जिंदगी तुझसे परेशान नहीं, हैरान हूं मैं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 26 जून 2020
आयुष्मान खुराना, विकी कौशल और राजकुमार राव किसी फिल्म परिवार से नहीं आए हैं। कटरीना कैफ, तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर भी अपनी प्रतिभा व मेहनत से सफल हुई हैं, कबीर खान, आनंद.एल राय और लव रंजन भी अपने दम खम पर उभरे व टिके हैं। इरशाद कामिल और राज शेखर भी यहां अपने दम से हैं। यह भी सच है कि सलमान खान और आमिर खान के परिवार फिल्मी हैं। आदित्य चोपड़ा व करण जौहर के पिता फिल्म निर्माण करते रहे, परंतु शाहरुख खान गैर फिल्मी परिवार से आकर सफल रहे। कपूर परिवार की चौथी पीढ़ी सक्रिय है। इसी तरह महेश भट्ट के पिता फिल्मकार थे व बेटी आलिया भी शिखर सितारा है व इमरान हाशमी भी फिल्मों से जुड़े हैं। मंसूर हुसैन के पिता मसाला मनोरंजन गढ़ते थे और उनकी बहन का पुत्र इमरान खान भी अभिनेता है। औद्योगिक घरानों में पुत्र, पिता के सिंहासन पर बैठता है और विशेषज्ञों की टीम उसकी सहायता करती है। फिल्म उद्योग में निर्णय आम दर्शक करता है। प्रचारक केवल हव्वा खड़ा कर पाते हैं जो अधिक देर टिकता नहीं। फिल्म बाजार का शेयर मार्केट शुक्रवार को खुलता है और सोमवार तक नतीजा आ जाता है। हेरा-फेरी काम नहीं आती, सच्चे-झूठे आंकड़ों का खेल भी उजागर हो चुका है। तुनक मिजाज आवाम की पसंद का ऊंट जाने कब किस करवट बैठे?
विजय आनंद की फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ में आई.एस.जौहर अभिनीत पात्र हमशक्ल जुड़वां भाई के आकल्पन को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है। जब उससे पूछा जाता है कि परिवार के लोग कैसे जुड़वां में फर्क करते हैं, तब वह कहता है कि पिता की तस्वीर से मिलाकर। पिता की शक्ल-सूरत ही उन्हें विरासत में मिली है। गुण -अवगुण से अधिक बीमारियां जन्मना होती हैं, परंतु कोई रोग लाइलाज नहीं। कभी कैंसर बीमारियों का राजा था, अब कोरोना ने उसे चुनौती दी है। कोई बीमारी अपराजेय नहीं होती। आधुनिक शल्य चिकित्सा बहुत कुछ दुरुस्त कर देती है, यहां तक कि जैनेटिक हेरा-फेरी की भी प्रबल संभावना बन चुकी है। हमशक्ल-जुड़वां के विचार से अनगिनत उपन्यास और फिल्में बनीं।
पेड़-पौधों और जानवरों में नस्ल का बड़ा महत्व होता है। अरबी घोड़े व हिमालय की तराई के खच्चर दमदार होते हैं। पक्षियों में नस्ल होती है, परंतु कोयल के बच्चों को कौआ पाल लेता है। यहां मनुष्य थोड़ा पिछड़ा हुआ है। चींटी अपने भार से 30 गुना अधिक भार का वहन कर लेती है, लेकिन मनुष्य ऐसा नहीं कर पाता। मानव शरीर में अनगिनत मांस-पेशियां होती हैं, परंतु सभी के मिजाज समान नहीं होते। हर पेशी स्वतंत्र अस्तित्व रखती हैं। यह बात वे लोग नहीं जानते, जो चाहते हैं कि सभी एक से कपड़े पहनें, एक भाषा बोलें और एक सा विचार भी करें। विविधता शाश्वत सत्य है। शेक्सपीयर के नाटक ‘द कॉमेडी ऑफ एरर्स’ से प्रेरित फिल्म बनी हैं। संजीव कुमार, मौसमी चटर्जी और देवेन वर्मा अभिनीत ‘अंगूर’ अत्यंत मनोरंजक फिल्म है। कथा में मालिक और नौकर दोनों के हमशक्ल हैं। एक दृश्य में सारे पात्र भांग की पकौड़ियां खा जाते हैं। भांग का सेवन करने वाला व्यक्ति एक ही बात को दोहराता है, अफीमची खामोश रहता है, शराबी के पैर और जुबान लड़खड़ाती है। वर्तमान में तो कुंए में ही भांग पड़ी है। आभास होता है, मानो सभी ने भांग की पकौड़ियां खा ली हैं। तोता रटंत का दौर चल रहा है। आवाम समूह गीत गा रहा है, बेसुरे भी शामिल हैं। तलाश है एक आवाज की जिसका आलाप हमें सामूहिक नींद से जगा दे।
प्रतिभा अपनी परंपरा से प्रेरित होकर अपने व्यक्तिगत योगदान से परंपरा को सशक्त करते हुए आगे बढ़ती है। यह रिश्ता सारे भाई भतीजावाद को खारिज कर देता है। विचार की धारा निरंतर प्रवाहित रहती है, उसका सतत प्रवाह ही उसकी ऊर्जा का स्रोत है। राजकुमार हीरानी किसी फिल्म परिवार से नहीं आए। उनकी प्रतिभा ने विराट संसार रच लिया है। प्रतिभा अनोखी बिरादरी रचती है।