जादूगर सैयां, थाम मेरी बैयां, ले लूं तेरी बलैया / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जादूगर सैयां, थाम मेरी बैयां, ले लूं तेरी बलैया
प्रकाशन तिथि :02 नवम्बर 2017


खबर है कि गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए भारतीय जनता पार्टी ने पचास जादूगरों की सहायता ली है, जो सभाओं में मंच पर जादू के करतब प्रस्तुत करेंगे ताकि भीड़ जुटा सकें और उसका मनोरंजन हो सके। इस तरह मजमा जमने के बाद नेताजी अपना भाषण देंगे। इस तरह की सोच का अगला चरण यह भी हो सकता है कि मंच पर नाचनेवालियां ठुमके लगाए। बिहार में यह किया जा चुका है। इस तरह ज़हालत का सरेआम प्रदर्शन किया जा रहा है। स्वयं हुक्मरान ही असली जादूगर है, जो रसातल में पहुंची हुई अर्थव्यवस्था को विकास कहकर पुकारता है। राजनीतिक सभाएं जलसाघर बनती जा रही हैं, जादू-टोने का राष्ट्रीयकरण किया जा रहा है, विज्ञान और तर्क का लोप हो रहा है। टेलीविजन पर प्रस्तुत 'भाभीजी घर पर है' का डॉक्टर पात्र प्राय: श्मशान में अलख जगाने की सलाह देता है और 'पवित्र भस्म' को पुड़िया में बांधकर दवा की तरह इस्तेमाल करने का मशविरा देता है। बेरोजगार पात्र भी देश की दुखती रग का प्रतीक है। अखबारों के कॉमिक्स खंड में जादूगर मैनड्रैक ने सबसे लंबी पारी खेली है। जादूगर मेलिए ही पहले फिल्मकार हुए हैं।

महान फिल्मकार रॉबर्ट नोलन की फिल्म 'प्रेस्टीज' भी दो जादूगरों की कहानी है, जो बाद में प्रतिद्वंद्वी हो जाते हैं। एक जादूगर को अपने प्रतिद्वंद्वी के कत्ल के आरोप में सजा-ए-मौत दी जाती है और फांसी लगने के पूर्व एक दढ़ियल व्यक्ति उनसे मिलने आता है। वह दढ़ियल रहस्य से परदा उठाता है कि उसी के कत्ल की सजा दी जा रही है, जबकि वह जिंदा है। उसकी अपनी शक्ल से मिलती-जुलती शक्ल के व्यक्ति की उसने हत्या की थी और वह हत्या भी जादू का तमाशा था। दरअसल, कोई कत्ल हुआ ही नहीं था। इस सत्य की जानकारी ही फांसी के पूर्व फांसी-सी भयावह सजा है। क्या रॉबर्ट नोलन की फिल्म को हम एक संकेत माने कि मौजूदा हुक्मरान जादूगर का स्थान कोई उससे बड़ा जादूगर लेगा? क्या नीरद चौधरी की यह धारणा सही थी कि भारत जादू-तमाशे का महाप्रदेश है। पुस्तक का नाम है 'कांटिनेंट ऑफ सिरसे।' सिरसे अर्थात जादूगर।

गुजरात चुनाव प्रचार में मजमा जमाने के लिए पचास जादूगर भेजना एक महान प्रदेश के अवाम का अपमान है। अपने व्यापार को कला के दरजे तक ले जाने वाले उद्यमी लोगों का यह अपमान है। जादू-तमाशे का आधार हाथ की ट्रिक्स, आंख का भ्रम कहा जाता है। चार पर पहुंची जीडीपी को सात बनाना भी ऐसा ही खेल है।

विगत वर्षों में हैरी पॉटर शृंखला लोकप्रिय हुई और उससे प्रेरित फिल्में भी सफल हुईं। क्या उसी तर्ज पर अब जादू सिखाने वाले विश्वविद्यालयों का निर्माण होगा। प्रस्तावित पचास विश्वविद्यालय संभवत: जादू में ही स्नातक की डिग्री देंगे। इसमें डिग्री के बदले डैगर दिया जाएगा। देश को रूरीटेनिया में बदला जा रहा है। साहित्य में कल्पना किए गए देश को रूरीटेनिया कहा जाता है। भारत यथार्थ में गरीबी का मारा है परंतु हुक्मरान उसे रूरीटेनिया सिद्ध करने पर आमादा है।

मुंबई के वार्डन रोड पर चार्टर्ड अकाउंटेन्ट जीएन शाह का दफ्तर था और उसके ठीक सामने जादूगर गोगिया पाशा रहते थे। शाह साहब का रहना था कि वे भी बैलेंस शीट बनाने के जादूगर हैं। देश की वैलेंस शीट जादूगर जेटली बना रहे हैं। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद देश को पचास हजार चार्टर्ड अकाउंटेंट की आवश्यकता है परंतु इस विधा की परीक्षा का परिणाम दस के ऊपर कभी जाता ही नहीं है। इस विधा के असफल छात्रों की दुकान भी खूब चल रही है।

देश के जादूगरों के इतिहास में पीसी सरकार सिंहासन पर विराजे रहे हैं। पीसी सरकार ने कहा था कि हर आम आदमी के पास जादू है, केवल उसे पहचानने की आवश्यकता है। देश का पैर बस्तर में मौजूद किसी भूलन कांदा पर पड़ा है जैसाकि रायपुर के उपन्यासकार संजीव बख्शी ने लिखा है। निदा फाज़ली ने लिखा था, 'यह दुनिया बच्चे का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्‌टी, खो जाए तो सोना है। एक आंख से रोना है, दूसरी से हंसना है।' मौजूदा समय में अवाम को एक ही आंख का प्रयोग करना है, जो सदैव हंसती रहे- यही हुक्मरान का जादू है।