जाल / सुरेश सौरभ
दरोगा-साहब जी वे सब मान नहीं रहे हैं। कह रहे हैं उनकी बेटी के साथ दुष्कर्म हुआ है। रिपोर्ट लिखी जाए।
बड़े साहब-देखो ऐसा है हमने तुम्हें अभी तक इसलिए रोक रखा है, क्योंकि हमारे ऊपर प्रेशर बहुत है। हमें ऊपर से आदेश मिला है कि इस केस में मंत्री जी के कुछ लोग शामिल हैं, इसलिए उन्हें हर हाल में बचाना ही है।
दरोगा-तो हम क्या करें साब! जी।
बड़े साहब-उनसे तहरीर ले लो। सबसे पहले उन्हीं के घर के चाचा ताऊ आदि को उठा लो।
दरोगा-फिर क्या करें।
बड़े साहब पुतलियाँ नचाकर-फुर्र कर दो उन फटीचरों को। ... अरे यार! फिर क्या करना है उनका, तुम ख़ुद इतने समझदार हो। तुम्हें भी यह बताना पड़ेगा?
दरोगा-जी साब!
दरोगा जी बड़े साहब की हर बात को मानना अपना राष्ट्रधर्म समझते थे, अगर न माने तो उनकी नौकरी पर बन आए। दुष्कर्म पीड़िता के रिश्तेदारों को शक के आधार पर रात में उठा लिया। उनकी ख़ूब सेवा-पानी की।
फिर ख़बर छपी-फलां तथाकथित दुष्कर्म पीड़िता के परिवार वालों ने अपनी शिकायत वापस ले ली। राजनीतिक रंजिश के कारण पीड़िता के परिवार वालों ने झूठी शिकायत की थी। पुलिस के विशेष जांच दल ने जांच करने पर यह पाया। पुलिस के समझाने-बुझाने पर उन लोगों ने अपनी झूठी शिकायत वापस ले ली।