जाने कहां गए वो दिन और वे लोग / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जाने कहां गए वो दिन और वे लोग
प्रकाशन तिथि :02 जून 2017


आज राजकपूर के निधन को 29 वर्ष हो चुके हैं। इन वर्षों में फिल्म निर्माण, प्रदर्शन एवं वितरण में अनेक परिवर्तन हुए हैं। आज कपूर परिवार की चौथी पीढ़ी सक्रिय है। राज कपूर के जीवन अौर सिनेमा में ऐसा कुछ है कि वे भुलाए नहीं भूलते। मेहबूब खान, शांताराम, बिमल राय, गुरुदत्त, अमिय चक्रवर्ती, के. आसिफ इत्यादि ने भी कालजयी फिल्में बनाई हैं और इन पर लेख एवं किताबें भी प्रकाशित हुई हैं परंतु राज कपूर स्मृति में बचपन के कुटैव की तरह समाए हैं। संभव है कि फिल्मकार होने के साथ ही उनका सितारा होना भी इसका एक कारण रहा हो। गुरुदत्त की ख्याति बतौर फिल्मकार जमी है। वे एक अत्यंत साधारण अभिनेता थे। शांताराम का अभिनय स्वरूप उनके फिल्मकार स्वरूप की मदद नहीं करता। वे थिएट्रिकल और लाउड अभिनेता थे। गुरुदत्त एक अनिच्छुक अभिनेता लगते हैं। अपने समकालीन फिल्मकारों और सितारों से कहीं अधिक सुंदर एवं मनमोहक व्यक्तित्व था राज कपूर का। वे अपने इस जादू से परिचित थे। बाईस वर्ष की आयु में राज कपूर ने अपनी पहली फिल्म 'आग' का निर्माण एवं निर्देशन किया और उस समय वे शिखर सितारा भी नहीं थे। उनकी दूसरी फिल्म 'बरसात' ने उन्हें सितारा हैसियत दिलाई। मेहबूब खान की 'अंदाज' उनके लिए बड़ी चुनौती थी, जिसमें दिलीप कुमार और नरगिस उनके सह-कलाकार थे।

ख्वाजा अहमद अब्बास ने 'आवारा' उस दौर के शिखर फिल्मकार मेहबूब खान को सुनाई, जो उसे पृथ्वीराज, दिलीप नरगिस के साथ बनाना चाहते थे परंतु अब्बास साहब को लगा कि यथार्थ के पिता-पुत्र के काम करने से फिल्म को भावना की पैनी धार मिलती है। 'आवारा' के विषय में नरगिस से राज कपूर को मालूम पड़ा और वे देर रात मुंबई के शिवाजी पार्क क्षेत्र में एक श्मशान भूमि के निकट बने हॉटल में के.ए. अब्बास से मिलने पहुंचे। श्मशान भूमि के निकट होने के कारण उस होटल में कमरों का किराया कम था। बहरहाल, अलसभोर तक कहानी सुनने के बाद राज कपूर ने अब्बास साहब को मात्र एक रुपया ही दिया था। बहरहाल बाद में के.ए. अब्बास को एक लाख रुपए मिले, जो उस दौर में बहुत बड़ी राशि थी। 'आवारा' के बाद 'श्री 420,' 'जोकर,' 'बॉबी' एवं 'हिना' के साथ भी के.ए. अब्बास का नाम जुड़ा रहा। राज कपूर के लिए इतनी सफल फिल्में लिखने वाले अब्बास साहब ने स्वयं कभी कोई हिट फिल्म नहीं बनाई। यहां तक कि बहुसितारा 'चार दिल चार राहें' में पृथ्वीराज, राज कपूर, मीना कुमारी, शम्मी कपूर इत्यादि दर्जन भर कलाकारों वाली फिल्म भी असफल रही। दरअसल, अपनी फिल्मों में राज कपूर लेखक संगीतकार भी होते थे। लक्ष्मीकांत (प्यारेलाल) ने यह कहा है कि राज कपूर को संगीत का बहुत गहरा ज्ञान था। अपनी धुनें वे स्वयं ही बनाते थे। आवारा बनते समय राज कपूर ने यह महसूस किया कि कुछ दृश्य अति उपदेशात्मक एवं उबाऊ बन गए हैं। उन्होंने तय किया कि इन दृश्यों को हटाकर एक गीत का प्रयोग किया जाए, जिसमें दृश्यों का सारांश होना चाहिए। उन्होंने शंकर जयकिशन शैलेंद्र, कैमरामैन राधू करमाकर, कला निर्देशक एमआर आचरेकर के साथ लंबी बातचीत की और स्पष्ट किया कि वे क्या चाहते हैं। इस तरह की एक बैठक देर रात तक चली और उनींदे लोगों को झपकी लग गई। जाने कब शंकर जागे और उनका हाथ तबले पर पड़ा, ध्वनि से ध्वनि जन्मी और सब एक माधुर्य में डूब गए। राज कपूर ने गीतांकन का आकल्पन तीन भागों में किया : नर्क, स्वर्ग और धरती। यह लगभग दस मिनट का स्वप्न दृश्य है। इसके फिल्मांकन के लिए राज कपूर ने मैडम सिमकी से परामर्श लिया जो बैले रचने में प्रवीण थीं। फिल्मांकन में चार माह का समय और आठ लाख की लागत आई, जबकि शेष फिल्म बारह लाख में बनी थी। यह संभव है कि भविष्य में फिल्म भुला दी जाए परंतु यह स्वप्न दृश्य भुलाए नहीं भुलेगा।

इस घटना के लगभग 27 वर्ष पश्चात राज कपूर अपनी फिल्म 'सत्यम, शिवम सुंदरम' में एक स्वप्न दृश्य रच रहे थे तो फिल्म के नायक शशि कपूर ने राज कपूर से कहा कि वे इस बार भी 'आवारा' के स्वप्न दृश्य-सा जादू जगाएं। राज कपूर ने कहा कि यह सं‌भव हो सकता है अगर उन्हें शंकर-जयकिशन शैलेंद्र हसरत-सी टीम पुन: उपलब्ध करा सके। सच तो यह है कि 25 वर्षीय राज कपूर कहां से लाते। उम्र के उस दौर में राज कपूर अपने सृजन के वसंत ाल में थे और 'सत्यम' का निर्माण वे उम्र के 53वें वर्ष में कर रहे थे। चंद्रकांत देवताले से साभार कहेंगे कि उम्र का हिरण अज्ञात झाड़ियों में छलांग लगाता हुआ जाने कहां चला जाता है। आज उनके चेम्बुर निवास पर हवन पूजा-पाठ होगा और साधनहीन लोगों की सहायता की जाएगी। सब समवेत प्रार्थना करेंगे 'ओम शांति ओम।'