जिजीविषा / अमित कुमार मल्ल
बेडरूम से निकलते समय बीरेन्द्र ने कहा,
जाकर नहाकर, अपने कपड़े पहन कर चली जाओ।
बाथरूम में जाकर, उसने साबुन से अपने शरीर को रगड़कर साफ़ करने लगी ताकि उसके शरीर और मन का मैल साफ़ हो जाय। पानी के प्रवाह ने जड़ हो चुके शरीर व भावशून्य चेहरे में संवेदना जगा दी। एकाएक उसे बहुत ज़ोर की रुलाई आई, वह अपने आप को रोक नहीं पाई। बाथरूम की दीवाल पकड़ कर रोने लगी। टोंटी के पानी के साथ साथ उसके आँसू भी बहने लगा।रुलाई के बीच उसका आहत मन, यादो में दौड़ते हुए रीजेंसी अस्पताल के सामने जा पहुँचा।
रीजेंसी अस्पताल में दूर दूर के मरीज आते,जिसमे से कई मरीज लंबे समय तक अस्पताल में इलाज कराते।रीजेंसी अस्पताल के सामने खाली पड़ी ज़मीन में, कई झोपड़ियाँ, गुमटियाँ व खोमचे लगे थे जिनसे अस्पताल के मरीजों, उनके तीमारदारों, अस्पताल के कर्मचारियों, रिक्शा वालो, ऑटो वालो आदि की खाने आदि की ज़रूरतें पूरी होती थी। इन्हीं में से,एक झोपड़ी उसकी भी थी, जहाँ पर लैया, चना, घुघरी, रोटी, सब्जी आदि बिकता था। पापा और माई - दोनों यह काम बारी बारी से करते थे और वह भी पीछे पीछे इन सभी कामो में लगी रहती थी। उसका छोटा भाई पप्पू, पास से सरकारी स्कूल में, बड़ी गोल में पढ़ता था। उसकी दुकान ठीक ठाक चल जाती थी क्योकि अस्पताल से सम्बंधित लोगों को वक़्त बेवक्त नाश्ते व खाने की ज़रूरत पड़ती थी और हर किसी के पास इतना पैसा नहीं होता कि वह होटल जाकर खा सके, इसलिये उसके दुकान पर लोग आते।रिक्शेवाले, ऑटोवाले, वार्ड बॉय, सफ़ाई कर्मचारी तो आते ही आते थे। लगता था कि वह अपने दुकान के लिये भाग्यशाली थी, क्योंकि जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ रही थी, वैसे वैसे दुकान पर आने वाले ग्राहकों की संख्या बढ़ रही थी। थोड़ी दूर पर रहने वाली रश्मि दीदी की बात याद आ रही थी- लड़की को देखकर लोग जल्दी काम कर देते हैं।
रश्मि दीदी पेशे से वकील है। कचहरी में कितना बोलती यह तो नहीं पता, लेकिन जब वह हम लोगों से मिलती, तो वह ख़ूब बोलती। उनकी ज़बान पर सरस्वती मा का वास था। वे अक्सर कहा करती थी,
सभी बराबर है। सबको जीने का सामान हक़ है सबको पढ़ना चाहिए सबको अपना विकास करना चाहिए सरकार की योजनाओं का सबको लाभ लेना चाहिए ।
बगल में पान की गुमटी लगाने वाला बिरजू कहता था कि रश्मि दीदी की वकालत नहीं चलती। सभासदी का चुनाव लड़ेगी। उसी की प्रैक्टिस कर रही है। चाहे जो भी हो, रश्मि दीदी का साथ उसे अच्छा लगता। वह साथ होती तो ऐसा लगता कि कोई मज़बूत हाथ उसके सिर के ऊपर है। रश्मि दीदी अपने घरेलू कार्य, सफाई, कपड़ो की मरम्मत के लिये, अक्सर शनिवार को अपने यहाँ बुला लेती क्योंकि शनिवार को कचहरी बंद रहती थी और उस दिन वे केस भी नहीं लिखवाती थी। शनिवार को दिन भर वहाँ रहती, उनके बालो में तेल लगाती,हाथ पैर की मालिश करती,उनका काम करती,अपनी बातें बताती, उनकी बाते सुनती।शाम को वह,अपनी झोपड़ी में वापस आ जाती।
उसके झोपड़ी के आस पास एक दो नहीं बल्कि पचासों झोपड़ियाँ, गुमटियाँ, खोमचे आदि थे, जिनमे मूंगफली से लेकर हकीमी दवा तक - सब कुछ बिकता था। ये झोपड़िया, इस अस्पताल व आस पास के कोठियों वालो को चुभते थे। वे अक्सर कहते थे,
ये झोपड़ी वाले ये खोमचे वाले अवैध है ये पार्क की ज़मीन पर, कब्जा किये हैं यह जगह बच्चो के खेलने के लिये है इनके कब्जे के कारण बच्चे खेल नहीं पाते हैं यहाँ की गंदगी के कारण यहाँ की हवा शुद्ध नहीं रह पाती।
अस्पताल वाले कहते थे कि इस पार्क की ज़मीन पर खोमचा, झोपड़ पट्टी होने के कारण, अस्पताल का बाहरी लुक खराब हो जाता है।
हमारी पैदाइश तो इसी झोपड़ी की है। फिर कब्जे की बात कहा से उठती है। रश्मि दीदी बताती थी कि बड़ी कोठी वाले, अस्पताल वाले ऊँचे लोगों को समझा रहे हैं, पैरवी कर रहे हैं कि यहाँ से झोपड़ियाँ हटाई जाय।
उसे बड़ा अजीब लगता कि हवा को क्या किसी ने बांटा है सूरज को किसने बांटा ज़मीन को किसने बांटा ।जैसे मा की गोद में रहने पर, बच्चा मा की संतान हैं, वैसे पूरी ज़िन्दगी जिस ज़मीन की गोंद में रही, उससे उसे क्यो बेदखल किया जा रहा है। एक के धूप लेने से, दूसरे को क्या धूप कम मिलेगी। साफ़ और खराब हवा का प्रभाव - क्या हम लोगों पर नहीं पड़ेगा?
बड़े लोगों के प्रयास व पैरवी रंग लाई और आदेश हो गया कि मास्टर प्लान से जो भिन्न है, उसे हटा दिया जाय। रश्मि दीदी ने आदेश होते ही बता दिया तथा यह भी बताया कि इसे रोकने के लिए सबसे बड़े अदालत में अपील करनी होगी और इसके लिये सीनियर वकील भी करना होगा, जिसमे पैसा ख़र्च होगा।तुम लोग चंदा करके पैसा इकट्ठा करो, तब अपील किया जाय।
पैसे के लिये प्रयास हो रहा था कि अगले दिन निगम के कर्मचारी, पुलिस, बुलडोजर ले कर आए और उन्होंने चार घंटे का समय दिया,कि लोग अपना सामान निकाल ले। उसके बाद झोपड़िया गिरा दी जाएँगी।यदि नियत समय में लोग समान नहीं ले जाते हैं, अपना झोपड़ी नहीं तोड़ते हैं तो झोपड़ी तोड़ने का ख़र्च भी,हम लोगों से वसूला जाएगा।इतना सुनते ही सब लोगों में अफरा तफरी मच गई। लोग अपना सामान इकट्ठा कर बाँधने लगे।
तभी रश्मि दीदी ने चिल्ला कर सबको बुलाया,
संगठित होकर विरोध करो। बुलडोजर के सामने लेट जाओ। ये लोग तुम लोगों का छत ही नहीं छीन रहे हैं बल्कि रोजगार भी छीन रहे है।ये लोग ऐसे बुलडोजर नहीं चला सकते।
उधर निगम के कर्मचारी लाउडस्पीकर से बार बार चिल्ला रहे थे,
जल्दी जल्दी सामान हटा लो झोपड़ियो के साथ साथ तुम लोगों के सामान का भी नुक़सान होगा।समय कम बचा है।
रश्मि दीदी बुलडोजर के सामने बैठ गयी। उनके चिल्लाने और बैठने का यह असर हुआ कि बगल का राजू, पापा, अन्य कई खोमचे वाले रश्मि दीदी के साथ बुलडोजर के पहिये के आगे बैठ गए। एक दो घण्टे तो स्थिति यथावत रही लेकिन झोपड़िया हटाने वालो के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा। झोपड़ी वाले हताश थे, कुछ रो रहे थे, कुछ गिड़गड़ा रहे थे।निगम कर्मचारी कहने लगे,
ऊपर का आदेश है। सब हटाना ही होगा - झोपड़ी, खोमचा आदि। चाहे तो तुम लोग आदेश की कॉपी देख लो। हम लोगों को भी नौकरी करनी है, हुकुम का पालन करना है।
झोपड़ी वाले डटे रहे। तब पुलिस इंस्पेक्टर सामने आ कर माइक से बोला,
तुम लोगों को दिए गए समय की अवधि ख़त्म हो गयी। अपनी ओर से एक घंटा दे रहा हूँ। नहीं तो तोड़ाई शुरू हो जाएगी।
फिर अपने सिपाहियों से बोला,
बुलडोजर के सामने से इन्हें हटाओ।समय पूरा हो गया।
सिपाहियों ने पहले अपनी लाठियाँ सड़क पर कई बार पटकी। उस पर भी जब कोई नहीं उठा, तो लाठिया बजनी शुरू हुई। पुलिस पैरो पर लाठियाँ मार रही थी लेकिन पैर भी शरीर का अंग है। पैर की चोट भी दर्द तो देती है।तीन चार लोग को ही लाठियाँ पड़ी कि सब हट गए। सब लोग सामान निकालने लगे और बुलडोजर भी धीरे धीरे सबकी झोपड़ी गिराने लगा। हम लोगों की आंखों के सामने हम लोगों की झोपड़िया ढह गई।
अब कहाँ जाया जाय, यह समस्या सामने थी। रश्मि दीदी ने कहा,
कुछ दिन इधर उधर काट लो। फिर यही झोपड़ी डाल लेना। रोज़ रोज,यह झोपड़ी तोड़ने वाले लोग नहीं आएँगे।
इधर उधर कहाँ? तभी बिरजू काका मिल गए, जिनकी बीमारी में पापा और माई ने बड़ी मदद की थी, बोले,
कुछ दिन उनके यहाँ आकर रह लो, फिर अपनी व्यवस्था कर लेना।
हम लोग तुरंत रिक्शे वाले ठेलिया पर सामान लादकर, बिरजू चाचा के घर पहुँचे। चाची ने ढाढ़स बढ़ाया। बिरजू चाचा का घर, रेलवे पटरी के किनारे आउटर हिस्से में था। समान रखकर रात गुज़ारी। सुबह मजदूरी करने के लिये, पापा और माई दोनों निकले। लेकिन इतनी जल्दी मजदूरी कहाँ मिलती। दूसरे, तीसरे दिन यही हुआ।अगले दिन मजदूरी मिली। बिरजू चाचा का घर, शहर के बाहरी हिस्से में था। बाहरी हिस्से में निम्न / निम्न मध्यम वर्ग के लोग रहते थे, वहाँ मज़दूर ज्यादे मिल जाते। इसलिए रेट कम था। धनी लोगों की कालोनिया, शहर के बीचोबीच में थी। वहाँ मजदूरी अधिक मिलती थी लेकिन जाने में टाइम ज्यादे लगता था। पापा माई के मजदूरी से बात नहीं बन पा रही थी। चाची ने मुझे अपने घर के बर्तन सफ़ाई में लगा दिया, पप्पू को भी झाड़ू लगाने का काम दे दिया। उसके बाद भी चाची ताना मारने लगी। अपनी रहने की व्यवस्था करने को कहने लगी।
पापा की हिम्मत टूटने लगी।बीस दिन बीतते यह तय हो गया कि अब कही और ठिकाना ढूढना होगा। एक दिन जब पापा माई मजदूरी को निकले तो वह भी निकल कर अस्पताल के सामने गयी कि वहाँ के बाक़ी लोग, कैसे गुज़ारा कर रहे हैं। देखा कि जगह खाली थी। गंदगी भरी थी।कूड़ा पड़ा था। वही उसे बड़ी कोठियों के सामने तीन गुमटियाँ दिखाई पड़ी। उसके मन में प्रश्न उठा,
ऐसे कैसे ? बड़ी कोठियों वालो ने गुमटी कैसे रखने दी।
पास पहुँची तो देखा कि एक गुमटी को रमेश और दूसरे को मधुकर चला रहे थेऔर तीसरे को पन्सारी चाचा चला रहे थे।सभी अपना पुराना कार्य कर रहे थे। एक चाय पकौड़ी का और दूसरा बाटी चोखा का, तीसरा जनरल स्टोर का। तीनो दुकाने पहले से ज्यादे चल रही थी क्योकि पहले की पचास दुकानों के स्थान पर अब केवल तीन थी। वह उनकी गुमटियों से भीड़ हटने का इंतज़ार कर रही थी कि पन्सारी चाचा पहले खाली हो गए। पन्सारी चाचा की दुकान,उसके बगल में थी, जो हटा दी गयी थी।
उसने सोचा कि अगर उसे भी किसी बड़ी कोठी के सामने गुमटी लगाने को मिल जाय तो पुराना काम पापा जमा लेंगे। इसलिये उसने पन्सारी चाचा से अनुरोध किया।
पन्सारी चाचा बोले,
इन सभी बड़ी कोठियों में सर्वेंट रूम होता है। रमेश, मधुकर और मेरा परिवार उन्ही में रहता है। उनका परिवार मुफ्त में उनके घर के सारे काम करता है। बदले में,वे लोग रहने के लिये नौकरो वाला रूम तथा कोठी के सामने सड़क पर गुमटी रखने की छूट दे दी है।
काका।हम लोग बहुत परेशान हैं। पप्पू की पढ़ाई छूट गयी। पापा मजूरी कर रहे हैं। माई झाड़ू पोछा कर रही हैं।हाथ में कुछ नहीं आता। उसपर से चाची की जली कटी रोज़ सुनो। किसी तरह से हम लोगों के लिये भी गुमटी रखवाने के लिये, किसी बड़ी कोठी वाले से बात कर लो।
यह बोलते हुए उसके आँख से आंसू निकले और आवाज़ भर्रा गयी।
कल आना।
पन्सारी काका बोले।
अगले दिन जाने पर,पन्सारी काका बोले,
कल आना।
अगले दिन जब पन्सारी काका से मिली तो उन्होंने बताया,
एक बड़ी कोठी है। उसमें मालिक का नाती बीरेन्द्र रहता है। तुम लोगों के काम के लिये उससे दो दिन से गिड़गड़ा रहा हूँ।तुम लोगों के बारे में सब बता दिया। लेकिन न तो हा कर रहा है, न ना। कहता है, जिसको ज़रूरत है, वह तो कहता नहीं तुम लोग उससे मिलकर प्रार्थना करो हालांकि लोग बताते हैं कि वह बहुत बड़ा ऐयाश है।
वह नासमझ नहीं थी।वापस बिरजू चाची के घर लौट आई।
स्थितियाँ नहीं ठीक हुई।और बदतर होती गयी। चाची हाथ उठाने लगी। बिरजू चाचा भी कभी कभार पप्पू को गाली देने लगे। अब चाची घर का पूरा काम उन दोनों से कराने लगी। पापा की हताशा बढ़ने लगी।माई चुप रहने लगी।उसे लगा सब लोग एक एक दुखदायी अंत की ओर बढ़ रहे हैं।इससे निकलने के लिये आज वह, उस बड़ी कोठी के मालिक के नाती - बीरेन्द्र से आकर मिली।
बाथरूम का तेज पानी, उसे पुनः बाथरूम में खींच लाया।उसे रुलाई रोते रोते थक कर सिसकिया बन गयी। उसे लगा कि उसने जल्दी हार मान ली। रश्मि दीदी कहती थी -जीवन सबसे महत्त्वपूर्ण हैं और नैतिकता? आदर्श? महत्त्वपूर्ण है लेकिन जीवन से ज्यादे नही।वह अपने कपड़े पहनकर कोठी से बाहर आई। अगले दिन से ही, वह परिवार सहित बड़ी कोठी के नौकर रूम में रहने लगी।कोठी के आगे गुमटी लगाकर पापा ने ढाबा खोल लिया। पप्पू फिर उसी स्कूल में पढ़ने लगा।