जीत गई चुहिया / मनोहर चमोली 'मनु'
बिल्ली ने चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था। लड़ाकू बिल्ली के मुंह कोई लगना नहीं चाहता था। लेकिन सब परेशान थे। बैठक बुलाई गई। भालू ने कहा-”दोस्तों। बिल्ली र्निविरोध जीत जाएगी। उसके खिलाफ चुनाव मैदान में किसी न किसी को तो खड़ा होना ही चाहिए। पिछली बार मैं खड़ा हुआ तो उसने मेरे बारे में कुप्रचार किया। यही नहीं वो जीत भी गई। मगर सब जानते हैं, कि उसने क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया। बेशरम फिर चुनाव में खड़ी हो रही है।”
भालू की बात से सब सहमत तो थे। मगर कोई भी बिल्ली के खिलाफ खड़ा होने पर अपनी सहमति नहीं दे रहा था। आखिरकार एक नन्हीं चुहिया ने कहा-”अगर किसी को आपत्ति न हो तो मैं चुनाव लड़ूंगी। मगर कुछ ऐसा करों कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि चुनाव से पहले ही वो हार मान ले?”
चुहिया ने अभी इतना ही कहा था कि बिल्ली भी बैठक में आ धमकी। कुत्ते ने बैठक का विषय बदलते हुए बिल्ली से कहा-”बिल्ली साहिबा। ये नन्हीं चुहिया चुनाव में खड़ा होना चाहती है। हम चाहते हैं कि चुनाव ही न हो और कोई निर्विरोध चुन लिया जाए। मगर प्रजातंत्र है। हर किसी को चुनाव में खड़ा होने का अधिकार है। क्यों?”
बिल्ली को गहरा धक्का लगा। भरी सभा में वो क्या कहती। चैपाल लगी हुई थी। भालू ने मौके को संभालते हुए कहा-” बिल्ली और चुहिया। बेहतर होगा कि आप दोनों में कोई एक अपनी उम्मीदवारी छोड़ दे।” बिल्ली ने गुस्से से कहा-”मैं किसी भी कीमत पर अपना नाम वापिस नहीं लूंगी। वैसे भी हम साठ बिल्लियां हैं। मुझे सभी साठ बिल्लियों का समर्थन प्राप्त है। मेरी जीत निश्चित है।” नन्ही चुहिया ने धीरे से कहा-”मैं अकेली हूं। लेकिन मैं चुनाव जरूर लड़ूगीं।”
कुत्ता बोला-”हम भीड़तंत्र का हिस्सा नहीं बनना चाहते। कोई एक ही चुनाव का पर्चा भरेगा।”
बिल्ली ने तुनकते हुए कुत्ते से कहा-”हो जाने दो चुनाव।” कुत्ते ने हंसते कहा-”तो ठीक है। माना कि चुनाव मैदान में दो ही उम्मीदवार हैं। जो चतुर, होशियार और बुद्धिमान है, हमें उसे ही वोट देना चाहिए। क्यों न हम इनका परीक्षण कर लें?”
यह सुझाव सभी को पसंद आया। गिलहरी के हाथ में कागज का एक पन्ना था। बंदर ने उसे हवा में उछाल दिया। कागज जमीन पर गिर गया। बंदर एक पेड़ पर चढ़ गया। कुत्ते ने कहा-”इस कागज को बंदर के पास पहुंचाना है। मगर पेड़ पर चढ़ना नहीं है।” बिल्ली ने तुरंत कागज उठा लिया। वह उसे उछालने लगी। कागज का पन्ना जमीन से थोड़ा उपर उठता और फिर नीचे गिर जाता। बिल्ली का साथ सभी बिल्लियों ने भी दिया। वे सब एक-दूसरे के उपर चढ़कर कागज को उछालने लगीं। फूंक मारकर भी उन्होंने कई प्रयास किए। लेकिन कागज पेड़ की निचली डाल तक भी नहीं पहुंच पाया।
अब चुहिया ने उस कागज को उठाया। उसने एक छोटे से पत्थर को कागज में लपेटा और बंदर की ओर उछाल दिया। बंदर ने उस कागज को पकड़ लिया। बंदर ने पत्थर निकाल कर कागज का पन्ना सबको दिखाया। सब चुहिया के लिए तालियां बजाने लगे।
कुत्ते ने भौंकते हुए कहा-”बुद्धिमान एकहि भलौ, मूरख भलौ न साठ। बिल्ली रानी तुम साठ थीं और चुहिया एक। चुहिया ने साबित कर दिया कि वो तुमसे ज्यादा बुद्धिमान है। अब तुम अपना नाम वापिस ले लो।” बिल्ली का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। बिल्ली ने कहा-”चुनाव होगा। सब वोट डालेंगे।”
मतदान हुआ। बिल्ली को कुल साठ मत ही मिले। वहीं चुहिया को सैकड़ों मत मिले। चुहिया का विजयी जुलूस निकाला गया। बिल्ली ने भड़कते हुए कहा-”चुनाव में पक्षपात हुआ है। ये कुत्ता नहीं चाहता था कि मैं जीत जाउं। इस चुहिया से तो मैं अभी निपटती हूं।” जुलूस में अफरा-तफरी मच गई। बिल्ली चुहिया को पकड़ने के लिए दौड़ी। मगर चुहिया बिल में घुस गई। कुत्ता बिल्ली पर झपटा ही था कि वह पेड़ पर चढ़ गई। तभी से बिल्ली चूहे पर झपटती है और कुत्ता बिल्ली को देखकर भौंकने लगता है।