जीयै के अर्थ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
कोय भी माय-बाप के खुशी रो तखनी ठिकाना नै रहै छै जखनी बेटी के मांग में सिन्दूर पड़ी जाय छै। सीता के सीती में सिन्दूर पड़तैं ओकरो रूप आरो लावण्य आकर्षक और लुभावना होय गेलै। ऐकरौॅ पैन्हैॅ जे लड़की नांकी लागै छेलै उ$ साड़ी पिन्हतैं औरत लागैॅ लागलै। अद्भुत माया छै लड़की के ज़िन्दगी रौॅ। केवल रौत लड़की के बिदाय पर अड़लौॅ छेलै। संपत बाबू रो कहना छेलै कि लड़की अभी छोटी छै आरो दोसरौॅ बात कि वियाह में लड़की विदाय के रौहतौॅ हुनका परिवारौॅ में नै छै। यै पर केवलौॅ के कहना छेलै कि सौॅर-सवासिन ऐलौॅ छै। कनियाय के मुँह देखतै। फेरु कहिया ऐते उ$ सीनी। बात रो बतंगड़ होय रेल्हौॅ छेलै। विवाद बढ़ी रेल्हौॅ छेलै।
अंत में बुलाकी काका ऐलै। विवाद नै सुलझतें देखी कैॅ हुनी संपतैॅ बाबू कैॅ समझैलकै-"ब्याह के बाद हर एक माय-बापौॅ के माथा रो बोझौॅ हौला होय जाय छै। बेटी पर ससुराल वाला के हक होय जाय छै।"
अतना सुनतैं संपत बाबू भभकी उठलै-"के कहै छै कि बेटी बापौॅ के माथा रो बोझौॅ होय छै। घरौॅ के सब धान-चौैॅर, राखलौॅ रुंजी-पुंजी खर्च करला के बादौॅ नै पुरलै तैॅ दू बीघा खेत सूदभरना रेहन धरी कैॅ बेटी रो बियाह यहैॅ सुनै लैॅ करलै छियै। हमरौॅ बेटी लक्ष्मी छेकै। लछमिनियां बेटी. हेकरा कुछ होतै तैॅ हम्में सब जीव हक्कन करी के मरी जैबौॅ। हमरा परिवारौॅ में विदाय के रोहतौॅ नै छै। कुछ अमंगल, अनहोनी तखनी होय जैते तैॅ कानिये कैॅ की होतै।"
तहिया सच्चे में शादी के अवसरौॅ पर बेटी विदा नै होय छेलै। ओकरो शायद सबसे बड़ौॅ कारण बेटी के कम उम्र में ब्याह होना ही होतै। तीन सें पाँच बरसौॅ के बाद गौना होय छेलै। यै बीचौॅ में लड़का के ऐबौ-जैबौॅ भी लगभग बंदे रहै छेलै।
कहा-सुनी बढ़तें देखी कैॅ पंडित हलधर झा ने बीच-बिचाव करलकै-"देखौॅ जजमान, लड़का-लड़की के बियाह हम्में करैनें छियै। पुरोहित होय के नातें हमरौॅ बात ज़रूर मानौॅ। पैन्हें दूनो टा जजमान शांत होय जा।" पंडित जी कैॅ प्रभाव पड़लै। सभ्भे लोग चूप होय गेलै। तौली-तौली कैॅ एक-एक शब्द बोलना शुरू करलकै पंडितजी-"पैन्हैॅ ई समझौॅ जजमान कि अभी लड़का-लड़की दू में सें केकरौंह ई समझ नै छै कि शादी-बियाह रो असली मतलब की होय छै। जै लड़की कैॅ साड़ी पिन्हैॅ लैॅ नै आबै छै। ओकरौॅ साज-संभार के लूर नै छै, वें ससुराल केनां संवारतै। जियै रौॅ तैॅ ज़िन्दगी कीड़ा-मकोड़ा भी जीयै छै लेकिन मनुष्य जीवन रो जीयै के विशेष अर्थ आरो महत्त्व होय छै। ई कच्ची उमर में लड़का-लड़की के आभी अलग रहना ही स्वास्थ्य आरो लंबा जीवन लेली ज़रूरी छै। समझौॅ। समझै के बात छै। सब बात बेगछाय कैॅ कहै रौॅ नै छेकै।" सभ्भैॅ जमा लोगौॅ में कुछ ने बातौॅ कैॅ समझलकै आरो जादा लोगौॅ कैॅ मुकमुकी लागी गेलै। मतुर चूप सब होय गेलै।
लड़का के बाप होय के कारण आबे सोचै कि जिम्मेवारी केवल रौतौॅ पर छेलै। केवलौॅ कैॅ पंडित जी के बातौॅ में अर्थ नजर ऐलै आरौ कहलकै-"एक तैॅ परमिन आरो दोसरें वराहमन, हिनके बातौॅ पर तैॅ समाज टिकलौॅ छै। हिनकौॅ बात टाली कैॅ पाप आरो दोष अपना माथा पर कैॅ लिए? चलौॅ खिलावौॅ-पिलावौॅ, बारातौॅ कैॅ विदा करौॅ।"
दिन के दोसरौॅ पहर शुरू होय रेल्हौॅ छेलै। खैतें-पीतें तेसरौॅ पहर होय गेलै। बारात विदा रौॅ अर्थ छेलै कि प्रचंड बैशाखौॅ के धूप आरो लू के थाप सहना, बीमार पड़ना, चुरु-चुरु पानी लैॅ कौलट करना, विलटी-विलटी मरना। पूरे-पूरी चौदह कोस के रसता छेलै। कच्ची धूरा से भरलौॅ सड़क। बैलगाड़ी छोड़ाय कैॅ कोय दोसरौॅ उपाय जाय कैॅ नै छेलै। बारह जोड़ा बैलगाड़ी पर सत्तर-अस्सी बारात ऐलौॅ छेलै। बारहौॅ जोड़ा बैल बारह रंग। कोय सन-फन तैॅ कोय टुधुर-टुधुर। घौॅर जैंतें बारह बजी जैतैॅ रातौॅ कैॅ जंगल-पहाड़ौॅ के वियावान रसता। अंग्रेजोैॅ के राज। चोर, डाकू, उचक्का के डौॅर अलगे।
केवल रौतौॅ कैॅ यै विपत में बुलाकी काका कैॅ छोड़ी कैॅ दोसरौॅ कोय सहारा नजर नै ऐलै। जादा संख्या में बाराती भरी पेट कंठौॅ तक खाय कैॅ अफरी रेल्हौॅ छेलै। कुछछु सुतलौॅ ठर्रौॅ पारी रेल्हौॅ छेलै। बहुतैॅ बाराती केवलौॅ कैॅ बोलाय कैॅ साफ कही देलैॅ छेलै कि-"चानन नदी पार होतैं बेरा अस्त होय जैतों। बारातों के रसता में मरबैभौॅ की? रसता पकड़ै कैॅ बेरा नै रहलै केवल भाय।"
बुलाकी काका आबी गेलौॅ छेलै। हुनी कहलकै-"घबड़ावौॅ नै। बुलाकी जिन्दा छै। मरजाद, रहबै हो। कल भोरें चलबै। बारह बजे रातौॅ के बादौॅ से इंजोरिया छै। ठंडा-ठंडी अधरतिया के बाद खूब भोरें निकलवै। सुरुज के पेल्हौॅ किरण चानन पारौॅ में निकलतै।"
आरो बुलाकी आबी कैॅ संपतौॅ कैॅ कहलकै-"मरजादौॅ के नेतौॅ अब तांय नै भेजलैॅ छौॅ संपत बाबू"
"समधी विदा लेली तड़फड़ करै छेलै।"
"विदा के बात तैॅ मरजादौॅ के बादौॅ रौॅ छेलै। आभी तांय बिना मरजाद खैनें केकरौॅ बारात विदा होय छै? थकलौॅ-मरलौॅ बारात आबै छै। रात भर रो जगरना छै। रसता के थकलौॅ, फेरु बारात में ऐलौ आधौॅ सें बेशी लोग पैदले आबैॅ-जाय छै। यहैॅ कारण छै कि बारात एक रात आरामौॅ लेली ही मरजाद रहै छै। बड़ी हिनस्ताय होय जैतौं। एक दाफी सम्बंध बिगड़ला सें ओकरा संभारै में जनम बीती जाय छै।" बुलाकी बीचबचाव के संयत भाषा में समझेतें हुअैॅ कहलकै।
"मरजाद तैॅ रहतै छै। ई कोनौॅ नया बात तैॅ नै छै। मरजाद नै रहतै तैॅ आधौॅ बाराती तैॅ ज़रूरे बीमार पड़ी जैतैॅ। बच्चा-बुतरु जे बीस-बाईस ठो ऐलौ छै, उ$ की सही-सलामत धुरी कैॅ घरौॅ जाबै सकतै।" संपतौॅ शांते आवाजौॅ में कहलकै।
"इै बैशाखौॅ के लू आरो उमस से भरलौॅ गरमी। आदमी हफसी-हफसी मरी जैतैॅ।" गमछी सें अपना कैॅ हौकतें हुअें बुलाकी बोललै आरो उठी कैॅ खाड़ौॅ होय गेलै। "तैॅ देरी की, चलौॅ, उठौॅ, थरिया में नेतौॅ के सुपारी लैॅ, रात भर रुकैॅ कैॅ अनुनय करौॅ।"
"हम्में तैॅ तैयारे छियै।" कहतें संपत बाबू घौॅर गेलै आरो थरिया में सजलौॅ सामान हाथौॅ में लैकैॅ बाराती बासा दिस चली देलकै।
मरजादौॅ के नेतौॅ मिलतैं बाराती कैॅ चेहरा खुशी सें थिरकी गेलै। मरुवैलौॅ चेहरा पर हँसी नाची गेलै। रात में खाना-पीना हँसी-खुशी के साथ होलै। खुला आकाशौॅ के नीचैॅ बाराती मौॅन भरी सुतलै। तहिया मच्छर नै छेलै। खोजलौ सें नै मिलै छेलै। आदमी जन्नें-तन्नें घोलटी-पोलटी कैॅ आरामौॅ सें सूतै छेलै।
आरो अधरतिया के बाद तीनडरिया उगतैं गाड़ीवानें अपना बैलों के रास हाथौॅ में थामी लेलकै। गाँव बैलौॅ के गला में बाँधलौॅ घंटी आरो घुंघरू कैॅ आवाजौॅ से गूंजी उठलै। टन-टन, रुनझुन के मीठ्ठौॅ स्वर। हिन्नें चढ़, हुन्नें उतर के शोर। बाराती दिशा मैदान सें फरांकित होय के मौॅन चानन किनारा में ही बनाय लेनें छेलै।