जल गया मकान / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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टिल्लू गिलहरी और चूंचूं चूहा एक ही पेड़ में रहते थे। टिल्लू का घर पेड़ की कोटर में था। चूंचूं पेड़ की जड़ के नीचे बिल बना कर रहता था। टिल्लू का स्वभाव सरल था और वह हमेशा चूंचूं की सहायता करने को तैयार रहती। वहीं चूंचूं घमण्डी था। उसे लगता कि टिल्लू उस पर अहसान जताने की कोशिश करती है।

एक दिन की बात है। गिलहरी चने और मक्का के दाने खा रही थी। चूंचूं बिल से बाहर निकला तो टिल्लू ने पूछा-‘‘कुछ खाओगे? मेरे पास चने और मक्का के दाने हैं। गेहूं और धन की बालियां हैं। और हां। तरबूज के बीज भी हैं।’’

चूंचूं मुंह बिचकाते हुए बोला,‘‘हुअं। ये भी कोई खाने की चीज हैं। मैं तो हमेशा मुनक्के, किशमिश और बादाम खाता हूं। कभी खाएं है तूने?’’ बेचारी टिल्लू अपना सा मुंह लेकर रह गई। चूंचूं बड़बोला था। खुद को लाटसाहब समझता। एक दिन चूंचूं पैदल जा रहा था। टिल्लू बोली,‘‘तुम चाहो तो मेरी साईकिल में बैठ सकते हो।’’ चूंचूं ने मुंह बनाते हुए नजरें पफेर लीं। टिल्लू ने साईकिल रोकी तो चूंचूं बोला,‘‘रहने दे। तेरी इस खटारा साईकिल तुझे ही मुबारक। मुझे तो ए.सी. कार में बैठने की आदत है। चल निकल ले।’’

सर्दी आने वाली थी। हर कोई सिर छिपाने का ठिकाना ढूंढ रहा था। एक नन्हें चूज़े ने चूंचूं से पूछा-‘‘चूंचूं भाई। तुम्हारा घर तो बेहद छोटा है। टिल्लू कह रही थी कि वहां पानी भर जाता है। तुम नया घर क्यों नहीं बना लेते?’’ चूंचूं बोला,‘‘ अरे। पिद्दे भर के चूजे। तू कौन होता है मुझे सलाह देने वाला है? घास-फूस के घर भी कोई घर होते हैं। अरे! घर हो तो आलीशान। नहीं तो नहीं।’’

एक चींटी ने कहा,‘‘चूंचूं भाई। जब तक आलीशान घर नहीं बन जाता, तब तक किसी कोटर में ही छिप जाना।’’ चूंचूं अपने बिल में घुस गया। बारिश आई तो सब अपने-अपने घरों में चले गए। चूंचूं के बिल में पानी भर गया। चूंचूं भीगता रहा और बीमार पड़ गया। फिर अचानक भीषण गर्मी पड़ी। पानी के स्रोत सूख गए। प्यास से सब बेहाल थे। बारिश का रुका हुआ पानी एक गड्ढे में बचा हुआ था। सब उस पानी को उबाल कर पी रहे थे। चूंचूं चूहा दौड़ रहा था। टिल्लू बोली,‘‘चूंचूं। प्यास लगी होगी। मेरे पास उबला पानी है। पियोगे।’’ चूंचूं अपनी आदत के अनुसार बोला,‘‘हुअं। मैं मिनरल वाटर पीता हूँ । नहीं तो कोल्ड ड्रिंक रखता हूं। ये पानी भी कोई पानी है।’’ तभी चूंचूं का पैर लड़खड़ाया और उसके पांव में चोट लग गई। कई दिन उसे बिस्तर पर बिताने पड़े। भूख-प्यास से उसका बुरा हाल था। एक रात वो धू धू अंधेरे में उठा। थके हारे चूंचूं को गड्ढे के पानी से ही प्यास बुझानी पड़ी। बिना उबला पानी पीने से चूंचूं बीमार हो गया। मगर उसकी हेकड़ी तब भी नहीं गई।

समय गुजरता गया। चूंचूं ने लाटरी का टिकट खरीदा था। उसकी लाटरी लग गई। टिल्लू ने सुझाव दिया,‘‘ लाटरी के रुपये संकट के लिए बचाकर रखना।’’ मगर चूंचूं ने सारे रुपये मकान बनाने में खर्च कर डाले। मकान क्या बना। चूंचूं घमण्डी हो गया। उसके पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। अब वह अपने आगे वह किसी को कुछ नहीं समझता। अपने घर बुलाना तो दूर वह किसी को अपने घर के आस-पास भी फटकने नहीं देता। एक ही बात कहता,‘‘ तुम सब मेरी तरक्की से जलते हो। मुझे बिल में रहते हुए तुम्हें मजा आता था। अब देखो मेरा आलीशान मकान। कितनी भी बारिश हो, अब मेरे घर में पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। देखो देखो। मेरे घर की ढालूदार छत। कान खोलकर सुन लो। बुरी नज़र से मेरे घर को देखोगे, तो आँखें नोच लूंगा। ’’

हर दिन एक जैसे नहीं रहते। बुरा समय बता कर नहीं आता। एक दिन चूंचूं के घर में भीषण आग लग गई। चूंचूं का मकान धू धू कर जलने लगा। टिल्लू ने देखा तो वह चीखी,‘‘चूंचूं। गड्ढे के पानी से आग बुझाओ। हम सब तुम्हारी मदद करते हैं।’’ चूंचूं बोला,‘‘गड्ढे का पानी गंदा है। मेरा घर गंदा हो जाएगा।’’ टिल्लू गिलहरी बोली,‘‘चूंचूं। पागल मत बनो। आग बुझाने के लिए कैसा भी पानी हो, उससे क्या फर्क पड़ता है।’’ आग में झुलसता हुआ चूंचूं बोला,‘‘गंवारों जैसी बात मत करो। मैंने फायर ब्रिगेड की गाड़ी को बुलाया है। थोड़ी ही देर में वो आती ही होगी। मुझे तुम्हारी मदद नहीं चाहिए। वो साफ पानी से मेरे घर में लगी आग को बुझाएंगे।’’ फायर ब्रिगेड की गाड़ी सायरन बजाती हुई आई। मगर तब तक देर हो चुकी थी। चूंचूं का बड़बोलापन उसे ले डूबा। उसका घर जलकर खाक हो चुका था। चूंचूं को फिर से पेड़ की जड़ के नीचे अपना बिल बनाना पड़ा।