जरूरत / कविता वर्मा
आरती ने जैसे ही आफिस में प्रवेश किया उसके बॉस से सामना हो गया नमस्ते करके वह उनकी नज़रों से दूर हो जाना चाहती थी लेकिन उन्होंने एक फ़ाइल लेकर तुरंत उनके केबिन में आने का कह दिया।
मन ही मन झुंझलाते हुए उसने साड़ी के पल्लू को ठीक होने के बावजूद भी संवारा और फ़ाइल लेकर बॉस के केबिन में पहुँच गयी।
फ़ाइल एक ओर रख कर बॉस करीब आधे घंटे तक उससे अनावश्यक बातें करते रहे। वह उनकी बातों, हंसी मजाक में छिपे अर्थों को समझते हुए भी अनजान सी बनी उनकी कामुक दृष्टी को अपने उभारों पर सहती रही। जब बाहर निकली तो मन खिन्न था बॉस से ज्यादा खुद पर गुस्सा आ रहा था वह कुछ कहती क्यों नहीं क्यों चुपचाप सहती है?
मन में भरे गुबार के साथ घर पहुँची तो बाथरूम में जाकर चेहरे पर लगे धूल पसीने के साथ उस गुबार को भी बहा आयी।
रात में पति के सीने से लग उसकी इच्छा हुई कि दिल का बोझ हल्का कर ले लेकिन करवट बदल कर उसने इस इच्छा को दबा दिया। वह जानती थी इस मँहगाई में घर की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए उसकी नौकरी कितनी जरूरी है।