जिज्ञासु / एक्वेरियम / ममता व्यास
वो इस कदर जिज्ञासु था कि हर फूल की खुश्बू से दीवाना होकर उसके पास जाता और खुशबू कहाँ से आ रही है। इस जिज्ञासा में फूल की पंखुडिय़ां को अलग-अलग कर के देखता। अंत में भीतर कुछ नहीं मिलता तो दुखी हो जाता। उसने बचपन में हर खिलौने को बहुत प्यार किया, लेकिन प्यार के चक्कर में उसका पुर्जा-पुर्जा अलग कर दिया। ये बन्दर कैसे बाजा बजाता है? ये गुडिय़ा कैसे नाचती है? इस माउथ ऑर्गन से आवाज कैसे निकलती है?
ऐसा सोचकर वह हर खिलौने को खोल देता, लेकिन फिर उन्हें फिर दोबारा नहीं जोड़ पाता। बहुत कोशिश करता अब गुडिय़ा पहले की तरह नहीं मटकती, ना बन्दर का बाजा बजता। उसे बहुत क्रोध आता और फिर वह सभी खिलौनों को उठाकर जोर से दीवार पर दे मारता, उसके प्रिय खिलौने टूट जाते, बिखर जाते उनके साथ वह भी टूट जाता, बिखर जाता।
ऐसा कई बार हुआ, बार-बार हुआ। उसे हमेशा खिलौने से खेलने से ज्यादा, दिलचस्पी इस बात में रही कि वह इतने सुन्दर कैसे बने? वह उनका विज्ञान जानना चाहता था। जबकि उसके सभी साथी खिलौनों से सिर्फ़ खेल कर, खुश हो चुके थे या कई खिलौनों के साथ अब भी मन बहलाने में लगे थे और वह घर के किसी सुनसान कोने में बैठा उन टूटे खिलौनों की टूटन से टूट रहा था। उसके लिए अपनी प्रिय चीजों को तोडऩा और छोडऩा साधारण बात नहीं थी। ये बात इतनी गहरी थी कि इस अपराधबोध ने उसे बचपन में खेल का मजा ही नहीं लेने दिया।