ज़हर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सईद का अपना रिक्शा तो है नहीं कि दिनभर की कमाई अपने घर में रख ले। ठेकेदार जाफर खां को दस रुपए रोज किराए के देता है। दिनभर छोटे बच्चे को बुखार रहा। दवाई लाना ज़रूरी था। वह आज की दिहाड़ी लेकर घर की ओर मुड़ा तो जाफर ने टोका–"क्या आज किराया नहीं दोगे?"
"बच्चा बीमार है। घर में आटा तक भी नहीं है। कल इकट्ठे ही दे दूँगा।" सईद ने अनुनय के स्वर में कहा।
जाफर खाँ आगे बढ़ गया–"पहले किराया दो, घर बाद में जाना।"
"आज नहीं दे सकूँगा।" सईद का स्वर तल्ख हो गया।
"क्यों नहीं दे सकोगे?" जाफर ने गर्दन पकड़ ली।
सईद फुँफकार उठा–"छोड़ हरामजादे"–कहकर उसे नाली में धकेल दिया।
कीचड़ में सना जाफर खाँ उस पर बाघ की तरह झपटा–"सूअर की औलाद!" दाँत सईद के कंधे पर गड़ा दिए. खूब सारा मांस नोंच लिया। खून बह उठा।
सईद दौड़कर डॉक्टर के पास पहुँचा। डॉक्टर ने अच्छी तरह परीक्षण करके इंजेक्शन लगा दिया–"तेरह इंजेक्शन और लगेंगे।"
"तेरह इंजेक्शन!"
"हाँ, ज़हर का असर हो सकता है।" डॉक्टर बोला।