जिजीविषा के समानांतर प्रवाहित 'मृत्यु-इच्छा' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :20 जनवरी 2016
सोलह जनवरी को प्रकाशित लेख में एक भूल हो गई। प्रकाशित वाक्य है, 'पाकिस्तानी समाज में इस्लाम द्वारा लादी गई कुरीतियों के खिलाफ शोएब मंसूर पाकिस्तान में ही फिल्में बनाते हैं।' दरअसल, वाक्य यह होना चाहिए था, 'पाकिस्तान समाज में इस्लाम के नाम पर लादी गई कुरीतियां..' मैं इस त्रुटि के लिए क्षमा मांगता हूं। इत्तेफाक देखिए कि आज ही 'टाइम्स' में पाकिस्तान की लेखिका और 'प्योरिफाइंग द लैंड ऑफ प्योर' की लेखिका फरहनाज इस्पाहानी का सृजन मित्रा दास को दिया गया साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है। उनका कहना है कि मोहम्मद अली जिन्ना पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष थे और भारत की सांस्कृतिक बहुलता के हामी थे। उनका कहना था कि पाकिस्तान में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए जाने चाहिए। दुखद है कि जिन्ना का यह रेडियो भाषण कभी जारी नहीं किया गया और वह टेप भी रहस्यमय ढंग से गायब हो गया परंतु वह लिखित रूप में आज भी मौजूद है।
प्राय: इतिहास पुरुषों के बारे में लोकप्रिय विचार, जिनका बाकायदा उत्पादन किया जाता है, वही सत्य का स्थान ले लेते हैं। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने पाकिस्तान को जिन्ना की इच्छानुरूप धर्मनिरपेक्ष नहीं बनने दिया। 1947 में पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम आबादी 23 फीसदी थी, जो अब घटकर मात्र 4 फीसदी रह गई है। दुखद है कि आज भी जो पाकिस्तानी पासपोर्ट के लिए आवेदन करता है, उसे घोषणा करनी पड़ती है वह अहमदियों को गैर-मुस्लिम मानता है। धर्मांधता की ताकतों ने ऐसी घनघोर धुंध रची है कि अमेरिका के होने वाले चुनाव की उम्मीदवारी के दावेदार डोनाल्ड ट्रम्प कहते हैं कि अमेरिका में पाकिस्तानियों को एक शिविर में डालना चाहिए! क्या यह भाषा आपको हिटलर के यातना शिविरों का स्मरण कराती है?
भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में हजारों लोग आतंकवाद के शिकार हुए हैं। पाकिस्तान में चर्च से अधिक मस्जिदें टूटी हैं और यह सब धर्मनिरपेक्षता के कालातीत आदर्श को ठुकराने का नतीजा है। यह सांस्कृतिक बहुलता को नकारने का परिणाम है। आश्चर्य यह है कि अवाम की नज़र और नज़रिये पर कैसे जादुगर सामरी ने कब्जा जमा लिया! सामाजिक यथार्थ भी साहित्य और सिनेमा में फैंटसी विधा की शब्दावली में ही अभिव्यक्त किया जा सकता है। जादुगर सामरी पूरे विश्व का अदृश्य व्यक्ति है, जिसका प्रभाव दिखता है परंतु वह नहीं दिखता। यह सचमुच तर्क की तराजू पर आका नहीं जा सकता कि कैसे हुजूम के हुजूम नशे में गाफिल है। यह सबसे बड़ा मास मैन्युफेक्चरिंग है। पाकिस्तान के आधी सदी से अधिक के इतिहास में केवल दो गणतांत्रिक सरकारें ही बन पाई हैं और उन्हें भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया गया। पाकिस्तान में फौज के साथ धर्मांधता की समानांतर सरकारें चलती रही है। यह सब पाकिस्तान की अवाम की इच्छा के विरुद्ध हुअा है। गौर करें तो इसका असली उद्देश्य भी यही था कि सारी राष्ट्रीय सम्पदा पर चंद लोगों का कब्जा रहे। यही कम प्रमाण में भारत में भी हुआ है। धर्म के नाम पर सारा खेल सत्ता और सम्पदा पर अधिकार का है। आज सिर्फ बासठ लोगों के पास दुनिया की आधी सम्पदा है। यह कोई दैवीय घटना नहीं है। यह षड्यंत्र व शोषण से संभव हुआ है।
भारत-पाकिस्तान की तुलना में कम तबाह हुअा है, क्योंकि हमें सांस्कृतिक बहुलता और धर्मनिरपेक्षता का सुफल मिला है। धर्मांधता से हमेशा, चाहे छद्म ही कहें, लेकिन धर्मनिरपेक्षता बेहतर सिद्ध होती है। यहां जादुगर सामरी लाख प्रयास के बाद प्रभाव नहीं जमा पा रहा है।
सबसे दुखद यह है कि पाकिस्तान में जो अल्पसंख्यकों के साथ हुआ वही यहां भारत में करने की एक कट्टरपंथी विचारधारा है। गांधीजी ने कहा था कि अांख के बदले आंख दुनिया को अंधा बना देगी परंतु ये लोग अपनी सहूलियत के लिए अपने अन्याय को 'क्रिया की प्रतिक्रिया' कहते हैं। जीवन महज विज्ञान की क्रिया की प्रतिक्रिया तक सीमित नहीं है। वह विराट है और अपने घर की छोटी-सी खिड़की से आकाश का आकलन नहीं किया जा सकता। दुखद यह है कि साधनहीन आम आदमी सारे सारवान विचारों को जानता है। जो आम आदमी हजारों वर्षों से जीवन के असमान युद्ध में डटा हुआ है, उसे कमतर मत आंकिए। बस इस आम आदमी केपास सच्चे नुमाइंदे नहीं हैं, उसके पास मंच नहीं है और जाने कैसे वह जादुगर सामरी के भ्रमजाल को सबकुछ जानते हुए भी तोड़ नहीं पा रहा है। जादू और जादुगर सामरी के सिवाय इस मोहतंत्र को हम कैसे स्पष्ट परिभाषित करें? जाल में फंसी नन्ही जान जाने कैसे जाल बिछाने वाली मकड़ी के मुंह में जाने को इस कदर बेताब और बेकरार हो जाती है।