जहरीला आदमी / गोवर्धन यादव
एक खूबसूरत युवती ने जहरीले साँपॊं के बीच रहकर विश्व रिकार्ड तोड्ने की ठानी,
देश-विदेश से तरह-तरह के जहरीले साँप बुलवाये गये और एक कांच का कमरा तैयार करवाया गया,
एक निश्चित दिन, उस काँच के कमरे में उन सभी जहरीले साँपों को छोड दिया गया और उस सुन्दर युवती ने प्रवेश किया, खलबली-सी मच गई थी साँपों के परिवार में,
जहरीले साँपों के बीच रहकर वह तरह के करतब दिखलाती, कभी किसी को उठा कर गले से लपेट लेती तो कभी अपनी कमर में, , कभी एक साथ ढेरों सारे सापों को उठाकर अपने शरीर में जगह-जगह लपेट लेती, तरह-तरह के करतब वह दिखलाती, उसके कारनामों को देखने के लिये पूरा गाँव उमड पडा था,
स्थानीय समाचार पत्रों में उसके सचित्र समाचार प्रकाशित हो रहे थे, टीवी वाले भी भला पीछे कहाँ रहने वाले थे, वे अपने चैनलों के माध्यम से उसका लाइव, प्रसारण कर रहे थे, अब पास-पडोस के लोगों के अलावा पडोसी जिले से भी लोग आने लगे थे, फ़लस्वरुप वहाँ बेहद भीड जमा होने लगी थी, ज़िला कलेक्टर ने तथा पुलिस अधीक्षक ने उसकी पूरी सुरक्षा के व्यापक प्रबंध कर रखे थे, उस कांच के कक्ष के बाहर श्रध्दालु लोग पूजा-पाठ करने के लिये जुटने लगे थे, नारियल बेचने वाले, तथा फ़ूल बेचने वालों ने दुकाने खोल लिये थे, दर्शनार्थीयों में कोई उसे असाधारण साहस की धनी, तो कोई काली माँ का अवतार, तो कोई दुर्गा का अवतार कह रहा था,
आख्रिर अडतालिस घण्टे जहरीले सांपों के बीच रहकर उसने पुराना विश्व रिकार्ड तोडते हुये नया रिकार्ड
बना ही डाला,
कमरे से बाहर निकलते ही उस बला कि खूबसूरत युवती को भीड ने घेर लिया, हर कोई उसके गले में फ़ूलमाला् डालने तो बेताब नज़र आ रहा था, विशेषकर युवातुर्क,
यह पहले से तयकर दिया गया था कि उसके बाहर आने के बाद उसका नागरिक अभिनन्दन किया जायेगा, एक बडा विशाल मंच तैयार कर लिया गया था, उसे ससम्मान जयकारे कि साथ मंच पर लाया गया, मंच पर अनेक गणमान्य नागरिकों के अलावा एक अधिकार संपन्न नेताजी भी आमंत्रित थे,
उसके मंच पर आते ही भाषणों का दौर शुरु हुआ, भाषण पर भाषण चलते रहे, भाषणों के बीच, उस नेता ने उसे अपने आवास पर भोजन के लिये आंमंत्रित किया, पोर-पोर में ऎंठन और दर्द के चलते उसका मन वहाँ जाने के लिये तैयार नहीं हो रहा था, बावजूद इसके वह मना नहीं कर पायी,
देर रात तक भोजन का दौर चलता रहा, नींद के बोझ के चलते उसकी पलकें कब मूंद गई, उसे पता ही नहीं चल पाया, अब वह पूरी तरह से नींद के आगोश में चली गई थी,
गहरी नींद के बावजूद उसने महसूस किया कि कोई उसके शरीर को कोई बुरी तरह से रौंद रहा है, चेतना में आते ही पूरी बात उसकी समझ में आ गई थी, वह उठकर भाग जाना चाहती थी, लेकिन शरीर पर वस्त्र न होने की वज़ह से वह चाहकर भी भाग नहीं पायी थी और वहीं बिस्तर पर पडी-पडी आँसू बहाती रही थी और दरिंदा अपना खेल, खेलता रहा था,
इस दुर्घटना के बाद से वह एकदम से गुमसुम-गुमसुम-सी रहने लगी थी, बात-बात में खिलखिलाकर हंसने वाली वह शोख चंचल हसीन अब मुस्कुराना भी भूल चुकी थी और वह अब आदमियों के बीच जाने से भी घबराने लगी थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि वहाँ केवल सांपों के मुँह में ज़हर होता है, जबकी, जबकी आदमी पूरा कि पूरा जहरीला।