जयललिता की संपत्ति पर न्यायालय का फैसला / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 29 मई 2020
हाल ही में चेन्नई उच्च न्यायालय ने जयललिता की संपत्ति के उत्तराधिकार प्रकरण पर फैसला दिया है। जयललिता की करीब एक हजार करोड़ रुपए की संपत्ति उनके रिश्तेदार जे. दीपक और जे. दीपा को दी गई है। इस फैसले में एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही गई है कि समुद्र तट पर बना उनका बंगला जयललिता के नाम पर संग्रहालय या अन्य किसी तरह का स्मारक नहीं बनाया जा सकेगा। अगर मुख्यमंत्रियों या नेताओं के निवास संग्रहालय या स्मारकों में बदले जाएंगे तो एक दिन अवाम को रहने की जगह नहीं मिलेगी। इन भवनों का उपयोग समाज कल्याण कार्य के लिए किया जाना चाहिए। देश में अस्पतालों की कमी है।
विगत सदी के छठे दशक में दक्षिण भारतीय सिनेमा के सुपर सितारे एम.जी.रामचंद्रन और जय ललिता ने 28 सुपर हिट फिल्मों में अभिनय किया। सिनेमा के परदे पर प्रस्तुत यह जोड़ी यथार्थ जीवन में भी अंतरंगता के सूत्र से बंधी रही, परंतु उन्होंने विवाह नहीं किया। एम.जी.रामचंद्रन सितारा बनने के समय ही विवाहित थे। दक्षिण भारत के सिनेमा में एम.जी.रामचंद्रन और जयललिता की जोड़ी राज कपूर-नरगिस और दिलीप कुमार-मधुबाला की तरह ही लोकप्रिय रही और अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गई। प्रशंसकों की इच्छानुरूप एम.जी.रामचंद्रन ने प्रादेशिक राजनीति में प्रवेश किया और वे प्रांत के मुख्यमंत्री भी रहे। उनके निधन के बाद जयललिता भी प्रांत की मुख्यमंत्री रहीं। जयललिता ने घोषणा की थी कि कार्य से जुड़े सरकारी दफ्तर एक इमारत में शिफ्ट किए जाएं, ताकि अवाम को भटकना न पड़े। ऐसा करने से जो भवन खाली होंगे, उन्हें सिनेमाघर में बदल दिया जाए। यह गौरतलब है कि दक्षिण का फिल्म उद्योग हमेशा राजनीति से जुड़ा रहा, परंतु उन्होंने कभी राजनीति की पृष्ठभूमि पर फिल्में नहीं बनाईं। उनकी फिल्में हमेशा मनोरंजक मसाला फिल्में रहीं। उनके प्रशंसक भी यही चाहते थे। दक्षिण फिल्म उद्योग में प्रशंसकों के सुनियोजित संगठन बनाए गए, जिन्हें रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी में पंजीकृत कराया जाता था और आय-व्यय का लेखा-जोखा प्रकाशित किया जाता रहा। ज्ञातव्य है कि सितारे अपनी कमाई से प्रशंसक संगठन के सदस्यों को हारी-बीमारी में मदद करते हैं और सदस्यों के परिवार सदस्यों की शिक्षा का खर्च भी वहन करते हैं। लोकप्रियता रची जाती है। इसे प्रोडक्ट बना दिया गया है। कॉर्पोरेट शैली पर संगठन चलाए जाते हैं।
हॉलीवुड में फिल्मकार ओलिवर स्टोन ने ‘जे.एफ.के’ और ‘प्लाटून’ की तरह राजनीतिक फिल्में बनाईं। वॉटरगेट स्कैंडल पर भी फिल्म बनी। यह ओलिवर स्टोन का साहस है कि फिल्म ‘जे.एफ.के’ में उन्होंने कैनेडी की हत्या के षड्यंत्र रचने वाले राजनीतिक बाहुबली का नाम भी उजागर किया। उन पर मानहानि का मुकदमा भी कायम नहीं किया गया। भारत में इस तरह की बात हो नहीं सकती। शक्ति के अष्टपद द्वारा सबको लोहपाश में जकड़ा गया है। भारत में प्रकाश झा की प्रारंभिक फिल्मों जैसे- ‘दामुल’, ‘मृत्युदंड’ और ‘गंगाजल’ में यह प्रयास किया गया, परंतु उनकी रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ अभिनीत फिल्म ‘राजनीति’ अपने प्रचार के विपरीत केवल गॉडफादर का मुरब्बा बनकर रह गई। उन्हें फिल्म के प्रदर्शन पूर्व ही बहुत मुनाफा हो गया। प्रचारित समाजवादी फिल्मकार बॉक्स ऑफिस सफलता मिलते ही पूंजीवादी नजरिया अपना लेते हैं। भारत में वामपंथी दलों के नेता भी उद्योगपति बन गए। हमारे राजनीतिक आदर्श हाथी के दिखाने वाले दांत की तरह ही होते हैं।
ज्ञातव्य है कि रंभा अभिनीत जयललिता बायोपिक बन चुकी है। परंतु व्यापक प्रदर्शन नहीं हुआ। कंगना रनोट अभिनीत जया बायोपिक तेलुगु और हिंदुस्तानी भाषाओं में बनाई जाने वाली है। अभी यह फिल्म कागज पर है। इसे सेल्युलाइड पर आने में समय लग सकता है। जयललिता की निकटतम सहयोगी शशिकला के परिवार में एक विवाह का आयोजन जयललिता ने किया था। शशिकला ने स्वयं को जयललिता की राजनीति का उत्तराधिकारी माना, परंतु अवाम ने उनके दावे को खारिज कर दिया। इंदिरा गांधी, श्रीमती भंडारनायके, गोल्डा मेयर (इजराइल), मार्गरेट थैचर, शेख हसीना अपने-अपने देश की प्रधानमंत्री रहीं, परंतु सत्ता के शिखर पर विराजते ही इन्होंने पुरुषों की तरह व्यवहार किया और नारी सुलभ करुणा को सिंहासन के नीचे दबा दिया। मीडिया तो इंदिरा गांधी के बारे में प्रचारित करता रहा कि अपने मंत्रिमंडल में वे एकमात्र पुरुष की तरह रहीं। यह इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व का स्पात ही था कि स्वतंत्र बांग्लादेश का निर्माण हुआ और पाकिस्तान की अर्थनीति की रीढ़ ही टूट गई। पत्रकार सागरिका घोष की इंदिरा गांधी पर लिखी किताब विश्वसनीय और पठनीय है।