जानवर भी रोते हैं / जगदीश कश्यप

Gadya Kosh से
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चोर निगाहों से बन्तो ने देखा कि सरदारनी बार–बार उसकी ओर देख रही थी। उसने चाहा कि वह पूछ ले कि कोई तकलीफ़ तो नहीं। लेकिन फिर सोचा-- कहीं सरदारनी पहले की तरह फिर से न बिफ़र पड़े-– "नी बन्तो, मैं हाँ जी...तू की खाके मेरे सामणे बोलेगी...।" चाहती तो बन्तो भी उसे ख़री–ख़री सुना देती पर औरतों ने समझाया कि लड़ाका कुलवन्त कौर के मुँह लगना तो अपना चैन खोना है।

"तुसी वाज (आवाज़) दिती मैनूं?" --बन्तो ने छत से खड़े होकर पुकारा। आंगन में खड़ी भैंस बार–बार बिदक रही थी। कुलवन्त ने इस अन्दाज़ से सिर हिलाया कि उसने कोई मदद नहीं मांगी है। फिर भी बन्तो ज़ोर से बोली–- "ठैर बीजी मैं आनियाँ...।"

उस समय कुलवन्त खेतों में थी । पुरबिए भैसों के साथ खर–पतवार साफ कर रहे थे। इधर सिरफिरों ने उसके बीमार पति, पुत्रवधू और उसके दोनों बच्चों को गोलियों से भून डाला था। पुत्र तेजिन्दर इस हत्याकाण्ड से पगलाया हुआ फिरता है। सरकार ने नौकरी देने की बात कही, पर कुछ नहीं हुआ।

बन्तो ने भैंस को सहलाया तो कुलवन्त को लगा कि उसकी पीठ सहलाई जा रही है। गाँव से झगड़ा करके वह सुखी नहीं रह सकी, यह अन्दाज़ा उसे अब हो रहा था। सिरफिरों की गोलियों से भैंस का कटड़ा भी मारा जा चुका था, जिस कारण भैंस कूदने लगी थी। बन्तो ने बाल्टी के पानी के छींटे भैंस के थन में मारे और धार काढ़ने लगी। कुलवन्त ने देखा–भैंस उसकी ओर इस अन्दाज़ से देखती हुई जुगाली–सी कर रही थी, मानों कह रही हो–- "बन्तो का भी सारा परिवार गोलियों का शिकार हो गया। चलो तुम लोगों से सिरफिरों ने जो भी बदला लिया हो पर मैंने आतंकवादियों का क्या बिगाड़ा था जो मेरे कटड़े को मार गिराया।"

भैंस ने देखा कुलवन्त कौर बन्तो के नजदीक बैठ गई और उसकी पीठ से सिर टिकाकर रोने लगी। "काश! कोई उसका भी रोना देख पाए" --गुमसुम भैंस ने सोचा।