जलम-दिन / सत्यनारायण सोनी
10 मार्च, 1997 परलीका आज म्हारो जलम दिन है। स्कूल री छुट्टी हुंवतां ई म्हैं घर सारू रवाना हुयो। मारग में हलवाई री दुकान। सोचूं, आं अ_ाइस बरसां में म्हारो जलम दिन मनावण री नां तो म्हैं तेवड़ी अर अर नां कुण ई और। चलो, आज आ पैल आपां ई करां। मिठाई लेवां। गूंजो सम्हाळूं, पण गूंजो तो जाबक खाली। खैर, कोई बात नीं। हलवाई उधार भी देय सकै। सोचूं, मिठाई देखÓर श्रीमतीजी घणा राजी हुसी। कारण पूछसी तो बेगो-सो बताऊं कोनी। मारग मांय म्हारा कीं चेला-चांटी मिल्या। बां नै भी बरफी रा अेक-अेक पीस पकड़ाया। बोल्या, गुरुजी, आज आ मिठाई?ÓÓ अेक जणो आज अ_ाइस साल रो हुयग्यो।ÓÓ अच्छ्या तो गुरुजी, आ बात है? हैप्पी बर्थ डे ! जलमदिन मुबारक, गुरुजी।ÓÓ धन्यवाद!ÓÓ आप पैलां बतावता गुरुजी तो हरख मनांवता। कोड करता अर केक कटांवता थारै सूं।ÓÓ दूजै चेलै हेत जतांवतां कैयो। म्हैं बोल्यो, अरै नईं रे! इतरो तामझाम क्यां सारू?ÓÓ चेलां सूं बंतळ कर परो म्हैं उमायो-उमायो घर कानी व्हीर हुयो। घरां बड़तां ई म्हारै स्वागत में टाबरां रै रोवण रो सुर सुणीज्यो। चूल्है ऊपर चाय री पतीली चढ्योड़ी ही। जोड़ायत चूल्है कनै बैठी चूल्है सूं ई कीं बेसी ताती ही। टाबरां माथै पूरी रीस काढीजै ही। मोटोड़ो रोयां जावै हो। छोटिया डरूंफरूं-सा अेक कानी बैठ्या हा। बां री आंख्यां में आज कीं न्यारो ई डर हो। घर रो दरसाव देखÓर म्हारो सगळो उमाव ठंडो पड़ग्यो। सेवट म्हैं हिम्मत करÓर पूछ ई लियो, कांईं हुयो?ÓÓ हूंऽ! जाणै कीं कोनी होयो! थानै के फिकर है, कीं होयबो करो भलांई!ÓÓ बण मंूडो फुलायो। म्हैं कीं नीं बोल्यो। इस्यै मौकै म्हैं कीं नीं बोल्यां करूं, मौकै री नजाकत देख लिया करूं। म्हानै मून देखÓर उणनै ई बोलणो पड़्यो, अण थारै लाडलै गुल्लक फोड़ दियो।ÓÓ बीं रो इसारो मोटोड़ै कानी हो। म्हैं बीं कानी देख्यो तो बो डर सूं घुघाण लाग्यो। म्हैं निजरां पाछी खींच ली। म्हैं दोघाचींती में हो - टाबर रै उळाथ म्हारै सूं मारीजै कोनी अर बुचकारूं तो जोड़ायत रो पारो चढसी! वा बोल्यां जावै ही। बोल्यां तो कांईं, बैल्यां जावै ही- दिनगे लाग्यो ज्यान खावण नै। रोज पाटी फोड़ ल्यावै। रोज नूवीं चाइजै।ÓÓ म्हैं भळै ई मून। बा भळै बोली- अेक सौ तीस निसर्या है।ÓÓ म्हैं अजै ई मून हो। बा स्यात म्हारी मौन-साधना भंग करणी चावै ही। इण वास्तै तीर ऊपर तीर फैंकती जावै ही, पण म्हारो पलटवार रो कोई सुंवाज कोनी हो। म्हैं तो मौको देखÓर म्हारो जलमदिन सैलिब्रेट करणो चावै हो। चाय बणगी ही, पण बीं रो भासण सरू हो। घर सारू म्हारी उदासीनता रा सांतरा बखाण हुवै हा। टाबरां री हालत माड़ी ही। बां कानी देखÓर म्हैं डरतां-डरतां मिठाईवाळो लिफाफो खोल्यो अर अेक-अेक पीस बां कानी कर्या। बरफी रा टुकड़ा टाबरां पकड़ तो लिया पण खावणा भारथ हुयग्या। छेकड़ म्हारै निहोरा काढ्यां बां होळै-होळै चाबणा सरू कर्या। म्हारो ई जीव करै हो कै थोड़ो-सो म्हैं भी चाख ल्यूं। पण सोच्यो, पैलां कीं हालात काबू में आ ज्यावै, सो लिफाफो जोड़ायत कानी सरकायो। म्हारै हाथ आगै बढांवतां ई बा तो इण भांत झपटी जाणै भूखो सिंघ सिकार माथै झपट्यो हुवै। म्हारै हाथ सूं खोसÓर लिफाफो तो उण खूंटी टांग दियो। म्हारो रैयो-सैयो सत ई निसरग्यो। सगळी हूंस हवा हुयगी। मिठाई देख्यां भूख ई बधगी ही, पण अब तो बा भी जांवती रैयी। पण भळै दो-अेक पल सारू म्हारी निजरां लिफाफै माथै टंगी रैयी। चाय रो कप उठाÓर म्हैं मर्यै मन सूं चाय रा सुरड़का लगाया अर बारै चूंतरी पर आय बैठ्यो। 10 मार्च रो दिन छिपण लागर्यो है। यूं भी कैय सकूं कै म्हारो अठाइसवों जलमदिन अंधारै में डूबण लागर्यो है। सूखी रोटी माथै चटणी घाल जीम लियो हूं म्हैं अर डकार भी लेय लीनी है। अबार आंगण में मांची माथै लमलेट हुयÓर अेक लघु-पत्रिका रा पाना पलट रैयो हूं। टाबरां नै नींद आयगी है। श्रीमतीजी खर्राटा भरै है। दिनभर री झिक-झिक अबार घुर्र-घुर्र मांय तब्दील हुयगी है। बा पसवाड़ो फोरै तो म्हैं ई डरतो-सो पीठ फोर लेवूं। आधी रात हुगी, आपनै तो जक पड़ै कोनी, औरां नै ई कोनी पडऩ द्यै। देखां जद हाथ में किताबड़ी ई दीखै। जाणै आ ई है आं गै स्सो कीं!ÓÓ म्हैं मून हूं। दिन गरमियां रा है, पण काळजै में धूजणी-सी छूटै। आंख्यां अबार ई किताब में गडो राखी है। कित्ती बर कैय दियो कै ईं च्यानणै में म्हनै नींद को आवै नीं।ÓÓ बा उठÓर बत्ती बुझा देवै। पत्रिका म्हारै सिरहाणै चली ज्यावै। जोड़ायत रा खर्राटां रै संगीत में म्हारी निजरां आभै में विचरती रैवै। &&&&&
11 मार्च रो सूरज उगणवाळो है। जोड़ायत बुहारा-झाड़ी करै। बारै नीमड़ी अर आंगण में मंडेरी ऊपर चिड़कल्यां चिंचाट करै। अर बां री टेर में टेर मिलांवती-सी बा परभाती रा टप्पा गुणगुणावै। म्हारी निजरां मिठाई रै लिफाफै जाय टंगै। कीड़ी लागरी है। जमीन सूं लेयÓर लिफाफै तांईं काळी लकीर! कीड़ी मिठाई रा कण ले-लेयÓर पाछी आवै। अेकर-सी म्हनै लागै जाणै अै कीड़ी म्हनै आज उणतीसवों साल लागण री बधाई देवै। भळै सोचूं अर हाँसूं आपरी बावळ पर, बावळा, कीड़ी ई कदे कीं नै बधाई दी है आज तांईं! जोड़ायत बुहारा-झाड़ी रै काम सूं फारिग होयÓर चाय री पतीली चढावै चूल्है पर। पाणी रो लोटो भरÓर म्हानै पकड़ावै मूंडो धोवण सारू अर अखबार म्हारै मूंडै साम्हीं मैÓल देवै। भळै बा घणै हेत सूं टाबरां नै जगावै। टाबर जाग ज्यावै अंगाड़ी तोड़ता। बा खूंटी सूं लिफाफो उतारै अर कीडिय़ां नै खरी-खोटी सुणावै। मिठाई थाळी में मुंधावै अर फूंक मार-मारÓर कीड़ी अळगी करै। पछै प्लेटां में जचा-जचाÓर म्हारै साम्हीं धरै। चाय छाणÓर कपां में घालै अर बरफी रो अेक टुकड़ो आपरै मूंडै में घालती कैवै, हूंऽऽ, है तो बाळणजोगी सुवाद। पण हैं ओऽ! ईं तंगी में थानै ओ खरचो करण री कांईं आवड़ी?ÓÓ
(1997)