जिनावर / शोभना 'श्याम'
शाम का धुंधलका और सर्द मौसम दोनों मिलकर एक भयानक-सा मंज़र रच रहे थे। लगभग बारह तेरह साल की वह लड़की अपनी पूरी ताक़त समेट कर कस्बे की सूनसान सड़क पर भाग रही थी। साँस धौंकनी-सी चल रही थी। सर्द मौसम में भी पसीने के परनाले उसके बदन से होते हुए पैरों तक बह रहे थे।
अचानक उसके भागते कदम ठिठक गए। वह गिरते-गिरते बची। सामने कोई सौ गज की दूरी पर सड़क के बीचोबीच एक सांड खड़ा था। यह वही सांड था जिसने दो दिन से कसबे में आतंक मचाया हुआ था और दो दिन में तीन जानें ले चुका था। लड़की ने पीछे मुड़कर देखा उसका पीछा कर रहे तीनों आदमी एकदम करीब आ गए थे। उनकी आँखों में पाश्विकता का निष्कृष्टतम रूप दिखाई दे रहा था। लड़की का चेहरा दहशत से पीला पड़ चुका था। उसके एक तरफ कुआं था और दूसरी और खाई। सोचने का वक्त ही नहीं था। उसके दोनों ओर जिनावर थे उसे इनमें से कम खतरनाक को चुनना था। लड़की ने हताश होकर एक बार फिर से पीछे आते बदमाशों को देखा और फिर सांड वाली दिशा में दौड़ना शुरू कर दिया।