जापानी काव्य-शैलियों की विशिष्ट कृति- तीसरा पहर / शिवजी श्रीवास्तव
तीसरा पहर (ताँका-सेदोका-चोका संग्रह) : रामेश्वर काम्बोज' हिमांशु मूल्य-100 / -, पृष्ठ: 80, संस्करण-2020; प्रकाशक-अयन प्रकाशन, 1 / 20, महरौली, नई दिल्ली-110030
श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' का नवीन काव्य संग्रह 'तीसरा पहर' जापानी काव्य-शैलियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है जिसमें 150 ताँका, 132 सेदोका एवम 44 चोका संकलित हैं। जापानी काव्य-शैली हाइकु हिन्दी-जगत् में पूर्णतः प्रतिष्ठित विधा है, किन्तु ताँका और सेदोका से हिन्दी पाठक अपेक्षाकृत कम परिचित है, इस दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण कृति है, इस कृति से पाठक को इन काव्य-रूपों का परिचय मिलता है। हिन्दी साहित्य-जगत् इस बात से परिचित है कि श्री काम्बोज जी जितने श्रेष्ठ साहित्यकार हैं, उतने ही श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धनी हैं। व्यक्ति रूप में अत्यंत उदार, सहृदय एवं भावुक प्रकृति के हैं, ये प्रकृति उनके काव्य में भी प्रतिबिम्बित होती है। इस काव्य-संग्रह में उनकी भावाकुलता, सामाजिक मूल्यों / आदर्शो के प्रति प्रतिबद्धता, समाज में बढ़ती स्वार्थपरता, प्रेम के ऐकांतिकआदर्श प्रेम से आध्यात्मिक प्रेम तक की यात्रा जैसे अनेक विषयों की रचनाएँ संकलित हैं।
कवि स्वाभाविक रूप से भावुक एवं संवेदनशील होते हैं, संवेदना जितनी सघन होती है, वेदना की अनुभूति उतनी ही तीव्र होती है, इसी वेदना से कविता का सर्जन होता है...काम्बोज जी भी प्रकृति से अत्यंत सहज एवं भावुक हैं। 'तीसरा पहर' में उनकी सहजता, भावाकुलता एवं वेदना की सघन अनुभूति को सर्वत्र देखा जा सकता है, कवि की वेदना प्रथम ताँका में ही अभिव्यक्त हो जाती है-'किसे था पता / ये दिन भी आएँगे / अपने सभी / पाषाण हो जाएँगे / चोट पहुँचाएँगे।' ...कवि की पीड़ा यह भी है कि उसे संसार में सदा ही छला गया है-'नींद से जगे / सपना टूट गया / कल जो मिला / पल में रूठ गया / अपना कहें / हम किसको भला / साथ जो चला / उसने ही था छला...' (चोका-सपना टूट गया) ।
कवि ने अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए शिल्प अवश्य जापानी चुना है; पर भाव-भूमि एवं चेतना विशुद्ध भारतीय है। उदात्त भारतीय चेतना से संचालित कवि का अंतस् दर्द देने वालों को भी प्रेम ही देता है-'वे दर्द बाँटें / बोते रहे हैं काँटे / हम क्या करें? / बिखेरेंगे मुस्कान / गाएँ फूलों के गान।' उनकी समस्त रचनाओं में इस उदात्त प्रेम एवं परोपकार के भाव को देखा जा सकता है। उनका स्पष्ट कथन है-'ओ मेरे मन / तू सभी से प्यार की / आशा न रख / पाहन पर दूब / कभी जमती नहीं।'
स्वार्थी जगत् के मध्य कवि का आकुल मन सच्चे प्रेम की खोज में है, यह तलाश पूर्ण होती भी है-'थके पाँव थे / दूर-दूर गाँव थे / सन्नाटा खिंचा / लगा कुछ न बचा / कि आप मिल गए।' ...
कवि की दृष्टि व्यापक है। उन्हें लगता है-सांसारिक सम्बन्ध जहाँ 'लेन-देन' के व्यापार से संचालित है, वहीं प्रकृति एवं मूक प्राणी निःस्वार्थ एवं आत्मीय भाव से मनुष्य के साथ जुड़े हैं, 'दो बूँद जल / कटोरी का हैं पीते / बैठ मुँडेर / मधुर गीत गाते / शीतल कर जाते / ' ...तथा-'नीम की छाँव / जोड़ लेती है रिश्ता / उतरे जब / जीवन-पथ पर / शिखर दुपहरी।' ...कवि की दृष्टि में सृष्टि में मानव से इतर सारे प्राणी अपने साथ किए उपकार के प्रति कृतज्ञ भाव रखते हैं-'पक्षी चहकें / आकर नित द्वार / रिश्ता निभाएँ / मुट्ठी भर दाना पा / मधुर गीत गाएँ।'
'तीसरा पहर' की समस्त रचनाएँ आकुल मन की व्यथा, वेदना एवं आत्मिक प्रेम की खोज की भाव-भूमि पर रची गई रचनाएँ हैं, जिनमें सांसारिक स्वार्थपरता एवं छल-प्रपंच से उपजा आक्रोश भी है; किन्तु कवि निराश नहीं है, उसके अंतस् का भाव सकारात्मक है-'आग की नदी / युग बहाता रहा / झुलस गया प्यार / वाणी की वर्षा / सबने की मिलके / हरित हुई धरा।' ...
भाषा एवं बिम्ब की दृष्टि से भी यह एक उत्कृष्ट काव्य-कृति है। कवि ने सर्वथा नवीन उपमान चुने हैं-यथा-'मन अधीर / द्रौपदी के चीर-सी / बढ़ गई है पीर / डूबी है सृष्टि / मिला न कोई छोर / तुम्ही जीवन डोर।' ...इसी प्रकार रूपक से युक्त बिम्ब एवं भाषा का एक चित्र दृष्टव्य है-'मन-पाटल / झरी हर पाँखुरी / शूल ही बचे / धूल-भरी साँझ हस / अब कोई क्या रचे।' ...
'तीसरा पहर' की हर रचना अनुपम है, संक्षिप्त समीक्षा तो सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। सम्पूर्ण कृति का रसास्वादन उसके समग्र पाठ से ही सम्भव है। निःसन्देह साहित्य के इतिहास में 'तीसरा पहर' जापानी काव्य-शैलियों की एक विशिष्ट कृति के रूप में रेखांकित की जाएगी। -0-