जाको राखे साइयां, मार सके ना कोय / जयप्रकाश चौकसे

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जाको राखे साइयां, मार सके ना कोय
प्रकाशन तिथि :12 सितम्बर 2017


एक्शन दृश्य सितारे के डुप्लीकेट शूट करते हैं और क्लोजअप शॉट के लिए ही सितारे को बुलाया जाता है। डुप्लीकेट्स का भी बीमा कराया जाता है। आजकल तो शूटिंग का भी इंश्योरेंस होता है, जिसके तहत किसी आपदा के कारण दोबारा शूटिंग हो तो उसका खर्च बीमा कंपनी से वसूला जाता है। भारत में कम ही निर्माता बीमा कराते हैं परंतु हॉलीवुड में इस तरह के बीमा के बिना एक दिन भी शूटिंग नहीं की जाती। सर्कस में ट्रेपीज कलाकार झूले का खेल दिखाते हैं परंतु सुरक्षा के लिए नीचे नेट लगाई जाती है। मौत के कुएं में भी मोटर साइकिल चालक की सुरक्षा का पूरा इंतजाम कर लिया जाता है। क्रिकेट में बल्लेबाज एब्डोमन गार्ड पहनता है। कोहनी का गार्ड सुनील गावसकर ने बनवाया था। हेलमेट भी पहनना आवश्यक है। यहां तक कि शॉर्ट लेग पर तैनात क्षेत्ररक्षक भी हेलमेट पहनता है। अस्पताल में शल्य चिकित्सा के पहले मरीज से यह लिखवाया जाता है कि जवाबदारी उसकी स्वयं की है और अस्पताल की जवाबदारी नहीं है।

हर जगह सावधानी की खातिर यह काम किया जाता है। संविधान में भी समानता, भाईचारे व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की शपथ है, जो आंशिक रूप से ही निभाई जा रही है। 'जेसिका को किसी ने नहीं मारा' इस टाइटल का इस्तेमाल उसकी हत्या पर आधारित फिल्म में भी किया गया है। इसी तरह गौरी लंकेश को भी किसी ने नहीं मारा। जाने कौन-कौन, कैसी-कैसी अफवाह फैलाते हैं! हवाई यात्रा में भी सुरक्षा बेल्ट बांधा जाता है और सीट के नीचे फ्लोटिंग जैकेट भी रखा होता है। हर सिगरेट के पैकेट पर यह लिखा होता है कि धूम्रपान सेहत के लिए घातक है। हर जगह सावधान रहने के लिए कहा जाता है। यहां तक कि विवाह की रस्म में भी सावधान रहने की सलाह है। आजकल कुछ महंगी कारों में प्रावधान है कि दुर्घटना के समय चारों ओर हवा से भरे बलून आ जाते हैं, जो यात्री की सुरक्षा करते हैं। सरकार को चाहिए कि सभी प्रकार की कारों में भीतरी सुरक्षा का यह इंतजाम अनिवार्य बनाएं। इस पर आया खर्च वाहन खरीदने वाला देगा। ज्ञातव्य है कि इन गुब्बारों में दुर्घटना के समय खुद ब खुद हवा भर जाती है, जिसका मैकेनिज़्म अत्यंत पेचीदा है परंतु यह मैकेनिज़्म सुचारू रूप से स्वत: संचालित होता है। आरटीओ विभाग को भी इस मैकेनिज़्म के बिना लाइसेंस नहीं देना चाहिए। हमारी व्यवस्था में 'मिट्‌टी का भी है मोल मगर इंसानों की कीमत कुछ भी नहीं है' यह दुखद है। दरअसल, हमने स्वयं ही अपना अवमूल्यन कर रखा है। निरंतर निरंकुश व्यवस्था के हित में हम मतदान करते हैं। वे मुतमइन हैं कि वे बने रहेंगे। हम तो सिटकॉम 'भाभीजी घर पर हैं' के पात्र सक्सेना की तरह स्वयं पीटे जाने पर खुश होते रहते हैं। अंग्रेजी भाषा में खुद के कष्ट को आनंद की तरह आमंत्रित करने वाले के लिए शब्द है 'मैसोचिस्ट'।

एक फिल्म (संभवत: चेतन आनंद की जोरु के गुलाम) में आदतन मजनू जानी वॉकर माशूका की गली में रोज पीटे जाते हैं और पीटने वाले उन्हें एक खटिया पर लिटाकर उनके घर छोड़ आते हैं। उस निकम्मे माशूक पात्र की एक मात्र कमाई खटिया की है, जिस पर उसे लादकर लाया जाता है। वह भी पैदाइशी नल्ला है। पेट की खातिर कुछ लोग अपनी नग्न पीठ पर चाबुक लहराते हैं और पीठ जितनी अधिक जख्मी होती है, तमाशबीन उतना अधिक धन उसे देते हैं। हम तो अपनी सारी खुजली दूसरों की पीठ पर ही महसूस करना चाहते हैं और तमाम नेता एक-दूसरे से कहते हैं कि 'तू मेरी पीठ सहला मैं तेरी सहलाऊंगा'। पीठें खुजाई जा रही हैं, तालियां बजाई जा रही हैं। तमाशा जारी है।

प्राय: सार्वजनिक इमारतों में अग्नि बुझाने वाले सिलेंडर लगे रहते हैं परंतु उनकी एक्सपायरी डेट कभी ध्यान से देखी नहीं जाती। नतीजा यह होता है कि अग्नि लगने पर वे काम ही नहीं आते। अग्निशमन वाहनों में प्राय: पानी होता ही नहीं। यह प्रतिदिन ध्यान रखने का काम है। ग्रामीण क्षेत्र में मोटर साइकिल की बिक्री बढ़ने के साथ ही अपहरण व दुष्कर्म की घटनाओं में वृद्धि हुई है क्योंकि, बाइक में पांच हार्सपावर की मशीन के कारण चालक को यह भ्रम होता है कि वह स्वयं पांच हार्सपावर का इंजन है और इंजन की शक्ति से उसकी विचार प्रणाली संचालित होती है। मर्दानगी का भ्रम कई तरह से रचा जाता है। आप कहीं से भी गुजरें, दीवारों पर मर्दानगी बढ़ाने के विज्ञपन जगह-जगह चस्पा पाएंगे।

मनुष्य को खतरा और उससे सुरक्षा का सबसे कारगर उपाय उसकी अपनी विचार प्रणाली है। विचार प्रक्रिया को लगातार मांजते रहना चाहिए। शायद यह अवधारणा ही महत्वपूर्ण है कि ईश्वर ही हमें बचाता है परंतु मनुष्य को सुरक्षा के प्रति सचेत रहना चाहिए, क्योंकि ईश्वर के सारे कार्य मनुष्य ही करता है।