जीना इसी का नाम है... / अर्चना राय

Gadya Kosh से
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शहर का सबसे अमीर आदमी, हमेशा वक़्त से आगे चलने में विश्वास रखने वाला...अपने लक्ष्य को पाने जुनूनी हद तक मेहनती... ऊर्जा और आत्मविश्वास से लवरेज, देवराज, न जाने क्यों? कुछ समय से अपने अंदर एक अजीब-सी विरक्ति महसूस कर रहा था।

कई दिनों से काम से दूर... ऑफिस भी नहीं जा रहा था। ऑफिस तो छोड़ो, अपने घर से भी बाहर नहीं निकल रहा था। अचानक से जीवन में आई इस शिथिलता से स्वयं भी हैरान था।

सब कुछ तो है उसके पास... एक बड़ा बिजनेस एम्पायर, आलीशान घर, नाम, पैसा, शोहरत... जिसकी लोग कल्पना करते हैं।

यही सब पाना ही तो उसकी ज़िन्दगी का एक मात्र लक्ष्य रहा है। जिसे पाने जितनी शिद्दत से उसने मेहनत की थी। उतनी शिद्दत से ख़ुशी महसूस क्यों नहीं हो रही थी, समझ नहीं पा रहा था।

जैसे-जैसे सफलता के ऊॅंचे पायदान पर पहुँच रहा था, लगता ख़ुशी उतनी ही तेजी से उसके हाथ से रेत की तरह सरक रही थी। सब कुछ होते हुए भी वह न जाने किस चीज की कमी महसूस करने लगा था।

उसे ज़िन्दगी निरर्थक—सी लगने लगी। मन के अंदर एक खालीपन भरता जा रहा था... एक अंधकार हर पल लीलने उसे अपनी ओर बढ़ता प्रतीत हो रहा था।

घबराकर एक रात वह घर से निकल कर चलते-चलते समन्दर के किनारे आ बैठा... काफ़ी देर तक आती-जाती लहरों को एकटक देखता रहा कि तभी,

"बेटा... मेरा बच्चा बहुत बीमार है, हो सके तो एक दुखयारी माँ की मदद कर दो।"

उस माँ की आंखों से बहते आँसू देख यंत्रचालित—सा याचना में फैले उनके हाथ को थाम कर उसने जेब से पैसे निकालकर रख दिए और गोद में लिए दुधमुंहे बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते ही बच्चा मुस्कुराने लगा... जिसे देख वह आत्मिक आनंद से भर गया।

"जुग-जुग जियो बेटा... भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे..." माँ ने उसे गले से लगाकर अनगिनत दुआएँ बदले में दे दी।

सीने से लगकर एक माँ का स्नेहिल स्पर्श पाकर अचानक से उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसके अंदर का खालीपन एक पल में भर गया।

"हाँ, ... यही तो वह अनुभूति है, जिसकी कमी मैं महसूस कर रहा था।" देवराज मन-ही-मन सोच, एक संकल्प ले चल पड़ा। अपने लिए खुशियों के अनगिनत स्पर्श पाने एक नये सफ़र पर...

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