदन के क्यू गार्डन में तुम्हें कुछ पौधे दिखाए थे। ये पौधे, जिन्हें आर्किड और पिचरक्व कहते हैं, सचमुच मक्खियाँ खा जाते हैं। इसी तरह कुछ जानवर भी ऐसे हैं, जो समुद्र के नीचे रहते हैं और चल-फिर नहीं सकते। स्पंज ऐसा ही जानवर है। कभी-कभी तो किसी चीज को देख कर यह बतलाना मुश्किल हो जाता है कि वह पौधा है या जानवर। जब तुम वनस्पतिशास्त्र (पेड़-पौधों की विद्या) या जीवशास्त्र (जिसमें जीव-जंतुओं का हाल लिखा होता है) पढ़ोगी तो तुम इन अजीब चीजों को देखोगी जो न जानवर हैं न पौधे। कुछ लोगों का खयाल है कि पत्थरों और चट्टानों में भी एक किस्म की जान है और उन्हें भी एक तरह का दर्द होता है; मगर हमको इसका पता नहीं चलता। शायद तुम्हें उन महाशय की याद होगी जो हमसे जेनेवा में मिलने आए थे उनका नाम है सर जगदीश बोस। उन्होंने परीक्षण करके साबित किया है कि पौधों में बहुत कुछ जान होती है। इनका खयाल है कि पत्थरों में भी कुछ जान होती है।

इससे तुम्हें मालूम हो गया होगा कि किसी चीज को जानदार या बेजान कहना कितना मुश्किल है। लेकिन इस वक्त हम पत्थरों को छोड़ देते हैं, सिर्फ जानवरों और पौधों पर ही विचार करते हैं। आज संसार में हजारों जानदार चीजे हैं। वे सभी किस्म की हैं। मर्द हैं और औरतें हैं। और इनमें से कुछ लोग होशियार हैं और कुछ लोग बेवकूफ हैं। जानवर भी बहुत तरह के हैं और उनमें भी हाथी, बंदर या चींटी की तरह समझदार जानवर हैं और बहुत-से जानवर बिल्कुल बेसमझ भी हैं। मछलियाँ और समुद्र की बहुत-सी चीजें जानदारों में और भी नीचे दरजे की हैं। उनसे भी नीचा दरजा स्पंजों और मुरब्बे की शक्ल की मछलियों का है जो आधा पौधा और जानवर है।

अब हमको इस बात का पता लगाना है कि ये भिन्न-भिन्न प्रकार के जानवर एक साथ और एक वक्त पैदा हुए या एक-एक कर धीरे-धीरे। हमें यह कैसे मालूम हो। उस पुराने जमाने की लिखी हुई तो कोई किताब है नहीं। लेकिन क्या संसार की पुस्तक से हमारा काम चल सकता है? हाँ, चल सकता है। पुरानी चट्टानों में जानवरों की हड्डियाँ मिलती हैं, इन्हें अंग्रेजी में फॉसिल या पथराई हुई हड्डी कहते हैं। इन हड्डियाँ से इस बात का पता चलता है कि उस चट्टान के बनने के बहुत पहले वह जानवर जरूर रहा होगा जिसकी हड्डियाँ मिली हैं। तुमने इस तरह की बहुत-सी छोटी और बड़ी हड्डियाँ लंदन के साउथ कैंसिंगटन के अजायबघर में देखी थीं।

जब कोई जानवर मर जाता है तो उसका नर्म और माँसवाला भाग तो फौरन सड़ जाता है, लेकिन उसकी हड्डियाँ बहुत दिनों तक बनी रहती हैं। यही हड्डियाँ उस पुराने जमाने के जानवरों का कुछ हाल हमें बताती हैं। लेकिन अगर कोई जानवर बिना हड्डी का ही हो, जैसे मुरब्बे की शक्ल वाली मछलियाँ होती हैं तो उसके मर जाने पर कुछ भी बाकी न रहेगा।

जब हम चट्टानों को गौर से देखते हैं और बहुत-सी पुरानी हड्डियों को जमा कर लेते हैं तो हमें मालूम हो जाता है कि भिन्न-भिन्न समय में भिन्न-भिन्न प्रकार के जानवर रहते थे। सबके सब एकबारगी कहीं से कूद कर नहीं आ गए। सबसे पहले छिलकेदार जानवर पैदा हुए जैसे घोंघे। समुद्र के किनारे तुम जो सुंदर घोंघे बटोरती हो वे उन जानवरों के छिलके हैं जो मर चुके हैं। उसके बाद ज्यादा ऊँचे दरजे के जानवर पैदा हुए, जिनमें साँप और हाथी जैसे बड़े जानवर थे, और वे चिड़ियाँ और जानवर भी, जो आज तक मौजूद हैं। सबके पीछे आदमियों की हड्डियाँ मिलती हैं। इससे यह पता चलता है कि जानवरों के पैदा होने में भी एक क्रम था। पहले नीचे दरजे के जानवर आए, तब ज्यादा ऊँचे दरजे के जानवर पैदा हुए और ज्यों-ज्यों दिन गुजरते गए वे और भी बारीक होते गए और आखिर में सबसे ऊँचे दरजे का जानवर यानी आदमी पैदा हुआ। सीधे-सादे स्पंज और घोंघे में कैसे इतनी तब्दीलियाँ हुईं और कैसे वे इतने ऊँचे दरजे पर पहुँच गए; यही बड़ी मजेदार कहानी है और किसी दिन मैं उसका हाल बताऊँगा। इस वक्त हम सिर्फ उन जानवरों का जिक्र कर रहे हैं जो पहले पैदा हुए।

जमीन के ठंडे हो जाने के बाद शायद पहली जानदार चीज वह नर्म मुरब्बे की-सी चीज थी जिस पर न कोई खोल था न कोई हड्डी थी वह समुद्र में रहती थी। हमारे पास उनकी हड्डियाँ नहीं हैं क्योंकि उनके हड्डियाँ थी ही नहीं, इसलिए हमें कुछ न कुछ अटकल से काम लेना पड़ता है। आज भी समुद्र में बहुत-सी मुरब्बे की सी चीजे हैं। वे गोल होती हैं लेकिन उनकी सूरत बराबर बदलती रहती है क्योंकि न उनमें कोई हड्डी है न खोल। उनकी सूरत कुछ इस तरह की होती है।

तुम देखती हो कि बीच में एक दाग है। इसे बीज कहते हैं और यह एक तरह से उसका दिल है। यह जानवर, या इन्हें जो चाहो कहो, एक अजीब तरीके से कट कर एक के दो हो जाते हैं। पहले वे एक जगह पतले होने लगते हैं और इसी तरह पतले होते चले जाते हैं, यहाँ तक कि टूट कर दो मुरब्बे की-सी चीजें बन जाते हैं और दोनों ही शक्ल असली लोथड़े की सी होती है।

बीज या दिल के भी दो टुकड़े हो जाते हैं और दोनों लोथड़ों के हिस्से में इसका एक-एक टुकड़ा आ जाता है। इस तरह ये जानवर टूटते और बढ़ते चले जाते हैं।

इसी तरह की कोई चीज सबसे पहले हमारे संसार में आई होगी। जानदार चीजों का कितना सीधा-सादा और तुच्छ रूप था! सारी दुनिया में इससे अच्छी या ऊँचे दरजे की चीज उस वक्त न थी। असली जानवर पैदा न हुए थे और आदमी के पैदा होने में लाखों बरस की देर थी।

इन लोथड़ों के बाद समुद्र की घास और घोंघे, केकड़े और कीड़े पैदा हुए। तब मछलियाँ आईं। इनके बारे में हमें बहुत-सी बातें मालूम होती हैं क्योंकि उन पर कड़े खोल या हड्डियाँ थीं और इसे वे हमारे लिए छोड़ गई हैं ताकि उनके मरने के बहुत दिनों के बाद हम उन पर गौर कर सकें। यह घोंघे समुद्र के किनारे जमीन पर पड़े रह गए। इन पर बालू और ताजी मिट्टी जमती गई और ये बहुत हिफाजत से पड़े रहे। नीचे की मिट्टी, ऊपर की बालू और मिट्टी के बोझ और दबाव से कड़ी होती गई। यहाँ तक कि वह पत्थर जैसी हो गई। इस तरह समुद्र के नीचे चट्टानें बन गईं। किसी भूचाल के आ जाने से या और किसी सबब से ये चट्टानें समुद्र के नीचे से निकल आईं और सूखी जमीन बन गईं। तब इस सूखी चट्टान को नदियाँ और मेह बहा ले गए। और जो हड्डियाँ उनमें लाखों बरसों से छिपी थीं बाहर निकल आईं। इस तरह हमें ये घोंघे या हड्डियाँ मिल गईं जिनसे हमें मालूम हुआ कि हमारी जमीन आदमी के पैदा होने के पहले कैसी थी।

दूसरी चिट्ठी में हम इस बात पर विचार करेंगे कि ये नीचे दरजे के जानवर कैसे बढ़ते-बढ़ते आजकल की सी सूरत के हो गए।