जसपाल भट्टी : व्यंग का नमक / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जसपाल भट्टी : व्यंग का नमक
प्रकाशन तिथि : 27 अक्तूबर 2012


जसपाल भट्टी अरविंद केजरीवाल के बहुत पहले से भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे थे, परंतु उनकी चोट से घायल व्यक्ति के चेहरे पर भी बरबस मुस्कान आ जाती थी। भट्टी के सीने में आग थी, परंतु वे दुष्यंत कुमार की शैली में चाहते थे कि हर सीने में आग होनी चाहिए। उनकी आक्रामकता में जहर नहीं था और उनकी कोई व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी नहीं थी। जसपाल भट्टी तो यायावर बादल था, जो नहीं जानता था कि किस छत को भिगोना है और किसको बचाना है। उनकी झाड़ू कूड़े-करकट में भेद नहीं करती थी। उनके मन में कोई घृणा या व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।

जसपाल अपनी एक रचना में राजमार्ग पर ढाबा चलाते नजर आते हैं। उनके हमदर्द बुजुर्ग व्यवसाय के ठीक चलने से भी संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि ढाबे पर विदेशी पर्यटक नहीं आते और उनका ख्याल है कि फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के बिना प्रगति का कोई अर्थ नहीं है। बुजुर्ग काफी हद तक मनमोहन सिंह की तरह नजर आते हैं। कस्बाई जीवन से व्यंग्य का तीर महानगरीय जीवन-शैली पर दागना जसपाल भट्टी की विशेषता थी।

देश के इस दशा तक पहुंचने के पहले ही जसपाल भट्टी 'उल्टा-पुल्टा' रच चुके थे। मारक संवाद की अदायगी के समय भी उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं आता था और इस 'पोकर फेस' के कारण उनके अभिनय में धार आ जाती थी। उनकी मखौल उड़ाने वाली शैली में संजीदगी लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर देती थी। हास्य रचने के लिए चेहरे पर संजीदगी आवश्यक होती है। जैसे क्रिकेट में शक्ति से ज्यादा प्रभावशाली टाइमिंग होती है, वैसे हास्य-व्यंग्य में कलाकार की टाइमिंग ही प्रभाव डालती है। जसपाल भट्टी इस खेल में माहिर थे।

वे जमीन से जुड़े व्यावहारिक व्यक्ति थे और मध्यम वर्ग के जीवन की विषमताओं और विसंगतियों का अच्छा-खासा ज्ञान था। पढ़ाई तो उन्होंने इंजीनियरिंग की की थी, परंतु सफलता मिली जीवन की पाठशाला से प्राप्त अनुभव के कारण। वे अपने छात्र जीवन से ही हास्य-व्यंग्य विधा में नुक्कड़ नाटक मंचित करने लगे थे। नुक्कड़ से टेलीविजन और सिनेमा तक की यात्रा में जसपाल भट्टी ने आम आदमी के दर्द को समझकर अपनी एक शैली विकसित की थी। उन्होंने अपने किसी भी कार्यक्रम में हास्य उत्पन्न करने के लिए कभी अश्लीलता का सहारा नहीं लिया।

यह सचमुच त्रासदी है कि यशराज चोपड़ा की तरह जसपाल भट्टी भी अपनी फिल्म के प्रदर्शन के पूर्व ही चल बसे। 'पावर कट' नामक इस फिल्म में उन्होंने अपने पुत्र को बतौर नायक प्रस्तुत किया है। यह भी गौरतलब है कि तमाम हास्य कलाकार गरीब या मध्यम वर्ग से ही आए हैं। क्या धनाढ्य व्यक्ति के नसीब में हंसना नहीं लिखा है? गरीब को तो हास्य के सहारे ही जीवन का असमान युद्ध लडऩा होता है। हास्य उसके लिए कवच है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यंग्य के पुरोधा हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ इतनी लंबी लड़ाई का परिणाम यह है कि शक्ति-संपन्न लोगों के काले कारनामे उजागर हो रहे हैं। भारत के अधिकांश आर्थिक घपले अखबारों ने उजागर किए हैं और उनके द्वारा उपलब्ध सामग्री के आधार पर कुछ लोगों ने सस्ती लोकप्रियता अर्जित कर ली है, क्योंकि लोकप्रियता अर्जन करना अब एक व्यवसाय हो चुका है और इसमें विशेषज्ञ लोगों का प्रवेश हो चुका है। गौरतलब बात यह है कि व्यवस्था की सड़ांध उजागर हो चुकी है और बिना किसी विकल्प के उसे बदलने की बात की जा रही है, जबकि व्यवस्था को चलाने में लाखों आम लोग ही कार्यरत हैं और भ्रष्टाचार में शामिल भी हैं। चिंतनीय बात यह है कि कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी इन्हीं लोगों द्वारा क्रियान्वित की जाएगी। अन्ना के सपनों का लोकपाल परमशक्ति का निर्मम संयंत्र होगा, जो अंततोगत्वा तानाशाही का मार्ग प्रशस्त करेगा। जसपाल भट्टी ने हमेशा व्यवस्था के साथ आम आदमियों की कमजोरियों पर भी व्यंग्य किया है। मात्र ५७ वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हमेशा खलता रहेगा, क्योंकि व्यंग्य विचार प्रणाली में उसी तरह जरूरी है, जिस तरह भोजन में नमक। जब भी वैचारिक भोजन में नमक कम होगा, जसपाल भट्टी की याद आएगी।