जिंदगी ख्वाब है या भला सच, है क्या? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :30 जुलाई 2015
अजय देवगन की 'दृश्यम' का प्रदर्शन होने जा रहा है और यह भी दक्षिण भारत की एक सफल फिल्म का हिन्दुस्तानी संस्करण है। उसके विज्ञापन में टाइटल के नीचे प्रचार पंक्ति है कि 'आंखों देखी पर विश्वास नहीं करें'। सदियों पूर्व किसी अन्य संदर्भ में महाकवि कबीर ने आंखन देखी लिखने की बात की थी, जिससे उनका तात्पर्य था कि कानों सुनी बात झूठ हो सकती है। कबीर ने यह कल्पना नहीं की थी कि टेक्नोलॉजी ऐसे लेन्स ईजाद करेगी जो दृश्य में बैठे लोगों की संख्या को हजार गुना अधिक बड़ा दिखा सकती है। इस तरह जनसभाओं में सचमुच कितने लोग आए हैं, इसका आकलन करना कठिन हो गया है। सिनेमा टेक्नोलॉजी में वी.एफ. एक्स द्वारा ऐसी छवियां गढ़ी जाती हैं, जो कभी घटी ही नहीं। 'बाहुबली' में वी.एफ. द्वारा बनाए गए दृश्य हैं। जिस झरने और जलप्रपात के गिर्द पहले चालीस मिनट रचे गए हैं, उसकी यथार्थ में ऊंचाई मात्र 100 फीट है, परन्तु परदे की छवि उसे हजारों फीट ऊंचा प्रस्तुत करती है। आजकल सितारों की हर मांसपेशी का सूक्ष्म चित्र लेकर उसका डुप्लीकेट गढ़ा जाता है, जो हैरतअंगेज कारनामे प्रस्तुत करता है।
शैलेन्द्र ने राजकपूर की 'जागते रहो' का एक गीत कुछ इस तरह लिखा 'किरण परी गगरी छलकाए, ज्योत का प्यासा प्यास बुझाए, मत रहना अंखियों के भरोसे, जागो मोहन प्यारे'। कोई 65 वर्ष पूर्व अकिरा कुरोसोवा की एक फिल्म में एक सत्य घटना के चार चश्मदीद गवाह हैं और अदालत में चारों के बयान से आभास होता है कि मानो चारों घटनाएं घटी हैं। हर मनुष्य कानों से सुनी या आंखों से देखी बात का वर्णन जब किसी अन्य को सुनाता है, तो उसके व्यक्तिगत पूर्वग्रह, पसंद और नापसंद के अनुसार वह विवरण देता है गोयाकि जस का तस विवरण संभव नहीं है। एक ही साक्ष्य के आधार पर दो जज अलग-अलग निर्णय देते हैं। हमारे महान ग्रंथ भी सुने हुए और सुनाए हैं, अत: मूल पाठ के विविध संस्करण उपलब्ध हैं। प्रामाणिकता के लिए बहुत परिश्रम किया गया है, परन्तु विद्वान उस पर एकमत नहीं हैं।
श्रोता भी अपने संस्करण में कुछ घटाते-बढ़ाते हैं। कई सदियों पूर्व राम-कथा कहने के लिए प्रख्यात संत रामदास की स्वयं राम द्वारा प्रशंसा सुनने पर हनुमानजी साधारण मनुष्य के रूप में कथा सुनने गए। उस दिन अशोक वाटिका में सीता माता के दु:खी होने का विवरण था। संत ने कहा कि चारों ओर सफेद फूल खिले थे, हनुमानजी ने आपत्ति उठाई कि वर्णित घटना के समय वे पेड़ पर बैठे और चहुं ओर लाल फूल खिले थे। उनके अपने असली रूप दिखाने के बाद भी कथा वाचक अपने विवरण पर डटा रहा तो हनुमानजी श्रीराम के पास गए। श्रीराम ने मुस्कुराकर कहा कि कथा वाचक सत्य कह रहा है, उस समय सीता की अवस्था देखकर क्रोध के कारण हनुमान की आंखों में रक्त उतर अाया और उन्हें सफेद फूल लाल दिखे। सिनेमा की सारी सफलता का आधार भी यह है कि निर्देशक रूपी कथा वाचक केवल सच दिखा रहा है। नाटक का रस भी हम इसीलिए ग्रहण कर पाते हैं कि अपने तर्क को स्थगित कर देते हैं और स्टेज या परदे पर प्रस्तुत को सच मानते हैं, तभी भावों का विरेचन संभव हो पाता है। 'विलिंग सस्पेंशन ऑफ डिसबिलीफ' पर बहुत कुछ लिखा गया है।
सच तो यह है कि व्यावहारिक जीवन में भी हम कई रिश्तों का निर्वाह तर्क को स्थगित करके ही कर पाते हैं। 'सत्यमेव जयते' सरकारी इमारतों और न्यायालयों में बड़े अक्षर में लिखा होता है, परन्तु सबसे अधिक झूठ हम ही बोलते हैं और हमारे चुने हुए प्रतिनिधि इस खेल के चैम्पियन हैं। महान मीर तकी मीर कहते हैं 'अय झूठ आज शहर में तेरा ही दौर है, शेवा (चलन) यह सभी का, यही सबका तौर है, अय झूठ तू शुआर (तरीका) हुआ, सारी खल्क (दुनिया) का, क्या शाह का वजीर का क्या अहले दुल्क (जोगी) का, अय झूठ तेरे शहर में ताबई (अधीन) सभी मर जाएं, क्यों न कोई वे न बोल सच कभी।' बहरहाल अजय देवगन की 'दृश्यम' एक कर्तव्यपरायण इन्सपेक्टर (तब्बू) और अपने परिवार का संरक्षण करने वाले एक आम आदमी के द्वंद्व की कथा है। फिल्म में कई रोचक मोड़ हैं, परन्तु पारिवारिकता मूल स्वर है। पूरी फिल्म गोवा में फिल्माई है, जहां रूसी माफिया का बड़ा जोर है। उपनिवेशवाद के कई मुखौटे हैं, कहीं संगठित अपराध तो कहीं पूंजीवाद।