ज़िंदगी तेरी हरेक अदा जुर्म है / ममता व्यास
कल अचानक तेज हवा के साथ मेरे शहर में बरसात हुई और मिट्टी की सौंधी खुशबू के साथ एक अहसास मुझे छू कर गुजरा, मैंने पूछा कौन? बोला; ‘मैं जि़न्दगी हूँ’, मैंने कहा बड़ी जल्दी में हो? चन्द सवालों के जवाब दे कर चली जाना।
मैंने उससे पूछा; कल पौधों के पत्तों पर ओस की बूंदों में, मैंने तुम्हें देखा था छूना चाहा तो तुम वहां नहीं थी। फूलों की खुशबू में छिपी मुझे तुम अगले मोड़ पर फिर मिल गयी, लेकिन जैसे ही फूल को छुआ। तुम वहां से भी खिसक गयी, रात को दीये की बाती में झिलमिलाती हो तो अगले ही पल उसी लौ से हाथ जला देती हो, जब मैं खुद को तुम्हारे सामने अभिव्यक्त करना चाहती हूं तो कहती हो कितना बोलती हो तुम? और जब मैंने होठों पर 'चुप के ताले लगा लिए तो शिकायत करती हो कि कुछ कहती क्यों नही? जि़न्दगी तुम ऐसी क्यों हो? मैंने जब बेबसी के साथ सब-कुछ सहन करना सीख लिया तो कहती हो उठो हौसला रखो और जब मैंने हौसले के साथ बढऩा चाहा तो तुम मेरा साथ छोड़ गयी?
जब किसी की साँसे दर्द से बोझिल होने लगी तो तुम ठंडी हवा का झोंका बन किसी अजनबी के रूप में आ गयी और जैसे ही खुद को कोई संभाले आंखें खोले की तुम वहाँ से गायब।
जब फसलों को रिमझिम फुहारों की प्रतीक्षा थी तब तुम वहां कभी नहीं थी और जब धूप में पौधे झुलस गए तो सावन बन कर क्यों चली आई तुम? तुम्हारे कितने अजब रंग है जि़न्दगी पहले तो आँखों से नींदें चुरा लेती हो और यादों के वियावानों में भटकते हुए थक के नयन जब खुद-ब-खुद बंद हो जाए तो उनमें सपने सजा देती हो, जैसे ही मन सपने संजोने लगता है लम्हें बुनने लगता है। तुम इक झटके में उसे नींद से जगा देती हो और कहती हो ये तो सपना था हकीकत मैं हूँ तुम ऐसा क्यों करती हो?
किसी की आँख किसी के इन्तजार में ताउम्र रोती है और जब वो हमेशा के लिए बंद हो जाती है तब तुम रौशनी बन वहां पहुंचती हो, लेकिन बहुत देर बाद जि़न्दगी तुम देर क्यों कर देती हो हमेशा? जब दर्द से मन भर जाता है और पलकें आंसुओं और रोने को जी चाहता है तो तुम कहती हो खबरदार जो रोई तो इक आंसू भी नहीं गिराना और जब हम अपने पर, अपने हालात पर खुद ही हँसने लगे तो कहती हो चुप, रोने की बात पर भी कोई हंसा जाता है हद है ...जि़न्दगी तुम्हारी हर बात निराली है किसी को याद कर लिया तो कहती हो ये जुर्म है और भुला देना चाहो तो कहती हो और बड़ा जुर्म है। दुनिया की तरफ से बेखबर हो जाओ तो कहती हो दुनिया के रंग देखो और जब इस दुनिया के रंग में खुद को रंग देना चाहो तो कहती हो हर तरह गौर से देखना जुर्म है जि़न्दगी वाकई तेरी हर इक अदा मुझे जुर्म ही लगती है बेबसी जुर्म है हौसला जुर्म है जि़न्दगी तेरी इक-इक अदा जुर्म है अरे तुम कहाँ गयी फिर गायब।