जादू / ममता व्यास
जब भी वह जादूगर करतब दिखाने की तैयारी करता, ख़ुद के चेहरे पर मेकअप लगाता, कॉस्ट्यूम पहनता और झट तैयार हो जाता। एक स्त्री जो कई सालों से उसके साथ काम कर रही थी और इस जादू के खेल में बराबरी की हिस्सेदार थी। वह भी उसकी देखादेखी चेहरे पर मेकअप चुपड़ लेती, आंखों में इतना गहरा काजल लगाती कि शो के दौरान उसकी आंखें कोई भाव व्यक्त न कर सकें। पलकें भीग रही हैं या सूख रही हैं, काजल की धार से पता ही ना चले। अपने होठों पर वह लाल रंग पोत लेती थी और उन्हें कुदरती आकार से बहुत बड़ा बना लेती थी, ताकि वह शो के दौरान मुस्काती ही दिखाई पड़े। तलवार की नोक पर लेटते वक़्त देह न कांपे, इसके इंतज़ाम भी वह पहले से ही कर लेती थी, ख़ुद को भीतर से कई जंजीरों से बाँध लेती थी, अगर कोई चुपके से उसे निर्वस्त्र देख ले तो वह लोहे के तारों से बनी एक ' लोह पुतलीÓ नज़र आती थी, जैसे कठपुतली होती है, न ठीक वैसी ही।
रोज की तरह आज फिर जादूगर ने उसे आवाज़ लगाई और बुरी तरह चिल्लाया "क्या करती रहती हो भीतर, तुम्हें रोज़ बहुत देर लगती है।"
उस स्त्री ने रोज़ की तरह बिजली की गति से अपना मेकअप ख़त्म किया, कॉस्ट्यूम पहना और उसके बाद उसने एक और सबसे ज़रूरी काम किया, सबकी नजरें बचाकर उसने बड़ी चतुराई से अपना मन उतारकर एक कोने में पड़े पुराने लोहे के बक्से में छिपा दिया।
और बाहर आकर मुस्कुराते हुए बोली, "मैं रेडी हूँ।"
जादूगर बोला "गुड"
और जादू का खेल शुरू हो गया।
तीन घंटे तक जादूगर ने अपना खेल दिखाया। उस स्त्री को कभी हवा में लटकाए रखा, कभी तलवार की नोक पर सुला दिया, कभी कई तलवारें उसकी देह में से आर-पार करता गया। जादूगर की हर अदा पर, हर करतब पर लोग तालियाँ बजा रहे थे। उस बेजान स्त्री की देह नीली-पीली रोशनी में चमक-चमक जाती थी। जादूगर के सम्मोहन में क़ैद वह निर्जीव देह उस खेल का हिस्सा मात्र थी। उसके कान थे पर उसे उस शो में बजने वाली तालियाँ सुनाई नहीं देती थी। न दर्शकों की तल्ख टिप्पणी ही, उसकी आंखें थी, लेकिन वे उस भीड़ को नहीं देख पाती थी, जिनका मनोरंजन वह कई बरसों से करती आ रही थी। ज़ुबान थी पर वह बोल भी नहीं सकती थी कि इस शो के दौरान वह थक गयी है हवा में लटके-लटके या उसे दर्द होता है तलवार की नोंक पर लेटे हुए।
इन तमाम बातों से बेख़बर वह जादूगर दर्शकों की तालियों से बहुत खुश था। वह बार-बार अपना सिर झुकाकर भीड़ का शुक्रिया अदा कर रहा था। दर्शकों के उत्साह को देखते हुये जादूगर ने शो का अंतिम और महत्त्वपूर्ण करतब दिखाया...उसने एक टेबल मंगवाया और बैगनी रंग का एक कपड़ा बिछाकर उस पर स्त्री को लिटा दिया और देखते-देखते उसने दर्शकों के सामने उस स्त्री के चार टुकड़े कर दिए। दर्शक अपनी जगह पर सांस रोककर खड़े हो गए... जादूगर मुस्काया अपनी हैट उतारी, छड़ी स्त्री की देह के ऊपर घुमाई और कमाल हो गया साहब...एक पल में उसने स्त्री को फिर से जोड़ दिया...' वाह-वाहÓ दर्शक झूम उठे, तालियों से पूरा हॉल गूंजने लगा। शो ख़त्म होते ही स्त्री जल्दी से भीतर गयी और लोहे का बक्सा खोला...आज फिर से मन के चार टुकड़े हो गए थे। उसने बहुत प्यार से उन टुकड़ों को उठाया और कल के शो के लिए फिर से जोड़ दिया। वह जानती थी कि उस महान जादूगर के पास देह के कई टुकड़े करके उन्हें जोड़ देने का हुनर तो था, लेकिन मन के टुकड़ों को फिर से जोड़ देने का जादू तो बस वह ही जानती थी।