जाल-खोड़ा / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

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भादोॅ के महीना, सिंह नक्षत्र के उसनलो बेरा। एक टीला पर पीपल के बचकानी गाछ। ओेेेेकरा आढ़ी में थकथकाय के बैठलो एक निमोछा आरो जूआनी के पहिलो सीढ़ी पर चढ़ली अनाड़ी। कुछ इदिर-बिदिर बतियाबै आरो रही-रही एक दोसरा के घाम पोछै मेॅ रमलो, नदान जोड़ी।

दुनिया सैॅ एकदम बेखबर। टीला के ठीक बगल के खेत मेॅं कमियां जानकी अधकचरोॅ सीता धान कपचै ले हाँथ भिरैने रहै कि दोनो युगल जोड़ी पर नजर पड़ी गेलै। उताबली होय कैॅ गौर सैॅ मने-मन छो-पाँच करे लागलै। लागै छै दोनों भाई बहिन छीकै। लेकिन नय, भाय बहिन रहथियै ते छौडबा ऐना केॅ गुदगुदी नय लगैथियै। ज़रूर कुच्छू बात छै। साली-बहनोय हुए पारै। मतर नय हेत्ते कम उमर के छौड़ा से इ जमाना में के बीहा करतै। ज़रूर भगौड़ी होतै। दोनों माय-बाप के सोहदा बच्चा लागै छै। इ तनीगो छौड़ी कैॅ की सूझलै जे पढ़ाय-लिखाय छोड़ी के है रौदा-बतासी में मातलौॅ फिरै छै।

संयोग से जानकी के नाकी में धानों पत्ता के नोक घुसी गेलै आरो तड़तडाय के तीन-चार दफे छींक्की देलकै। छींक सुनथै छौड़ा अकबकाबे लागलै। जानकी पर नजर पड़लै आरो चुत्तर झारने कलैॅ-कलेॅ ससरी गेलै। जानकी लाल बुझक्कर रहै। आबे उ अट्टकरे रमबतिया गॅ-रमबतिया गॅ गरजने गाछी तर आबी गेलै। हे देखो इ ते दोसरे नूनुआ छीकै भाय। हम्मैॅ सोचलौ हमरा पीछू-पीछू रमबतिया आबी के नुकैली छै। लड़की केॅ जान-मैॅ जान अैलै।

कहलकै नय हम्मे रमबतिया नय हमरो नाम मालती छीकै। यहाँ बगल बाला गाँव में हमरोॅ घोर छै।

बगल बाला गाँव में? केकर बेटी छीखोॅ।

सहदेव के. ... सहदेव के ... हम्हूँ यहाँ गाँव के छीकियै। 50-55 घोर के टोला छै। सहदेव नाम के तैॅ कोय नय छै। अच्छा बताभो तैॅ उ गामौॅ के की नाम छीकै?

गोपालपुर।

नय हौ गाँव के नाम ते पटेल नगर छीकै। अथी... की नाम बतैल्हो आपनो।

मालती। हों ते मालती तोय कहीं भुतलाय ते नय गेलोॅ। अकीं दीक लागी गेल्हौं तोरा, सच्चा-सच्चा बताबो।

किज्जन गेलिए. हमरा कुच्छू समझे में नय आबै छै।

अच्छा हौ देखो ते एकटा लड़का जाय रहलौॅ छै। एकदम चौकन्ना होय केॅ जाय रहलो छै। घुरी-घुरी हीन्हौ ताकै छै। उ तोरहै तेॅ नय खोजै छौन। मालती ठोरो पर अंगुरी ससारे लागलै। ...

मगर जानकी फेरू ओहा बात दोहराय देलकै। आबरी मालती लजबंती नांकी बोललै-भाक! उ ते प्रभतबा छीकै। स्कूल में प्रभात कुमार लिखै छै।

तोंय केना जानल्हो कि उ प्रभात छीकै।

एक्के स्कूल में एक्के साथें पढै छीयै। ओकरै चलतें ते बौखी रहलो छीयै। उ तेॅ अखनी एन्ठैं से गेलौ छै।

जानकी के एक तीर में मालती, सबकुछ सच्चा-सच्चा उगली देलकै-घोर-द्वार, प्यार-मुहब्बत, लालच, सपना, धोखा, डर, लाज ... पश्चाताप एकाएक सबकुछ मालती के बचकानी दिमाग में चक्कर काटे लागलै आरो बात निकल्लो गेलै।

जानकी एकटक मालती के ताकतें रहलै, आरों आपनो जीवन के कहानी केॅ मालती के कहानी से मिलान करते रहलै। प्यार-मुहब्बत, लालच, सपना, धोखा, डर, लाज ... पश्चाताप। अनायास कचिया के बेंट पर मुठ्ठी कसाय गेलै, जालिम रोहण।

जानकी जल्दी चेती गेलै। मालती के उसकैलकै, नूनू गरजी के बोलाय ले प्रभात के, नय तैॅ रूकै ले कहो आरो तोय मनगरी साथें घौॅर चल्लौॅ जा। मतर दोहराय के एहनों गलती नय करिहौॅ। जों तनटा ठहरथियों ते तोरा बतैथियौन कि है सब करला से केना के कैसन-कैसन तबाही होय छै। लेकिन तोंय अखनी मनगरी घौॅर जा।

पता नय मालती की सोचलकै। नय तैॅ प्रभात कैॅ गरजलकै, नय ओकरा पीछू गेलै। उ तैॅ जानकी के खिस्सा सुनाबै लेॅ छानी मारलकै। धोखा के आगिन में सिझली जानकी हकलकै। ऐन्ठां बैठी के खिस्सा करला सैॅ हमरौॅ काम नय चलतै बेटी. हमरा घर के अनाज पानी ओराय गेलोॅ छै, यहाँ लेली हम्मे तेॅ कच्चे धान कतरै लैॅ अैलो छीयै। एकरा से चूड़ा, चाउर बनाबै के जोगाड़ करबै। तोय जा। बढ़िया सैॅ पढ़ो लिखो, कमाबो-खा। फेरू है सब तैॅ समय पर होबै करतै।

मालती आभियो आपनो जिद्द पर सती-सावित्री के तरह अढलौॅ रहलै। आखिर जानकी ओकर मुठौनो आरो सुनै के भूख देखी कैॅ मात खाय गेलै। मालती केॅ धान खेत के कचरस अड्डा पर बैठाय कैॅ धान कतरे लागलै आरो सुनाबे लागलै आपनौॅ बीतलका प्रीत-जाल-कथा।

नूनू है सब जे तोंय करी रहलो छो, हेकरा मेंॅ तोरो कोय गलती नय। जिलाहा सब लोग यहा रकम जाल-खोड़ा पढ़ाबै छै, आरो सबकुछ अनजान्है होय जाय छै। एक समय रहै हम्हूँ तोरे नाकी खेलै धूपै रहीयै। अचानके गाँमो के मड़र के छोटका बेटा रोहण। हमरा लींगां आबी कैॅ हमरो खूब बडाय करै लागलै। हमरा साथ खेलै बाली सख्खी सहेली के नीमचूस-चाँकलेट बाँटलकै। हमरा तन्टा लगाय के हाँथों में थम्हाय देलकै। पहिलोॅ दफे मड्ड़र के छोटका बेटा देने छै यहा लेली नै चाही कैॅ भी खैलियै। यहा रकम खेलै के बेरा मेॅ रोजे खम्हारी पर आबी जाय आरो हमरा सनी कैॅ हियैते रहै। कभी कुच्छू बोलै, तेॅ कखनू दाँत निपोड़ै। हम्मेॅ सनी ओकर मनौॅ के बात नै बुझे पारलियै। एक दिना हम्में माय के साथें गोबर ठोकै छेलियै ते उहा गल्ली देके हमरा ताकने

दू-तीन फेरा लगाय देलकै। एक दफे नजर पड़ी गेलै ते हम्हंू मुसकी देलियै।

आबै की बतैयो नूनू, रोहण जन्ने-तन्नेे हमरो पीछू पड़ी गलै। हम्मैॅ भीतरिया बात नै समझे पारलिये, मतर मड्ड़र के बेटा हमरा ऐत्ते मानै छै, है देखी केॅ हम्हूँ पगलाय गेलियै। एक दिना फुसलाय कैॅ उ आपनोॅ बासा पर ले गेलै आरो बात-बात में देह-गात छूबी दै। कखनू हाँथ ससारे लागलै। हमरा गुदगुदीयौॅ लागै आरो सुसूत भी,। एतने नय नूनू उ हमरा चुम्मा ले लेलकै। तखनी हम्में भागी गेलियै।

मालती लजाय के हाँसी देलकै, सबटा हमरे खिस्सा । कही के गुम साधी लेलकै।

हों तेॅ सुनो नी दोसर दिन सूना में रोहन हमरो घरौॅ कैॅ टटिया खोली कैॅ डूंकी गेलै। हम्मेॅ असकल्ले बैठी कैॅ लिखना लिखै छेलियै। ओकरा देखथै देह शिल्ल होय गेलै। रोसनाय उल्टी गेलै। रोहण अंगेठी ले के बोललै-की करमैॅ मालती पढ़ी केॅ। हम्मैॅ तोरा आपनों घरोॅ के रानी बनैबौ।

हम्मैॅ बात बुझी गेलियै। हाँथ जोड़ी केॅ ओकरा जाय ले कहलिए. रोहण चल्लौॅ भी गेलै मतर हमरा सताय कैॅ आरो...!

जानतै तेॅ माय की कहतै, इ सब सोची कैॅ हम्मेॅ डेराय गेलियै। भीतरे-भीतर रोहण पर गुस्सा भी आबै आरोॅ।

मतर हम्मैॅ ओकर बिरोधी कम समर्थक ढेर होय गेलिए. बड़का घौॅर कैॅ रानी बनै कैॅ सपना देखै लागलियै। आबे की बतैयोॅ नूनू-माय कहै साँझ देलै ते पाँचो काठी बारला पर दीया नै बरै। पानी लाने कहै तैॅ मेटिया ससरी कैॅ फूटी जाय। रोटी पकाय लैॅ कहै तेॅ रोटी जरी जायै। फुल गंूथै लैॅ कहै तेॅ अलगै बखेड़ा। है सब देखी केॅ हमरी सुध्धी माय, हमरा गरियाबै लागलै। लागै छो मोन सनकी गेलौ की, कहाँ धियान रहै छौ जे मेटिया फोडलें, रोटी जरैलें। की बात छै। कोय छौड़ा माँथौॅ पर सवार छौ की। मोन लगाय कैॅ काम-धन्धा कर। मालती ... उ दिना हमरा लागलै बड़ौॅ आदमी केॅ सात कोस धरती आरो बेटी की-की करती ई लक्षण सैॅ जानी लै छै। माय धोपी के रही गेलै। हमरा काटोॅ तैॅ खून नय। एकदम अचेत। इ बीच के दफे रोहण सूना पाबी के अैतेॅ रहलै सपना मेॅैॅ रानी के पूछे महरानी तक बनाय देलकै।

थोड़े दिन बाद हमरा उल्टी होय गेलै। माथोॅ घुमे लागलै। माय तेल-कुर लगाय के सुता देलकै। दू दिन बाद फेरू उलटी होय गेलै। आबेॅ माय चिन्ता मेॅ पड़ी गेलै। हमरा कुछ टेरे नय लागै कि कहिने उल्टी होय छै। आखिर माय हमरा सेॅ वकील नाँकी पूछी कैॅ आपनोॅ संका के

सामाधान करी लेलकै। हम्हूँ सच्चा-सच्चा राम कहानी माय केॅ बताय देलियै। माय गारी देके फैसला सुनैलकै कि-तोंरा पेटों में रोहणा के बच्चा छौ...गे छिछियैली...!

मालती टपकी गेलै-पेटौॅ मेॅ बच्चा? ।

हमरा पेटोॅ मेॅ बच्चा? ... है केना होतै माय? ...

माय गरियैनेॅ गेलै आरो 'केना' के जवाब देने गेलै।

बात बुझी केॅ हम्मैॅ सरसरैली रोहण केॅ घोर पर चल्लो गेलियै। रोहण घोर से निलल्लो आबै रहै। दूआरी पर हमरा रोकी के आबै के कारण पूछै लागलै। हम्में कानेॅ लागलियै।

की बात छै? कोय मारलकौ की? रोहण हांथ पकड़ी के पूछे लागलै।

चलो! भीतर चलो तबे बतैभौन कि की होलै हमरा।

यहीं बोल नी! ... पहिनें भीतर चलो।

अरे नय गे, भीतर नय! तोय नय बुझम्हैं।

हम्मे पहिनें भले कुच्छू नय बुझै रहियै, मतर कि आबे ते तोय हमरा सब कुछ बुझाय देल्हों।

सब कुछ बुझाय देल्हों, की मतलव?

मतलवे तेॅ बताबै लैॅ अैलो छीयै। पहिने बैठो नी कन्हैं। तबताय रोहन के माय आबी गेलै। गोड़ लागी कैॅ कहलियै हम्मैॅ आपने कन काम-धन्धा खोजै लैॅ अैलो छीयै।

कहा घौॅर छीकौ।

रोहण जानै छै। ... धौ एहा माली टोला के छीकै।

ओ! ते तोंय जानै छै? ... हों।

अच्छा तैॅ तोय तेरो-चौदे सालोॅ के बेनाठी गो जोंत कोंन काम-धन्धा करमें । सींखत सींखतें सब सीखी लेबै।

भीतरे भीतर रोहण केॅ अच्छा लागै आरो शंका भी। आखिर बीच मेॅ टांग अड़ाय देलकै। मैया कैॅ कहलकै कि माय तोंय जो हम्में बात करी लै छीयै। मैया भी लालबुझक्कर रहै। ओकरा भी दाल मॅ काला लागलै। कहलकै जो तोय आय सैॅ हमरा कन रहें, तोरा खाना-पीना, कपड़ा-लत्ता, तेन-साबून सब देबौ।

तोय खाली रोहण के घोॅर के साफ-सफाई आरो इ जे काम बतैतो ओतना टा करिहें।

माय के अनुमति मिलथै रोहण आपनो घोर ले गेलै आरो कहलै-की बात छै साबो। आय केना केॅ चाँद दिनों में निकली गेलै।

यहा लेली कि चाँद के जिनगी में अन्धार आबै बाला छै।

मतलब? ... मतलब यहा कि हमरा पेटौॅ मेॅ तोरो बच्चा छटपटाय रहलो छै।

हमरो बच्चा? ... हों तोरो बच्चा। तोंहे हमरा आपनोॅ रानी बनाबै ले चाहै रहो नी। हमरा फुसलाय के की-की नतीजा करी देल्हो हमरोॅ। ले आबी गेलै रानी। रोहन केॅ ठगमुरगी लागी गेलै। सब ठीक होय जैतै, घबराबै के बात नै छै, एतना बोली के माय-माय गरजने बाहर निकली गेलै।

पता नै माय बेटा फुसुर-फुसुर की बतियैलकै। रात केॅ खाना मिली गेलै। रोहन साथें रहलै। बच्चा कैॅ मारै के दबाव बनाबे लागले। हम्मैॅ नकारी केॅ कानें लगलिए. दोसरोॅ दिन तन्टा सनकल हरकत देखी के हमरा जान के खतरा लागलै। हम्मैॅ है सब बात आपनों माय सेॅ पूछी कैॅ आबै के बहन्नॉ चल्लो अैलियै। गाँव के लोग कैॅ भनक लागी गेलै। माय जग हसाय के गम में दम तोड़ी देलकै। हमरो तन-मन पत्थर के बनी गेलै। पड़ोसी दादी हमरोॅ दरद के समझी के साथ देलकै। रोहण के बेटा झोपड़ी में जनम लेकॅ जुआन भेलै।

आय हम्में दादी बनी गेलों। रोहण अैतेॅ-जैतेॅ देखै छै आरोॅ मुड़ी झुकाय लै छै मतर हम्मे छाती तानी के जीयै छियै।

हमरो नासमझ केॅ कहानी यहीनेॅ छै नूनू। आबे तेॅ ज़रूरत लायक धान भी कपची लेलियै।

दादी हो, है ते आपने डेराबै बाला कहानी सुनाय देलियै। यहा सब हमरा साथ भी होय रहलो छै, कहते-कहते कानैॅ लागलै मालती । हम्मे बूझै छीया बेटा। अनजान के गलती, गलती कहलाबै छै आरो जानी बुझी के गलती करबोॅ दुख के कारण बनै छै। बस! आयको बाद होस सम्भारौॅ। इ सब ठकहरा के फेरा मेॅ मत पडा़ेॅ। जा घोर जा! पढ़ो लिखो, आवाद आरो आजाद रहो।

हमरा डोर लागै छै, तन्टा घॅोर पहुँचाय दा दादी। प्रभात रस्ता मेॅ ज़रूर हमरो असरा देखै होतै। सनकी छै, कहीं उहा सब करी देतै ते मरीये जैबै।

तेॅ एक काम करोॅ। हमरा साथें चलों। धान रक्खी कैॅ बेर-सबेर तोरा पहुँचाय देभौन। वहा होलै भी। एक नान्हों जिनगी बर्बाद होय सैॅ बची गेलै। दरद के जाल तार-तार होय गेलै