जलते सपने / गरिमा सक्सेना
पूजा घर में खुशी से झूमते हुए घुसी और आवाज लगायी, "मम्मी, मम्मी कहाँ हो?"
"हाँ आ गयी काॅलेज से, देर हो गयी तुझे, अब जल्दी आ, कपड़े रखे हैं तेरे निकाल कर अंदर वो पहन कर जल्दी तैयार हो जा।"
"क्यों माँ कहीं जाना है अभी? अच्छा पहले मेरी बात तो सुन लो, माँ आज मेरा बी.ए. का रिजल्ट आ गया पूरे 98% नंबर आये मेरे। अब मैं अच्छे काॅलेज से आगे पढूँगी... पापा कहाँ हो पापा?"
"श्श्श धीरे बोलो, हाँ ठीक है जा अब जल्दी तैयार हो कर आ जाओ और किचन से चाय बना कर बैठक में लेती आना जल्दी।" "क्यों माँ कौन आया है बोलो ना?"
इतने में पूजा के पिताजी पीछे से आये और बोले, "जल्दी चाय-वाय भिजवाओ भई लड़के वाले इंतजार कर रहे हैं पूजा को जल्दी भेजो।"
पूजा स्तब्ध रह गयी... मूर्तिवत् किचन में गयी चाय चढ़ाई...
कुछ देर बाद माँ किचन में आयी झट से गैस बंद की जोर से बोलीं, "पूजा कहाँ ध्यान है तुम्हारा? चाय पूरी उबल कर निकल गयी, बर्तन जल गया, बाहर वो लोग इंतजार कर रहे हैं, एक काम ढंग से नहीं होता तुमसे।"
पूजा बोली, "माँ आपको केवल चाय का उबलना जलना दिखा ना? मेरे सपने मेरे अरमान जो स्वाहा हो रहे हैं वो नहीं दिख रहे?"