जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 जनवरी 2022
वैक्सीनेशन का काम दिन रात जारी है, क्योंकि असमान युद्ध बंद नहीं होता। गौरतलब है कि वैज्ञानिकों ने कोविड-19 वैक्सीन की खोज के प्रयास चलने के दौरान ही एक कठिन निर्णय ले लिया था। वह यह कि वैक्सीन के लिए प्रमाणिकता आने के पूर्व ही उन्होंने इसके उत्पादन को रुकने नहीं दिया। समय रहते ही उन्हें इसके लिए प्रमाणिकता भी मिल गई और इस साहसी निर्णय ने अनगिनत लोगों की जान बचा ली। वैज्ञानिक प्रमाणिकता प्राप्त होने के पहले उनके आत्मविश्वास ने ही उन्हें यह साहस दिया। इसी तरह गुरुत्वाकर्षण का नियम भी इत्तेफाक से खोज लिया गया। एक सेवफल धरती पर गिरा और खोजकर्ता वैज्ञानिक, यूरेका कहते हुए निर्वस्त्र ही अपनी प्रयोगशाला की ओर दौड़ पड़ा। इसी तरह धरती गोल है का सत्य खोजने वाले को पागल ही समझ गया। कालांतर में इस नियम ने जीवन ही बदल दिया।
मैडम क्यूरी की प्रयोगशाला में कमरे को गर्म रखने वाले उपकरण ने काम करना बंद कर दिया। वे ठंड से सिकुड़ने लगीं उनकी नींद से बोझिल पलकें बंद होने लगीं। हिम्मत जुटाकर वे अपने काम में लगी रहीं और उन्होंने अपनी खोज कर ली। क्यूरी अपनी सफलता की सेज पर कभी इतराईं नहीं और अपना काम जारी रखा। उन्हें दो बार नोबेल प्राइज से नवाजा गया। अत: विपरीत हालात में अपना काम करते रहने की जिद ही अनगिनत लोगों के जीवन को प्रभावित करती रही है। जो लोग कभी कुछ नहीं करते वे लोग भी जीवन में उपयोगी साबित होते हैं। खुली खिड़की से निर्जन स्थान को देखते रहना भी एक काम है। जाने कब कहां से कुछ मिल जाए? बर्टेंड रसेल के एक निबंध का नाम है ‘प्रेज ऑफ आइडलनेस’ यह कुदरत का कमाल है कि वह बंद दरवाजे पर भी दस्तक दे देता है।
कभी खुली खिड़की से निर्जन स्थान को देखते हैं तो कुदरत वहां एक पेंटिंग बना देती है। सारा विश्व ही उसका कैनवास है। हम सजग रहें तो कैनवास पर रंग उभरते हैं, आकृतियां बनती रहती हैं। इसलिए कभी विचार की खुली खिड़की में आकृतियां दिखने लगती हैं। कुछ विचार ऊंघते हैं, उनींदा होते हैं परंतु उनमें से कुछ सामने भी आने लगता है। मनुष्य औसतन 24 घंटे जागता रहता है। इसलिए अपने दिमाग की खिड़की कभी बंद नहीं करें। घनघोर अंधेरे में जुगनू भी हमें राह दिखा सकता है। मनुष्य का दिमागी एंटीना अंतरिक्ष से आए हुए संकेत भी पकड़ लेता है। विज्ञान फंतासी में दार्शनिकता के संदेश होते हैं। स्टीवन स्पीलबर्ग और साथियों ने इस क्षेत्र को टटोला है। राजकुमार हिरानी की आमिर खान और अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म ‘पीके’ ने इसी विचार की नई व्याख्या प्रस्तुत की है। फिल्म का एक संवाद है कि ‘अंतरिक्ष से आया प्राणी धरती से झूठ बोलना सीख कर गया और मनुष्य को प्रेम करना सिखा कर गया।’ हमने प्रेमविहीन जीवन और संवेदना शून्य संसार का निर्माण कर लिया। सहूलियत को प्रेम कहा जाने लगा।
गौरतलब है कि विदेशी विश्वविद्यालय में हर प्रोफेसर को उसके कॅरिअर के सातवें साल में बिना काम किए ही पूरा वेतन दिया जाता है, जिसे ‘टीचर्स सेवंथ ईयर’ कहते हैं। ताकि इस अवसर पर वह खुद को संवार सके और तरोताजा होकर अपने पढ़ाने का काम आगे और बेहतर कर सके। कुछ शिक्षकों ने इस सातवें साल में खुद को खोजते हुए नया कुछ मानव कल्याण के लिए खोज लिया। गौरतलब है कि वैज्ञानिकों ने अपने आत्मविश्वास के दम पर ही प्रयोग की प्रमाणिकता नहीं होते हुए भी काम जारी रखा और अनगिनत प्राण बचा लिए। हर महान खोज एक इत्तेफाक के दम पर काम प्रारंभ करती है। खिड़की खुला रखना एक महान आदर्श है वरना मनुष्य कुएं का मेंढक बन जाता है।