जानकी कुटीर की शौकत शकुंतला / जयप्रकाश चौकसे

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जानकी कुटीर की शौकत शकुंतला
प्रकाशन तिथि : 25 नवम्बर 2019

महान शायर कैफी आज़मी की पत्नी शौकत आज़मी को मुंबई के चार बंगले क्षेत्र के निकट बने कब्रिस्तान में खाक-ए-सुपुर्द किया जाएगा। शौकत आज़मी ने पृथ्वी थिएटर के नाटकों में अभिनय किया और कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया। उन्होंने 'कैफी और मैं' नामक आत्म-कथात्म किताब भी लिखी। जिसका विमोचन शशि कपूर द्वारा किया गया था। विमोचन के साथ ही दोपहर के भोजन के लिए लोगों को आमंत्रित किया गया था। उस अवसर पर शौकत आज़मी ने एक खूबसूरत साड़ी पहनी तो उनकी पुत्री शबाना आज़मी ने कटाक्ष किया कि रोज पहनने वाले कपड़े भी पहने जा सकते थे। शौकत आज़मी ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया कि उनकी किताब की प्रशंसा नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने की है, अतः किताब के विमोचन पर उनका अपनी श्रेष्ठ साड़ी पहनने का हक भी बनता है। इसी तरह विमोचन के लिए उनके दामाद जावेद अख्तर ने सुझाव दिया कि किसी प्रसिद्ध लेखक से विमोचन कराया जा सकता है। शशि कपूर लेखक नहीं हैं। शौकत आजमी ने कहा शशि कपूर लेखक तो नहीं हैं, परंतु पृथ्वीराज (कपूर) का पुत्र है और शौकत आजमी ने पृथ्वी थिएटर के नाटकों में अभिनय किया है। वह उनकी पहली वेतन कमाने वाली मजदूरी थी। ज्ञातव्य है कि शौकत आज़मी ने पृथ्वीराज द्वारा निर्देशित नाटक में शकुंतला का पात्र अभिनीत किया था। उन्होंने 'किसान' और 'पठान' नामक नाटकों में भी चरित्र भूमिकाएं अभिनीत की थीं।

एक बार शौकत आज़मी पृथ्वी नाटक मंडली के साथ कई शहरों की यात्रा पर जा रही थीं। उन्होंने अपने शौहर कैफी आज़मी से कहा कि यात्रा में उन्हें अपनी जेब खर्च के लिए कुछ रुपए चाहिए। ट्रेन रवाना होते समय कैफी आज़मी यथेष्ट रकम लेकर रेलवे स्टेशन पहुंचे। शौकत आजमी को बड़ी खुशी हुई। यात्रा के दरमियान पृथ्वीराज कपूर ने शौकत आज़मी से पूछा कि परिवार में सभी कुछ ठीक चल रहा है न? कहीं कोई सदस्य बीमार तो नहीं है? उन्होंने बताया कि उस दिन सुबह कैफी आज़मी साहब उनसे कुछ रकम लेकर गए हैं। शौकत आजमी ने अपने शौहर की इस शरारत पर जोरदार ठाक लगाया। ज्ञातव्य है कि इस मंडली के सभी सदस्य साथ बैठकर भोजन करते थे और व्यक्तिगत पूंजी नामक कोई परंपरा नहीं थी। नाटकों की आय पर सबका समान अधिकार था।

कैफी आजमी हैदराबाद में आयोजित एक मुशायरे में भाग लेने गए थे। अमीर परिवार में जन्मी शौकत उस मुशायरे में एक सामान्य श्रोता थीं। कैफी साहब ने अपनी नज्में पढ़ीं और शौकत उन पर फिदा हो गईं। इस जमीं और आसमां की प्रेम कथा विवाह के क्षितिज पर पहुंची। शौकत ने अपने परिवार की इच्छा के विपरीत विवाह किया। ज्ञातव्य है कि तबु भी इसी परिवार की हैं। नव दंपति मुंबई आए, कैफी साहब का अपना घर नहीं था। वह वामपंथी दल द्वारा बनाए एक बड़े से कमरे में अन्य वामपंथी सदस्यों के साथ महीनों रहे। कुछ महीनों बाद उन्होंने जुहू की एक गली में 'जानकी कुटीर' नामक छोटा सा घर किराए पर लिया। कालांतर में इसी गली में जानकी कुटीर के पड़ोस वाला घर पृथ्वीराज कपूर ने किराए से लिया। पृथ्वीराज पेशावर में जन्मे पठान थे और मुंबई की गर्मी सहना उन्हें कठिन लगता था, परंतु उन्होंने अपने शयनकक्ष में एयर कंडीशनर केवल इसलिए नहीं लगाया था कि उसकी आवाज से पड़ोसी कैफी आज़मी के आराम में खलल पड़ सकता था।

'इप्टा' के सदस्य रमेश तलवार ने शौकत की किताब का नाट्य रूपांतर किया जिसमें शबाना ने शौकत की भूमिका अभिनीत की और जावेद अख्तर ने कैफी साहब की भूमिका अभिनीत की। यह नाटक अनेक शहरों में मंचित किया जा चुका है। ज्ञातव्य है कि कैफी और शौकत का पुत्र बाबा आजमी एक योग्य सिनेमेटोग्राफर रहा है। बाबा आजमी ने उषा किरण नामक सितारे की पुत्री तन्वी से विवाह किया है। शौकत आजमी ने लंबा सार्थक जीवन जिया है। वामपंथी विचारधारा उनकी सांसों में बसी थी और जीवनशैली इसी विचारधारा की सादगी और उच्च नैतिक मूल्यों से शासित रही है। उनके पास हंसने-हंसाने का जबरदस्त माद्दा था और सारी परेशानियों को वे अपने बेसाख्ता ठहाके से उड़ाकर उन्हें अंतरिक्ष में भेज देती थीं। जानकी कुटीर में रहने वाली इस 'शकुंतला' को लाल सलाम।