जान बहादुर फुर्र / सुशील कुमार फुल्ल
एक शान्त स्थली पर चिड़ियों का झुण्ड मस्ती से अनाज के दाने चुग रहा था । अचानक एक गिद्व आकाश से नीचे उतरने लगा । उस की दृष्टि उसी झुण्ड पर टिकी हुई थी । किसी विपति के पूर्वाभास से चिन्तित नन्हे पक्षी उड़ान भरने के लिए आतुर दिखाई दिए परन्तु गिद्व के डैने उन्हें लपेट लेने के लिए व्याकुल थे ।
बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाने के लिए कब लालायित नहीं होती । जिजीविषा का अन्त शिकारी की जीत बनती है और हर शिकारी सफलता के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर हो जाता है । और जान बहादुर भी इस का अपवाद नहीं था बल्कि वह तो एक अभ्यस्त व्याध था ।
संस्थान के परिसर में कुछ लोग काले झण्डे ले कर खड़े थे और थोड़े थेड़े अन्तराल के बाद नारे लगा रहे थे: हेरा फेरी नहीं चलेगी ,गुण्डागर्दी नहीं चलेगी जो हम से टकराएगा, चूरचूर हो जाए गा ।
दरवाजे पर ही कार रोक दी गई । वह हड़बड़ाया सा बाहर निकला और बोला - यहां कोई वर्क कल्चर ही नहीं । तभी तो इण्डिया फिसड्उी देशों की लिस्ट में बहुत उपर आता है । वह कार से उतर कर पैदल ही अन्दर चला गया ।
अन्दर जाते ही उस ने जुल्फी राम की क्लास लनी शुरु कर दी । कहा - तुम इतने से लोगों को भी संभाल नहीं सकते । स्थिति से निपटने के बीस तरीके होते हैं । और ये हैं कौन लोग जो बेवजह यहां नारेबाजी कर रहे हैं ?
‘सर,ये मैगज़ीन सैक्शन के वह लोग हैं, जिन्हें आप ने रिटरेंच करने का निर्णय लिया है । ‘
‘ उस सेक्शन में तो तीन-चार ही लोग थे परन्तु यह भीड़ ? और फिर जब मैगजीन ही नहीं छपेगी तो इन लोगों का यहां क्या काम? मैं फालतू का बोझ नहीं ढो सकता ।‘स्टेनली ने अपने अन्दाज में कहा । ‘सर, ये तो सरकारी कर्मचारियों के समकक्ष वेतन के अनुसार मुआवजे की मांग कर रहे हैं ,जो बहुत ज्यादा बने गा ।‘ ‘मांगने से ही सब कुछ मिल जाए ,फिर तो मैं भी आकाश मांग लूं । दिमाग मैं लगाउं और जो पैसा मैं ने मेहनत से कमाया है , वह सारा इन्हीं में बांट दूं ? हरगिज़ नहीं । मेरी रगों में अमरीकी खून प्रवाहित है । ससुरों को ऐसा सबक सिखांउगा कि ताउम्र याद रखेंगे| बाहर अब भी नारे लग रहे थे । जुल्फी राम परेशान था परन्तु स्टेनली पर इस सब का ज्यादा असर दिखाई नहीं दे रहा था ।
‘क्या ? कोई पैसा नहीं बचा ? क्या सारा चोगा आप ही चुग जाओ गे ?‘ क्षण भर रुक कर फिर बोला-तो क्या मैं यहां खाक छानने आता हूं । दरअसल यहां किसी को पैसे की कद्र ही नहीं । सब बिना काम किए अपनी जेबें भर कर ले जाना चाहते हैं ।‘स्टेनली का पारा चढ़ रहा था ।
‘सर, इस में हम कुछ कर ही नहीं सकते । कागज़्ा़ के रेट दो गुना बढ़ गए और... और फिर हर काम पर अतिरिक्त टैक्स और सैस लगने से सब गड़ब्ड़ा गया है । जुल्फी राम ने मरियल सा मुह बना कर कहा ।
‘कल से सब का वेतन आधा कर दो ।‘ स्टेनली गर्जा ।
‘जी,सर लेकिन'
‘लेकिन क्या ? मैं ने भी कैसा बिज़नेस पार्टनर चुना है । गधे को घोड़ा समझने की भूल मुझी पर भौरी पड़ रही है । लोग भी कितने अजीब हैं । अैर यहां के नेताओं की तो बात ही अलग है। चुनाव क्या आते हैं कि बाकी सब कुछ भूल कर आवारा पशुओं की भांति यहां वहां भटकते फिरते हैं । चौबीस घंटे बक बक । रैलियां ही रैलियां । रोड शो करते हुए हाथ ऐसे हिलाते हैं , मानो कोई हिलने की बीमारी लग गई हो । बस कुर्सी चाहिए । अंट संट बकना आम बात है । जो भी दिमाग में आए, , बिना सोचे समझे कुछ भी घोषणा कर देते हैं । तभी तो सैंकड़ों वर्ष अ्रगेजों के चाकर बन कर रहे । बे पंेदे के लोटे ।‘स्टेनली खुद भाषण देने के मूड में था ।
‘सर, वेतन आधा करने के विरोध में कर्मचारी कोर्ट में चले जांए गे ।‘
‘तो चले जांए ।कोर्ट में दस बीस साल केस सड़ता रहेगा और हम अपना सामान बटोर कर चलते बने गे । यह तो भारतीय न्याय की महानता है कि फरियादी मर भी जाता है और फाइल धूल चाटती रहती है ।‘
‘सर, एक बार फिर सोच लो ।पहले ही कई केस कोर्ट में विचाराधीन हैं ।‘ जुल्फी राम बुदबुदाया । ‘एक बार फैसला कर दिया ,सो कर दिया । स्टेनली अपना निर्णय कभी बदलता नहीं । मजदूर आदमी अपने आप थक कर घर बैठ जांए गे ।‘ भेड़ की खाल में भेड़िया गुर्राया ।
संस्थान में भगदड़ मची हुई थी । कोई अस्फुट स्वर में कह रहा था -व्यापारी कहीं का भी हो वह अन्दर से जल्लाद ही होता है , बाहर भले ही वह मेमने की खाल ओढ़ कर रखे । ‘ नहीं,नहीं ,ऐसा कुछ नहीं । हमारे अन्नदाता तो बहुत भले इन्सान हैं । हमारे दयानिधि तो देश के प्रति अपने ऋृण से उऋृण होने के लिए आये है।‘ तोता राम ने आंखों में आर्द्रता का भाव छलकाते हुए कहा । ‘ तुम्हारी मौलिकता की दाद देनी पड़े गी । हर बार तुम स्टेनली को एक नया नाम दे देते हो और एक एक्सटरा इन्ंक्रीमेंट का जुगाड़ बना लेते हो । क्या नाम दिया है दयानिधि । इसे दयानिधि नहीं विष निधि या विष सागर कहो ‘ मधुसूदन ने मुंह बनाते हुए कहा | ‘ तुम कभी सकारात्मक नहीं होते । जानते हो स्टेनली तो अपना प्रकाशन संस्थान बेचने के लिए भी तैयार हो गया था परन्तु बात ही नहीं बनी ।‘‘ ‘ बात इस लिए नहीं बनी क्यों कि जो वह दे रहे थे , स्टेनली उस का दस गुना मांग रहा था । यह सब कर्मचारियों के लिए दिखावा था । और तुम समझते हो कि लाट साहब ने तुम्हें नौकरी दे दी और तुम भूखे मरने से बच गए । ऐसा नहीं है । वास्तव में काम तोे उसे मिला है । ज़मीन हमारी ,मेहनत हमारी और अधिकार उस का । देखना एक न एक दिनवह सब कुछ बटोर कर फुर्र हो जाए गा ।‘‘मधुसूदन ने उदास स्वर में कहा । उसे प्रायः लगता था कि उस के साथी उस की बात को गम्भीरता से नहीं लेते थे । उसे अन्तरमुखी कह कर टाल देते । और कभी कभी तो उसे लाल सलाम तक कह देते । लेकिन वे सब लाट साहब की अर्दल में लगे रहते । कुछ तो जुल्फी राम के भी पाले हुए थे । वह भी बराबर फीड बैक लेता रहता था । सब की निगाहें अब आकाश पर लगी हुई थीं । किसी भी समय हवाई जहाज़ गगल ऐयर पोर्ट पर उतर सकता था । स्टेनली के भारतीय पार्टनर जुल्फी राम ताजे फूलों का मोटा सा हार ले कर पहले ही वहां पंहुुच चुके थे ।
आदमी के हौसले को सलाम । कोलम्बस और वास्को डी गामा और ऐसे ही और कितने ही सिर फिरे, जिन्हों ने दुनिया का इतिहास ही बदल दिया । मध्यकालीन कवियों की कल्पना कितनी उर्वरा थी । सागर संतरण कर के नायक नायिका की प्राप्ति के लिए निकलता है और अपने पराक्रम के बल पर विषम स्थितियों पर विजय प्राप्त कर घर लौटता है । ऐसे ही जान कम्पनी के जान बहादुर भी कभी विजय अभियान पर निकले हों गे । 31 दिसम्बर, सन 1600 का दिन कैसा रहा हो गा जिसने विश्व का इतिहास ही बदल दिया | कई बार छोटे छोटे फैसले बड़े कारनामों का कारण बन जाते हैं । लन्दन के एक पार्क में बैठे चार पांच मित्रों के दिमाग में एक खुराफात आई । एक मित्र ने कहा- देखो, हम यहां तो बिल्कुल निकम्मे हैं । सुना है कि एशिया और खास कर भारत में बहुत सम्पन्नता है । क्यों न व्यापार के लिए उधर ही निकल जांए ? ‘बात तो सौ टके की है ।लेकिन यदि हम अपने रसूख से महारानी से अनुमति ले लें एशिया में व्यापार करने के लिए तो बात पक्की भी हो जाए गी और सहज भी ।‘ हेडली ने सुझाया । ‘ बिल्कुल ठीक ।हम कल ही अनुमति के लिए प्रयत्न करते हैं ‘। चार्ल्टन ने कहा । ‘ कमाई का कोई आसान तरीका ढूँढना चाहिए । यहां सर पटक पटक कर थक गए ।‘हेडली ने थके हुए स्वर में कहा । उन्होंने खूब मंथन किया और अन्ततः अपने मिशन ठगी ठोरी को अमली जामा पहनाने के लिए अंग्रेजो की टोली निकल पड़ी । धीरे धीरे सरकते हुए ये आगे बढ़ते गए और अपने पैर जमाते गए । बस फिर क्या था । ईस्ट इंडिया कम्पनी के पूर्वजों ने आकार लेना शुरु कर दिया था । व्यापारी कब शासक बन गए , जनता को पता ही नहीं चला और एक के बाद एक देश उन का उपनिवेश बनता चला गया । एक बार पांव जम गए, तो सैंकड़ों वर्षों का जुगाड़ फिट हो गया । ईस्ट इण्डिया कम्पनी से मुक्ति प्राप्त करने में कितना खून पसीना बहाना पड़ा ।और अब स्वतंत्र भारत में शोषण अब किसी और रुप में फिर लौट रहा था । पश्चिम के मुंह भारत का खून कुछ इस प्रकार लगा कि छोड़ते नहीं बनता । एक जान कम्पनी गई तो अब अमरीकी जान साहब आ गए खून चूसने । यह क्या विडम्बना है कि आर्थिक शोषण निरन्तर चलता ही रहता है । यह क्या बात बनी कि मैगजीन बन्द हो गई तो उस सेक्शन वालों को सड़क पर फैंक दो । स्टेनली का असली नाम अर्जुन था । उस के दादा लटकते फटकते बहुत पहले अमरीका चले गए थे । जैसा कि होता है उन्हों ने खूब संघर्ष किया और परिवार को स्थापित कर दिया । वर्षों तक वह भारत नहीं आए । इतना अवश्य था कि उन्हों ने जब भी किसी बच्चे की शादी करनी होती तो वे विज्ञापन के माध्यम से कोई न कोई रिश्ता ढंूढ लेते और समधियों को अमरीका बुला कर वहीं पर विवाह संस्कार सम्पन्न करवा देते । अर्जुन का जन्म अमरीका में ही हुआ था । वहीं पला बढ़ा , अतः उस के विचार रहन सहन अंग्रेजों सा ही था ा बड़ा हुआ तो उस ने अपना नाम अर्जुन से बदल कर स्टेनली रख लिया । पिता ने विरोध भी किया परन्तु अर्जुन को भारतीय नाम हरगिज पसंद नहीं था । वह इसे पिछड़ेपन से जोड़ता था । एक दिन वह इरोज़ नाम की युवती को अपने घर ले आया । घर वालों ने नाक भौं सिकोर्ड़ी परन्तु स्टेनली ने कहा - पापा ,आप को इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए । मैं और इरोज एक दूसरे को पसन्द करते हैं और जल्दी ही शादी करने का विचार रखते हैं ।इरोज दो चार दिन हमारे साथ रहे गी तथा माहौल को परखे गी। फिर अपना निर्णय करे गी । आप चिन्ता न करे वह मेरे कमरे में मेरे ही साथ रह ले गी । आप को परेशान होने की जरुरत नहीं । वह इरोज़ के साथ बहुत खुश था ।
वेे दोनों व्यवसाय से प्रशिक्षित पत्रकार थे । स्टेनली ने एमबीए भी कर रखा था । दोनो बोस्टन से सिटी न्यूज़ निकालने लगे, जो थेाड़े ही समय में खूब चल निकला । उस में प्रवासी भारतीयों पर विशेष सामग्री रहती थी । वैसे भी घर से दूर रहने वाले लोग प्रायः होम सिक्नेस से ग्रस्त रहते हैं और जब उन्हें पत्र पत्रिकाओे में अपने देश के बारे में या विदेश में रह रहे अन्य लोगों के बारे में सूचनांए मिलती हैं तो अच्छा ही लगता है । बोस्टन सिटी न्यूज़ की सफलता से उत्साहित हो कर एक दिन इरोज़ ने ही कहा - अर्जुन ,उसे स्टेनली की बजाए भारतीय नाम अधिक पसंद था , क्यों न हम भारत में जा कर तम्हारे पुरखों के प्रदेश में एक समाचार पत्र निकालें । हमें अनुभव भी है और हम कमाई भी खूब कर सकेंगे । स्टेनली को आइडिया भा गया। उस ने इस पर खोजबीन शुरु कर दी । और जल्दी ही कौड़ियों के भाव उसे जमीन मिल गई और एक बड़ा संस्थान आकार लेने लगा। आसपास के लोगों की आंखे खुलने लगीं । जुल्फी राम का काम पिम्प का सा था । कभी कभी वह पिम्प शब्द के बारे में सोचता, तो मन ही मन उसे घिन हो आती । परन्तु उस ने अपना जुगाड़ भी तो फिट करना था । लोगों को ललचाना और शानदार नौकरी का वायदा कर के उन से दुंगुना कम लेना । अखबार चलने लगा और स्टेनली की जेबें लबालब भरने लगीं । जो भी नया पछी फंसाना होता, उसे इमोशनल स्तर पर भी प्रभावित किया जाता । ‘देखो, स्टेनली, अमरीका से यहां आ कर यहां के लोगों के लिए रोजगार खोल रहा है । आप का फर्ज भी बनता है कि आप भी अपने प्रदेश की सेवा करें । इस पत्र को अपना ही समझें और इस का प्रचार प्रसार करें । और लोग थे कि अपनी फोटो छपवाने के लिए या अपनी कोई खबर छपवाने के लिए दीवाने हुए जा रहे थे । गली गली में संवाददाता हो गए । उन्हें वेतन तो कुछ देना नहीं होता था बल्कि उल्टे उन पर दवाब बनाया जाता कि वे विज्ञापन लांए ।धीरे धीरे ब्लैक मेल करने वाले संवाददाताओं की एक जमात ही तैयार हो गर्ह जो डरा धमका कर या प्यार से विज्ञापन का पैसा इकट्ठा करते और जान साहब यानि अपने आका को खुश रखते । इस प्रकार जल्दी ही पैसा बरसने लगा । कर्मचारियों ने जी तोड़ मेहनत की और स्टेनली-इरोज के खजाने भर दिए । काम का इतना जुनून कि दोनों बाल बच्चों समेत भारत में ही आ गए और वर्षों तक यहीं डटे रहे । फिर अचानक इरोज ने कहा - अर्जुन , हमें वापिस लौटना हो गा । ‘क्यों ?‘ ‘क्योंकि बच्चों की पढ़ाई की बात है । यहां तो ऐसे स्कूल हैं नहीं जो अमरीकी स्कूलों का मुकाबला कर सकें । पैसा खूब हो गया है। यहां किसी को दायित्व संभाल दो और आप अमरीका से इस का संचालन करो । ‘लेकिन कोई भरोसे का आदमी भी तो मिले ।‘ ‘जुल्फी राम को ही गांठ लो ।पहले भी तो सारे षडयंन्त्रकारी काम यही करता करवाता है ।इसे कुछ शेयर दे दो ।बंधा रहेगा।‘ ‘बात तो तुम्हारी ठीक है । ‘ और काम बन गया था । जुल्फी राम तो चाहता ही था कि उस के हाथ में पावर आए और वह अपने रिश्तेदारों को स्टाफ में भर ले । इस बार ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लोग अमरीका से आए थे और लूटपाट कर के वापिस जाने की तैयारी में थे क्यों कि अब उन का इधर उधर से आया पैसा सफंेद नहीं हो रहा था ।सरकार ने बहुत से ऐसे कानून बना दिए थे कि सारा लेनदेन चैक के माध्यम से होता था । बोरियों में भर कर पैसा रखने की गुंजायश नहीं थी । आधार और पैन ने भी नकेल कस दी थी । और हर तीन महीने बाद उसे अमरीका से भारत आना पड़ता था । बूढ़ी हड्डियां भी कड़कने लगी थीं । वह संस्थान परिसर में पहुंचा ही था कि कुछ कर्मचारियों ने चिल्लाना शुरु किया - स्टेनली ,हाय हाय ।हमें सरकारी वेतनमान के हिसाब से हमारा बकाया दो । हमारा सात साल का बकाया दो । स्टेनली,हाय हाय । जुल्फी राम हाय हाय । जुल्फी राम मन ही मन खुश हो रहा था कि यदि स्टेनली छोड़ छाड़ कर चला जाए तो संस्थान पर उस का कब्जा हो जाए गा । परन्तु स्टेनली के मन में तो कुछ और ही था । उस ने सभी कर्मचारियों को बुलाया और कहा - अब यह प्रकाशन का बोझ मुझ से नहीं ढोया जाता । कल से अंग्रेजी सेक्शन बन्द कर दो । आप जहां चाहांे नौकरी ढूंूढ लो । आप को बढ़िया सिफारिशी चिट्ठियां हम देंगे ।‘ ‘नहीं ,नहीं । हमें चिटिठयां नहीं काम चाहिए । हमें दूसरे अखबार में एब्जार्ब करो नहीं कर सकते तो जो बीस साल में हम ने आप के लिए कमाया है, उस में से हमें हमारा हिस्सा दो ।‘ ‘ हां, हां, हमारा हक हमें दो ।‘ ‘आप का हक आप को मिले गा । उस से कौन इन्कार कर सकता है लेकिन परिस्थितियां ही कुछ ऐसी बन गई हैं कि कारोबार बन्द करना पड़े गा । कसूर मेरा नहीं लेकिन यहां सरकारें गिरगिट की तरह रंग बदलती हैं । आप मुझे दो दिन का समय दो । फिर बैठ कर बात करें गे । जुल्फी राम जी भी कुछ सोचें गे । आप निश्चिन्त रहें|’ स्टेनली के मन में चल कुछ और ही रहा था - यहां से माल्या, मोदी जैसे करोड़ों रुपया ले कर भाग गए और और सरकार कुछ भी नहीं कर सकी । बच निकलने के लिए यही रास्ता क्यों न मैं भी ,उस के मन में यह कौंध आई । अखबार के गेट पर कर्मचारियों की हाय हाय सियापे का सीन क्रियेट कर रही थी निरन्तर । मधुसूदन जानता था कि इस योजना के पीछे भी पिम्प का ही दिमाग काम कर रहा था । उस ने अपने साथियों से कहा- यदि हम अब पीछे हट गए ,तो हमारे हाथ कुछ भी नहीं आए गा । ‘फिर क्या करें ? दो दिन इन्तजार करें ?‘एक साथी ने प्रश्नवाचक दृष्टि में कहा ।‘फिर तो इन्तजार ही करते रह जाओगे । लुहार का हथौड़ा सही समय पर ही चलना चाहिए । यदि बाद में इसे हवा में घुमाते फिरो गे, तो अपनी ही हड्डियां तुड़वाओ गे ।‘ ‘सुना है वह तो निकल गया बहाना बना कर|' ठाकुर ने कहा । ‘ वह तो यहीं बैठा है, जो हमें बुला बुला कर लाया था, बड़े बड़े वायदों के साथ ।‘ मधुसूदन ने अपने मन की बात कही । उन्हें समझ आ गया था कि अब क्या करना था । तोता राम के हाथ में तला और चाबी थी और वे सब हर हर जुल्फी, बस अब कर कर जुल्फी, नही ंतो मर मर जुल्फी का शंखनाद करते हुए संस्थान के प्रथम तल पर चढ़े जा रहे थे, जहां वह अपने कमरे में दुबका बैठा था । गिद्ध तो चिड़ियों के झुण्ड पर पहले ही झपट्टा मार कर उड़ गया था ।