ज़्यूस की प्रेम-कथाएँ / कमल नसीम

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कहा नहीं जा सकता कि ज़्यूस की इस प्रणय -लीला के समय हेरा कहाँ थी। इओ और कैलिस्टो की भाँति यूरोपे को ज़्यूस के प्रेम का मूल्य नहीं चुकाना पड़ा।

ज़्यूस और यूरोपे की इस प्रेम कथा का उल्लेख अपोलोडॉरस, हाइजीनस तथा ओविड से मिलता है। लेकिन इसका रुचिकर विस्तृत वर्णन तीसरी शताब्दी के एलैग्जेण्ड्राइन कवि मोस्कस ने किया है।

उक्त वर्णित इन तीन के अतिरिक्त भी ज़्यूस की अन्य कई मर्त्य प्रेमिकाएँ थीं और अनेक अवैध बालक ! ज़्यूस और पैसिफ़े के संसर्ग से लीबिया के एमान का जन्म हुआ, एण्टीयोपी ने एम्फ़ियन और जीयस को जन्म दिया। लामिया और एगीना पर भी देव-सम्राट की अनुकम्पा हुई। ज़्यूस और सीमीले के संसर्ग से मदिरा के देवता डायनायसस और डाने के सम्भोग से वीर परसियस का जन्म हुआ। इनका विस्तृत वर्णन ग्रीक पौराणिक कथाओं में है।

ग्रीक-समाज में प्रचलित एक-विवाह की प्रथा के अनुसार ज़्यूस की वैधानिक पत्नी हेरा थी। यह निस्सन्देह एक प्रेम-विवाह था। ज़्यूस तो अवश्य ही हेरा के प्रेम में पागल था। किन्तु विवाह के उपरान्त ज़्यूस की काम-लालसा दुस्तोष्य हो उठी। उसकी तृप्ति केवल हेरा से सम्भव न थी। वह नित नयी प्रेमिकाएँ खोजता, नित नये सम्बन्ध स्थापित करता। सभी प्राप्त स्रोतों के अनुसार हेरा सदा अपने पति के प्रति वफादार रही किन्तु ज़्यूस पर उसकी नैतिकता का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जैसे उसकी शक्ति असीम थी वैसे ही उसका प्रणय उन्माद भी अनन्त था।

ज़्यूस का महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध कृषि की देवी डिमीटर से हुआ। डिमीटर ओलिम्पस की प्रमुख देवियों में से है। ज़्यूस और डिमीटर का संयोग आकाश और अनाज के विवाह का प्रतीक है। इस सम्बन्ध से पर्सीफनी अथवा कोर का जन्म हुआ। एक अन्य आरफिक कथा के अनुसार ज़्यूस ने अपनी पुत्री पर्सीफनी का एक सर्प अथवा दैत्य के रूप में बलात् भोग किया। पर्सीफनी ने जैगरियस नामक एक अद्भुत बालक को जन्म दिया। ज़्यूस के इस अनुचित सम्बन्ध का पता हहेरा को चल गया था, अतः ज़्यूस ने बालक की सुरक्षा के लिए क्रीट के क्यूरेट्स को नियुक्त किया। जैगरियस का पालना ईडियन गुहा में था। वहीं क्यूरेट्स उसके चारों ओर नाचते-गाते और हथियार बजाते थे जैसा कि उन्होंने पहले शिशु ज़्यूस की रक्षा के लिए किया था, किन्तु हेरा द्वारा भड़काये गये ज़्यूस के शत्रु टाइटन अवसर की ताक में थे। एक रात जब क्यूरेट्स सो रहे थे, टाइटन्स की बन आयी। उन्होंने बदन पर खड़िया मली और चेहरे भी एकदम सफेद कर लिये ताकि बाल जैगरियस भयभीत न हो उठे। आधी रात गये उन्होंने अपनी योजना कार्यान्वित करना आरम्भ किया। टाइटन्स ने बाल जैगरियस को शंकु, गरजने वाला बैल, सुनहरे सेब और दर्पण आदि देकर फुसला लिया और फिर उस पर आक्रमण कर दिया। जैगरियस ने आत्म-सुरक्षा के लिए कई रूप बदले। कभी वह ज़्यूस बना तो कभी क्रॉनस। लेकिन टाइटन्स को धोखा देना आसान न था। अब वह एक घोड़ा बन गया, फिर सींगों वाला साँप, शेर और अन्त में बैल। बैल बनेजैगरियस को टाइटन्स ने दृढ़ता से पैरों और सींगों से पकड़ लिया, उसके शरीर को अपने दाँतों से चीर डाला और उसे कच्चा ही खाने लगे। टाइटन्स अभी जैगरियस का भक्षण कर ही रहे थे कि एथीनी उधर आ निकली। भाग्यवश टाइटन्स ने अभी जैगरियस का हृदय नहीं खाया था। एथीनी ने हृदय उनसे बचाकर उसे एक मिट्टी के पुतले में लगाकर उसमें प्राण फूँक दिये। इस प्रकार जैगरियस अमर हो गया। उसकी हड्डियों को डेल्फी में दफना दिया गया और क्रुद्ध ज़्यूस ने वज्र से टाइटन्स को मौत के घाट उतार दिया।

टाइटनैस निमाजिनी (स्मृति)ज़्यूस के संसर्ग से नौ म्यूज़ेज़ की माता बनी। दिव्य स्मृति की सहायता से ही साहित्य, कला, शिल्प आदि की अभिवृद्धि होती है।

कुछ स्रोतों के अनुसार ओकिनास की पुत्री, प्रतिकार की देवी नेमेसिस भी ज़्यूस की कामुकता का शिकार हुई। नेमेसिस ने उससे बचने के लिए कई रूप और स्थान बदले लेकिन ज़्यूस ने पृथ्वी, आकाश, समुद्र में सब कहीं उसका पीछा किया। अन्त में जब नेमेसिस ने एक हंसिनी का रूप धारण किया तो ज़्यूस हंस के रूप में उससे संयुक्त हो गया। समय आने पर नेमेसिस ने एक अण्डा दिया जिससे विश्व सुन्दरी हेलेन का जन्म हुआ। नेमेसिस एक समुद्र-कन्या के रूप में लिडा नाम से भी जानी जाती है।

ज़्यूस की प्रेमिकाओं में एक महत्त्वपूर्ण नाम एटलस की पुत्री माया का है। एक रात जब हेरा गहरी नींद सो रही थी, ज़्यूस और माया का आर्केडिया में मिलन हुआ। इस संयोग से हेमीज का जन्म हुआ जो ओलिम्पस के प्रमुख बारह देवताओं में से एक है।

फीबी की पुत्री लीटो और ज़्यूस के संसर्ग से अपोलो और आर्टेमिस का जन्म हुआ। हेरा की ईर्ष्या के कारण लीटो को अनेक कष्ट उठाने पड़े।

इन अमर्त्य देवियों से ही नहीं, मनुष्य की रचना के बाद ज़्यूस ने अनेक नश्वर रमणियों से भी शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किये। जिस पण्डोरा को ज़्यूस ने पुरुष मात्र को दण्ड देने के लिए रचा था, वह उसी के प्रणय का स्वयं प्रार्थी बन गया।

ज़्यूस एवं इओ

नदी के देवता इनाकस की पुत्री, हेरा के मन्दिर की पुजारिन इओ अद्वितीय सुन्दरी थी। यौवन के पराग से सने अंग, दूध-सा गौर वर्ण, कपोलों पर फूटती उषा की लालिमा जैसे लिली के बदन में रक्त का संचार हो गया हो। ज़्यूस ठगा-सा रह गया। पृथ्वी पर ऐसे मनोहारी रूप की उसने कल्पना तक न की थी। देव-सम्राट एक मर्त्य किशोरी पर हृदय हार बैठा। इओ के सपनों में एक देव-आकृति झाँकने लगी। “इओ”, वह कहता, “मैं देव-सम्राट ज़्यूस तेरे प्रणय का प्रार्थी हूँ। तेरे सरल रूप ने मेरा हृदय जीत लिया है। सौन्दर्य और यौवन की अमूल्य निधि क्या ऐसे ही खो देगी। आ, मेरे पास आ इओ ...”

वह आकृति बाँहें फैलाये आगे बढ़ने लगती। इओ सिहर उठती।

एक दिन। ज़्यूस एवं इओ नदी के किनारे विहार कर रहे थे। हेरा की शंकालु दृष्टि से बचने के लिए ज़्यूस ने उस भू-भाग को एक बादल की ओट में कर दिया था। हेरा उस समय ओलिम्पस में अपने स्वर्ण-प्रासाद में विश्राम कर रही थी। ज़्यूस और इओ प्रेम-मग्न थे। तभी अकस्मात् हेरा की दृष्टि उस बादल के टुकड़े पर जा पड़ी। जब सारा आकाश दर्पण-सा निर्मल और स्वच्छ है तो अन्तरिक्ष के एक कोने में यह बदली कैसी? अवश्य ही कुछ रहस्य है। हेरा अपने पति की प्रकृति से परिचित थी। तत्काल उस घुँघराले बादल को एक ओर झटका। ज़्यूस जान गया कि हेरा का आगमन निकट है। उसने तत्काल इओ को एक गाय बना दिया। हेरा के मन में सन्देह उत्पन्न करना उचित नहीं। यह आपत्ति टल जाए। गाय का रूप-परिवर्तन कर लिया जाएगा। ज़्यूस ने ऐसा सोचा।

बादल के हटते ही हेरा ने देखा दर्पण से स्वच्छ जल वाली नदी के तट पर ज़्यूस के पास एक गाय खड़ी है। गाय बहुत सुन्दर थी। उसमें इओ की मानव-आकृति के अतिरिक्त उसका सारा सौन्दर्य था। हेरा निकट आयी। स्नेह से गाय की पीठ सहलायी और बोली :

“इतनी सुन्दर गाय तो आज तक पृथ्वी पर नहीं देखी। यह अद्भुत प्राणी कहाँ से आया महाराज? कौन भाग्यशाली है इस निधि का स्वामी?”

ज़्यूस ने अधिक प्रश्नों से बचने के लिए झट बड़े सहज स्वर में उत्तर दिया, “देवी यह पृथ्वी की नवीन कृति है। इसकी रचना अभी ही हुई है।”

“आश्चर्य!” हेरा ने कहा। उसकी शंका का अभी समाधान नहीं हो पाया था। उसे एक बात सूझी। “क्या समस्त प्राणियों के स्वामी महाराजाधिराज ज़्यूस मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कर अनुगृहीत करेंगे? इस गाय ने मेरा मन मोह लिया है। इसे दासी को प्रदान करने की कृपा करें।”

“अवश्य, अवश्य,” अपने मनोभाव छिपाते हुए ज़्यूस ने कहा।

हेरा की इतनी साधारण-सी प्रार्थना को कैसे अस्वीकार करें। न करने से सन्देह भी उत्पन्न हो सकता है। यही सोचकर ज़्यूस ने स्थिति सँभालने के लिए अनिच्छा से गाय के रूप में अपनी प्रेयसी इओ को हेरा को दे दिया। हेरा अभी भी शंका मुक्त नहीं हो पायी थी, अतः उसने गाय की रक्षा का भार अपने विश्वस्त सेवक आगू को सौंप दिया। आगू हेरा के आदेशानुसार गुप्त मार्ग से उस सुन्दर गाय को नेमिया ले गया और वहाँ उसे एक वृक्ष से बाँध दिया।

हेरा के इस सेवक आगू की सौ आँखें थीं और वह सोते समय सब आँखें बन्द नहीं करता था। बहुधा एक समय में उसकी दो ही आँखें बन्द होती थीं। बेचारी इओ एक पल भी उसकी दृष्टि से दूर नहीं हो सकती थी। उसकी आकृति अवश्य बदल गयी थी किन्तु मन और मस्तिष्क मानव-समान थे। वह चाहती कि आगू से मुक्ति की प्रार्थना करे किन्तु भाषा पर अब उसका अधिकार नहीं था। वह आते-जाते पथिकों से बात करना चाहती किन्तु उसके मुँह से केवल रँभाने का स्वर निकलता जिससे वह स्वयं ही भयभीत हो उठती। उसका मन आकुल हो उठता। लोग आते, उसकी सुन्दरता और सुडौलता की प्रशंसा करते, स्नेह से उसकी पीठ सहलाते और चले जाते। बेचारी इओ चुपचाप खड़ी आँसू बहाया करती। चेतना उसके लिए अभिशाप बन गयी थी। एक दिन भाग्यवश नदी का देवता इनाकस वहाँ आ निकला। सुन्दर गाय देखकर वह वहीं रुक गया। अपने पिता को देख इओ का मन व्यथित हो उठा। वह चाहती थी कि अपने पिता को अपने दुर्भाग्य की कहानी सुना सके, उससे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करे। उसका दम घुट रहा था। शब्द उसके भीतर ही मर रहे थे। हृदय में भाव थे लेकिन अभिव्यक्ति के लिए भाषा नहीं थी। वह प्रेमावेग में अपने पिता का हाथ चाटने लगी। तभी उसे अचानक एक उपाय सूझा। उसने सींग से मिट्टी पर लिख दिया-”इओ”। इनाकस ने अपनी खोयी हुई बेटी को पहचान लिया। वह कातर स्वर में विलाप करने लगा, “हाँ! मेरी बच्ची, यह मैं क्या देख रहा हूँ। तेरा यह क्या हाल हो गया है? मेरी फूल-सी सुकुमार इओ पर किसने यह अत्याचार किया? हे प्रभु ज़्यूस! इससे तो अच्छा था तुम इस अभागी के प्राण ले लेते...।” यह दृश्य देख आगू सतर्क हो उठा और गाय को दूर ले गया। गाय को एक अन्य पेड़ से बाँध वह स्वयं कुछ ऊँचाई पर बैठ गया जिससे सभी दिशाओं में देख सके।”

उधर ओलिम्पस पर ज़्यूस को कल न पड़ता था। इओ की दुर्दशा का वह उत्तरदायी था। बहुत सोच-विचार के बाद ज़्यूस ने इओ के उद्धार का भार अपने पुत्र हेमीज को सौंपा। हेमीज ने तत्काल अपने पंखों वाले जूते पहने, पंखों वाली टोपी पहनी, हाथ में बाँसुरी और जादू की छड़ी ली और नेमिया की ओर प्रस्थान किया। निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचकर उसने अपने जूते और टोपी छिपा दिये और एक ग्वाले का वेश धारण कर लिया। हाथ में छड़ी ली और अपनी बाँसुरी पर दिव्य राग छेड़ दिया। ऐसा संगीत पृथ्वी पर कहाँ! भोले-भाले चरवाहे और उसकी मधुर रागिनी ने आगू का मन मोह लिया। उसने बड़े स्नेह से हेमीज को अपने पास एक वृक्ष की घनी छाया में बिठा लिया और उससे बातें करने लगा। हेमीज केवल एक दक्ष बाँसुरी-वादक ही नहीं, एक कुशल वक्ता भी था। वह तरह-तरह की बातों से आगू का मन बहलाता रहा। उसे कई कहानियाँ सुनायीं। काफी समय बीत गया। रात घिर आयी। आगू को नींद आने लगी। बाँसुरी के मधुर स्वर में आगू की आँखें एक-एक कर बन्द होने लगीं लेकिन कुछ आँखें अभी भी खुली थीं। हेमीज ने अब उसे बाँसुरी का इतिहास सुनाया। इस बीच ही आगू की सभी आँखें सो गयीं। उसका सिर आगे को झुक आया। अब हेमीज ने तलवार के एक ही वार से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। आगू की सौ आँखें सदा के लिए बन्द हो गयीं। हेमीज ने इओ को मुक्त कर दिया किन्तु उसके कष्ट के दिन समाप्त नहीं हुए थे।

आगू हेरा के आदेश का पालन करते हुए मारा गया था, अतः हेरा ने उसकी सौ आँखें मोर के पंखों में लगा दीं।

इओ के प्रति हेरा का क्रोध अभी भी शान्त नहीं हुआ था, अतः उसने ज़्यूस को इओ को उसके वास्तविक रूप में लाने का अवसर ही न दिया। हेरा ने गाय रूपी इओ के पीछे गोमक्षिका लगा दी। उसके दंश से आहत इओ देश-विदेश घूमने लगी। पहले वह डोडोना गयी और फिर उस समुद्र तक जो बाद में उसके नाम से इओनियन समुद्र कहलाया। क्षुब्ध, पीड़ित, सन्त्रस्त इओ इधर-उधर भटकती ज़्यूस को उसके प्रेम की दुहाई देती। लेकिन उस अभागी की व्यथा का अन्त न था। इओनियन समुद्र से वह फिर लौटकर उत्तर की ओर चली और हेमस पर्वत पर पहुँची। फिर काले सागर से होती हुई, क्रीमियन बॉसफारस पार करके हिब्रीस्टीस नदी के स्रोत काकेसस पर्वत पर पहुँची। एक ऊँची चोटी पर इओ को एक विशाल आकृति दिखाई दी। एक गरुड़ उस आकृति का मांस नोच-नोचकर खा रहा था। यह ज़्यूस के क्रोध का शिकार, मानव का समर्थक प्रमीथ्युस था। इओ ने जब चट्टान से बँधे इस विशालकाय पर असहाय टाइटन को देखा तो वह उसके पास ही रुक गयी और दुखित स्वर में बोली :

“इस भयंकर यातना को निःशब्द सहने वाले वीर, तुम कौन हो? क्या अपराध किया है तुमने जो प्रचण्ड सूर्य, गरजते तूफान और लपलपाती आग के निरन्तर प्रहारों को सहने का दण्ड मिला? क्या मेरी तरह तुम्हारी पीड़ा का भी अन्त नहीं? क्या मुक्ति की प्रतीक्षा ही हमारी नियति है? बोलो वीर? मुझे पशु न समझो? मैं एक स्त्री हूँ और तुम्हारा दुख समझती हूँ।”

भविष्यद्रष्टा प्रमीथ्युस ने यह संवेदना युक्त स्वर सुनकर इओ की ओर देखा और पल-भर में उसका इतिहास जान लिया।

“इनाकस की पुत्री इओ।” उसने कहा, “मैं ज़्यूस को क्रुद्ध करने का फल भोग रहा हूँ और तू? तू उसके प्रेम का। तेरे प्रति ज़्यूस के प्रेम के कारण ही हेरा तुझसे घृणा करती है और तुझे इतना कष्ट दे रही है।”

इओ को आश्चर्य हुआ। इस सुनसान बर्फीले प्रदेश में जहाँ मनुष्य तो क्या चिड़िया तक नहीं फटकती, यह अकेला चट्टान से बँधा हुआ प्राणी उसका नाम कैसे जान गया। कौन है यह दिव्यद्रष्टा? प्रमीथ्युस ने उसका मनोभाव पढ़ लिया और अपना परिचय दिया : “इओ! तेरे सामने मानव-जाति को अग्नि देने वाला प्रमीथ्युस खड़ा है।”

“प्रमीथ्युस!” हठात् इओ के मुख से निकला, “मानव-जाति का स्रष्टा और उद्धारक प्रमीथ्युस! हमारे हित के लिए देवताओं से लोहा लेने वाला प्रमीथ्युस! आह!!” उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, “मानव के कारण तुम इतना कष्ट झेल रहे हो। उसके सुख के लिए, इतनी मर्मान्तक यातना चुपचाप सह रहे हो! तुमने क्यों मनुष्य के लिए ज़्यूस का क्रोध अपने सिर लिया?”

“ऐसा मत बोल इओ! मैंने जो उचित समझा वही किया। मैं मानव को सुखी और समृद्ध देखना चाहता था। मेरा सपना साकार हो गया। मेरे मन में कोई दुविधा नहीं, कोई द्वन्द्व नहीं। ज़्यूस अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर मुझसे प्रतिशोध ले रहा है। वह नहीं जानता प्रमीथ्युस का विश्वास अटल है। वह मेरे शरीर को क्षत-विक्षत कर सकता है, मेरी अन्तरात्मा को नहीं।”

“लेकिन क्या इस कष्ट का कभी अन्त न होगा?” इओ ने पूछा।

“होगा इओ! अवश्य होगा।” आगम द्रष्टा प्रमीथ्युस ने कहा, “एक दिन इस अत्याचार का अन्त होगा। ज़्यूस को उसके कर्मों का फल मिलेगा। उसका अपना ही पुत्र उसे अपदस्थ करेगा। और इओ! तेरी भी मुक्ति होगी। लेकिन अभी प्रतीक्षा कर। देश-विदेश, जंगल-जंगल चलती जा, नदी-नाले पार करती चलती जा। अन्त में नील नदी के पास पहुँचकर तेरा उद्धार होगा। वहीं ज़्यूस तुझे तेरा स्त्री-रूप देगा और तुझे एक पुत्र की प्राप्ति होगी। जा! चली जा। इस लम्बी काली रात का अवश्य प्रभात होगा।”

“और तुम पिता?” इओ ने व्यग्रता से पूछा।

“अभी शताब्दियों तक मुझे इस अत्याचार से जूझना है। अन्ततः तेरे एक वंशज के हाथों मेरी इस यातना का अन्त होगा। देवताओं-सा शक्तिशाली और समर्थ वह युवक मेरी श्रृंखलाएँ तोड़ेगा। एक बार फिर मैं स्वतन्त्र वायु में साँस ले सकूँगा। मेरा कष्ट तेरे कष्ट से बड़ा है और छुटकारा भी कठिन। किन्तु मैं निराश नहीं हूँ। तू भी हिम्मत न हार और आगे बढ़ती जा।”

इओ ने मन ही मन प्रमीथ्युस को प्रणाम किया और अपने रास्ते चल पड़ी। कोलचिस और थ्रेशियन बॉसफारस होती हुई यूरोप पहुँची और फिर एशिया माइनर से टारसस, जोप्पा, मीडिया, बैक्ट्रिया, भारत और अरब होती हुई इथोपिया पहुँची। नील के उद्गम से चलती हुई मिस्र आयी। यहीं उसकी यातना का अन्त हुआ। ज़्यूस ने उसी स्त्री-रूप दिया और टैलीगोनस से विवाह के पश्चात उसनेज़्यूस के पुत्र इपैफस को जन्म दिया। इपैफस ने चिरकाल तक मिस्र में राज्य किया। कैलिमेकस के अनुसार उसकी पुत्री लीबिया समुद्र देवता पॉसायडन के संसर्ग से एगनर और बीलस नामक दो प्रतापी पुत्रों की माता बनी।

ज़्यूस और कैलिस्टो

ज़्यूस की कामुकता और हेरा की ईर्ष्या का शिकार होने वाली दूसरी अभागी स्त्री थी कैलिस्टो। कैलिस्टो आर्केडिया के राजा की बेटी थी। यथा नाम तथा गुण। कैलिस्टो का अर्थ है सुन्दरी। कैलिस्टो रूपवती थी और शुचिता की देवी आर्टेमिस की सखी थी। एक बार जब वह अन्य कुमारियों के साथ आखेट कर रही थी, ज़्यूस ने उसे देखा और उस पर आसक्त हो गया। ज़्यूस के संसर्ग से कैलिस्टो को गर्भ हो गया। जब आर्टेमिस को इस बात का पता चला तो उसने कैलिस्टो को अपने संगठन से निकाल दिया। कैलिस्टो ने एक पुत्र को जन्म दिया। शीघ्र ही हेरा को इस बात का पता लग गया। ज़्यूस पर तो उसका वश न चलता था, अतः उसने कैलिस्टो को ही दण्ड देने की ठानी। जिस अनुपम रूप ने ज़्यूस का मन मोह लिया, वह उस रूप को नष्ट कर देगी। कैलिस्टो लाख रोयी, गिड़गिड़ायी मगर हेरा ने उसे एक रीछ बना दिया। देखते ही देखते उसके कोमल अंग काले-लम्बे बालों से भर गये और सुकुमार हाथों-पाँवों के पंजे बन गये। ज़्यूस के कानों में रस घोलने वाला उसका मधुर स्वर गुर्राहट में बदल गया। लेकिन इओ की भाँति उसकी आकृति ही बदली थी, प्रकृति अब भी मनुष्यों जैसी थी। वह रीछ के रूप में भी सदा दो ही पैरों पर चलने का प्रयास करती। अहेरियों को देखकर उनसे बात करना चाहती। अन्य भालुओं के बीच उसे चैन न पड़ता। कभी-कभी रात में वह डर भी जाती-मनुष्यों या देवताओं से नहीं, वन्य पशुओं से। इसी तरह मानसिक कष्ट झेलते और वन-वन भटकते कई वर्ष बीत गये।

एक दिन एक युवक उस जंगल में शिकार खेलने आया। वह कैलिस्टो का बेटा था। हेरा की प्रेरणा उसे वहाँ लायी थी। कैलिस्टो ने अपने बेटे एरकास को पहचान लिया। माँ की ममता उमड़ पड़ी। वह अपना रूप भूलकर स्नेहार्द्र हो अपने बच्चे की ओर बढ़ी। एक भालू को अपनी ओर आते देखकर एरकास सतर्क हो उठा। उसने झट भाला साधा और रीछ के वक्ष को लक्ष्य किया। इससे पहले कि एरकास मातृ-हत्या का अपराध करता ज़्यूस ने माता और पुत्र दोनों को नक्षत्र बनाकर आकाश में स्थान दे दिया।

हेरा ने जब अपनी प्रतिद्वन्द्वी का ऐसा सम्मान होते देखा तो वह जल-भुन उठी। जिसे वह मिट्टी में मिलाना चाहती थी, ज़्यूस ने उसे आसमान पर बिठा दिया। हेरा यह नहीं सह सकती थी। अमरलोक की सम्राज्ञी यदि अपनी इच्छा से एक मर्त्य को दण्डित न कर सके तो उसका मान-सम्मान, उसकी कृपा-अकृपा का अर्थ ही क्या रह गया। यह अपमान था। हेरा की प्रतिष्ठा को धक्का लगा था। लेकिन अब करे क्या? नक्षत्रों को च्युत नहीं किया जा सकता था। वरदान लौटाया नहीं जा सकता था। अतः अब वह समुद्र की शक्तियों के पास गयी और उनसे कहा : “देव-सम्राट ने मेरा अपमान किया है। अपनी प्रेयसी और अपने अवैध बेटे को नक्षत्र बना दिया है। आप लोग मेरी सहायता करें। मेरा आपसे आग्रह है कि अब आप इन दोनों अपराधी नक्षत्रों को कभी भी अपने निर्मल जल में विश्राम न करने दें। ये सदा आकाशमण्डल में ही भटकते रहें।”

हेरा की अभिलाषा पूरी हुई। अपनी यात्रा पूरी करके सभी नक्षत्र समुद्र के जल में आकर अपनी क्लान्ति दूर करते हैं लेकिन कैलिस्टो और एरकास के भाग्य में विश्राम नहीं। वे सदा चलते ही रहते हैं।

ज़्यूस और यूरोपे

लीबिया का पुत्र और बीलस का जुड़वाँ भाई एगनर मिस्र से कैनन देश में आ गया और वहाँ राज्य करने लगा। यहीं एगनर ने टेलफ़ासा से विवाह किया। टेलफ़ासा ने कैडमस फ़ीनिक्स, सीलिक्स, थासस, फ़ीनियस नामक पुत्रों तथा यूरोपे नाम की एक पुत्री को जन्म दिया। एगनर की दुलारी बेटी, भाइयों की चहेती बहन यूरोपे असाधारण सुन्दरी थी।

एक दिन यूरोपे ने अद्भुत स्वप्न देखा। इओ की भाँति उससे किसी ने प्रणय-याचना नहीं की। उसने देखा कि दो स्त्रियों के रूप में दो महाद्वीप उसके पास आये हैं। ये दोनों ही स्त्रियाँ उस पर अपना अधिकार जमाना चाहती हैं। इनमें से एक का नाम है एशिया और दूसरी का अभी कोई नाम नहीं। एशिया का कहना था कि उसने यूरोपे को जन्म दिया है, उसे पाला-पोसा है, अतः यूरोपे पर उसका अधिकार है। बिना नाम की दूसरी स्त्री बार-बार यही कहती : “प्रभु ज़्यूस ने यूरोपे को मुझे देने का वचन दिया है। तुम चाहे कुछ भी कहो, यूरोपे मुझे ही मिलेगी।”

यूरोपे उठ बैठी। गुलाबी परिधान में लिपटी ऑरोरा सूर्य के रथ के लिए पूर्व के विशाल द्वार खोलने को प्रस्तुत थी। यूरोपे ने अपनी सखियों को बुलाया और समुद्र के निकट स्थित उपवन में क्रीड़ा करने और फूल चुनने को चल पड़ी। यह उपवन यूरोपे को बहुत प्रिय था। वैसे भी वसन्त ऋतु थी। यूरोपे की सभी सखियाँ कुलीन परिवारों की थीं। आज वे सभी फूल चुनने के लिए छोटी-छोटी सुन्दर टोकरियाँ लेकर आयी थीं। यूरोपे के हाथ में स्वर्ण की टोकरी थी जिस पर बड़े मोहक चित्र बने थे। इसको ओलिम्पस के शिल्प-देवता हेफ़ास्टस ने अपने हाथों से बनाया था। यूरोपे टोकरी हाथ में लिये अपनी सखियों के साथ हँसती-गाती फूल चुन रही थी। सभी कुमारियाँ थीं और प्रियदर्शिनी भी किन्तु फिर भी यूरोपे उनमें अलग ऐसे ही दिखाई देती थी जैसे सितारों के बीच चाँद। ओलिम्पस में बैठा ज़्यूस इस रूप-राशि को देख रहा था। तभी कहीं ऐफ्रॉडायटी के नटखट बेटे एरॉस (क्यूपिड) ने अपने पुष्प बाण से उसका हृदय भेद डाला। अब देव सम्राट को धैर्य कहाँ। झट यूरोपे के अपहरण की योजना बना डाली। हेरा की शंकालु दृष्टि से बचने के लिए सावधानी बरतना श्रेयस्कर होगा, यही सोचकर ज़्यूस ने एक बैल का रूप धारण किया।

पृथ्वी के सभी पशुओं से श्रेष्ठ और सुन्दर यह बैल दूध की तरह सफेद था। इसके सिर पर चन्द्रमा की शिखाओं की तरह छोटे-छोटे दो सींग थे और सींगों के बीच एक काली लकीर। इतना ही नहीं वह एक मेमने की तरह सुकुमार और सीधा था। जब यह बैल समुद्र-तट पर क्रीड़ा करती हुई रमणियों के बीच पहुँचा तो वे भयभीत नहीं हुईं अपितु उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया। कोई उसे सहलाने लगी तो कोई फूलों से सजाने लगी। कुछ ने उसके गले में पुष्प-मालाएँ पहना दीं। बैल ने कोई विरोध नहीं किया। वह यूरोपे की ओर बढ़ा और उसका स्पर्श पाकर बड़े मधुर स्वर में रँभाया। यूरोपे प्यार से उसकी पीठ सहलाने लगी। वह बैल उसके पैरों के पास लेट गया जैसे यूरोपे को अपनी धवल पीठ पर चढ़ने का आमन्त्रण दे रहा हो। यूरोपे निर्भीकता से उसकी पीठ पर चढ़ गयी और खिलखिलाती हुई अपनी सखियों को भी बुलाने लगी। लेकिन इससे पहले कि कोई उसके निकट आता वह बैल वायु-वेग से समुद्र की ओर चल पड़ा। भय से आक्रान्त यूरोपे विह्वल स्वर से रक्षा के लिए पुकारती थी लेकिन किसका साहस कि बैल रूपी ज़्यूस को रोकता। यूरोपे की सखियाँ विलाप करती रह गयीं। कुछ ही देर में बैल पानी की लहरों पर दौड़ने लगा। यूरोपे का डर से बुरा हाल था। हर कदम पर उसे मृत्यु साक्षात् दिखाई दे रही थी। उसने एक हाथ से बैल का सींग पकड़ रखा था और दूसरे में स्वर्ण की टोकरी। बैल का समुद्र पर चलना एक अद्भुत घटना थी। यूरोपे ने देखा, ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ता उद्दण्ड लहरें शान्त हो जातीं। तभी समुद्र से अनेक प्राणी निकलने लगे। नदियों की संरक्षक शक्तियाँ, समुद्र कन्याएँ, शंख ध्वनि करते हुए ट्रिटन बालक और उनका नेतृत्व करते हुए हाथ में त्रिशूल लिये समुद्र-देवता पॉसायडन। यूरोपे ने आश्चर्यचकित हो यह दृश्य देखा। उसे विश्वास हो चला था कि यह बैल अवश्य ही कोई देवता है। तभी बैल ने उसे आश्वस्त करने के लिए मानव-स्वर में कहा :

“डर मत यूरोपे। तेरी कोई हानि नहीं होगी। मैं ओलिम्पस का सम्राट ज़्यूस हूँ - तेरे प्रणय का प्रार्थी। मैं तुझे सुदूर देश ले जाऊँगा जहाँ उज्ज्वल भविष्य तेरी प्रतीक्षा कर रहा है। तेरे नाम से उस महाद्वीप का नाम होगा। तुझे तेजस्वी पुत्रों की प्राप्ति होगी और तेरा नाम सदा के लिए अमर होगा।”

यूरोपे ने संघर्ष करना छोड़ प्यार से अपनी बाँहें उसके गले में डाल दीं। ज़्यूस ने क्रीट में अपनी यात्रा समाप्त की और अपना वास्तविक रूप धारण किया। इस सम्बन्ध से यूरोपे ने मायनास, रैडमेन्थस और सारपीडन नामक तीन पुत्रों को जन्म दिया। इनमें से पहले दो अपने न्याय के लिए पृथ्वी पर इतने प्रसिद्ध हुए कि बाद में उन्हें पाताल में मृतकों का न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया। तीसरे ने ट्रॉय के युद्ध में वीरगति प्राप्त की। बिना नाम के दूसरे महाद्वीप को यूरोप के नाम से जाना जाने लगा।

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