जाने वाले हो सके तो लौट के आना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 03 फरवरी 2022
हमारे यहां पुनर्जन्म की अवधारणा को जनसाधारण की मान्यता प्राप्त है। अवतारवाद, अवधारणा का ही यह हिस्सा है। ‘मधुमति’ बिमल रॉय द्वारा इसी मान्यता की श्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है। अशोक कुमार अभिनीत ‘महल’ तो पुनर्जन्म के नाम पर जायदाद हड़पने के षड्यंत्र की कहानी थी। चेतन आनंद की ‘कुदरत’ और सुभाष घई की ‘कर्ज’ भी पुनर्जन्म अवधारणा प्रेरित फिल्में थीं। ‘कर्ज’ फिल्म ‘द रीइनकारनेशन ऑफ पीटर प्राउड’ से प्रेरित थी परंतु मूल फिल्म में पत्नी दूसरी बार पति को मारते हुए कहती है कि हर जन्म में वह उसे मारेगी। इस कड़ी में ‘बीइंग बोर्न’ में महिला 40 वर्ष की है और उसका प्रेमी नए जन्म में मात्र 9 वर्ष का है और इस तरह कहानी आगे बढ़ती है। कन्नड़ लेखक की किताब ‘अपने-अपने सच के दायरे’ में इस कथा में एक श्राप के कारण रिश्तों के समीकरण बदल जाते हैं। इस तरह की किसी भी कथा में आर्थिक विषमता के दृष्टिकोण से कुछ प्रस्तुत नहीं किया गया है। आश्चर्यजनक है कि इन कथाओं को कभी राजनीतिक दृष्टिकोण से भी प्रस्तुत नहीं किया गया है। विंस्टन चर्चिल, अब्राहम लिंकन, जे.एफ. कैनेडी, गमाल अब्देल नासेर और नेहरू के पुनर्जन्म के विषय में कुछ कहा नहीं गया है परंतु राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ में गांधीजी की वापसी का मनोरंजक विवरण प्रस्तुत किया गया है। शायद वर्तमान में वे अपने आपको असहाय महसूस करते।
राज कपूर अपने पुनर्जन्म में अपनी कथा ‘रिश्वत’ बनाना चाहते परंतु संभवत: इसे प्रदर्शित नहीं होने दिया जाता। शैलेंद्र, फणीश्वरनाथ रेणु की ‘मैला आंचल’ बनाना चाहते। संगीतकार जयकिशन, अभिनेता बनना चाहते, कैफ़ी आज़मी और निदा फ़ाज़ली और नागार्जुन हर जन्म में शायर होना चाहते। दुष्यंत कुमार हर घर में चिराग जलाने का प्रयास करते। मीना कुमारी उसे खोजतीं जो गुम गया था सरे राह चलते चलते। शशि कपूर और जेनिफर केंडल कपूर ‘36 चौरंगी लेन’ में रहने जाते। शम्मी कपूर ‘कितना प्यारा वादा है और गोया कि चुनाचे’ के नए अंतरे बनाना चाहते। इस बारे में अपनी पत्नी गीता बाली की फिल्म ‘एक चादर मैली’ को राजेंद्र सिंह बेदी के मूल आकल्पन की तरह बनाना चाहते ।
बिमल रॉय कुंभ उत्सव से प्रेरित फिल्म बनाते, जिसे वे अपनी मृत्यु पूर्व लिख रहे थे। गुरूदत्त अपने आकल्पन ‘अली बाबा और 40 चोर’ का फिल्मांकन करते। राज कपूर अभिनीत यह फिल्म फंतासी के बहाने तत्कालीन समाज के विरोधाभास, विसंगतियों पर प्रहार करती। संजीव कुमार नए जन्म में विवाह अवश्य करते। मर कर भी कोई मरता नहीं, किसी के आंसुओं में मुस्कुराता है। पुनर्जन्म अवधारणा पर सबसे अधिक शोध जर्मनी में हुआ। डॉक्टर वीज ने अपना पूरा जीवन इसी विषय पर काम करने को समर्पित किया। जर्मन विचारधारा तर्क प्रधान है परंतु पुनर्जन्म पर सबसे अधिक काम वहीं हुआ है। हम सब पुनर्जन्म में विश्वास इसलिए करते हैं कि जीवन रूपी वाक्य में शरीर का पंचतत्व में मिलना अर्धविराम की तरह है। वाक्य पूरा नहीं हुआ इस बात को शैलेंद्र ने बखूबी अभिव्यक्त किया है। ‘चलते-चलते थक गया मैं और सांझ भी ढलने लगी, तब राह खुद मुझे अपनी बाहों में लेकर चलने लगी।’ गोया की जीवन चक्र में स्थाई मूल को अक्षुण्ण रखते हुए, नए के प्रति ललक बनी रहना चाहिए। ज्ञान के लिए खिड़कियां खुली रखना चाहिए। सवेरा किसी के रोके नहीं रुकता। रात जितनी संगीन होती है सुबह उतनी ही रंगीन होती है। प्रकाश वही है, अंधकार भी अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं परंतु मनुष्य निरंतर जागरूक बना रहता है। मन में रास्ते की तीव्र इच्छा हो तो रास्ते खुल जाते हैं। एक रास्ता बंद हो जाए तो 10 रास्ते खुल जाते हैं। हमें जीवन के प्रति अपना विश्वास नहीं खोना चाहिए।