ज़िन्दगी के लिए विटामिन- विटामिन ज़िन्दगी / रश्मि विभा त्रिपाठी
एक छोटी- सी ठोकर खाना, एक बार फिसलना, गिरना, फिर इस तरह- से टूट जाना कि गहरे अवसाद से घिरते चले जाना, उसी अवसाद से घिरी ज़िन्दगी के लिए विटामिन है- विटामिन ज़िन्दगी, जिसका अक्षर- अक्षर हमें अदम्य साहस से भरता है, जिसे पढ़कर मन करता है कि अपनी आशाओं का आसमान अब दूर नहीं, अभी उठेंगे और उचककर उसे छू लेंगे।
एक शिशु, जिसका स्वयं प्रकृति माँ ने एक दुर्गम पथ पर चलने के लिए चुनाव किया और प्रकृति माँ का दुलारा वह शिशु; जो अपने नन्हे कदमों से कष्ट में भी किलकते हुए न सिर्फ उस कंटक पथ पर बिना रुके, बगैर थके चला, बल्कि जिसने उस दुर्गम पथ में मील का पत्थर बनकर पथिकों का दिशा- निर्देशन किया- कविताकोश, गद्यकोश, WeCapable.com, दशमलव यू ट्यूब चैनल के संस्थापक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रोल मॉडल ललित कुमार जी की ‘विटामिन ज़िन्दगी’ पुस्तक में उनका संघर्ष और उत्कर्ष उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो बहुत जल्दी परिस्थितियों के सामने घुटने टेक देते हैं।
पोलियो जैसी चुनौती के साथ जहाँ एक कदम भी चलना मुश्किल था, ललित जी का सफर और बच्चों की तरह आरम्भिक स्कूली ज्ञान से बढ़ता हुआ कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से विज्ञान विषय में स्नातक डिग्री, संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहभागिता, संयुक्त राष्ट्र संघ के आधिकारिक मिशन पर चीन के दौरे, मॉरीशस भ्रमण, स्कॉटलैंड सरकार से मिली स्कॉलरशिप पर स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबर्ग की हेरियट- वाट यूनिवर्सिटी से MSc in Bioinformatics with Distinctions, यूरोपीय संघ के साथ मिलकर काम, कनाडा की लवाल यूनिवर्सिटी से पूर्ण स्कॉलरशिप पर पीएचडी में दाखिले तक का सफर है जो दूसरों के लिए अनुकरणीय है। वे जीवन में कहीं भी ठहरे नहीं।
छोटी- सी बात पर घबराकर ईश्वर को उलाहना देने वालों के लिए ये पंक्तियाँ सीख हैं-“प्रकृति माँ का उपहार, वह काँटा, अब मेरे भीतर पूरा धँस चुका था। मैंने प्रकृति माँ से नहीं पूछा कि आपने मुझे ही क्यों चुना। पोलियो वायरस के जिन कणों ने मेरे शरीर को तहस- नहस कर दिया था, वे कण मुझ पर हमला न करते तो हो सकता है कि किसी और को अपना निशाना बनाते। प्रकृति माँ ने उन कणों को मेरे शरीर में कैद करके शायद किसी और की रक्षा की हो! प्रकृति माँ से क्या पूछना... उनका आदेश सिर- आँखों पर!” (पृष्ठ 27)
परहित की भावना से ललित जी हमेशा आगे बढ़ते रहे और समाज के पूर्वाग्रह से लड़कर, सामाजिक असंवेदनशीलता के सामने डटकर उन्होंने स्वयं को सिद्ध किया कि वे किसी से कमतर कतई नहीं हैं।
पुस्तक तीन भागों में विभाजित है: 1- गिरना 2- सँभलना 3- उड़ान। पुस्तक को पढ़ते हुए विकलांगता के प्रति समाज की संकीर्ण सोच हमें विचलित करती है कि आख़िरकार हम कैसे समाज में जी रहे हैं, जहाँ समानता व बंधुत्व के नारे तो हर गली- चौराहे पर गूँजते हैं; परंतु उनकी व्यवहार रूप में परिणति कहीं नहीं! व्यक्ति समाज की इकाई है, उसी से मिलकर समाज का निर्माण हुआ है, तो क्यों समाज किसी को असामान्य का दर्जा देकर उसे अलग- थलग कर आगे निकलने की होड़ में रहता है जबकि दिखावा यह करता है कि हम सब एक हैं! यह कैसा तंत्र है, कैसी व्यवस्था है; जिसमें किसी के भीतर आगे बढ़ने की ललक होते हुए भी बढ़ावा देने के बजाय पग- पग पर उसे पीछे धकेलने की प्रवृत्ति है?
समाज का यह रवैया, जो जीने की भरपूर चाह रखने वाले को लाचारी का बोध कराकर उसे यह कहकर दरकिनार कर देता है कि तुम तो कुछ करने योग्य नहीं, हमें शर्मिन्दगी का अहसास कराता है। ललित जी का चीन की दीवार पर चढ़ना जीता- जागता दृष्टांत है कि उनके लिए सफलता का कोई शिखर उनसे बड़ा नहीं, और समाज का यह सोचकर उन्हें रोकना कि उन्हें पोलियो है तो वे अयोग्य हैं, समाज की अतिगम्भीर मानसिक विकलांगता का लक्षण है, जो उनकी प्रतिभा के आकलन में अक्षम रहा।
शिक्षक, एक शिल्पकार सरीखा बालक के व्यक्तित्व को सुंदर आकार दे, उसके भविष्य की नींव रखे, उसे नैतिक शिक्षा दे, मानव- मूल्य सिखाए, सुसंस्कार दे, जॉन एडम्स ने भी कहा- “शिक्षक मनुष्य का निर्माता है।”, पुस्तक में उल्लिखित प्रसंग शिक्षक के कार्य- व्यवहार पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं कि शिक्षक ही बालक के बाल- मन में यदि हीन भावना भरें तो ऐसी स्थिति में अन्य छात्र क्या करें?
प्रत्येक व्यक्ति इस धरती पर एक विशिष्ट उद्देश्य को लेकर आया है, इस विश्वास से उन्होंने जीवन का उद्देश्य जाना, समझा ही नहीं, अपनी दृढ़ इच्छा- शक्ति से उसे पूर्ण करने वाले ललित जी हमारे समाज और देश के लिए एक आदर्श हैं। दुर्भाग्यवश अधिकतर लोग आजीवन अपने जीवन के उद्देश्य से ही अनभिज्ञ रहते हैं।
जीवन जटिलताओं का जाल है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हमें विटामिन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार हमारे मन को भी पूर्णतया स्वस्थ रखने के लिए आस्था, आत्मबल, इच्छा- शक्ति, दृढ़ संकल्प, धैर्य, उत्साह, प्रोत्साहन आदि विटामिन अनिवार्य हैं और ये सब विटामिन प्रचुर मात्रा में हमें 'विटामिन ज़िन्दगी' में मिलते हैं, जिसकी पहली ही खुराक हमें अवरोध, अशांति, अन्याय, अलगाव, असमानता, अमानवीयता जैसे जानलेवा वायरस से लड़कर जीत दिलाने में पूरी तरह सक्षम है। शीर्षक 'विटामिन ज़िन्दगी' पराजय के लिए वरदान है, जिसका आवरण अपने आप में विजय का बखान है।
ललित कुमार जी को 'विटामिन ज़िन्दगी' के सकारात्मक सृजन हेतु हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभेच्छाएँ।
विटामिन ज़िन्दगी: ललित कुमार, पृष्ठ: 264, मूल्य:249 रुपये, आईएसबीएन: 9789392820472, द्वितीय संस्करण: 2022, प्रकाशक: हिन्द युग्म, C-31, सेक्टर-20, नोएडा, उत्तर प्रदेश – 201301