जानवर / पद्मजा शर्मा
स्कूल के समय से ही उसका मन पढऩे में नहीं लगता था। घर का काम करना अपमानजनक लगता था। बड़ों के साथ तर्क-कुतर्क करने में आनन्द की अनुभूति होती थी। लड़कियों का पीछा करना, उन पर फब्तियाँ कसना उसका शगल था। खासकर सीधी लड़कियों पर। कॉलेज में जैसे-तैसे आ तो गया परन्तु प्रथम वर्ष में फेल हो गया। पढ़ाई छोड़ दी। दिनों दिन उसकी डिठाई और चाल-चलन बिगड़ता चला गया।
विश्वविद्यालय की सांयकालीन कक्षाओं से छूटकर लड़कियों का एक झुण्ड साइकलों पर तेज-तेज पैडल मारते हुए बाहर निकला। आदतन वह उनके पीछे हो लिया। थोड़ी दूर पहुंचा था यह झुण्ड कि उसने अपनी साइकिल उस झुण्ड में डाल दी। एक लड़की का दुपट्टा खींच लिया। कुछ लड़कियाँ सड़क पर गिर गई. वह भी गिर गया।
गिरने वाली लड़कियों में एक से उसकी नजर मिली तो उसकी नजरें झुक गईं। वह उसकी बहन थी। वह झेंप गया। झेंप मिटाने के लिए उसने कहा 'तुम गिर गई. तुम्हें उठा दूँ।'
बहन ने भाई को जवाब में कहा-'भैया, आप गिर गए. आप मुझे उठा दोगे पर आपको कौन उठाएगा?'
पहली बार उसने सोचा कि वह इन्सान ही है कि किसी जानवर में तब्दील हो चुका है।