ज़ेरिन ने सिर नहीं हिलाया / पद्मा राय

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जेरिन बदल गया है। अपनी अलग दुनियां थी उसकी और उसी दुनियां में वह मगन रहता था। वह बात पुरानी हो चुकी है।

सिर्फ अपने आप से बातें करता हुआ जेरिन तब किसी से परिचित नहीं था किन्तु अब सबको पहचानता है। बहुत कुछ समझने लगा है। उसकी दुनियां में अब यहाँ के लोग भी शामिल हो गयें हैं। सबको पहचानने लगा है और सबसे कोआपरेट करता है। अपनी दोनो आंखें मिचमिचाकर हंसता है। हंसता है और साथ में मजे की ताली बजाता है। बिलावजह हंसना उसने अब बंद कर दिया है।

सबकी बातों को ध्यान से सुनता है। अगर कोई कुछ पूछता है तब अपने तरीके से उस प्रश्न का उत्तर भी देता है। जैसे-

"जेरिन, यहां कुल कितने बच्चें हैं? क्या तुम बता सकते हो?"

अचानक उसकी आंखें छत पर टिक जातीं हैं और वह बताने लगता है-

"एक, दो, तीन ... दस।" अपनी ऊंगलियों के सहारे तब तक उसका गिनना जारी रहता है जब तक उसकी याद में बसे सारे नम्बरों की गिनती समाप्त नहीं हो जाती। इससे कोई फर्क नहीं पडता कि बच्चे दो हों, चार हों, दस हों या फिर उस नम्बर के बराबर जो नम्बर उसके द्वारा गिने गये नंबरों में सबसे बडा है या फिर उससे भी ज़्यादा।

इस समय साढे ग्यारह बजें हैं। प्रतिदिन ठीक साढे ग्यारह बजे जेरिन को स्टैंडिंग पोजीशन में रहने की तैयारी करनी होती है। पढने के अलावा यहाँ के बच्चों को और बहुत सारे कार्य करने पडतें हैं। फिजियोथेरैपी साथ-साथ चलती रहती है। पढाई की वजह से फिजियोथेरैपी में व्यवधान नहीं पडना चाहिए. इस बात को सब अच्छी तरह से जानतें हैं।

पृथ्वी ने चटाई पर लिटाकर उसे गेटरस बांध दिया। उसे सावधानी से खडा करके निवाड से कसकर उसकी स्टैडिंग टेबल से बांध दिया है। जेरिन स्टैंडिंग पोजीशन में है। उसके दोनो हांथ सामने टेबल पर और आंखें सामने वाली दीवार पर टिकीं हैं। दीवार की तरफ मैने देखा और यह जानने की कोशिश की कि आखिर कौन-सी वस्तु उसका ध्यान आकर्षित कर रही है किन्तु कुछ ठीक से समझ नहीं पायी। सामने की दीवार पर बच्चों के हाथों से बनी अनगढ क़लाकृतियां-रंग बिरंगे अलग-अलग आकारों में जिसकी संख्या में प्रति दिन बढ़ाेतरी होती जाती है-टंगें हैं। दीवार पर कई तरह के पोस्टर भी टंगें हैं जिन्हें अंजना दीदी ने बनाया है॥ कल बच्चों ने ऐक्टीविटी के दौरान जो तितलियां बनाईं थीं वे भी आज दीवार पर टंग गईं हैं और शायद वही उसे आकर्षित कर रहीं हैं।

उसे आधा घंटा इसी पोजीशन में रहना है। बाकी सभी बच्चों का राइटिंग सेशन चल रहा है। दीदी उनमें व्यस्त हैं। जेरिन कभी नहीं लिखता क्योंकि वह लिख नहीं सकता हां अक्षरों को पहचान सकता है। सब लिख रहें हैं उसे भी कुछ करना होगा। पढाई के समय तो उसे कोई उसे मौका देता नहीं कि वह स्वयं अपने से बात कर सके इसलिए ठीक है, इस समय अपने आप से बातें करना सबसे अच्छा होगा। वही कर रहा है। जब कोई दूसरा जेरिन से बातें करने वाला नहीं होता तब जेरिन का सबसे अच्छा साथी जेरिन ही होता है।

" मम्मी हॉस्पीटल गयी है। पापा आयें हैं। दीदी ने आज मम्मी से यह कहा ...वह कहा। और न जाने क्या क्या। किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं है। दीदी का भी नहीं। अटेन्शन सीकिंग ऐक्शनस जारी हैं। जेरिन अपनी तरफ से हर संभव कोशिश कर रहा है कि उसकी तरफ कोई देखे या उससे कोई बात करे।

सभी बच्चे अपनी-अपनी कुसिर्यों से बंधे बैठें हैं। बंधना ज़रूरी भी है। क्योंकि अगर ऐसे न किया जाये तो कुछ पता नहीं वे कब अपनी जगह से फिसल जायें या कि उनके दिमाग और बाकी शरीर का कोआर्डिनेशन गडबडाए और वे कुर्सी पर से मेज पर या नीचे जमीन पर लुढक़ जायें। इनके हाव भाव से आभास हो रहा है कि यह सेशन अब बोरिंग हो चला है। बस चुपचाप बैठ कर लिखते जाओ. मजबूरी है सबकी, दीदी के हिसाब से लिखना बहुत ज़रूरी है। उनकी बात टाली नहीं जा सकती। थोडी देर तक ठीक लगता है फिर मन घबडाने लगता है। बहुत लिख चुके, अब कुछ इन्ट्रेस्टिंग होना चाहिए. स्पैस्टिक हैं तो क्या, सामान्य बच्चों की तरह ही इनका दिमाग भी कुलांचें मारता है। दीदी से लिखने से मना करना ज़रा मुश्किल काम है लेकिन अपने क्रिया कलापों से वे उन्हें महसूस कराकर ही मानेंगे कि अब बस दीदी, लिखना बन्द करने का आदेश दीजिए. किसी की पेन्सिल बार-बार नीचे गिर रही है, किसी को टॉयलेट जाना है और तानिश की तो हर बात निराली है, उसे बहुत जोर की भूख लगी है। दोनो पर्दों के दरार से रोलेटर को ढकेलते हुये सनी दिखायी पड रहा है और उसी दरार में से तानिश अंजना दीदी की नजरें बचाकर उसे देख रहा है। दोनो की निगाहें मिलीं और मुस्कुराहटों का आदान प्रदान भी हुआ। तानिश की आंखों की पुतलियां नाचने लगीं कि विध्न पडा-

"तानिश कहाँ ध्यान है तुम्हारा?" तल्ख आवाज और वह भी अंजना दीदी की। अचंभित होकर तानिश ने अपनी आंखें सनी पर से हटा लीं। अंजना दी अभी भी उसे घूर रहीं थीं। अंजना अपनी जगह से उठीं और पर्दे को खींचकर बीच की दरार को बंद करने की कोशिश की।

पढने में दिल नहीं लग रहा है तब भी पढना है। लेकिन इससे बचने के उपाय तो किये ही जा सकतें हैं। इसमें हर्ज क्या है? ज़्यादा से ज़्यादा समय इधर उधर की बातों में जाया करने की कोशिशें जारी हैं। मीनू की पेन्सिल चौथी बार नीचे गिरी। तीन बार उठाकर मैं उसे दे चुकीं हूँ। पेन्सिल पकडते समय उसने एक बार भी मुझे नहीं देखा। इस बार दिया तो इत्तेफाक से उसकी निगाहें मेरी आंखों से टकरा गईं। मैंने उसे आँख तरेर कर उसे देखा। हडबडाकर उसने पेन्सिल पकडनी चाही। ठीक से पेंसिल उसके हाथ में आई नहीं और एक बार फिर नीचे। मैं हंसी. मीनू के सारे के सारे दांत बाहर निकल आये। दीदी के साथ-साथ सभी बच्चे भी हंसने लगे।

इशिता की जिज्ञासा का समाधान इसी वक्त होना चाहिए. उसकी दिमागी दौड ज़ारी है। जाने कहां-कहां की सैर करता उसका नन्हा-सा दिमाग उसे एकाग्रचित्त नहीं होने दे रहा है। लिखते-लिखते अचानक उसकी पेन्सिल रूक गयी।

"दीदी-दीदी।"

"क्या है?"

"दीदी एक बात पूछूं?"

"क्या बात है?"

"दीदी बताइये ऐसा क्यों होता है? मैं आपको देख रहीं हूँ न?"

"हां तो ।" कुछ पूछना चाहती है इशिता पर क्या?

"मैं बतातीं हूँ। देखिए मैं आपको भी देख रहीं हूँ, तानिश को भी देख रहीं हूँ, सब कुछ देख रहीं हूँ तब फिर मैं अपने आपको क्यों नहीं देख पा रहीं हूँ?"

उसका प्रश्न मुझसे था। आंखे फाडक़र वह एकटक मेरी तरफ देख रही है। उसे जवाब चाहिए. अचंभित किया इस प्रश्न ने। इसका छोटा-सा दिमाग कितनी अनोखी समस्या से जूझ रहा है। मैं कैसे और क्या समझाऊं?

अभी मैं इसी उधेडबुन में थी कि उसकी जिज्ञासा का समाधान कैसे करूं तभी साहिल के ठुनकने की आवाज ने ध्यान अपनी तरफ खींचा। अब इसे क्या हो गया? मैंने उसकी तरफ देखा। उसके एक हाथ में पेन्सिल और दूसरे से वह अपनी आंखों को रगड रहा था।

"क्यों रो रहे हो साहिल? क्या हो गया?"

"दीदी ऽऽऽपैर दुख रहें हैं। बडी ज़ोर से दुख रहें हैं दीदी।" रोनी-सी सूरत बनाकर, सूखी आँख लिये साहिल मुझे देख रहा था।

"कहांऽऽऽऽ?" ध्यान से उसके पैरों का मुआयना करते हुए मैंने पूछा। उसने अपने पैरों पर जिस जगह दर्द होने की बात कही वहाँ मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। उस जगह पर उसे दो महीने पहले इंजेक्शन लगा था। जब भी उसका मन किसी काम में नहीं लगता है तब उसका यह दर्द उभर आता है। मैंने दर्द की जगह पर धीरे से सहलाया। पूछा-

"अब... ठीक हो गया। ?"

"नहीं दीदी, अभी भी दुख रहा है।" टूअर जैसा मुंह बनाया साहिल ने। यहां से मेरा किसी न किसी बहाने उठना ही मुनासिब होगा। जितना मैं उसके दर्द को लेकर उससे पूछताछ करूंगी उतना ही उसका दर्द बढता जायेगा।

"ओह!" कह कर मैं वहाँ से उठकर कोने में रखी लाल रंग वाली आलमारी के पास चली गयी। उसे खोला और उसमें से एक किताब निकालकर उसके पन्ने पलटने में व्यस्त हो गयी या यूं कहिए व्यस्त होने का दिखावा करने लगी। कुछ देर वहीं खडे होकर उस किताब को उलटती पलटती रही और फिर अपनी जगह पर वापस लौट आयी, देखा-साहिल का दर्द सिरे से गायब हो चुका है।

'तानिश' का क्या कहना-वे साहब तो हैं ही लाजवाब। अपनी किताब कॉपी के अलावा दुनिया जहां की हर वस्तु पर उसकी नजर है। ग्यारह बजने के बाद से ही-लंच होने में अभी कितना टाईम बाकी बचा है, कई बार पूछ चुका। कभी-कभी तो ब्रेकफास्ट होने के पांच दस मिनट बाद से ही लंच टाईम के बारे में उसकी पूछताछ आरम्भ हो जाती है। कमरे की बाहरी दीवार का करीब-करीब दो तिहाई हिस्सा तो दरवाजा ही है जिस पर टंगे पर्दे पर बने रंग बिरंगे जानवर कभी उसका ध्यान खींचते तो कभी पर्दा हिलने पर बाहर-कोई न कोई उधर से गुजरते हुये उसे दिखायी दे जाताऔर उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लेता। उसकी कुर्सी भी दरवाजे से सटकर है। वहां से वह जब चाहे बाहर का मनभावन नजारा देख सकता है। और इसीलिये उसे यह जगह बहुत ज़्यादा पसंद भी है।

'जेरिन' स्वयं ही प्रश्न करता है और स्वयं ही उस प्रश्न का उत्तर भी दे देता है। लगभग हमेशा अपनी ही दुनियां में मस्त 'जेरिन' अचानक किसी से आँख मिल जाये तो बात दूसरी है नहीं तो जल्दी किसी से भी आँख मिलाकर बात नहीं करता। इस समय उसके साथ के सभी बच्चे अपनी पढाई-लिखाई में लगें हैं, दीदी उन्हें पढाने में व्यस्त हैं और पृथ्वी को शीतल दीदी अपने साथ कहीं ले गयीं हैं। जेरिन वहीं खडा है। उससे कोई बात नहीं कर रहा है। दूसरों की कही बातें दुहराने के लिए जेरिन को इससे अच्छा वक्त कहाँ मिलेगा? सब पढ रहें हैं। वह भी पढेग़ा।

"जे फॉर जेरिन।" जेरिन ने कहा और फिर खिलखिला कर हंस दिया। फिर उसका मन किया कि वहा पोयम गाये।

"दीदी-दीदी जेरिन पोयम सुनायेगा।"

अंजना दीदी ने घडी देखी। ग्यारह बजकर पचास मिनट हो रहें हैं।

"ठीक है जेरिन। चलो बच्चों अब अपनी-अपनी किताब कॉपी बन्द करो। हम सब पोयम गायेंगे। जेरिन भी गायेगा। क्यों जेरिन?"

जेरिन ने हवा में अपना हाथ लहराया और एक बार फिर हंसा, खिलखिल-खिलखिल। कहने लगा-

"जेरिन पोयम सुनायेगा।"

जेरिन की इस तरह की बातें मुझे बडे ग़हरे छू जातीं हैं। निराला है हमारा जेरिन। दीदी का इशारा पाते ही सबकी कापियां फटाफट बन्द हो गयीं जबकि उन्हें खुलने में कम से कम दस मिनट लग गये थे। विनयना ने तो अपनी कॉपी अपने सामने से कुछ इस अंदाज में हटाने की कोशिश की कि उसकी कॉपी, पेन्सिल और रबर सब कुछ मेज के ऊपर से फिसलते हुए मेज के नीचे पहुंच गये। पास में खडा पृथ्वी हंसा और झुककर उन्हें बटोरने लगा। विनयना भी हंसने लगी। इशिता ने अंजना से कहा,

"दीदी, विनयना मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। मुझे वह बहुत अच्छी लगती है। विनयना अच्छी है न दीदी?"

अंजना ने अपना सिर हिलाकर हांमी भरी।

बच्चे देर से लिख रहे थे। लिखना कम पडे, इसलिए बहाने ढूंढे ज़ा रहे थे। उबासी रूक नहीं रही थी। लेकिन अब चैतन्य होकर वे सब अपनी-अपनी कुर्सियों में तनकर बैठ गये। पोयम का नाम सुनते ही ऊबे हुए बच्चों की उकताहट हवा हो गयी। कौन कौन-सी पोयम गायी जायेगी, इसकी तैयारी होने लगी। उत्साह आसमान छू रहा है। पढाई की एकरसता टूटने से प्रसन्नता बढ ग़यी है। एक दूसरे की तरफ देख-देख कर इशारे बाजी हो रही है। पढाई लिखाई से कुछ देर के लिए मुक्ति मिली, प्रसन्न तो होना ही है।

पोयम सेशन शुरू हो गया है। गा रहें हैं सारे बच्चे और गा रहीं हैं अंजना दीदी। दो, तीन, चार पंक्तियों तक सभी बच्चों का जोश चरम पर था किन्तु फिर ठंडा पडने लगा। किसी को एक पंक्ति याद थी तो किसी को दूसरी। पहली पंक्ति से आखिरी पंक्ति तक शायद ही कोई पोयम किसी को याद रही होगी। हर पोयम का पहला और आखिरी शब्द गाते समय ही सारे बच्चों की आवाजें सुनाई दे रहीं है बीच में कभी किसी की आवाज अनुपस्थित होती तो कभी किसी की। बच्चे अंजना दीदी से ग्यादा चालाक निकले। मैं समझ गयी कि इन बच्चों को पोयम में उतनी दिलचस्पी नहीं है जितनी पढाई से छुटकारा पाने की थी। हवन करता हुआ पंडित यद आया। पूरा मंत्र वही पढता है और स्वाऽऽहाऽऽऽऽ के समय वहाँ उपस्थित सभी भक्तजन उसके स्वर में स्वर मिला देतें हैं। करीब-करीब वही स्थिति यहाँ की भी है।

' जेरिन सबसे अलग है। ध्यान मग्न होकर पूरी आस्था के साथ पोयम गा रहा है। मस्ती के आलम में झूमता हुआ वह अपने सहपाठियों की स्थिति से अनभिग्य है। उसकी गर्दन लयबद्ध तरीके से झूम रही है। चश्में के पीछे से झांकती उसकी बडी-बडी दो निर्दोष आंखें। कभी वे मुस्करातीं तो कभी बंद हो जातीं। बडी-बडी पलकें कभी झुकी होतीं तो कभी ऊपर टंगी दिखायी देतीं। आंखों की पुतलियों की चमक बढती जातीं। समा बांध दिया है जेरिन ने। जब कभी कुछ भूलने की नौबत आती हुयी महसूस करता तब याद करने के प्रयास में उसकी भवें ऊपर उठ जातीं हैं। लेकिन एक पल से ज़्यादा ऐसी स्थिति में नहीं रहता है। कमाल है एक बार भी अभी तक बीच में उसे अटकना नहीं पडा। सरगम के सातों सुरों का ज्ञान रखने वालों जैसा ही सुरीला है जेरिन। जितनी सुरीली उसकी आवाज है उतनी ही खूबसूरती से संगत करता उसका सिर। दोनो में होड लगी है। उसकी आंखों के भाव अनूठें हैं। जेरिन को पोयम गाते हुए सुनना नृत्य और संगीत दोनों का देखने सुनने जैसा सुख देता है।

"पीपुल्स ऑन द बस गो, अप एन्ड डाऊन, अप एन्ड डाऊन, अप एन्ड डाऊन।"

ठीक इसी समय उसने मेरी तरफ देखा। हमारी नजरें मिलीं। उसने ध्यान से देखा और समझ गया कि मेरे होंठ नहीं हिल रहें हैं, मतलब मैं पोयम गा नहीं रहीं हूँ। उस समय मैं किसी बच्चे की कॉपी में उसके लिए होमवर्क लिख रही थी ज़ेरिन ने अपनी पोयम बीच में रोक दी और कहा, नहीं आदेश दिया-

"पऽऽदऽऽमाऽऽऽ दीऽऽदीऽऽऽ, जेरिन पोयम गा रहा है तुम भी गाओ." फिर'ऑल थ्रू द वे' कहकर अधूरी पंक्ति पूरी कर दी।

निर्विरोध चल रहा है पोयम सेशन। पूरे भक्ति भाव से जेरिन एक के बाद दूसरी पोयम सुनाता जा रहा है। उसका सिर झूम रहा है, पोयम की पंक्तियों के साथ-साथ कभी दायें तो कभी बायें। आंखें कभी फर्श पर, कभी सामने दीवार पर टंगी किसी तस्वीर पर या फिर छत पर घूमते हुए पंखे पर नाच रहीं हैं। पलकें झपकाना तक भूल गया है इस समय। यही जेरिन की पूजा है। पूजा करते समय सब लोग अपने आराध्य देव की पूजा अर्चना अपनी आंखें बंद करके करतें हैं लेकिन जेरिन की पूजा करने की विधि निराली है। इस समय वह स्टैंडिंग पोजीशन में बंधा खडा है, उसकी दोनो आंखे खुली हुयीं हैं, आंखों की पुतलियां ऐक्शन में हैं और सिर लगातार झूम रहा है कभी दायें तो कभी बायें। पूजा करने का यह अनूठा तरीका सिर्फ़ जेरिन का ही हो सकता है।

दरवाजे के पास कुछ हलचल हुई. अनायास आंखें घूम गयीं। दरवाजे पर शीतल थी। उधर से गुजर रही थी, पल भर के लिए ठिठक गयी। दरवाजे से उठंग कर खडी ज़ेरिन को गाते हुए सुन रही है। जेरिन को शाबासी दी,

"वेरी गुड जेरिन, ऐक्सिलेण्ट बच्चे।" मन ही मन उसने जेरिन को ढेरों शुभकामनाएं दीं और फिर जेरिन के करीब जाकर उसकी पीठ थपथपाकर उसे शाबासी भी दी।

"शीतल तुम्हें मालूम है, हमारे जेरिन को उसके सिलेबस की ए से जेड तक सभी पोयमस याद हैं। पोयम के अलावा इसे सबके एड्डरेस और टेलीफोन नम्बरस भी याद हैं। कमाल की याददाश्त पायी है इस बच्चे ने। कुछ भी नहीं भूलता।" अंजना दीदी की बात शीतल ने सुनी या नहीं, मालूम नहीं। क्यों कि उसने कुछ भी कहा नहीं। वहीं खडी रही, गुम सुम।

जेरिन की नजर पर्दे पर जमी थी। शीतल को उसने वहीं से आते हुए देखा है। शीतल उसके पास खडी है किन्तु उसकी आंखें पर्दे पर ही हैं। शीतल के मन में क्या चल रहा है यह जेरिन को नहीं मालूम। इससे उसे कोई फर्क भी नहीं पडता। एक बात है जो वह हमेशा याद रखता है।

"गुड मार्निंग, शीतल दीदी।"

"गुड मार्निंग, बच्चे।" कहा शीतल ने और अपने उमडते हुए मन को संभालते हुए वापस अपने क्लास रूम में लौट गयी।

एक पोयम के बाद दूसरी फिर तीसरी पोयम लगातार बच्चे गाते जा रहें हैं। जेरिन-जैसे मेडिटेशन में है। अब उसकी आंखें भी बन्द हो गयीं हैं। सिर को एक तरफ टेढा करके उसे हिलाते हुए, क्रमवार कभी दांयें कभी बांयें, सारी दुनियां से बेखबर, पूरी ईमानदारी के साथ बिना अटके जारीं हैं उसकी पोयम्स।

अपनी जगह से पर्दा हटा। मैंने मुड क़र देखा। एक हाथ में फाइलें पकडे अौर दूसरे से पर्दा हटाते हुए अमित कमरे में दाखिल हुई. आज शलवार कुर्ते में है। कत्थई रंग की बडी-सी गोल बिन्दी माथे पर सटाए वह हाजिर है। अच्छी दिख रही है। बारी-बारी से सभी बच्चों ने उसे देखा। वे बच्चे जो हर पोयम का केवल पहला और अंतिम शब्द बोल कर अपना काम पूरा करने का काम कर रहे थे अब उन्होंने वह भी बन्द कर दिया। अमित को खामोशी से देख रहें हैं और मुस्करा रहें हैं।

"मेरी तरफ आप लोग क्यों देख रहें हैं? पोयम गाइये। मेरे मुंह पर चॉकलेट चिपकी है क्या, जो तुम सबको लालच लग रही है?" मुंह खट्टा-सा बनाया उसने। बच्चों को बडा मजा आया। गुदगुदी-सी हुयी। सारे के सारे हंसे एक साथ। खिल-खिल, खिल-खिल।

अमित ऐसे ही बोलती है। उसके आते ही बच्चे कुछ ज़्यादा ही चैतन्य हो उठतें हैं। गाने की इच्छा खात्मे की ओर थी। अनमने भाव से दुबारा सबने गाना शुरू किया। बच्चों ने कब गाना बन्द किया और कब फिर दुबारा गाना शुरू हुआ, जेरिन नहीं जानता। अमित का आना भी उसने नहीं देखा। उसके भाव भंगिमा में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया। अपनी आराधना में मगन है जेरिन।

अमित ने उसे ध्यान से देखा सीधे उसके नजदीक जाकर खडी हुई. अपने हाथ में ली हुई फाइलें उसने मेज पर रखीं। दोनो हाथों से उसका सिर थामा और बीच में स्थिर कर दिया फिर कहा-

"अपना सिर इस तरह मत हिलाओ. कितनी बार तुमसे कहा है मैंने जेरिन कि सिर नहीं हिलातें हैं। इसे इसी तरह बीच में रखो।"

अमित जिस तरह अचानक अंदर आयी थी उसी तरह एक झटके में चली भी गयी। वह इन बच्चों की फिजियोथैरिपिस्ट है। बच्चे उसे बहुत चाहतें हैं।

जेरिन किसी दूसरी दुनियां में लम्बी उडान पर था। न चाहते हुए भी उसे वापस लौटना पडा। एक झटके में जमीन पर आ गया। चौंक कर उसने अपने आस पास देखा। बडी-बडी अांखें पूरी खुल गयीं। भवें सिकुड क़र पास-पास आ गयीं। गाना वाना सब दिमाग से नदारद हो गया। आवाज कुछ देर के लिए गायब हो गयी। उसके अलावा वहाँ उपस्थित सभी लोग पोयम गा रहें हैं। अंजना दीदी के अलावा किसी को भी पूरी पोयम याद नहीं है।

जेरिन की आंखें दरवाजे पर जम गयी है। तनाव ग्रस्त होकर वह सामने टंगे पर्दे का हिलना निहार रहा है। जिस दरवाजे से अमित बाहर गयी थी और उस पर से जेरिन की निगाहें हट नहीं रहीं हैं पोयम में उसकी दिलचस्पी समाप्त हो चुकी है। उसने अपने दोनो हाथों से अपने सिर को कस कर पकड लिया है। इसी तरह थोडी देर रहने के बाद उसने कहा,

"जेरिन सिर बीच में रखो।"

स्वयं को इन्सट्रक्शन देते हुए जेरिन।

उसका सिर कन्धों के बीचोबीच आकर ठहर गया। पूरी ताकत लगा दी है उसने। अमित दीदी अभी-अभी यही तो कह कर गयीं हैं। उनकी बात माननी पडती है।

"जेरिन, जेरिन तुम चुप क्यों हो गये? गाओ न। तुम्हें तो यह पोयम पूरी याद है।"

मैंने उसे प्रोत्साहित करने की एक कोशिश की। उसके आवाज की अनुपस्थिति मुझे खटक रही है। जेरिन ने मेरी बात मान ली और गाना आरम्भ किया।

"टेन लिटिल फिंगरस् स्टैण्डिग अप टाल..." उसे दिक्कत हो रही है। गाते समय सिर हिलने लगा था। उसका हाथ अपने आप नीचे आ गया है इस दौरान, उस बात का उसे जल्दी ही एहसास हो गया। गाना बंद करके उसने अपने आप को आदेश दिया-

"नोऽऽऽनोऽऽऽ, जेरिन, सिर नहीं हिलाते। इसे बीच में रखो। तुमसे कितनी बार कहा गया है न सिर नहीं हिलाते।" कहकर जेरिन के अभी-अभी नीचे आये हाथों ने दुबारा ऊपर पहुंचकर हिलते हुए सिर को अपने कब्जे में जकड लिया। जेरिन आश्वस्त हो गया।

"ऐसे, हां ऽऽऽऽअब ठीक है। वेरी गुड जेरिन।" ज़ेरिन ने खुद को शाबासी दी।

अंजना की तरफ उसने देखा और उदास होकर छत पर अपनी नजरें टिका दीं। सब कुछ भूल भाल कर उसकी कोशिश सिर्फ़ अपने सिर को स्थिर रखने पर ही केन्द्रित हो गयी है। अब मैंने उम्मीद छोड दी है। आज तो शायद ही जेरिन की स्वाभाविकता वापस लौटे।

विनयना की स्पीच थैरेपी का समय हो गया है। पृथ्वी उसे उसकी टीचर के पास ले जाने आया है। जेरिन ने उसे देखते ही कहा,

"पृथ्वी भइया ऽऽऽ जेरिन ने सिर नहीं हिलाया। वेरी गुड जेरिन, एक्सीलेण्ट।"

झटके से दोनो हाथ नीचे आये और उसने पूरी ताकत से ताली बजायी। अपने आप को खुद ही शाबासी देते हुए जेरिन को देखकर मन अंदर तक भीग गया। कितना भोला और निश्छल है यह बच्चा!

पृथ्वी ने कहा,

"वेरी गुड, जेरिन भइया!"

अंग्रेजी की कई पोयमस् गायीं जा चुकीं हैं। अभी तक हिन्दी की एक भी कविता नहीं गायी गयी। अब उसकी बारी है। बच्चों ने गाना शुरू किया। अभी शुरूआत है। इसलिए जोश ज़रा ज़्यादा है। हमेशा ऐसा ही होता है। पूरे एक्शन के साथ सब गा रहें हैं।

' मछली जल की रानी है,

जीवन उसका पानी है।

हाथ लगाओगे तो डर जाऊंगी,

बाहर निकालोगे तो मर जाऊंगी॥'

सामूहिक कविता गान में जेरिन की आवाज का न होने का मतलब है सुर और ताल की अनुपस्थिति। अलग-अलग सुर और अलग-अलग ताल में कोरस गाया जा रहा है। कोई द्रुत में है तो कोई बिलम्बित में। सुनने में वह मजा नहीं जो जेरिन के शामिल होने से मिलती है। इस समय भी उसने अपना सिर पूरी ताकत से पकड रखा है। कविता चाहे वह गाये या न गा पाये, सिर नहीं हिलेगा। यह उसका दृढ निश्चय है। कविता सुनाये और सिर न हिले यह कैसे संभव है, यह जेरिन के वश की बात नहीं।

कविता पाठ हो रहा है। लंच होने में अभी दस मिनट शेष हैं। मन उचट गया है। बैठे-बैठे करवट बदल रहीं हूँ। तभी। अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन सच है। जेरिन के हाथ जिन्होंने उसके सिर को कस कर थाम रखा था वे अचानक नीचे आ गये। अभी तक उसने अमित के आदेश का शब्दशः पालन किया था। अब शायद उसकी बात का असर समाप्ति की ओर बढ चला है। मेरा दिल तेजी से धडक़ने लगा। इंतजार कर रहीं हूँ, शायद जेरिन अब शुरू करे। अनुमान सच होने की उम्मीद कर सकतीं हूँ। वही हुआ। जेरिन का सिर झूमने लगा। कविता की पंक्तियां उसकी आवाज में भी सुनायी पडने लगी। आंखें उसी पुराने अंदाज में कभी बंद कभी खुली, चश्मे के पीछे से झांकती हुई. बेजान होती जा रही कविता में जैसे जान पड ग़यी। कलाई पर बंधी घडी पर निगाह गयी। लंच का समय हो गया है। अपना काम समेटने पृथ्वी वहाँ आ गया है। बच्चों के हाथ धुलवाये जायेंगे। मैं कोई कम पागल नहीं हूँ, नहीं तो क्या सोचती कि कविता पाठ कुछ देर और चलता रहे और मैं जेरिन के द्वारा की जा रही इस अनोखी पूजा में एकाग्रचित्त होकर थोडी देर और बैठ सकूं।