जहेरथान / कमल

Gadya Kosh से
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अगर बाहर से जाना हो तो सिंहभूम के डिलिया जल-प्रपात जंगलों में जिलिंगहोड़ा गाँव को ढूंढना थोड़ा कठिन होगा। लेकिन वहाँ के निवासियों का साथ हो तो आप हैरान मंत्र-मुग्ध से देखते रह जाएंगे और जिलिंगहोड़ा गाँव घने जंगल के बीच से बनती राह में कभी पत्थरों के ऊपर चढ़ते तो कभी उतरते, पहाड़ी फूलों, बेलों और हरियाली की खुश्बुओं में तैरते, देखते-ही देखते आपके सामने आ खड़ा होगा। वहां पहुँचने से ज़रा-सा पहले तक घने जंगल में नजर न आने वाला और फिर अचानक ही उग आने वाला छोटा-सा जिलिंगहोड़ा अपने उग आने की इस अदा से दिकु (बाहरी) लोगों को हैरान कर देता है।

उसी गाँव का बास्को अपने साथ कुछ बंबइया लोगों को ले कर बढ़ा जा रहा था। वे सब दो घंटे पहले ही गाँव आये थे। उनकी तीन बड़ी-बड़ी गाडि़याँ पीछे वहां, जहां तक पक्की सड़क है, खड़ी थीं। उनके साथ आये कुछ लड़के-लड़कियां वैन में मेकअप आदि कर शूटिंग की तैयारी कर रहे थे। शूटिंग की तैयारी होने तक समय का उपयोग करने के लिए ही कुमार ने अपना कैमरा उठाया और बास्को को साथ ले कर आस-पास के दृश्यों को देखने निकल आया था।

‘टाइम इज मनी बोलने वालों में ही नहीं रहना चाहिए, टाइम को मनी में कन्वर्ट करना पड़ता है’, कहने वाला डायरेक्टर कुमार अपने समय के एक-एक सेकेंड का हिसाब रखने वालों में से था।

उसने एक पेड़ की टहनी पर बैठी रंग-बिरंगी चिडि़या पर फोकस सेट कर कैमरे का बटन दबाया। क्लिक की हल्की ध्वनि तो कम थी, लेकिन फ्लैश की चमक से घबरा कर चिडि़या चीं...चीं करती उड़ गयी।

“अब चाहे जहां उड़ जाओ, मैंने तुम्हारी सुंदरता को हमेशा के लिए कैद कर लिया है।” अपने डिजिटल कैमरे की स्क्रीन पर चिडि़या को देख कुमार प्रसन्न हो रहा था।

“तुम्हारे गाँव की लड़कियां तो समय पर पहुंच जाएंगी न !”उसने पूछा।

“जी सर, आप निश्चिंत रहें, मैंने आते ही सोनामनी के घर जा कर चेक कर लिया था। सभी लड़कियां बड़े उत्साह से तैयार हो रही थीं।” बास्को ने तत्परता से उत्तर दिया। ठिगने कद और साँवले रंग वाला बास्को अपनी इन्हीं दो पहचानों से आदिवासी लगता था, वर्ना अपनी जींस में आधी खोंसी और आधी बाहर लटकती टी शर्ट, मशरुम कट बाल, फ्रेंच कट दाढ़ी-मूँछ और बड़े-बड़े गॉगल्स से तो कदापि नहीं। अपने इस पहनावे और सिगरेट पीने के ढंग से उसे दूर से देखने पर वह भी दिकू (बाहरी) ही लगेगा।

“चिंता करनी पड़ती है। अगर ये लड़कियां न आतीं तो जूनियर आर्टिस्टों को लाने में कितना खर्च आता जानते हो!” लंबे कद वाले गोरे-चिट्टे डायरेक्टर कुमार ने अपना सिगरेट सुलगाते हुए कहा।

“जी.... जी, आपका खर्च कम करना तो मेरा फर्ज है ।” खींसे निपोरता बास्को बोला था, “वैसे उन्हें तैयार करने में मुझे कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ी । आजकल फिल्म और टी.वी. का क्रेज सब जगह पहुंचा हुआ है । देख लीजिएगा, हमारे लौटने से पहले ही सब लड़कियां तैयार हो कर जहेरथान पहुँच जाएंगी।”

“हूं..... अच्छा यह जहेरथान का क्या अर्थ होता है ?” कुमार ने पूछा।

“जी सर, वो हम आदिवासियों का पूजा-स्थान होता है। वहां साल का बहुत पुराना एक पेड़ लगा होता है। हमारे यहां साल वृक्ष को सकुवा सरजोम के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और सत्य का प्रतीक साल हमारा सबसे पवित्र वृक्ष है।” बास्को पूरी तन्मयता से बताता जा रहा था, “इसी साल वृक्ष के नीचे हम पूजा-पाठ करते हैं और उस स्थान को ‘जहेरथान’ कहते हैं। इसे हमारा मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च कुछ भी कह लीजिए। हम लोग अपना हर शुभ काम इसी की छाया में करते हैं। इतना ही नहीं, इसकी छाल से दवा बनती है, इसके फल को महुआ के साथ पकाकर खाया जाता है। यहां तक कि हमारी मान्यता अनुसार अंतिम संस्कार के समय शव को जलाना होता है, तब भी उसमें साल की एक लकड़ी अवश्य होनी चाहिए।” बास्को ने बताया।

“तब तो जहेरथान तुम लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान हुआ।” कुमार बोला।

“जी...जी, यह हमारे जीवन का केन्द्र विन्दु है ।”

“अब हमें लौट चलना होगा । सूरज की रोशनी भी सही हो गई है ।”

“जी... चलिए।” वे दोनों गाँव की ओर मुड़ गये।

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उन दिनों जिलिंगहोड़ा में सरहुल उत्सव का माहौल था।

“अपना फिलिम बनेगा, इसलिए देखो तो सोनामनी कैसे जोर से सज रही है।” उसकी सहेली फूलमनी ने छेड़ा।

“अइसा नहीं है रे, अगर बास्को की फिलिम पारटी ना भी आयी होती, तब भी आज के दिन सोनामनी और उसकी सहेलियाँ अइसे ही सज-धज कर सरहुल मनाती । काहे रे हम ठीक कहे न, बताओ तो इस फूलमनी को।” उसने अपनी सहेलियों को ललकारा ।

“हां ...हां ई बात तो एकदम सच्चे है।” सब की जोरदार खिलखिलाहट चारों तरफ फैल गई।

हंसी कुछ थमी तो एक ने पूछा, “बास्को की बातें मान कर हम कोई भूल तो नहीं कर रहे ?”

“नहीं रे मुझे तो नहीं लगता।” सोनामनी ने भरोसा दिलाते हुए कहा, “वैसे बास्को है बड़ा चलता पुर्जा।”

फूलमनी बोली, “मुझे तो आज भी झरना की बड़ी याद आती है। पाँच साल पहले नौकरी करने इसी के साथ दिल्ली गई थी। आज तक उसकी कोई खबर नहीं आई।”

“बास्को तो कहता है कि जहाँ वह नौकरी करती थी, उसी घर की मालकिन की मौत के बाद मालिक ने उससे शादी कर ली है और वह अपना जीवन सुख से बिता रही है। लेकिन पता नहीं काहे तो हमको बास्को का बात पर भरोसा नहीं होता। जो सुख से रह रहा होता है क्या उसको अपना गाँव-घर का याद आता ?” सोनामनी भी झरना की याद से उदास हो गई थी।

“कहीं बाहर जाना होता तो मैं उसकी बात नहीं मानती। लेकिन उसकी फिलम पार्टी यहां आएगी और हमें नाच-गान के बाद अच्छे पैसे भी यहीं देगी इस बात में कोई खतरा कहां है ?” फूलमनी बोली।

“हां... इसीलिए तो हम सब तैयार हो रही हैं। चलो सब जल्दी-जल्दी तैयार हो जाओ।” सब अपनी तैयारी में लग गयीं।

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जहेरथान के पास स्थित चबूतरे के चारों तरफ एक-डेढ़ गज लंबी लाल तथा सफेद पट्टियों वाली कपड़े की ढेर सारी पताकाएं सजा कर लगा दी गई थीं। शूटिंग टीम की दक्षता वाली वह सजावट जहेरथान पर अभूतपूर्व भव्यता पैदा कर रही थी। डायरेक्टर कुमार के साथ आयी फिल्मी हिरोइनों-सी लड़कियां भी आदिवासी लड़कियों के वेश में सज चुकी थीं। लेकिन उनका गोरा-चिट्टा रंग उनके आदिवासी न होने की चुगली कर देता था। वे और जिलिंगहोड़ा की लड़कियां अलग-अलग दो टोलियों में अपने नृत्य का अभ्यास कर रही थीं। उन दोनों टोलियों के नृत्य में भी फर्क साफ दिख रहा था। गोरी-चिट्टी लड़कियों के नृत्य में जहां अनावश्यक अंग प्रदर्शन व तीव्रता थी सोनामनी और उसकी सहेलियों के नृत्य में एक सौम्यता और प्रकृति का रस घुला हुआ था।

बीच-बीच में अपना नृत्य रोक कर बाहरी लड़कियां सोनामनी और उसकी सहेलियों के नृत्य को देख कर आपस में बातें करते हंस पड़ती थीं, कुछ-कुछ मखौल उड़ाने के से अंदाज में। अगर उस समय सोनामनी की नजर उन पर पड़ जाती तो उसके तन-बदन में आग लग जाती थी। अपनी सहेलियों के साथ जब वह सुबह आयी थी, तब भी उसने उन लड़कियों से हिल-मिल कर बातें करनी चाही थीं। लेकिन उन सबने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया था, उसे हल्केपन से लिया था। सोनामनी को उनका वह व्यवहार बड़ा बुरा लगा था और वह चुपचाप एक तरफ हट गई। तब से ही वहां स्वतः लड़कियों के दो झुंड अलग-अलग दिख रहे थे।

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उनके लौटने तक शूटिंग की सब तैयारी हो चुकी थी। चबूतरा सजा हुआ था। कलाकारों का मेकअप पूरा हो चुका था। लाइट, रिफ्लैक्टर, साऊंड, कैमरा आदि चेक किये जा चुके थे। मांदर (ढोल), टमक (छोटा नगाड़ा) और बंसी के संगीतमय माहौल में जब डायरेक्टर कुमार बास्को अदि लौटे तब जहेरथान पर अपनी सहेलियों के साथ पैरों की थाप और झूमते शरीर की लहरों पर मगन सोनामनी गा रही थी-

“आलेअः दिसुम तेपे हिजु रेदो
सरजोम बः बः तेले
बः कुल पेआ

आलेआः गामाये तेपे सेटेर रेदो
रुतः ब डाली तेले
डाली जामा पेआ

सरजोम बः बः तेले
बः कुल पेआ
रसिका जिदान ले ओमा पेआ

रुता बाः डाली तेले
डाली जामा पेआ
जीवु कुडाम दो मोदोः लेका I”

उनका गाना सुन कर कोई भी झूम उठेगा फिर बास्को के साथ आये वो लोग क्यों न झूमते ।

“ये लड़कियां तो कमाल का माहौल रच रही हैं। बास्को तुमने ठीक ही कहा था। आदिवासियों पर फिल्म में गानों का असली प्रभाव तुम्हारे गाँव में ही मिलेगा।” डायरेक्टर कुमार ने उसकी पीठ थपथपायी।

अपनी तारीफ सुन कर सोनामनी और उसकी सहेलियाँ खुशी से झूम उठीं। खुश तो बास्को भी बहुत था। कुमार के संतुष्ट होने का अर्थ था, उसका बड़ा फायदा। और विज्ञापन की दुनियां में उसकी जगह का पक्का होना, जैसा कि कुमार ने उसके गाँव आने से पहले कहा था।

“अच्छा तुम सब जो गा रही थीं उसका अर्थ क्या है ?” कुमार के पूछते ही सोनामनी आगे बढ़ आयी।

उसका शरीर अब भी हाँफ रहा था, “इसका मतलब है, हमारे देश में आओगे तो साल फूल दे कर भेजेंगे । हमारे प्रांत में पहुँचोगे तो अर्जुन फूल से स्वागत करेंगे । साल फूल खोंस कर भेजेंगे तो जीवन भर खुशियां पाओगे । अर्जुन फूल से स्वागत करेंगे तो दिल और प्राण एक हो जाएंगे ।” गीत का अर्थ बताते हुए तीखे नैन-नक्श और आकर्षक बदन वाली साँवली सोनामनी का चेहरा दर्प से दमक रहा था ।

“कुमार साहब, ये सोनामनी है, मैंने आपको बताया था न, जिलिंगहोड़ा में सबसे मीठा गाने वाली।” बास्को ने उनका परिचय कराया।

“अच्छा, अच्छा। तुमने इन्हें समझा दिया है न इन्हें क्या करना है।”

“जी, जी।” कहते हुए बास्को ने उन्हें एक तरफ बुलाया, “सोनामनी इधर आओ। मैंने तुम लोगों को समझाया है न, जैसे-जैसे डायरेक्टर साहब बोलें, वैसे ही करना है।”

सोनामनी और उसकी सहेलियों ने सहमति में सर हिलाए।

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दृश्य फिल्माने के लिए चबूतरे पर कुल पाँच पंक्तियाँ बनायी गयी थीं। आगे की तीन पंक्तियों में बाहरी बंबइया हीरो-हिरोइनों को खड़ा कर पीछे की दो लाइनों में सोनामनी और उसकी सहेलियों को खड़ा किया गया।

डायरेक्टर कुमार के रेडी.... कैमरा.... एक्शन... के उद्घोष के साथ शूटिंग प्रारंभ हुई। दो तीन टेक तो बड़ी आसानी से पूरे हो गये। लेकिन अगले टेक में बाहरी लड़कियों के बांयी ओर से झूम कर सोनामनी भी आगे बढ़ गयी। अभी वह पहली पंक्ति में पहुँची ही थी कि भोंपू पर कुमार की तीव्र आवाज गूँजी, “कट....कट”।

.... और संगीत, नृत्य साऊंड, रिकार्डिंग आदि सब एक झटके से ही रुक गये। वहां मातम-सा सन्नाटा फैल गया।

“ए ! ...तुम ! तुम आगे कैसे आ गयी ? चलो पीछे ! तुम्हें जहाँ बताया गया है वहीं रह कर नाचो, समझी!” कुमार ने उसे डांटते हुए कहा ।

वह चुप-चाप अपनी जगह पर लौट गई। लेकिन सोनामनी को उसका डांटना बड़ा बुरा लगा था । उसका उल्लासित मन अचानक ही उदास हो गया। उसने देखा आगे खड़ी बंबइया लड़कियां हंस रहीं थीं।

बाहरी गोरी-चिट्टी लड़कियाँ और लड़के आगे की तीन पंक्तियों में आदिवासी बने नाचते रहे और उन्हें पीछे की दो पंक्तियों में नाचने को कहा गया। वह डांट सुन कर भले ही पीछे आ गई थी, लेकिन जैसे-जैसे शूटिंग आगे बढ़ी सोनामनी का असंतोष जगने लगा। और दो-चार शाट ओ.के. होते-होते उसे यह बात समझने में ज्यादा देर नहीं लगी कि उन्हें मात्र भीड़ की तरह प्रयोग किया जा रहा है। एक शाट के बीच अचानक ही सोनामनी अपनी जगह छोड़ कर सामने आ कर खड़ी हो गई।

“कट...कट” चीखता हुआ कुमार बुरी तरह झल्लाया, “ये क्या बात हुई । अच्छा-भला शाट ओ.के. होने को था। तुम अपनी जगह से आगे क्यों आ गई ?”

“हम अइसे में नहीं नाचेंगे । आप तो हमको पीछे रखे हैं । हमारा फोटो कहां आयेगा ?”

“तुम्हारा फोटो क्यों नहीं आएगा ? कैमरा में सब का फोटो आता है।” कैमरा मैन राहुल बोला, “बेकार में ही अच्छा भला शाट बिगाड़ डाला। तुम्हारी वजह से कितना रोल फिल्म खराब हो गया।”

बंबइया लड़के-लड़कियाँ हंस पड़े। उस हंसी ने सोनामनी के असंतोष की आग में घी का काम किया।

“जब ई सब आगे खड़े हैं तो हमारा फोटो कैसे आयेगा, अब इतना बात तो हम भी समझते हैं।” सोनामनी ने बाहरी लड़के-लड़कियों की तरफ इशारा किया और चबूतरे से नीचे उतर आयी। उसकी सारी सहेलियां भी उसके पास आ खड़ी हुई।

अब चबूतरे पर बस बाहर से आयी चार लड़कियां और दो लड़के ही आदिवासियों के मेकअप में खड़े रह गये थे।

बास्को तेजी से आगे बढ़ा, “ई सब तुम का किचाइन कर रही हो ? किसको कहां खड़ा हो कर नाचना है ई बात तुम लोग बताओगे क्या ?”

“देखो बास्को तुम हम लोग से बोले थे कि हमारा नाच का शूटिंग होगा । बाहर दुनियां में हमारा सरहुल पर्व का नाच के बारे में सब को पता चलेगा ।” सोनामनी बोली।

“हां, तो हम गलत कहां बोले थे! इसी के लिए तो डायरेक्टर साहब इतना तकलीफ उठा कर यहां जिलिंगहोड़ा आये हैं।”

“....तो हमारा नाच हम दिखाएंगे कि ऊ बाहरी लोग ?”

“ऊ बाहरी लोग नहीं है, सब डांस का एक्सपर्ट है। एक-एक फिलम के लिए कितना कमाता है तुमको क्या पता ? ऊ बाहरी लोग के ही कारण यहां शूटिंग हो रहा है, समझी !”

“तो फिर ऊ बाहरी लोग के साथ ही शूटिंग कर लो न ! हमारा क्या काम है ?”

“तुम बहुत बोलती हो। डायरेक्टर साहब का मूड खराब हो गया तो शूटिंगे बंद कर देंगे और जो पैसा तुम सब को मिलने वाला है वह भी गया ।”

“अइसा पैसा का हमको जरुरत नहीं है, तुमको होगा होगा। और हां, यह बात अच्छी तरह समझ लो। अगर हमारे जहेरथान पर, हमारे नाच की और हमारे जीवन की बातों की शूटिंग होगी तो हमें पीछे रख कर नहीं होगी। हमको पीछे रखना है तो कहीं और जाओ। वहां जा कर अपना जहेरथान बनाओ, अपना गीत बनाओ, अपना नृत्य बनाओ फिर कर लो अपने मन का शूटिंग !” सोनामनी ने निर्णायक स्वर में कहा।

उसका उत्तर सुन कर बास्को की आवाज बंद हो गई।


उधर कुमार बुरी तरह खीझ रहा था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि सीधी-साधी शूटिंग शेड्यूल इन आदिवासी लड़कियों के कारण इस बुरी तरह गड़बड़ा जाएगी। उसे लग रहा था, सारा दोष इस सोनामनी की बच्ची का है, उसने गुस्से में दांत पीसे, “इन दो कौड़ी के आदिवासियों की यह हिम्मत कि कुमार की शूटिंग रोक दे !”

उसने एक बार बास्को की ओर देखा और गुस्से से उठ खड़ा हुआ।

उसका गुस्सा देख, असिस्टेंट डायरेक्टर ज्योति तेजी से उसकी ओर बढ़ी, “सर गुस्से से काम और भी बिगड़ जाएगा। हमें आज की शूटिंग हर हाल में पूरी करनी ही होगी, वर्ना फायनेंसर को क्या जवाब देंगे?”

“...तो फिर क्या किया जाए ?” कुमार के नथुनों से मानों भाफ निकल रही थी।

कैमरा-मैन राहुल उनके पास आया, “सर एक उपाय सूझ रहा है।”

“क्या... क्या? जल्दी बोलो।” कुमार ने व्यग्रता से पूछा। उसकी चिंता का कारण, तेजी से पश्चिम को दौड़ता सूर्य भी था। अगर जल्द कुछ नहीं किया गया तो रोशनी की कमी से ही पैक-अप करना पड़ेगा।

“सर हम सोनामनी और उसकी सहेलियों की बात मान लेते हैं।” राहुल बोला।

“क्या! तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया ? इन काली-कलूटी डांसरों के लिए कौन पैसे खर्च करेगा ? हमारी लड़कियों का डांस कितना सेक्सी और गॉर्जियस है। स्वर्ग की अप्सरायें मेनका और रम्भा भी इनके सामने पानी भरती हैं। आदिवासी रंग-रुप वाली ये लड़कियाँ वह प्रभाव कहाँ से लाएंगी ?”

“सर मेरी पूरी बात तो सुनिए। हम उन्हें आगे और अपनी लड़कियों को पीछे रखेंगे जरुर, लेकिन रिकार्डिंग तो मुझे ही करनी है। जब कैमरा सोनामनी की तरफ रहेगा, तब मैं रिकार्डिंग बंद रखूंगा और जब घूम कर अपनी लड़कियों की ओर पीछे आऊंगा तब रिकार्डिंग होगी। सोनामनी सोचेगी उनकी भी रिकार्डिंग हो रही है। बस मुझे कैमरा ही तो आगे-पीछे मूव करना है।” राहुल ने अपनी योजना बतायी।

असिस्टेंट डायरेक्टर ज्योति तेजी से बोली, “सर वैसे भी हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है।”

उनकी बातें कुमार की समझ में आ गई थीं। उसे राहुल का आयडिया जमता लगा। फिर भी उसने शंका व्यक्त की, “कहीं उन्हें हमारी चाल का पता चल गया तो .....?”

राहुल के होठों पर कुटिल मुस्कान थी, “सर यही तो देखना है कि हम ज्यादा चालाक हैं या ये आदिवासी ?”

कुछ देर सोचने के बाद कुमार बोला, “ओ.के. चलो ट्राई करते हैं।”