जाने कब अभिमन्यु और एकलव्य जाएं / जयप्रकाश चौकसे

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जाने कब अभिमन्यु और एकलव्य जाएं
प्रकाशन तिथि :01 जनवरी 2015


आज आज श्रीमती कृष्णा राज कपूर अपना 84वां जन्मदिन दक्षिण भारत के कुन्दूर में हनी ईरानी के बंगले में मना रही हैं। उन्हें और डिम्पल कपाड़िया को हनी अपने साथ 27 दिसंबर को ले गई और वे पांच जनवरी को मुंबई लौटेंगी। ज्ञातव्य है कि हनी ईरानी ने जावेद अख्तर से तलाक के कुछ वर्ष पश्चात कुन्दूर में रहना शुरू कर दिया और वे वर्ष में दो-तीन बार मुंबई आती हैं। इनकी पटकथा पर आदित्य चोपड़ा एक फिल्म बनाने जा रहे हैं गोयाकि इस समय जावेद अख्तर के परिवार में उनको छोड़कर सब फिल्में लिख रहे हैं और बना रहे हैं। फरहान और ज़ोया भी अपनी फिल्में लिखते हैं। कई वर्ष पूर्व आमिर खान के चचेरे भाई मंसूर खान ने फिल्में छोड़कर कुन्दूर में ऑर्गेनिक खेती करना शुरू किया और वे वहीं रह रहे हैं। जयंती लाल गढ़ा की एक फिल्म के लिए अक्षय कुमार दक्षिण अफ्रीका जा रहे हैं।

क्या कैलेंडर में तारीख बदलने से आम मनुष्य की तकदीर बदलती है या केवल अमीर और अधिक अमीर तथा गरीब और अधिक हताश होता है फिर भी शुभ वर्ष की कामना करनी चाहिए। इस वर्ष का आगाज दो जनवरी को छोटे बजट की सार्थक मनोरंजक फिल्म "टेक इट इजी' से होने जा रहा है परन्तु क्या यह वर्ष भी फिल्म के नाम के अनुरूप आसान होने वाला है? इसका नारा भी है "समझा करो यारों' - यह अवश्य ही पूरे वर्ष के लिए आवश्यक सिद्ध हो सकता है कि सब पुनरावलोकन करके सूझ-बूझ से काम लें। इसी माह में 23 जनवरी को कम बजट की उमाशंकर सिंह की लिखी अरबाज खान की "डॉली की डोली' भी लग रही है। इसी माह नौ जनवरी को अर्जुन कपूर और सोनाक्षी सिन्हा की "तेवर' में आगरा-मथुरा की पृष्ठभूमि पर दबंगई की फिल्म है और साजिद-वाजिद के गीत लोकप्रिय हो चुके हैं।

इस वर्ष शाहरुख खान की आदित्य चोपड़ा द्वारा बनाई "फैन' प्रदर्शित होगी और सूरज बड़जात्या की सलमान खान अभिनीत "राम रतन धन पायो' का प्रदर्शन दिवाली पर होगा। क्या अजब संयोग है कि दोनों ही फिल्में डबल रोल की फिल्में हैं और साम्य यह भी है कि "फैन' में एक शिखर सितारा और उसके हमशक्ल गरीब इंसान है गोयाकि दशकों पूर्व बनी एलवी प्रसाद की "राजा रंक'तथा "राम और श्याम' को मिक्सी में डालकर नया मनोरंजन दोनों फिल्मों में समान है।

क्या हम यह माने कि दो घोर प्रतिद्वंद्वी निरंतर एक-दूसरे के बारे में सोचते रहने की प्रक्रिया में एक-सा सोचने लगते हैं। चीन और अमेरिका की प्रतिद्वंद्विता के कारण भी चीन पूंजीवादी लक्ष्य को साम्यवादी साधनों से प्राप्त करने लगा है। क्या हॉलीवुड के सिनेमा ने अमेरिकन जीवन शैली को पूरे विश्व की शैली बना दिया है। सभी खेलों में भी प्रतिद्वंद्वी के अवचेतन में झांकना आवश्यक है। याद कीजिए फिल्म "इकबाल' के उस दृश्य को जिसमें बूढ़ा शराबी नसीरुद्दीन युवा बॉलर इकबाल को सिखाता है कि बैट्समैन का मन पढ़ो और उसे अपने मन में मत झांकने दो। शतरंज के खेल में भी एक कमजोर चाल प्रतिद्वंद्वी के लिए चारे की तरह होती है।

विधू विनोद चोपड़ा की पहली फिल्म "सजा-ए-मौत' से ताजा "ब्रोकन हॉर्स' एवं "वजीर' की पटकथाएं और सारी बुनावट शतरंज के खेल की तरह है और उसकी सारी फिल्मों को शतरंज के मैटाफर के साथ किताब में प्रस्तुत किया जा सकता है जो उनकी पत्नी अनुपमा, जो फिल्म की समालोचक भी हैं को करना चाहिए। इस वर्ष की अंग्रेजी भाषा में बनी "ब्रोकन हॉर्स' अमिताभ बच्चन तथा फरहान अभिनीत "वजीर' महत्वपूर्ण फिल्में हैं। यह सिनेमा को दो सतह ऊपर ले जाएंगी।

इस वर्ष इम्तियाज अली की रनबीर कपूर और दीपिका पादुकोण अभिनीत "तमाशा', अनुराग बसु की रणबीर-कैटरीना अभिनीत "जग्गा जासूस' और अनुराग कश्यप की रणबीर-अनुष्का अभिनीत "बॉम्बे वैल्वेट' से बहुत आशाएं हैं। इसी तरह, रणवीर सिंह, दीपिका और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत संजय लीला भंसाली की "बाजीराव मस्तानी' मील का पत्थर सिद्ध हो सकती है परन्तु भंसाली को "गोलियों की रासलीला' से मुक्त होकर यह फिल्म अपने "दिल दे चुके सनम' वाली सृजन ऊर्जा से बनानी चाहिए।' अमिताभ बच्चन और धनुष की बाल्की निर्देशित "शमिताभ' इस वर्ष की बेहद मनोरंजक फिल्म सिद्ध हो सकती है। कबीर खान की सलमान अभिनीत "बजरंगी भाईजान' ईद पर प्रदर्शित होने जा रही है।

दरअसल मनोरंजन उद्योग की परम्परा है कि हर वर्ष कुछ ऐसी फिल्में बाजी मार ले जाती हैं जिनके बारे में चर्चा भी नहीं हुई अर्थात् "डार्क हॉर्स' का जीतना हम विकी डोनर, कहानी, पान सिंह तोमर में देख चुके हैं। हर वर्ष कोई गर्भस्थ शिशु पैदा होकर अभिमन्यु सिद्ध होता हैया कोई एकलव्य लक्ष्य भेद करता है। जीवन की अनिश्चितता ही उसका सबसे महान रहस्य है। विशेषज्ञों को गलत साबित करना भारतीय प्रतिभा है।