जासूस कथाओं की पहली फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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जासूस कथाओं की पहली फिल्म
प्रकाशन तिथि :02 अप्रैल 2015


निर्माता आदित्य चोपड़ा के लिए फिल्मकार दिबाकर बनर्जी ने सुशांत सिंह राजपूत, स्वास्तिका मुखर्जी एवं दिव्या मेनन अभिनीत "डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी' नामक फिल्म बनाई जो 3 अप्रैल को प्रदर्शित होने जा रही है। दशकों पूर्व शरदेन्दु बन्धोपाध्याय ने जासूस ब्योमकेश बक्शी का पात्र रचा था और बंगाल में यह पात्र किवंदती बन चुका है। इससे प्रेरित कुछ फिल्में बंगाली भाषा में बनी हैं। सत्यजीत राम भी इस पात्र के प्रशंसक रहे हैं। इस फिल्म में कॉलेज से निकले युवा ब्योमकेश को एक खतरनाक मुजरिम को पकड़ना है, जो विश्व शांति के लिए खतरा है। फिल्म की पृष्ठभूमि दूसरे विश्वयुद्ध के समय का कलकत्ता है। उस दौर को विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत करने के लिए बहुत साधन व धन की जरूरत पड़ती है और यशराज फिल्म एक समर्थ संस्था है। दिबाकर बनर्जी बहुत प्रतिभाशाली हैं और उनसे दर्शक 'खोसला का घोंसला' से परिचित हुए। उनकी 'शंघाई' भी बहुत चर्चित फिल्म रही। गौरतलब है कि सन 1947 के समय भी बी.एन. सरकार की न्यूथियेटर्स के विघटन के बाद बिमल रॉय, ऋषिकेश मुखर्जी, असित सेन इत्यादि मुंबई आए और हिन्दुस्तानी में उन्होंने अनेक महान फिल्म रचीं। आज के शूजित सरकार, दिबाकर बनर्जी, सुजाय रॉय इत्यादि न्यूथियेटर्स से आए लोगों से अलग अपनी निजी व आधुनिक शैली लेकर आए हैं और इसी तरह का अंतर पुराने दौर की सुचित्रा सेन और आज की बिपाशा इत्यादि में भी देखते हैं। साथ ही यह भी गौरतलब है कि बीच की पीढ़ी की शर्मीला टैगोर, राखी तथा मौसमी चटर्जी भी अलग तेवर से प्रस्तुत हुईं।

बहरहाल, अंग्रेजों ने सबसे पहले कलकत्ता में जड़ें जमाई और अंग्रेजियत का प्रभाव तब से ही बंगाल में रहा है। परन्तु हर बंगाली का पहला गर्व बंगाली होना है, यहां तक कि उनका सिनेमा भी कुछ समय तक मुंबई और चेन्नई के सिनेमा से अलग रहा है। सत्यजीत रॉय, रितविक घटक, मृणाल सेन की फिल्मों को पूरी दुनिया ने सराहा। बंगाल के लोगों को रवीन्द्रनाथ टैगोर और काजी नजरूल इस्लाम पर बहुत गर्व रहा है। सचिन देव बर्मन का गीत 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई' फिल्म 'मेरी सूरत तेरी आंखें' की धुन काजी नजरूल की है। बहरहाल, विगत दो दशकों में बंगाल का सिनेमा बदल चुका है। वहां आज भी कुछ लोग सार्थक फिल्में बना रहे हैं। परन्तु अधिकांश फिल्में मुंबइया मसाला फिल्मों की तरह है। इस कालखंड में घटियापन ही वह धागा है, जो सब क्षेत्रों और शहरों को जोड़ता है।

अंग्रेजी भाषा में जासूसी उपन्यासों की परम्परा बहुत ही पुरानी है और उसका असर अनेक देशों के जासूस साहित्य पर हुआ है। आर्थर कॉनन डॉयल डॉक्टरी पढ़ते थे और उनके एक शिक्षक अपने सूक्ष्म अवलोकन से नतीजों पर पहुंचते थे, जैसे एक दिन देर से आने वाले छात्र के जूते की नोक पर कीचड़ का अंश देखा और कहा, तुम फलां इलाके से आ रहे हो, जहां बारिश हो रही है। आर्थर कॉनन डॉयल ने इसी शिक्षक को आधार बनाकर अपने पात्र शरलक होम्स की रचना की और वह उपन्यास शृंखला इतनी प्रसिद्ध हुई कि शरलक होम्स के पते पर दुनियाभर से पत्र आते थे। ब्योमकेश बक्शी की प्रेरणा शरलक होम्स हैं, परन्तु वह उनकी हूबहू नकल नहीं है, उसका बंगाली होना ही उसे मौलिक बना देता है। आर्थर कॉनन डॉयल से कहीं अधिक बेहतर लेखिका अगाथा क्रिस्टी थीं, जिनकी दो शृंखलाएं थीं - एक में बेल्जियम का पायरो जासूस था और दूसरे में उम्रदराज मिस मारपल जासूस थीं। यह भी मुमकिन है कि अनुराग बसु ने पायरो और मिस मारपल को युवा बनाकर संगीतमय 'जग्गा जासूस' रची हो जिसमें रनबीर कपूर और कटरीना कैफ अभिनय कर रहे हैं।

बहरहाल, मनोरंजन जगत में विगत तीन माह से नैराश्य छाया है और सिनेमाघरों के मालिक एक अदद सफल फिल्म के लिए पलक पांवड़े बिछाए बैठे हैं। इस फिल्म का निर्देशक और नायक अत्यंत प्रतिभाशाली हैं, अत: उम्मीद है कि यह सफल होगी।