जागरण जंक्शन का वैशिष्ट्य और उसके दशानन / संतलाल करुण
जब ब्लॉग स्पॉट, ट्वीटर, वर्ड प्रेस्, टाइप पैड, फ्रेंड फीड, फ़ेस बुक, माई स्पेस, लाइव जर्नल, आदि अपने-अपने ढंग से लॉग-इन, ब्लॉगिंग की सुविधाएँ लेकर सामने आए और लोगों ने इन पर अपनी आमद दर्ज की, तो इस क्षेत्र में कुछ संस्थाओं द्वारा विशिष्टता के साथ व्यावहारिक होना अप्रत्याशित नहीं था। फलत: एनबीटी ब्लॉग, रचनाकार, गद्य कोश, कविता कोश, ओबीओ आदि नेटवर्क-माध्यम के ऐसे सशक्त मंचों का उद्भव हुआ, जो आज देवनागरी लिपि में हिन्दी वैचारिकता को पूरी तत्परता के साथ विश्व-पटल पर रखने में सक्षम हैं। जागरण जंक्शन उनमें से एक ऐसा मंच है, जो ब्लॉगर को ऐसी स्वतंत्रता प्रदान करता है, जैसा कि अन्यत्र दुर्लभ है। अन्य मंचों की सामग्री जहाँ नपी-तुली, निखरी, शान पर चढ़ाई हुई और अच्छी तरह देखी-भाली हुई होती है, वहीं इस मंच की सामग्री अपनी तद्भवी नवीनता, तात्कालिक उपस्थिति, बेलाग विचार-प्रवाह और अल्हड़पन के रूप-स्वरूप में उन्मुख होती है। इस मंच की ऐसी स्वतंत्रता इसकी श्रेष्ठता भी है और हीनता भी। यद्यपि समय-समय पर सम्पादक-मंडल द्वारा निर्देश दिए जाते हैं, किन्तु फिर भी स्वतंत्रता का छिट-पुट दुरुपयोग प्रकाश में आता है। इस तरह की स्वतंत्रता से सामग्री का स्तर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। तब भी जागरण जंक्शन पर श्रेष्ठ ब्लॉगरों की कमी नहीं है और उसकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
जागरण जंक्शन एक प्रभावशाली मंच के रूप में कार्य करता है, किन्तु इसका हमेशा के लिए मात्र अभ्यास-मंच बने रहना ठीक नहीं है। इसकी प्रतिभाओं का ब्लॉगिंग कोटर से निकलकर बाहर सामाजिक परिदृश्य में उजागर होना भी अपेक्षित है। ऐसा तभी हो सकता है जब ब्लॉग-लेखक कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से सशक्त प्रदर्शन करने में सक्षम हों। ऐसा भी लगता है कि दैनिक जागरण अपने ब्लॉग पोर्टल का इस्तेमाल दैनिक पत्र की पाठक-संख्या बढ़ाने के लिए करता है। वर्तमान मीडिया में परस्पर स्पर्धा और उसके बाज़ार-तंत्र को देखते हुए ऐसा करना अनुचित नहीं है। किन्तु जागरण जंक्शन के ब्लॉगरों को निम्न स्तरीय वामपंथी मान कर उनके प्रति हीन दृष्टि वाला व्यवहार भी उचित नहीं। परिहासपरक अभिप्राय यह कि दैनिक जागरण ब्लॉग संबंधी उत्कृष्ट आलेखों को अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर निम्न स्तरीय ( नीचे की ओर ) वामपंथी ( बाएँ कोने पर स्थित कॉलम में ) संक्षिप्त स्थान देकर अपने दायित्व की इतिश्री मान लेता है। जबकि वासुदेव त्रिपाठी-जैसे ब्लॉग-लेखक बिना किसी सम्पादन-श्रम के सम्पादकीय पृष्ठ के प्रमुख लेखों की जगह स्थान पाने की प्रतिभा रखते हैं। ऐसा प्रकाशन भी कभी-कभी होना चाहिए, परन्तु ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है कि ब्लॉगरों के लेखन को विस्तृत रूप में छापकर आगे बढ़ने में प्रोत्साहित किया गया हो।
इधर सद्गुरुजी ने कई किस्तों में अपनी प्रेम-कथा और जीवन-संघर्ष के रेखांकन से सब का ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने प्रेम-प्रसंगों के आरंभिक जीवन-प्रवाह को बड़े रोचक रूप में कहा तो है, किन्तु जिस प्रकार अनुभुक्त और ठोस सामग्री उनके पास है, उस प्रकार अनुभूति की शिथिल सम्प्रेषणीयता के कारण वे सफल नहीं हो पाए हैं। ब्लॉग पर कच्ची अवस्था में तड़ातड़ पोस्ट डालते जाने की त्वरा ने एक महत्तवपूर्ण रचनात्मकता के प्रभाव को कम कर दिया है, जिसमें पुनर्लेखन का पर्याप्त अवकाश है। सद्गुरुजी-जैसे आत्म-कथा शिल्पियों को डॉ. हरिवंश राय बच्चन की चार खण्डों में विस्तृत आत्म-कथा, अज्ञेय के उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी’ और धर्मवीर भारती के उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’-जैसी कृतियों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।
इस मंच पर ब्लॉग और पोस्ट का आधिक्य इतना भारी-भरकम है कि सबसे होकर गुज़रना और सब पर समालोचनात्मक दृष्टि डालना अत्यंत कठिन है। जो ब्लॉगर बार-बार दृष्टि पर चढ़ते हैं और ब्लॉगिंग परिक्षेत्र की सुदीर्घता के उपरान्त ध्यान आकृष्ट करते हैं, उनमें सर्वश्री ए.के. रक्ताले, चातक, तमन्ना, मनोरंजन ठाकुर, आर .एन. शाही, दिनेश आस्तिक, रेखा एफ.डी, रोशनी, विनीता शुक्ला, डॉ. सूर्य बाली ‘सूरज’, निखिल पाण्डेय, पीयूष कुमार पन्त, महिमा श्री, मलिक प्रवीन, सोनम सैनी, रीता सिंह सर्जना, डॉ. आशुतोष शुक्ल, पापी हरीश चन्द्र, दीपा सिंह, आशीष गोंडा, आचार्य विजय गुंजन, सुरेश शुक्ल ब्रह्मात्मज, सुधा जयसवाल, डॉ. भूपेन्द्र, आनंद प्रवीण, सुषमा गुप्ता, महा भूत, पीताम्बर थक्वानी, मनीषा सिंह राघव, सीमा कँवल, रचना वर्मा, भरोदिया, के.पी.सिंह गोराई, अजय यादव, मोहिंदर कुमार, उत्कर्ष सिंह, प्रदीप कुशवाहा, मदन मोहन सक्सेना, राजेश दुबे, यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी, सुषमा गुप्ता, भानु प्रकाश शर्मा, फूल सिंह, तौफेल ए. सिद्दीकी, विद्या सुरेंदर पाल, अनुराग शर्मा, अलका, अमन कुमार, ओम दीक्षित, संतोष कुमार, मीनू झा, शालिनी कौशिक, वन्दना बरनवाल, सत्यशील अग्रवाल, भगवान बाबू, उषा तनेजा, अनामिका, जयश्री, अमरसिन, उदयराज, सद्गुरुजी, अनिल कुमार ‘अलीन’, चित्र कुमार गुप्ता, संकल्प दुबे, अक़बर महफ़ूज आलम, डॉ. एस. शंकर सिंह, राजेश काश्यप, डॉ. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर, बृज किशोर, उषा तनेजा, दीपक तिवारी, सीमा सचदेव, रंजना गुप्ता, अनिल कुमार, डॉ. रामरक्षा मिश्र ‘विमल आदि उल्लेखनीय हैं ।
जागरण जंक्शन द्वारा लेटेस्ट, मोस्ट व्यूड, मोस्ट कमेंटेड और फीचर्ड तथा इसी प्रकार ज्यादा चर्चित, ज्यादा पठित और अधिमूल्यित संबंधी जो प्रचारात्मक एवं प्रोत्साहनपरक कॉलम प्रदर्शित किए जाते हैं, वे किसी सीमा तक ही ब्लॉग, ब्लॉगर और पोस्ट का मूल्यांकन करते हैं, उन्हें अंतिम मानक नहीं बनाया जा सकता। क्योंकि मोस्ट व्यूड में ‘रिश्तों की उधेड़बुन’, ‘लड़की पटाने के तरीके’, ‘कुछ गंदे चुटकुले लेकिन हँसना है तो पढ़ो’, ‘पुत्र प्राप्ति के सरल उपाय’-जैसे आलेखों की अधिकता है। ठीक वैसे, जैसे अखबारों में काम संबंधी दवाइयों और उपकरणों के विज्ञापन अधिक पढ़े जाते हैं। एक और उदाहरण शशिभूषण की 23 अगस्त 2013 को पोस्ट की गई बेहतरीन गेयात्मक कविता पर महज तीन टिप्पणियाँ उपलब्ध हैं। ऐसे में ब्लॉग और पोस्ट के सम्बन्ध में सटीक समालोचना मंचीय रेखांकनों से हटकर वस्तुपरक अध्ययन की माँग करती है। पोस्ट के अंत में ‘रेट दिस आर्टकिल’ का आंकड़ा भी आलोच्य परिधि से बाहर का विषय है।
इस प्रकार उपर्युक्त दृष्टिकोण तथा तथ्यों के आलोक में और अत्यंत सीमित प्रारूप में जागरण जंक्शन पर दशानन की खोज तो और भी दुष्कर कार्य है। गत वर्ष हमने किसी ब्लॉगर महानुभाव पर सुधारात्मक दृष्टिकोण से टिप्पणी कर दी थी, किन्तु तब प्रत्युत्तर में ऐसी टिप्पणी मिली कि मैनें कान पकड़ लिया था। यदि आचार्य शुक्ल ने गोस्वामी तुलसीदास और सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने संत कबीर तथा डॉ. नामवर सिंह ने नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर मुक्तिबोध की आलोचना न की होती, तो इन महान साहित्यकारों की विचारशीलता वैश्विक स्तर के ज्ञानवान मानस में कैसे स्थापित होती ? इसलिए जोख़िम भरा दुस्साहस कर रहा हूँ और तमाम चेहरों में से जागरण जंकशन के दशानन को प्रतिमान के रूप में सामने लाने का विनम्र प्रयास कर रहा हूँ। इनमें किसी को छोटा-बड़ा कहना ‘को बड़ छोट कहत अपराधू’ के समान है। सभी श्रेष्ठ हैं और सब की अपनी विशिष्टता है। कोई अत्यधिक सक्रियता, कोई तार्किक क्षमता, कोई बेजोड़ प्रस्तुति, कोई रोचकता, कोई उदाहरण-उद्धरण सहित स्पस्टीकरण, तो कोई भाषिक आकर्षण से अपनी पहचान बनाता है। यह भी कि पसंदीदा आलेखों को आधार बनाकर इनकी श्रेष्ठताओं को रेखांकित किया जा रहा है, न कि इनकी कमियों को और यह भी कि अधिक श्रम और व्यापक अध्ययन से इनमें और नाम जोड़े जा सकते हैं।
प्रथम : वासुदेव त्रिपाठी
चयनित पोस्ट : हिन्दी का लैमार्कवादी विकास: राष्ट्रीय आत्मघात का एक अध्याय (1-2)
उत्कृष्टता : वासुदेव त्रिपाठी विचार, भाषा और तथ्य की दृष्टि से अत्यंत सुदृढ़ लेखन के साथ सामने आते हैं। वे उदाहरणों, सटीक प्रसंगों, मानक आँकड़ों आदि के शोधपरक विवरण देते हुए अपने विचार पुष्ट करते चलते हैं। उनमें सधी हुई श्रेष्ठ लेखकीय क्षमता परिलक्षित होती है। राजनीति, समाज, भाषा आदि विषयों से जुड़ी विसंगतियों पर उनकी पैनी दृष्टि रहती है तथा तार्किक विश्लेषण व निष्कर्ष से वे अपने लेखों को विशिष्टता प्रदान करते हैं।
‘हिन्दी का लैमार्कवादी विकास: राष्ट्रीय आत्मघात का एक अध्याय(1-2)’ में भारत और उसकी प्रमुख वाणी हिन्दी के पारस्परिक संबंधों की आधार-भूमि में सांस्कृतिक पतन का मौलिक रेखांकन किया गया है। भाषागत पतन के पीछे छिपी सूक्ष्म मानसिकता को बड़ी पैनी दृष्टि से पहचाना और उजागर किया है। विस्तृत लेख दो भागों में है तथा गम्भीरता के साथ पढ़ने की अपेक्षा रखता है।
द्वितीय : शशिभूषण
चयनित पोस्ट : आतंकवादी अंकल को चिठ्ठी !
उत्कृष्टता : शशिभूषण समय के कंगूरे पर खड़े, ओजस्वी स्वर के धनी गीतकार हैं। इनके यहाँ गेयात्मकता छंद विधान के साथ सुगठित रूप में शब्द की सवारी करती है। प्रत्येक गीत सामयिक चेहरा लिए हुए होता है और व्यंजित भावानुभाव में आम जनता की संवेदना समाई होती है।
‘आतंकवादी अंकल को चिठ्ठी !’-जैसी गीतातमक कविता आतंकवाद के प्रति मार्मिक भावनाओं का सम्प्रेषण प्रस्तुत करती है। आतंकवाद की निर्मम और बूचड़खाने-सरीखी हृदयहीनता से नन्हें, भोले-भाले बच्चों की कोमल भावनाओं के माध्यम से आया विस्तृत संलाप कुछ अत्यंत आवश्यक और मर्मस्पर्शी प्रश्नों को उकेरता है और क्रूरता को मानवता के पक्ष में सोचने के लिए प्रयास करता है –
“किस कारन खून बहाते हो, वह लिख कर हमको बतलाना !
जब बड़े बनेंगे हम आकर, वह चीज हमीं से ले जाना !
हीरा-मोती, सोना-चाँदी, जो भी चाहोगे दे देंगे !
पर आज खेलने-पढ़ने दो, उस दिन जो चाहो ले देंगे !
इतनी सी विनती है अंकल, आशा है इसे मान लोगे !
वह हँसी हमारे अधरों की, लौटेगी अगर ध्यान दोगे !
हम तुमसे कुट्टी कर लेंगे, जो बात नहीं मानी सुन लो !
अथवा जीने दो ख़ुशी-ख़ुशी, दो में से एक तुम्हीं चुन लो !”
तृतीय : सरिता सिन्हा
चयनित पोस्ट : निकलो न बेनक़ाब
उत्कृष्टता : सरिता सिन्हा जैविक-सामाजिक तंतुओं की सूक्ष्म अध्येता-दृष्टि लिए विचार-प्रवाह में पूरे मनोयोग और आनंद के साथ शब्दानुशासन करती हैं। वे अछूते मार्मिक विषयों को विद्वता के साथ न केवल उठाती हैं, बल्कि उसे सार्थक उपसंहार तक ले जाती हैं। उनका लेखन दिलचस्प, ज्ञानवर्धक और संदेशपरक होता है।
‘निकालो न बेनक़ाब’ में उन्होंने जैविक-सांस्कृतिक उप्पत्तियों के आधार पर अति अधुनातन और अतिरेकी मिजाज़ की नव नारियों के बेहद खुलेपन, स्वभाव, चाल-चलन, पहनावे आदि को उच्छ्रंखल तथा अभद्र पुरुषों को अनर्गल लैंगिक व्यवहारों के लिए उकसाने वाला सिद्ध करने का प्रयास किया है। उनकी भेदक दृष्टि का एक अवलोकन दृष्टव्य है–- “बेपर्दगी व अनियंत्रित व्यवहार की कोई सीमा नहीं रह गयी है..कपड़े तन को छुपाने के बजाय द्वितीयक लक्षणों को उभारने के लिए प्रयुक्त होने लगे हैं..” xxxxx “पुरुषों की बराबरी करने के लिए पैन्ट्स पहननी आवश्यक है, लेकिन उसे इतना लो किया जाता है कि ज़रा-सा झुकने पर विभाजक रेखा का दर्शन होने लगता है …”
चतुर्थ : निशा मित्तल
चयनित पोस्ट : बच्चे हमारा कल हैं, परन्तु ?
उत्कृष्टता : निशा मित्तल ‘जागरण जंक्शन’ की सक्रिय ब्लॉगरों में से एक हैं। वे सन्देश परक घटनात्मक कहानियाँ तथा विचारोत्तेजक लेखों के साथ बराबर ‘रीडर ब्लॉग’ की फ़ेहरिस्त में दिख जाती हैं। संस्कारहीनता और गिरते जीवन-मूल्यों का चिंतन इनके कथ्य का मेरुदंड होता है, जिसकी बारम्बार परिक्रमा से मौलिक विचार आकार ग्रहण करते हैं।
“बच्चे हमारा कल हैं, परन्तु ?” में निशा मित्तल ने आज के आम घरों में छीझते संस्कारों, बच्चों में पनपती अस्वस्थ चेतना, मांता-पिताओं और बड़ों द्वारा ज़िद्दी लाड़-प्यार का पोषण तथा जाने-अनजाने में चारित्रिक निर्माण की जगह उसके पतन के लिए प्रोत्साहन देने की विसंगति को घटित दृष्टांत के साथ प्रस्तुत किया गया है।
पंचम : यमुना पाठक
चयनित पोस्ट : फूल तोड़ना मना है
उत्कृष्टता : यमुना पाठक ‘जागरण जंक्शन’ की सक्रिय ब्लॉगर हैं। वे मौलिक और अछूते विषयों को बड़ी गंभीरता से उठाती हैं और निष्कर्ष-विन्दु तक भाषिक कौशल के साथ ले जाती हैं। उनकी ख़ूबी पाठकों के लिए रुचिकर भूमिका के साथ तथ्यात्मक लेख-विस्तार और उसके प्रस्तुतीकरण में भी दिखाई देती है।
‘फूल तोड़ना मना है’ में यमुना पाठक ने नारी के अंत: और बाह्य सौन्दर्य की सत्यता और शिवता का पुरज़ोर समर्थन किया है। उन्होंने नारी को पुष्प से उपमित करते हुए उसके विरुद्ध सदियों से चली आ रही और वर्तमान में और बढ़ रही विषमता को विस्तृत रूप में स्पष्ट किया है। उनके अनुसार जैसे हृदय व संस्कार दोनों से हीन लोग पुष्प को अकारण बेतरतीब से तोड़ते चलते हैं, उसकी पंखुड़ियों को बिखेरते जाते हैं तथा बेरहमी से पैरों से कुचल कर आगे बढ़ जाते हैं; वैसे ही गिरे हुए चरित्रहीन पुरुष नारियों से अमानवीय अश्लील व्यवहार करते हैं और बलात्कार तक की घटना को अंजाम देते हैं।
षष्ठ : अलका गुप्ता
चयनित पोस्ट : मानव प्रकृति और फाल्स सीलिंग !
उत्कृष्टता : अलका गुप्ता जिस तरह शब्दों को साधती हैं, वह अत्यंत श्लाघनीय है। पहले छपास के रोगी प्रकाशन घरानों की लाभेच्छा के चलते स्तर बनाए रखने के कड़े निर्देश और संपादकों की कड़ी नज़र के कारण सिर्फ़ रोगी बनकर रह जाते थे; किन्तु जब से ब्लॉगिंग की दुनिया ईज़ाद हुई और जागरण जंक्शन-जैसे मंच सामने आए, तब से ब्लॉगर महोदय ख़ुद ही सम्पादकश्री होने लगे और अलका गुप्ता-जैसे ब्लॉगरों को छोड़ कुछ लोग जीवंत शब्दों की जगह शब्दों की लाश पाटने में जुट गए। ऐसे भीड़-भाड़ से अलग अलका गुप्ता पहले विषयपरक तथ्यों को भली-भाँति समझने की प्रक्रिया अपनाती हैं, फिर आबद्ध सोच पर अंत:करण की भावना देती हैं और फिर सप्राणता की आँच से निसृत परिपक्व विचारों के दर्शन कराती हैं।
‘मानव प्रकृति और फाल्स सीलिंग !’ में अलका गुप्ता ने सहज और कृत्रिम व्यवहार वाले व्यक्तियों के अंतर को स्पष्ट किया है। वे असली छत और फाल्स सीलिंग की स्थितियों के आधार पर अंत: सौन्दर्य और बनावटीपन को समझने-समझाने का प्रयास करती हैं। उनका यह लेख आत्म-व्यंजना का पुट लिए हुए है। वे हृदय में कटुता, संकीर्णता और स्वार्थीपन तथा बाहर से अच्छाई ओढ़े कृत्रिम व्यक्तित्त्व की अपेक्षा आतंरिक रूप से व्यवस्थित, दृढ-प्रतिज्ञ और शुद्ध हृदय वाले सरल व्यक्तित्व को महत्त्व देती हैं और कृत्रिम व्यवहार में सुधार-संस्कार की बात करती हैं।
सप्तम : योगी सारस्वत
चयनित पोस्ट : वहाँ जिंदगी क़दम क़दम रोती होगी
उत्कृष्टता : योगी सारस्वत जागरण जंक्शन के सुपरिचित ब्लॉगर हैं। वे देश–विदेश और समाज के रूप-स्वरूप, गति, क्रिया-प्रतिक्रिया आदि पर अंतरवर्ती दृष्टिपात करते हैं और रोज-बरोज की वैश्विक हलचल से प्रासंगिक विषय पर विचार करते हैं। उनकी संवेदना मानव-वेदना की न केवल थाह लेती है, बल्कि उसे मर्मभेदी चेतना के साथ सार्वजनिक भी करती है।
‘वहाँ जिंदगी कदम कदम रोती होगी’ में योगी सारस्वत ने पाकिस्तान और कुछ अन्य देशों में रह रहे वहाँ के हिन्दू नागरिकों की दुर्दशा पर विचारणीय चर्चा की है। वहाँ हिन्दुओं की सहिष्णुता, सौहार्द, भाईचारा और धार्मिक समभाव के बदले अच्छा बर्ताव नहीं होता, उलटे मज़हबी ठेकेदारों और उनकी कट्टरता के चलते आए दिन अपमानित जीवन और मौत का सामना करना पड़ता है।
अष्टम : जे. एल. सिंह
चयनित पोस्ट : मलाला का मलाल
उत्कृष्टता : जे. एल. सिंह हास-परिहास, व्यंग्य, देश-विदेश की समस्या, ज्वलंत घटनाओं आदि पर आधारित विषयों के तात्कालिक और त्वरित ब्लॉगरों में से एक हैं। वे ‘2014 का भारत’ तथा ‘जागरण नगर में होली की हुडदंग !’ में अनेक ब्लॉगरों की खैर-ख़बर लेने में गज़ब की दिलचस्पी दिखाते हैं। गंभीर और व्यापक संवेदनाएँ भी उनकी अभिव्यक्ति से परिपाक लेकर पठनीय आलेख का आकार ग्रहण करती हैं।
‘मलाला का मलाल’ के माध्यम से जे. एल. सिंह ने युग-युग से पुरुषों के दंभ की दासता में जकड़ी नारी-चेतना के कैशोर्य उत्साह, पराक्रम और बलिदान की कीमत पर बढ़े हुए कदमों को अब न रुकने देने और समानता के धरातल पर नारी-सार्थकता का परचम लहरा देने की अनुपम जिजीविषा और संघर्ष को शाब्दिक स्वरूप दिया है।
नवम : फिरदौस खान
चयनित पोस्ट : एक शाम फ्योदोर दोस्तोयेवस्की के नाम
उत्कृष्टता : फिरदौस खान बड़ी ही साफ़-सुथरी भाषा और झरने की तरह निर्मल विचारों के साथ पाठक के अंतस्तल में गहराई तक उतरती हैं। ‘एनबीटी’ की अपेक्षा ‘जागरण जंक्शन’ के ब्लॉगर ख़ुद ही प्रस्तोता और ख़ुद ही सम्पादक होने के कारण ‘राजा’ हैं। कुछ तो दिग्विजयी राजा हैं – यहाँ तक कि एक पोस्ट कई बार पोस्ट कर देते हैं। कुछ तो न जाने क्या-क्या लिखने के लिए ब्लॉग पर आते हैं –आँय-बाँय-साँय सब लेकर, हमारे देश के भीड़तंत्र की मनमानी की तरह। इन सब के विरुद्ध फिरदौस खान की प्रत्येक प्रस्तुति पठनीयता की दृष्टि से बहुत आकृष्ट करती है।
‘एक शाम फ्योदोर दोस्तोयेवस्की के नाम…’ में फिरदौस खान ने मशहूर रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोयेवस्की की किताब के हवाले से उनके संक्षिप्त जीवनवृत्त और साहित्य का रोचक वर्णन किया है और उनके साहित्य से जुड़े कुछ मार्मिक प्रसंग दिए हैं। भाषा और कथ्य की सहजता तथा दर्पण की तरह प्रस्तुति की स्वच्छता लेख की प्रमुख विशेषता है।
दशम : डॉ. शिखा कौशिक
चनित पोस्ट : श्री राम ने सिया को त्याग दिया ?
उत्कृष्टता : शिखा कौशिक प्राचीन-अर्वाचीन दोनों ही अवधारणाओं की कवयित्री हैं। सामाजिक-राजनीतिक उठापटक पर भी वे गंभीर और काव्योक्तियों से पुष्ट चुटीले विचार रखती हैं। उनकी ख़ूबी इस बात में है कि वे युवा मानसिकता के उपरांत पुराने भारतीय मूल्यों की पक्षधर हैं। कथ्य के कसाव और तेवरवाली भाषा की दृष्टि से उनके ब्लॉग पठनीय होते हैं।
‘श्री राम ने सिया को त्याग दिया ?’ में शिखा कौशिक ने सीता-निर्वासन के विवाद पर एक अनूठी उद्भावना का परिचय दिया है। दर असल यह एक ऐसा विवाद है जिस पर संस्कृत और अन्य भारतीय साहित्य में न जाने कितने पृष्ठ सर्फ़ किए गए हैं। पर शिखा कौशिक ने रामकथा की परस्थितियों, प्रसंग, राम-सीता के नैतिक निसर्ग आदि के आधार पर अपनी तर्कना के निकष पर विवादित तथ्य को कसते हुए ऐसी नवीन उद्भावना स्थापित की है, जैसी कदाचित् समाज और साहित्य में पहले नहीं कही-सुनी गई। इस सम्बन्ध में शिखा कौशिक द्वारा उक्त कविता की प्रस्तावना के रूप में प्रस्तुत विचार भी ध्यातव्य है –“सदैव से इस प्रसंग पर मन में ये विचार आते रहे हैं कि क्या आर्य-कुल नारी भगवती माता सीता को भी कोई त्याग सकता है। वो भी नारी सम्मान के रक्षक श्री राम ? मेरे मन में जो विचार आए व तर्क की कसौटी पर खरे उतरे उन्हें इस रचना के माध्यम से मैंने प्रकट करने का छोटा-सा प्रयास किया है।” और कविता के समापक दो बंधों में कवयित्री की अनुपम उद्भावना देखते बनती है—
“होकर करबद्ध सिया ने तब
श्रीराम को मौन प्रणाम किया;
सब सुख-समृद्धि त्याग सिया ने
नारी गरिमा को मान दिया।
मध्यरात्रि लखन के संग
त्याग अयोध्या गयी सिया;
प्रजा में भ्रान्ति ये फ़ैल गयी
‘श्री राम ने सिया को त्याग दिया’।”
अंतत: अल्पज्ञता, वैयक्तिक अभिरुचि, स्थानाभाव के कारण जिन ब्लॉगों का उल्लेख यहाँ न हो सका, उनका महत्त्व मेरे इस प्रयास से किसी तरह कम नहीं होता। मैं जागरण जंक्शन के सभी पठित-अपठित ब्लॉगरों के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए आभार मानता हूँ कि उनकी वैचारिक चेतना के चलते ही इस आलेख में कुछ कहना संभव हुआ। अब ब्लॉगिंग लेखन पर भी गहन आलोचना-दृष्टि डालने की आवश्यकता है। इससे मुद्रित वांड्मय की तरह ब्लॉगिंग संसार की भी श्रीवृद्धि होगी।