ज़िंदगीभर नहीं भूलेगी वो बरसात / जयप्रकाश चौकसे

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ज़िंदगीभर नहीं भूलेगी वो बरसात
प्रकाशन तिथि :12 जून 2017


मुंबई के खार क्षेत्र में मुख्यमार्ग पर शैलेन्द्र का बंगला 'रिमझिम' कानूनी विवाद में फंसा है, क्योंकि उनकी संतानें लामबद्ध हैं। उन्होंने अपना गीत लेखन राज कपूर की 'बरसात' से प्रारंभ किया था और संभवत: इसीलिए निवास स्थान का नाम रखा 'रिमझिम।' उन्हें यह शब्द पसंद था, इसीलिए विजय आनंद की 'काला बाजार' में भी उनका गीत है, 'रिमझिम' के तराने लेकर आई बरसात, याद आई किसी से वह पहली मुलाकात।' शैलेन्द्र के पुरखे बिहार में जन्मे थे परंतु स्वयं शैलेन्द्र का जन्म पंजाब में हुआ था। आज़ादी का जश्न मनाने के लए मुंबई की चौपाटी पर एक कवि सम्मेलन हुअा,जिसकी अध्यक्षता पृथ्वीराज कपूर कर रहे थे। श्रोताओं में मौजूद राज कपूर को शैलेन्द्र का गीत 'मेरा जलता हुआ पंजाब' बहुत पसंद आया और उन्होंने शैलेन्द्र को अपनी फिल्म में गीत लिखने का निवेदन किया, जिसे अपनी साहित्यिक हेकड़ी के साथ शैलेन्द्र ने ठुकरा दिया परंतु कुछ समय बाद उनकी पत्नी को अस्पताल में भर्ती करने के लिए उन्हें धन चाहिए था। अत: वे राज कपूर से मिले। उन्होंने उन्हें पैसे दिए परंतु गीत लिखने का कोई वादा नहीं लिया। इसी तरह राज कपूर ने मजरूह सुल्तान पुरी की भी मदद की थी। राज कपूर साहित्यकारों का बहुत सम्मान करते थे।

बहरहाल शैलेन्द्र ने राज कपूर की 'बरसात' के दो गीत लिखे। ज्ञातव्य है कि फिल्म में गीत लिखकर प्रसिद्ध हुए शैलेन्द्र का एक काव्य संकलन '56' के नाम से प्रकाशित हुआ था, जिसके गीत महज साम्यवादी विचारधारा के प्रचारात्मक गीत थे और उनके आधार पर साहित्य में कोई स्थान नहीं मिल सकता था परंतु उनके फिल्म गीतों में साहित्य का स्पर्श स्पष्ट महसूस होता है। यह साहित्य के प्रति उनका स्वाभाविक 'रुझान' ही था कि उन्होंने फणीश्वरनाथ रेणु की 'तीसरी कसम' पर फिल्म बनाई। बिमल राय की व्यंग्य फिल्म 'परख' में शैलेन्द्र का गीत 'सजना बरखा बहार आई' को लता मंगेशकर अपना प्रिय गीत मानती हैं और कहती हैं कि इसे गाने के लिए उन्हें बहुत परिश्रम करना पड़ा था। यह भी शैलेन्द्र रचित गीत है। इसी तरह मेहमूद द्वारा निर्मित पहली फिल्म 'भूत बंगला' में लताजी द्वारा गीत था, 'घिर आए बदरिया।'

स्टन्ट फिल्म 'सुल्ताना डाकू' में भी एक बकमाल वर्षा गीत है, जिसे मुबारक बेगम ने गाया है, 'महाराजा, किवड़ियां खोल, रस की बूंद पड़ी।'

संगीतकार रोशन साहब ने 'बरसात की रात' में गीत रचा 'गरजत, बरसत सावन आयो रे,' इस फिल्म के अन्य गीतों में भी वर्षा को केंद्र में रखकर साहिर लुधियानवी ने कमाल की रचनाएं की हैं। राज कपूर की बूट पॉलिश में मन्ना डे का गाया गीत 'लपक झपक तू आ रे बदरवा, मेरे घड़े में पानी नहीं है तू पनघट से भर ला।' मन्नाडे का कथन है कि शंकर-जयकिशन की धुन में शास्त्रीयता के साथ हास्य का पुट भी रचा गया था, क्योंकि जेल में बंद सभी गंजे लोग ये गीत गा रहे हैं। इसी तरह मनोज कुमार की 'रोटी, कपड़ा और मकान' का गीत है, '…तेरी दो टकिया दी नौकरी मेरा लाखों का सावन जाए...।'

राज कपूर की 'श्री 420' का युगल गीत 'प्यार हुआ इकरार हुआ, फिर प्यार से क्यों डरता है दिल' का छायांकन रिमझिम फुहारों में किया गया है। नायिका के पास छाता है, वह उसे खोलती है तथा भीगते हुए नायक को देती है, जो नायिका को भीगते देखता है तो छाता उसे दे देता है। आंखों ही आंखों में संवाद होता है और दोनों एक ही छाते में आ जाते हैं, जो उनके जीवनभर साथ रहने के इरादे को प्रतीकात्मक ढंग से उजागर करता है। दरअसल, फिल्मकारों ने वर्षा गीतों का बहुत उपयोग किया है और अजातशत्रु ने 14 जुलाई 90 को लिखे एक लेख में तमाम फिल्मी वर्षा गीत का ब्योरा प्रकाशित किया था।

बरसात का उपयोग फिल्मकार इसलिए भी करते हैं कि गीले वस्त्रों में नायिका के देह के संगीत को भी प्रस्तुत कर सकें। किशोर कुमार और मधुबाला पर फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' में प्रस्तुत गीत 'एक लड़की भीगी भागी-सी, सावन की रातों में जागी-सी' संभवत:' सबसे अधिक सेन्युअस फिल्मांकन है। यह सचिन देव बर्मन व मजरूह सुल्तानपुरी की रचना है। मधुबाला तो सौंदर्य का जलप्पात ही थी, नियाग्रा से अधिक विराट और वेगवान।

बूट पॉलिश में जेल में 'लपक झपक तू आ रे बदरवा' गाने के समाप्त होने पर जोरदार वर्षा होने लगती है और गंजों को लगता है कि इस वर्षा से गरीब लोगों पर भारी विपत्ती आ जाएगी, उनकी झोपड़ियां टूट जाएंगी और फुटपाथ पर सोना भी असंभव हो जाएगा। इस महान गीत-दृश्य से स्पष्ट है कि हर मौसम का आनंद सुविधा संपन्न लोगों के लिए ही है और साधनहीन गरीब ही हर मौसम में सबसे अधिक कष्ट झेलते हैं। हर वर्ष ग्रीष्मकाल में लू-लपट से अनेक लोगों की मृत्यु हो जाती है। भारी वर्षा में अबोध शिशू नाले में बह जाते हैं और शीत ऋतु में निमोनिया मार डालता है। भारत के सबसे धनाढ्य व्यक्ति के घर ऐसी मशीनें लगी हैं कि जब उसका मन चाहे, उसकी छत पर वर्षा हो जाती है। घर के भीतर की आबोहवा वह चंद बटन दबाकर साध लेता है। संसार के कुछ धनवान तो लंबे समय तक स्वस्थ बने रहने के जतन करते हैं। उन्हें एक ही दु:ख है कि अमर होना असंभव है। वे अपने मौसम प्रूफ मकान के सारे दरवाजे बंद भी कर लें तो किसी एक खुली खिड़की से मौत आ जाती है।