जिंदगी की गाइडबुक / विनीत कुमार
"फेंक दो न रागिनी इस गाइडबुक को? क्या करोगी रखकर? तुम्हें नहीं पता कि एन्ड्रायड फोन को कैसे हैंडल करते हैं, वेवजह सामान बढ़ाने से क्या फायदा?"
"नहीं रघु, इसे अपने पास रखते हैं। सोचो तो सही, मोबाईल बनानेवाली कंपनी अपने मोबाईल को कितना बेशकीमती समझती है? हम कहते हैं हमारी जिंदगी दुनिया की सबसे कीमती चीज है लेकिन हमारे पास कोई भी ऐसी गाइडबुक है जिसे पढ़कर हम समझ बढ़ा सकें कि हम इसे कैसे चलाएं लेकिन देखो मोबाईल की है।"
"ओह रागिनी, तुम तो राजपाल यादव जैसी बातें करने लगी।"
"मतलब?"
"मतलब ये कि राजपाल यादव ने चुटकुला सुनाया था। एक बार एक ग्राहक से केलेवाले से कहा। मैं रिलांयस से ज्यादा अमीर हूं। ग्राहक हंस दिया। केलेवाले ने कहा- अच्छा बता मेरा एक केला कितने का ? ग्राहक ने कहा- दो रुपये का। और रिलांयस की एक कॉल? चालीस पैसे की। तो बता कौन अमीर ज्यादा हुआ? रागिनी तुम यूपीएससी के बाद इन दिनों कल्चरल मैटिरियलिज्म पढ़ने लगी हो क्या?
"हां रघु। दुनिया के बारे में अपनी समझ बढ़ाने के लिए। एक तरह से कहो तो सालों से विचारधारों और सामाजिक प्रतिबद्धता के तर्कों को झूठलाने के लिए। उससे दूर भागने के लिए। अपने उन वादों को तोड़ने के लिए कि हम दो सलवार सूट में काम चलाएंगे लेकिन दुनियाभर की किताबें पढ़ेंगे। पीवीआर नहीं जाएंगे, पायरेटेड सीडी देखेंगे।"
"पर क्यों रागिनी?"
"इसलिए रघु कि ब्यूरोक्रेसी की दुनिया हमें ऐसा करने नहीं देगी, अब शो ऑफ ही हमारी मजबूरी और विचारधारा होगी रघु। कन्ज्यूम करने की आदत ही हमारी शान होगी। सॉरी ग्राम्शी, मैंने तुम्हें सिर्फ सिलेबस की तरह पढ़ा, जीवन में ला न सकी।"