जागरूक / सुकेश साहनी
लड़की अपनी धुन में मस्त चली जा रही थी। रात के सन्नाटे में उस आधुनिका के सैंडिलों से उठती खट्–खट् की आवाज काफी दूर तक सुनाई दे रही थी। जैसे ही वह उस पॉश कालोनी के बीचोंबीच बने पार्क के नजदीक पहुंची, वहां पहले से छिपे बैठे दो बदमाश उससे छेड़छाड़ करने लगे।
लड़की ने कान्वेंटी अन्दाज में ‘‘शट अप! यू.....बास्टर्ड!!’’ वगैरह–वगैरह कहकर अपना बचाव करना चाहा, पर जब वे अश्लील हरकतें करते हुए उसके कपड़े नोचने लगे तो वह ‘‘बचाओ...बचाओ....’’ कहकर चिल्लाने लगी। उसकी चीख पुकार पार्क के चारों ओर कतार से बनी कोठियों से टकराकर लौट आई। कोई बाहर नहीं निकला।
वे लड़की को पार्क में झुरमुट की ओर खींच रहे थे। उनके चंगुल से मुक्त होने के लिए वह बुरी तरह छटपटा रही थी।
तभी वहां से गुजर रहे एक लावारिस कुत्ते की नजर उन पर पड़ी। वह जोर–जोर से भौंकने लगा। जब उसके भौंकने का बदमाशों पर कोई असर नहीं हुआ तो वह बौखलाकर इद्दर–उधर दौड़ने लगा। कभी घटनास्थल की ओर आता तो कभी किसी कोठी के गेट के पास जाकर भौंकने लगता मानो वहां रहने वालों को इस घटना के बारे में सूचित करना चाहता हो। उसके इस प्रयास पर लोहे के बड़े–बड़े गेटों के उस पार तैनात विदेशी नस्ल के पालतू कुत्ते उसे हिकारत से देखने लगे।
संघर्षरत लड़की के कपड़े तार–तार हो गए थे, हाथ–पैर शिथिल पड़ते जा रहे थे। बदमाशों को अपने मकसद में कामयाबी मिलती नजर आ रही थी।
यह देखकर गली का कुत्ता मुंह उठाकर जोर–जोर से रोने लगा। कुत्ते के रोने की आवाज इस बार कोठियों से टकराकर वापस नहीं लौटी क्योंकि वहां रहने वालों को अच्छी तरह मालूम था कि कुत्ते के रोने से घर में अशुभ होता है। देखते ही देखते तमाम कोठियों में चहल–पहल दिखाई देने लगी। छतों पर बालकनियों पर बहुत से लोग दिखाई देने लगे।
उनके आदेश पर बहुत से वाचमैन लाठियां–डंडें लेकर कोठियों से बाहर निकले और उस कुत्ते पर पिल पड़े।