जय हो : आम आदमी का सिनेमाई घोषणा पत्र / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 22 जनवरी 2014
सोहल खान निर्देशित सलमान खान अभिनीत 'जय हो' दर्शक को अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के घोषणा-पत्र सी लग सकती है। क्योंकि उसमें नायक संदेश देता है कि हर आम आदमी अपने जीवन में कम से कम तीन जरूरतमंद लोगों की सहायता करे तो अच्छाई की एक विराट श्रृंखला बन सकती है। हकीकत यह है कि अरविंद के राजनीति में आने के अर्से पहले सन 2006 में दक्षिण के सुपर सितारे चिरंजीवी ने राजनीति में प्रवेश करने के लिए एक फिल्म को अपने सिनेमाई घोषणा-पत्र की तरह गढ़ा था उसी से प्रेरित है जय हो। उन्होंने युवा लेखक निर्देशक मुरगदास को इस फिल्म के लिए अवसर दिया था- फिल्म का नाम 'स्टालिन' था। ज्ञातव्य है कि इसी मुरगदास ने 'स्टालिन' से 'तपाकी' तक अनेक सफल फिल्में बनाई हैं। आमिर खान अभिनीत 'गजनी' भी उन्हीं की फिल्म थी। यह भी गौरतलब है कुछ वर्ष पूर्व हॉलीवुड की एक कम बजट की दूसरे दर्जे की फिल्म 'पेयिंग फॉरवर्ड' में नायक तीन जरूरतमंदों की सहायता करता है और उनसे कहता है कि शुक्रिया कहने से बेहतर है कि वे भी अपने जीवन में कम से कम तीन मजबूर लोगों की सहायता करें। दरअसल ये तीनों फिल्में आम आदमी को अच्छाई का एक मंच दे रही हैं क्योंकि दुनिया के इतिहास के हर कालखंड में अच्छे लोगों की संख्या बुरे लोगों से ज्यादा ही होती है परंतु वे अपनी अच्छाई में डूबे रहते हैं और उनके पास कोई मंच भी नहीं है।
यह फिल्म संदेश देती है कि किसी राजनीतिक मंच की आवश्यकता नहीं है और किसी भव्य तामझाम या प्रचार तंत्र की भी जरूरत नहीं है, केवल कम से कम तीन जरूरतमंदों की मदद करके इसकी श्रृंखला खड़ी कर दें। व्यवस्थाएं तो भ्रष्ट हो जाती हैं क्योंकि उनमें धन और सता का लोभ शामिल हो जाता है। निस्वार्थ सेवा की श्रृंखला के बनने से हम व्यवस्थाओं के चक्रव्यूह से मुक्त होंगे और एक चुस्त-दुरुस्त स्वस्थ समाज सही प्रतिनिधि भी चुनेगा। इस तरह इस फिल्म का केंद्रीय शुभ विचार राजनीति से नहीं वरन् आम आदमी के दर्द और असहायता से जुड़ा है। व्यवस्थाओं के परे जाकर भी समाज में बहुत कुछ किया जा सकता है। केवल तीन दिन पूर्व सलमान खान ने एक पत्रकार से कहा था कि उनकी फिल्मों के नायक 'लार्जर दैन लाइफ' होते हैं और कुछ वर्षों बाद जब वे नायक शायद ना हो तो अपने जीवन में स्वयं भी 'लार्जर दैन लाइफ' नायक की तरह आम आदमी की सहायता करना चाहेंगे। सलमान खान स्वयं को अपने भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं और 'जय हो' उनका सिनेमाई मैनीफेस्टो अर्थात् घोषणा-पत्र है।
वे कोई मसीहा नहीं बनना चाहते परंतु आम आदमी के साथ आम आदमी की तरह जुड़कर भलाई करना चाहते है। ज्ञातव्य है कि उनके ट्रस्ट 'बीइंग ह्यूमन' (मनुष्य होने के नाते) के तहत प्रति वर्ष बारह करोड़ रुपए बीमारों की सहायता और बच्चों की फीस के एवज ये खर्च होते है। ज्ञातव्य है कि विगत वर्ष 'जय हो' की शूटिंग के लिए महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्र में उन्होंने देखा पानी को सुरक्षित रखने के लिए टैंक नहीं है और सरकारी पानी की लॉरी का बहुत सा पानी धरती पर गिर जाता है। उन्होंने उसी समय सिनटैक्स के ढाई हजार टैंक गांवों में भिजवाये और उनकी यह पहल देखकर सिनटैक्स कंपनी और कुछ अन्य कंपनियों ने सहयोग किया तथा महाराष्ट्र की सरकार ने जमीन उपलब्ध कराई।
सलमान खान के दिल में आम आदमी के लिए दर्द न उनका मुखौटा है न अभिनय और न ही प्रचार। वे बचपन से ही ऐसे है। जिन बच्चों के घर स्कूल से दूर थे, ऐसे दर्जन भर सहपाठियों को वे दोपहर के भोजन के लिए घर लाते थे। दरअसल भलाई के काम के लिए इस आदर्श की शिक्षा सलमान खान को बचपन से ही अपने परिवार से मिली। उसके पिता लेखक सलीम खान और मां सलमा हमेशा ही जरूरतमंदों की मदद करते रहे हैं। सलमान खान ने नेकी के इस विचार को ही अपनी सितारा हैसियत से विराट रूप दिया है।
बहरहाल 'जय हो' में सलमान खान की अन्य फिल्मों की तरह एक्शन दृश्य है, नाच गाना है, हंसना हंसाना है परंतु यह फिल्म भावना की ठोस जमीन पर खड़ी है। यह इतनी अधिक भावना प्रधान है कि इसे मात्र मसाला फिल्म नहीं कह सकते। आंसू और मुस्कान से दरवेश सलमान खान ने यह सिनेमाई चदरिया बुनी है।