जीना इसी का नाम है / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 नवम्बर 2021
गौरतलब है कि महामारी के समय दुनियाभर में आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ गई है। वैक्सीनेशन के बाद भी इस तरह की घटनाओं में कमी नहीं आई है। आत्महत्या करने के कारण जानना कठिन हैं। महामारी के समय छोटे रोजगार करने वालों और नौकरियां नहीं मिल पाने के कारण भी कुछ लोगों ने आत्महत्या की है। कुछ साधन संपन्न व्यक्तियों ने भी आत्महत्या की है। लेकिन फिल्मकार और अभिनेता गुरुदत्त के पास सब कुछ था तब भी उन्होंने आत्महत्या की थी।
गुरु दत्त की आत्महत्या का राज उनकी फिल्म ‘प्यासा’ के गीत में भी खोजा जा सकता है। ‘ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया, ये इंसा के दुश्मन समाजों की दुनिया,ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।’
गौरतलब है कि फिल्म ‘प्यासा’ सुखांत है। फिल्म के अंतिम भाग में नायक और नायिका अज्ञात स्थान की ओर जाते हैं। गीत है ‘आज सजन मोहे अंग लगालो, जनम सफ़ल हो जाए, हृदय की पीड़ा देह की अग्नि सब शीतल हो जाए।’ अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत भी साधन संपन्न सफल व्यक्ति थे। उनकी आत्महत्या का राजनीतिकरण किया गया और अफवाहों का अंधड़ कई दिनों तक चला। महान उपन्यासकार हेमिंग्वे ने भी आत्महत्या करने के पहले अपनी पीड़ा को बयां किया था। उन्होंने तमाम उन बातों का जिक्र किया था, जिन्हें वे अपने सेहतमंद जीवन के दौर में बेहतर तरीके से संपन्न कर लेते थे पर अब बिल्कुल बेबस थे। इस पीड़ा के बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या के विषय में बादल सरकार के नाटक ‘बाकी इतिहास’ में भी गहरी बात कही गई है। नाटक का प्रभावोत्पादक दृश्य है, जब आत्महत्या करने वाला पात्र मंच पर आकर उसकी आत्महत्या के कारण खोजने वालों से पूछता है कि क्या वे बता सकते हैं कि वे लोग अपना अर्थहीन जीवन क्यों ढो रहे हैं? बहरहाल, ये सब मनोवैज्ञानिक केमिकल लोचे हैं। सांस लेते रहना भी जीने के लिए अच्छा बहाना है। जब तक मस्तिष्क विचार शून्य नहीं हो जाता, तब तक जीना जरूरी है और सोद्देश्य भी है।
मराठी भाषा में बनी फिल्म ‘श्वांस’ में एक पिता, लाइलाज बीमारी के शिकार अपने पुत्र को अस्पताल से लेकर भाग जाता है। वह बाहर जाकर बालक की मनपसंद कुल्फी उसे खिलाता है। पास ही लगे मेले में झूले पर बैठाता है। दोनों खूब मौज-मस्ती करके शाम को अस्पताल आते हैं। पिता डॉक्टर से कहता है कि उसका बेटा कुछ मनभावन बातें अपने स्मृति कोष में सहेज कर इस दुनिया से जाए तो ये छवियां उसके साथ रहेंगी। संजय लीला भंसाली ने भी ऋतिक रोशन अभिनीत फिल्म ‘गुजारिश’ में इच्छा मृत्यु का विषय उठाया था, जिसे यूथेनेसिया या मर्सी किलिंग भी कहा जाता है। इसी विषय पर बनी एक हॉलीवुड फिल्म का नाम था ‘दे किल हॉर्सेस डोंट दे’। गोया की रेस में दौड़ने वाला घोड़ा लंगड़ा हो जाए तो उसे गोली मार देते हैं। यह मृत्यु ही उसकी मुक्ति है। खाकसार की लिखी फिल्म ‘शायद’ की गजल इस संदर्भ में याद आती है, जिसे दुष्यंत कुमार ने लिखा था वह इस तरह है कि ‘वह देखो उस तरफ उजाला है, जिस तरफ रोशनी नहीं जाती, कि ये जिंदगी हमसे जी नहीं जाती….।’
कुछ देशों में यूथेनेसिया को कानूनी मंजूरी दी गई है। मनुष्य की इच्छा और असाध्य रोगों के कारण मर्सी किलिंग को वहां जायज माना गया है।
बहरहाल, इस तरह यह एक प्रकार की आत्महत्या ही है और इस आत्महत्या को कानूनी मंजूरी देने से उसका दुरुपयोग हो सकता है। संपत्ति पर अधिकार के लिए आत्महत्या का स्वांग रचा जा सकता है। गीतकार शैलेंद्र का फिल्म ‘अनाड़ी’ के लिए लिखा गीत ही इस समस्या का समाधान है। ‘किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है।’