जिकुड़ि कि पीड़ का रैबार्या पंछी / बीना बेंजवाल
प्रकृति का दगड़ा नारी मन कि रागात्मक सुराळी का संवाहक छन गढ़वाळि लोकगीत। यों गीतों मा चम्म चमकदा घाम कु ताप च। जोनि कु उजास च। बणपंछ्यों कि भौण बाच च अर चुल्लै हाळ का दगड़ा छ खैरि खयीं जिकुड़यों कु उमाळ। फ्ूयंल्यंू का खिगताट, म्वार्यंू का रुमणाट का दगड़ा च अपणों कि याद मा खुदायां ज्यू तैं झुरौंदु घुघत्यूं घुर्याट। मौळ्यार औंदिसार धरति कन्न बैठदि सिंगार। प्रीत कु यनु रंग छोळि देंद बसंत कि मन का भावों मा सबुसे अगनै गणैंदा ये प्रेम का गीतों का बोलों मा बसण लगदन गौं। वीर्यण लगदन थौळा-कौथिग। हैरि ह्वे जंदि ग्यंू-जौ कि सार। घर्या पर ऐ जंद फुलार। हर मायादार जिकुड़ि प्रीत का रंग मा रंगीं दिखेंदि। यना ये आदर्श प्रेम कु उदात्त रूप गढ़वाळि लोकगीतौं मा जख-तख दिखेंदु। छोपति, बाजूबंद यनि गीत छन। कुळैं कि डाळि भले हि छोटि ह्वे जौन, डांडा सैणा बणि जौन पर यु प्रेम जुग-जुग तक अमर रौंद-
क्वळैं होलि नीसि, डांडा होला ईं सैणा, तेरी माया त् नि छोड़ू, बैठ जा मेरी मैणा। तेरी मेरी माया जुग-जुग सुख मेरी मैणा, तेरी सौं मैं त्वे नि छोड़ू राति जना गैणा।
पर संयोग का यि दिन सदनि नि रंदन। अपणों से दूर होण पर जिकुड़ि अमोखेंदि, बिबलांदि अर भितरै पीड़ तैं भैर छटगौणौ बाटु खुज्यांदि। अर तब मन कि असंद तैं वेका उमाळ तैं गीतों मा मिलदु छंद। उंचा-निसा डांडा, गाड-गदन्यों कि गैरि रौली, घणा बौण अर बसग्याळ डांड्यों-कांठ्यों लौंकदि कुयेड़ी कै तैं बि खुदेड़ बणै देंदि। फेर उंचा डांडों पार बाळी उमर मा हि डांडों का मुल्क बिवायीं बेट्यंू कि खैरि-बिपदा अर खुद कि छ्ंवी क्य लाण! कख त् मैत का रौंत्यळा मुल्क ब्वे-बाबा अर भै-बैणों कि हैंसदि-खेलदि दुन्या अर कख सौर्यास यकुला पराण कु कठिण जीवन संघर्श। दुख कि तौं बिकट घड़यूँ मा प्रकृति दगड़्या बणी बिरही मन कु दुख बाँटदि। बौण कि डाळि-बोटळ्यूं मू वा अपणा मन कि गेड़ खोलदि। एक बौण से हैंका बौण, एक डांडा से हैंका डांडा उड़ण वळा बणपंछ्यों मू अपणा मैत्यूं अर परदेस जयां पति तैं रैबार भेजदि। पहाड़ का लोकजीवन मा यि पंछी नारी मन कि भावनों का सच्चा संवाहक छन। यों का बोल वींकि भौण-बाच बणी वीं तैं बुथ्यौंदन। अपणैस का कारण कखि-कखि त् खुदायीं जिकुड़यू कु रोश बि यों पर परगट होंद। बेट्यंू तैं केवल मैत्यूं कि खुद नि लगदि़ बल्कि वखै पुंगड़ी-पटळी, छोया-मंगरी, घटुड़ी-मरुड़ी कि याद बि सतौंदि। तब्बित् गौरा कु भै हीत जब वीं तैं बुलौण कैलास जांद त् गौरा ब्वे-बाबा, भै-बैणौं कि राजि-खुसि पूछणा दगड़ा-दगड़ि वखा मरड़ा, घट अर पुंगड़ौं कि बि संत-खबर पूछदि। यीं प्रकृति मा हि त् वींकि सक्या-सामर्थ्य का स्रोत छन। यीं अपणैस का बस पर हि त् वा अपणा रिसासौऊ देखणा वास्ता उंचि डांड्यों से निसि होणे अर घणी कुळांयों से छांटी होणे बिनति करदि-
उंचि ढया-डांड्यों तुम निसि ह्वैजा, देखण द्या मी रिसासौऊ राज।
खुदेड़ गीतों मा बौण का यि पंछी जख-तख नायिका का संबोध्य बणदन। वींका रैबारी बणदन। वींकि जिकुड़ि कु उमाळ योंका सामणि बरबस खत्ये जंद। चैत का मैना डाळी-बोटळ्यूं का हैरा-भैरा होण अर फूलों का खिलण पर वीेतैं अपणा मैतै खुद लगदि। भै-बैणों कि याद सतौंदि। ष्डांडों फूलीं फ्योंलड़ी अर गाड-गदन्यूं बासदि म्योलड़ीश् मैत जाणौ तरसौंदिन। रितुओं का बदलण पर मन कु उमाळ गीतौं मा खतेण बैठद-
ष्आई गैन रितु बौड़ी, दांई जस फेरो, फूली गैन बण बीच ग्वीराळ बुरांस। झपन्याळी डाळ्यूं मा घुघती घूरली, गैरी-गैरी गदन्यो मा म्योलड़ी बोलली, ऊँची-ऊँची डाळ्यूं मा कफू बासलो।श्
बेट्यूंका मैत जाणौ मैना ऐगि। दगड्या भग्यान सब मैत चलि गैन पर वींतैं अबि तलक मैत नि बुलयैगे। मैत्यूं कि जग्वाळ करद-करद जब ज्यू निरास्यै जंद त् वा बड़ा भरोसा पर बणपंछी कफ्फू तैं गाण का वास्ता बोळदि, जांसे वींका मैती सूणन अर वींतैं सरासर मैत बुलौन-
बास-बास कफ्फू भै झुमैलो, मैरा मैत्यों का चौक भै झुमैलो। मेरा मैती सूणला झुमैलो, ऊँ खुद लगली झुमैलो।
वखि हैंकि तरपां एक गीत मा नायिका घुघती तैं मैत जनै बासणौ ना बोलदि किलैकि घुघती तैं बासद सूणी वींका ब्वे-बाबा तैं कश्ट होलो। अंदाज लगै सकेंद वीं खुदेड़ बेटि कि मन कि दसा कु-
मेरा मैत का देस ना बास, ना बास घुघुती, बोई सूणली आँसू ढोळली,बाबा सूणला ।
साल का अलग-अलग मैनों का यों बारामासी गीतों मा बणपंछ्यों तैं संबोधित कथगै लोकगीत छन। चखुला हि ना भौंरा बि यों गीतों मा बेट्यूंकु रैबार ऊँका मैत तक पौंछोंदन-
जादौं भौंरा माँजी का पास हमारी, कुसल मंगल बोली, कल्याण बोलि आयी।
एक हैंका गीत मा नायिका रितु बसन्त औण पर भौंरा बाना अपणा सौंजड़्या तैं घर च न्यूतणी-
‘ऐजा भौंर तू घर, रितु बसन्ता का धोरा।’
सौणा मैना नायिका दूर परदेस जयां पति तैं रैबार भेजदि- जा मेरा पंछी काळा डांडा पार, मैनू लग्यंू च सौण कू। मेरो रैबार स्वामी जी मू देई, खुद मा बल रोणी छई।
अर भादौ कि अंध्यरि घंताघोर रात मा बासद मोर वीं बिरहिणी कि खुदांदि जिकुड़ि पर चीरा लगै देंद- भादौं की अंधेरी घंताघोर, ना बास ना बास पापी मोर।
‘आमै की डाई मा घुघुती ना बासा’-गोपाल बाबू गोस्वामी जी का ये गीत का अलावा कुमाउंनी का रितुरैण गीतों मा बि चखुलौं तैं संबोधित गीतौं कि भरमार च-
कफुवा बासण फैगो बैणा,मेरी बैणा ए गै रितुरैणा।
गढ़वाळि मा नरेन्द्र सिंह नेगी जी का गीतौं मा त् बसंत भौंरा-पोतळौं कि बरात ल्हीक लिपीं-पुतीं डिंडाळ्यूं मा रुणक झुणक ऐक चखुल्यों का उंठड़यंू का ताळा खोलि देंद अर तब चौंतिर्फु सुणैण लगदि घुघुती कि घूर घूर-
घुघूती घुरूण लगी मेरा मैत की, बौड़ी-बौड़ी ऐगे रितु रितु चैत की।
पर जब नायिका तैं परदेस जयां पति कि खुद सतौंदि, वींकि जिकुड़ि झुरौदि त् वा यों बणपंछ्यों तैं बासणौ ना बोलदि किलैकि ऊँका बोल सूणी वींकि पीड़ हौर बढ़ि जंदि -
न घूर घुघूती न हैंस बुरांस, रूड़यूं का दिन होलु मन यकुलांस।
पंछी बणी उड़णे या पंछ्यों मू रैबार भेजणे रीत गढ़वाळि लोकगीतौं मा हि ना हर बोली-भाशा का गीतौं मा दिखेंदि। पंजाबी का एक गीत का अनुसार बेटि घर कि पाळीं-पोसीं क्वील या चखुली होंदिन जु बड़ि होण पर उड़ि जंदिन। कुलंग पंछी कि तरां जींका भाग मा बि अपणी जनम भूमि मा रौण कू सुख नी लिख्यंू-
देसां दी मैं कूंजड़ी परदेसा मेरा बास वे, परदेसां मेरा बास।
कबि वा खुद चखुली बणदि त् कबि धरति कि वा खुदेड़ बेटि चखुलौं मु मन कि ब्यथा सुणै जिकुड़ी झौळ बुझौंदि। मैथिली का ये गीत मा बि पंछी कु बासणो नायिका कि बिरह कि पीड़ तैं हौर च भड़कौंणू- विरह कुहकत मोर गात है, कैसे काटे हम उखम घाम।
बंगला का एक लोकगीत कि या टेर बि देखण लैक च जैमा नायिका बोलणी च कि अगर मैं पंछी होंदु त् उड़ि जांदु, ओ बन्धु। डाळा पर बैठी तुमारु मुख देखदु-
पाखी यदि हइताम बन्धु रे जाइताम उड़िया। देखिताम तोमार मुख डाले ते बसिया।श्
गढ़वाळ मा प्रचलित लोक विस्वास का अनुसार सरादों मा पितर कव्वा का रूप मा जीमण औंदन-
आवा कागा, आवा कागा, हरियाँ बिरिछ बोल कागा, बोल कागा चौदिसौं सगुन।
केवल खुदैड़ गीतौं मा हि ना बल्कि नौना-बाळों का गीतौं मा बि ‘घुघती’ दूधभाते रसाण का टपकारा लेंद दिखेंदि-
‘घुघूती! बसूती क्या खांदी, दुघभाती। मैं बि देई, जुठु च।’
ये वास्ता बोले सकेंद कि गढ़वाळि लोकगीतौं मा बणपंछी पहाड़ कि नारी कि खैरि-बिपदा, वींका सुख-दुख कि अभिव्यक्ति का माध्यम छन। वंूकि प्रीत कु बसंत फ्यंूली-बुरांस का बौणों यों चखुलों का पंखों पर सवार ह्वे वूंकि जिकुड़यों का मुल्क उतरद अर म्वार्यों कु रुमणाट बणी सैरि धरति कि भौण बणि जंद। गीतों मा न्यूत्यां घुघुती, कफ्फू, कागा, मल्यो, हिलांस, काफळ पाकुु,, मोर अर चकोर सब वींका दगड़्या बणी वींकि खुद मिटौंदन अर खैर्यंू कि उकाळ-उंदार नापणी वींकि जिंदगी तैं एक भौण देंदन। पर जाणदि च वा कि यीं खुदेड़ जिकुड़्यू यु रैबार वख नि पौंछण जख वा पौंछोंण च चाणी। फेर बि मन कु बोझ त् हळ्कु ह्वे हि जंद।